Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

बुधवार, मार्च 03, 2021

मांसाहारियों के कुतर्कों का खंडन ~ Shubhanshu


कुतर्क 1. पेड़-पौधों में भी जान होती है, तो फिर क्या अंतर है शाकाहारी भोजन खाने में और मांसाहारी भोजन खाने में?

सत्य: पेड़-पौधों में तंत्रिका तंत्र (central nervous system) नहीं होता। अतः, उनमे मनुष्य तथा अन्य प्राणियों की तरह संवेदनशीलता नहीं होती। उन्हें दर्द नहीं होता। पेड़-पौधे काटने पर उनमे से रक्त नहीं बहता। पेड़ की डाली काटने पर भी उसमे नई डाल उगती है। आप अपने बच्चों को किसी फल के बगीचे में तो लेकर जा सकते है, परंतु किसी कत्तलखाने में नहीं लेके जा सकते। बहुत अंतर है शाकाहार और मांसाहार में।

कुतर्क 2. यदि आप किसी सुनसान टापू पर अकेले फंस गए, जहापर कोई शाकाहारी भोजन न हो, सिर्फ एक मुर्गी हो, तो क्या आप भूके मरेंगे, या उस मुर्गी को मारकर खाएँगे? 

सत्य: सबसे पहले यदि उस टापू पर खाने के लिए बिलकुल कुछ भी न हो, तो वह मुर्गी भी कैसे जीती होंगी? वहापर खानेलायक कुछ न कुछ तो होगा ही और यदि हम मान भी ले, की वहापर कुछ भी नहीं है, और मज़बूरी में हमें वह मुर्गी खानी पड़े, तो यह भी जान लो की मज़बूरी में मनुष्य अपना मूत्र भी पी सकता है, और कचरा भी खा सकता है | पर जब पिने के लिए शुद्ध जल और खाने के लिए अच्छा भोजन हो, तो क्या कोई मनुष्य अपना मूत्र पीकर और कचरा खाकर जिएगा? नहीं न? उसी तरीके से जब शुद्ध शाकाहारी भोजन हो, तब मांसाहार करने की क्या आवश्यकता है?

कुतर्क 3. यदि हम मांसाहार न करे, तो जानवरों की संख्या इतनी बढ़ेगी की मनुष्य को इस धरती पर पाव रखने के लिए भी जगा नहीं बचेगी ।

सत्य: क्या कोई कुत्ता, बिल्ली, शेर, आदि को खाता है? तो क्या आजतक उनकी संख्या का कभी विस्फोट हुआ? नहीं ना? उसी तरीके से अन्य प्राणियों की संख्या का विस्फोट भी नहीं होगा । कुदरत सबकी संख्या का संतुलन बनाए रखता है | किसी को उसमे दखल देने की आवश्यकता ही नहीं है | उल्टा कत्तलखानों में मांस का व्यापर बढ़ने के लिए जानवरों को इंजक्शन लगवाकर उनसे अधिक बच्चे पैदा करवाए जाते है | अतः, मांस खाना छोड़ दो, तो जानवरों की संख्या का विस्फोटीकरण भी रुक जाएगा |

कुतर्क 4. मांसाहारी प्रत्यक्ष रूप से पशुओं की हत्या करते है, परंतु शाकाहारी लोग उन पशुओं का भोजन(पेड़-पौधे) स्वयं खाकर उनकी परोक्ष रूप से हत्या करते है |

सत्य: सबसे पहले यदि कोई मांसाहारी किसी शाकाहारी पर यह आरोप लगा रहा हो की वह पेड़-पौधों को खाकर पशुओं का खाना खा रहा है, तो उसे यह भी समझना चाहिए की मांसाहार में भी सब्जियाँ होती है | इसका अर्थ यह है की मांसाहारी भी शाकाहार करते ही है | दूसरी बात यह है की कोई पशु फल, सब्जी, गेहू, दाल और चावल जैसी चीजे नहीं, बल्कि घास और पेड़ के पत्ते खाकर जीता है | इस हेतु, मनुष्य के फल और सब्जी खाने से उन्हें किसी भी प्रकार का फरक नहीं पड़ता और इस धरती पर भोजन की कोई कमी नहीं है । यह कुतर्क बिलकुल ही मुर्खता को दर्शाता है ।

