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Scientific Secret of love ~ Shubhanshu




प्यार, शादी और जनसंख्या: एक रोचक नजरिया


लेखक: शुभांशु सिंह चौहान

मूल लिखा: 16 जून, 2017

संशोधित: 7 अगस्त, 2025


प्यार, शादी और बच्चों को पैदा करने की चाहत इंसान के दिल और दिमाग का खेल है। यह लेख इस बात की तह तक जाता है कि इंसान ऐसा क्यों करता है, और समाज के नियमों ने इसे कैसे जटिल बना दिया। बात को आसान और मजेदार ढंग से समझाने की कोशिश है, ताकि हर कोई इसे समझ सके।


इंसान का स्वभाव: एक से ज्यादा साथी की चाहत


इंसान का दिमाग ऐसा बना है कि वह एक से ज्यादा साथियों की ओर खिंचता है। यह कोई नई बात नहीं है। जंगल में रहने वाले 99% जानवर भी ऐसा ही करते हैं। इसका कारण है प्रजनन, यानी बच्चे पैदा करना। पुराने जमाने में, जब जिंदगी छोटी थी और खतरे ज्यादा थे, ज्यादा बच्चे पैदा करने से ही कोई समुदाय बच पाता था। ज्यादा बच्चे, ज्यादा संभावना कि कुछ तो जिंदा रहेंगे।


लेकिन समाज ने इस स्वभाव को काबू में करने के लिए शादी का नियम बनाया। शादी का मतलब सिर्फ प्यार या सेक्स नहीं, बल्कि बच्चों की परवरिश और समाज को स्थिर रखना भी है। फिर भी, इंसान का स्वभाव पूरी तरह नहीं बदलता। कई बार लोग एक साथी से बोर हो जाते हैं और दूसरों की ओर देखने लगते हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि 1-10% बच्चों के जैविक पिता वही नहीं होते, जिन्हें पिता माना जाता है। यह इस बात का सबूत है कि इंसान का स्वभाव एक से ज्यादा साथियों की ओर झुकता है।


(संदर्भ: Anderson, K. G. (2006). "How Well Does Paternity Confidence Match Actual Paternity?" Current Anthropology, 47(3), 513-520.


विवरण: यह अध्ययन विभिन्न संस्कृतियों में गैर-पितृत्व (non-paternity) की दरों का विश्लेषण करता है। यह अनुमान लगाता है कि 1-10% मामलों में बच्चे जैविक रूप से उस पुरुष के नहीं होते, जिसे पिता माना जाता है। यह बहुविवाही प्रवृत्तियों और सामाजिक मानदंडों के बीच तनाव को दर्शाता है।)


बच्चे पैदा करने का विज्ञान


औरत के शरीर में हर महीने एक अंडा बनता है, जो आमतौर पर मासिक धर्म के 14वें दिन बाहर आता है। अगर उस समय पुरुष का वीर्य गर्भाशय तक पहुंचता है, तो गर्भ ठहरने की सबसे ज्यादा संभावना होती है। यह संभावना 30-35% तक हो सकती है, बशर्ते दोनों स्वस्थ हों। यह मौका डिंबोत्सर्ग से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक रहता है। इस समय औरत के शरीर में कुछ रसायन बढ़ते हैं, जो उसे यौन संबंध के लिए ज्यादा उत्साहित करते हैं। योनि में गीलापन बढ़ता है, जो सेक्स को आसान बनाता है।


(संदर्भ: Wilcox, A. J., Weinberg, C. R., & Baird, D. D. (1995). "Timing of Sexual Intercourse in Relation to Ovulation — Effects on the Probability of Conception, Survival of the Pregnancy, and Sex of the Baby." New England Journal of Medicine, 333(23), 1517-1521.


विवरण: यह अध्ययन बताता है कि डिंबोत्सर्ग के दिन गर्भाधान की संभावना सबसे अधिक होती है, जो स्वस्थ दंपतियों में लगभग 30-35% तक हो सकती है। यह संभावना अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है।)


लेकिन पुरुष को यह समय पता नहीं होता। पहले के जमाने में मासिक धर्म को देखकर लोग इसका अंदाजा लगा लेते थे, लेकिन आज इसे गंदा मानकर छिपाया जाता है। इससे प्रजनन के बारे में जानकारी कम हो जाती है। पुरुष का दिमाग हर समय सेक्स की ओर खिंचता है, क्योंकि उसका शरीर ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए बना है। यह चाहत हमारे जीन में बसी है, जो हमें जनसंख्या बढ़ाने की ओर धकेलती है।


(संदर्भ: Garg, S., & Anand, T. (2015). "Menstruation Related Myths in India: Strategies for Combating It." Indian Journal of Public Health, 59(4), 264-269.


विवरण: यह अध्ययन भारत में मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक कलंक और मिथकों का विश्लेषण करता है। यह बताता है कि मासिक धर्म को अशुद्ध मानने की वजह से इसे छिपाया जाता है, जिससे प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कम रहती है।)


ज्यादा बच्चे पैदा करने की पुरानी आदत


पुराने जमाने में लोग कम समय तक जीते थे। बीमारियां, जंगली जानवर और दूसरी मुसीबतें इतनी थीं कि ज्यादातर लोग जवानी तक ही जी पाते थे। उस समय ज्यादा बच्चे पैदा करना जरूरी था, ताकि इंसान की प्रजाति बची रहे। जो लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते थे, वही जीवित रह पाते थे। यह बात हमारे दिमाग में गहरे तक बसी है।


आज चिकित्सा विज्ञान ने जिंदगी को लंबा कर दिया। लोग अब 80 साल तक जी रहे हैं। लेकिन दिमाग वही पुराना है, जो ज्यादा बच्चे पैदा करने की सोचता है। नतीजा? जनसंख्या बेतहाशा बढ़ रही है। इससे जमीन, पानी और पैसों की कमी हो रही है। मान लीजिए, एक छोटा शहर है, जहां 50 परिवार रहते हैं। वह 60 परिवारों का खर्च उठा सकता है। अगर इससे ज्यादा लोग हो गए, तो गरीबी, बेरोजगारी और चोरी-डकैती बढ़ने लगती है। यही हाल आज कई जगहों का है।


शादी: नियम या जंजाल?