कुतर्क 5. मनुष्य के दांत मांसाहार करने के लिए बनाए है ।

सत्य: यूँ तो हम यह भी कह सकते है की मनुष्य के पास दो हाथ है, तो क्या वह उन हाथों में बंदूक पकड़कर किसी को गोली मारकर किसी की हत्या करे? उसी तरह से हमें मजबूत दांत मिले है, इसलिए हम मांसाहार करने के बारेमे सोच नहीं सकते | मनुष्य के दांत शेर के दांतों जैसे तो नहीं होते न | मनुष्य को मजबूत दांत दिए है सुपारी और गन्ने जैसी मजबूत चीजे चबाने के लिए, न की मांसाहार करने के लिए | मनुष्य की पचनसंस्था मांसाहारी भोजन का आसानी से पाचन भी नहीं कर सकती | और यदि पचनसंस्था ही ख़राब हो जाए, तो मनुष्य को कई रोगों का सामना करना पड़ सकता है | मनुष्य की पचनसंस्था शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए ही बनी है |

कुतर्क 6. शेर भी मांसाहार करता है, तो फिर हम क्यों न करें?

सत्य: शेर नंगा भी घूमता है, तो क्या आप भी नंगे घूमोगे? इसलिए किसी भी चीज की तुलना किसी के साथ भी करना उचित नहीं | शेर पशु है ,उनके अंदर विवेक नहीं है ,पर आप तो मनुष्य हो ।इसलिए मनुष्य के करुणा दया आदि गुणों को धारण करो।

कुतर्क 7. मांसाहार बहुत पौष्टिक होता है, और सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है |

सत्य: मांसाहार में भले ही चूतिया बनाने के लिए कई पोषक तत्व हो, पर उनके साथ साथ कई किटाणु और बीमारियाँ भी होती है। जैसे cholestrol और कैंसरकारी कारक व पथरी पैदा करने के अवगुण, केसीन प्रोटीन लत लगाता है। इसलिए मांसाहार ग्रहण करने से मनुष्य में कई बीमारियाँ आती है | बहुत सी खतरनाक बीमारियों जैसे बर्डफ्लू, एंथ्रेक्स, एसकेरिस, फीताकृमि, चुनचुने आदि मांसाहारी भोजन से ही आते हैं।

हर पशु वनस्पति से ही भोजन ग्रहण करता है इसीलिए वनस्पति से प्राप्त भोजन से सबसे अधिक व सभी पोषक तत्व प्राप्त हो सकते है, इसलिए, मांसाहार करने की कोई आवश्यकता नहीं है| विटामिन बी12 मुहँ में बैक्टीरिया से और विटामिन डी थोड़ी देर धूप में रहने से मिल जाता है।

मांसाहार करने से मनुष्य की पाचनतंत्र भी बहुत ख़राब होता है, और उसमे कई तरह की बीमारियाँ आ सकती है | इसलिए मनुष्य को हमेशा ही शुद्ध शाकाहारी (वनस्पति आधारित भोजन) रहना चाहिए |

कुतर्क 8. जब हम साँस लेते है, तो कई सूक्ष्म जीवों की हत्या होती है | तो क्या वह हिंसा नहीं है?

सत्य: सूक्ष्म जीव बैक्टीरिया भी वनस्पति ही हैं और वे मरते-बनते रहते हैं, जंतु वायरस और एमीबा इंसान के दुश्मन हैं, उनको मारना उचित है। कुछ समय पहले इनका पता भी नहीं था इंसान को। इस तरह की चुतियापन्ति का सवाल वही करेगा जिसको अभी बटर चिकन खाने का कोई आखिरी जुगत लगाने का प्रयास करना ही हो भले ही उसकी हम लोग तर्क से गांठ मार दें। हम तो मच्छर, कीड़े और पागल कुत्ते को भी हमला करने पर मार सकते हैं और इंसान को भी। यह तो हमारा हक है आत्मरक्षा का। इस तरह की मूर्खतापूर्ण बात करने वाले थप्पड़ खाने को हमेशा तैयार रहें।

कुतर्क 9: तो क्या हम गाय ,भँस, बकरी ,मुर्गी,भेड़ तीतर, खरगोश के फार्म लगाना बन्द कर दें? मादा को हम use कर सकते है लेकिन नर बहुतायत में हो तो उनका क्या करें?

सत्य: हम ठेके पर कत्ल करते थे, कत्ल पर रोक लगने से हमारा सुपारी का धंधा बन्द हो गया। अब हम क्या करें? इस तरह का कुतर्क कुतर्कों का शहंशाह है। गलत कार्य पर रोक लगने पर अपराधी ही तो बेरोजगार होते हैं। ईमानदार हमेशा ईमानदार रहता है। जब शराब, चरस, गांजा, तंबाकू, बंदूक, और आतंकवाद पर रोक लगी थी। तब भी यही कुतर्क किया जाता रहा। गलत कार्यों का धंधा छोड़ना चाहिए। फल-सब्जियों को बेचिये। जानवरों को उनके मरने तक अपने बच्चे की तरह मुफ्त में पालिये या किसी NGO से संपर्क करें जो पशुओं के बेहतर निवास की व्यवस्था करेगी।

मांसाहारियों के पास अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अनेक कुतर्क है | और  veganism में सबके मुहँ तोड़ जवाब।

अतः शुद्ध शाकाहारी (वनस्पति आधारित भोजन पथ्य) बनो और दूसरों में भी जागृति फैलाओ | (कुछ जानकारी घटाई-बढ़ाई है ~ Shubhanshu Dharmamukt ने) 2019©

बुधवार, जनवरी 06, 2021

I have a Very Important Question for Vegan Theists

जो Vegan साथी जन आस्तिक हैं, उनसे एक प्रश्न है। अगर ईश्वर वाकई है तो हमें पहले क्रूर और फिर खुद ही के विवेक से Vegan बनने की ज़रूरत क्यों पड़ी? हमको लोगों को जगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? पृथ्वी को बचाने, ग्लोबल वार्मिंग से आने वाली सुनामियों को रोकने, और भुखमरी दूर करने के लिए हमें ही क्यों आगे आना पड़ा?

दुनिया का संचालन करने वाला क्या कर रहा है? जो गलत हो रहा, उसे होने दे रहा है और जब हम सही कर रहे हैं कुछ तो 70% दुनिया को हमारे ही खिलाफ कर रहा है। सभी महान और अच्छे लोगों को उम्र से पहले ही मार दिया या किसी दुष्ट को मारने दिया उसने जबकि बुरे लोगों को, अच्छे लोगों द्वारा कानून व सेना बना कर जान से मारना पड़ा है।

पृथ्वी की बुरी दशा और पशुओं की दुर्दशा क्यों हुई? सब हमें ही ठीक करना है और हम ही बिगाड़ रहे थे तो ये ईश्वर क्या करता है?

काहे इसकी इज़्ज़त करते हो? इसने आज तक अच्छा किया ही क्या है? खुद की इज़्ज़त करो क्योंकि जो कार्य उसे करना चाहिए था, वो हम कर रहे हैं।

मरे के लिए प्रार्थना करके दोषियों को गलत करने की खुली छूट देना बंद करो। मरा हुआ जंतु का जीवन अब कहीं नहीं है, जो तुम्हारी प्रार्थना उसे ज़िंदा कर देगी। हाँ अगर तुम खुद चिकित्सक बन कर उसे समय रहते बचा सको तो ज़रूर करो। लेकिन कायरों की तरह हाथ जोड़ने बन्द करो। इससे जुल्म नहीं रुकेगा।

सोचो और ईश्वर के सम्मान का एक भी कारण बताओ या आज ही अपने जीवन से एक और पाखंड हटाओ, लगे हाथ, तर्कवादी भी बन जाओ।

तर्कवादी (Rationalist) = विज्ञानवादी/युक्तिवादी/नास्तिक/धर्ममुक्त/सभी कुतर्को को नकारने वाला तर्कयुक्त सकारात्मक व्यक्ति। ~ Shubhanshu 2021©