शादी का नियम इसलिए बनाया गया ताकि परिवार बने, बच्चे पलें और समाज में स्थिरता आए। लेकिन यह इंसान के स्वभाव के खिलाफ जाता है। भारत में शादी एक बड़ा तमाशा है। दहेज, रुतबा और परिवार की इज्जत की बातें चलती हैं। औरत को अक्सर घर में नौकर की तरह देखा जाता है। उसकी इच्छाएं और आजादी दब जाती हैं। दहेज न देने पर उसे सताया जाता है। कभी-कभी तो उसकी जान तक चली जाती है।


(संदर्भ: World Economic Forum (2023). "Global Gender Gap Report."


विवरण: यह रिपोर्ट भारत सहित विभिन्न देशों में लैंगिक असमानता को मापती है। यह बताती है कि पितृसत्तात्मक समाजों में महिलाओं को अधीनस्थ भूमिकाओं में रखा जाता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता सीमित होती है।)


कई बार शादी में औरत की सहमति को नजरअंदाज किया जाता है। सेक्स के लिए उसकी मर्जी पूछी ही नहीं जाती। समाज इसे गलत नहीं मानता, लेकिन यह गलत है। कुछ लोग बोरियत की वजह से दूसरी औरतों की ओर देखते हैं। यौन व्यापार में फंसी औरतों के बच्चे भी समाज में मुश्किल जिंदगी जीते हैं। कई बार उनकी बेटियों को भी उसी धंधे में धकेल दिया जाता है। यह सब समाज के गलत नियमों की देन है।


(संदर्भ: Sengupta, S., & Saha, M. K. (2006). "The Social Context of Sex Work in India." Social Work in Public Health, 21(3-4), 139-160.


विवरण: यह अध्ययन भारत में यौनकर्मियों और उनके बच्चों की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। कुछ क्षेत्रों में बेटियों को यौन व्यापार में धकेलने की प्रथा देखी गई है, जो सामाजिक दबावों का नतीजा है।


संदर्भ: National Crime Records Bureau (NCRB) (2022). "Crime in India Report."


विवरण: NCRB की रिपोर्ट भारत में यौन हिंसा के आंकड़े और सामाजिक कारकों का विश्लेषण करती है। यह बताती है कि पितृसत्तात्मक मानदंड और सामाजिक-आर्थिक कारक यौन हिंसा को बढ़ावा दे सकते हैं।)


प्यार और आकर्षण का तमाशा


प्यार एक अनोखा एहसास है। यह हमारे दिमाग में बनने वाले रसायनों, जैसे डोपामिन और ऑक्सीटोसिन, की वजह से होता है। ये हमें खुशी और लगाव का एहसास कराते हैं। हमारे पसीने में कुछ खास गंध होती है, जो बिना सूंघे भी दूसरों को आकर्षित करती है। लेकिन आजकल डिओडोरेंट और साफ-सफाई ने इस गंध को कमजोर कर दिया। फिर भी, पहली मुलाकात में किसी की ओर खिंचाव महसूस करना इसी का कमाल है।


प्यार कई तरह का होता है—मां-बाप का, भाई-बहन का, दोस्तों का, और वह जो दिल को धक-धक करता है। लेकिन रोमांटिक प्यार में सेक्स की चाहत भी शामिल होती है। एक ही साथी के साथ बार-बार सेक्स करने से बोरियत हो सकती है। कुछ लोग इसे दूर करने के लिए दवाएं लेते हैं, जैसे वियाग्रा। लेकिन इनसे दिल की बीमारी वालों को नुकसान हो सकता है। अगर लोग अपने स्वभाव को समझें और खुलकर बात करें, तो रिश्ते आसान हो सकते हैं।


(संदर्भ: Kloner, R. A. (2004). "Cardiovascular Effects of Sildenafil During Exercise in Men with Known or Probable Coronary Artery Disease." American Journal of Cardiology, 93(5), 569-574.


विवरण: यह अध्ययन सिल्डेनाफिल (वियाग्रा) के हृदय संबंधी दुष्प्रभावों की जांच करता है। यह बताता है कि हृदय रोगियों में इसके उपयोग से जोखिम हो सकता है, खासकर बिना चिकित्सकीय सलाह के।)


जनसंख्या का बोझ


ज्यादा लोग, कम संसाधन—यह आज की सबसे बड़ी समस्या है। लोग ज्यादा जी रहे हैं, लेकिन जमीन और पैसे की मात्रा वही है। इससे परिवारों में झगड़े बढ़ रहे हैं। जवान लोग चाहते हैं कि उनके मां-बाप की संपत्ति जल्दी मिले, लेकिन बुजुर्ग लंबे समय तक जी रहे हैं। सीमित संसाधनों की वजह से गरीबी और असमानता बढ़ रही है। अगर यही हाल रहा, तो लोग एक-दूसरे से छीनने लगेंगे। यह समाज को हिंसक बना सकता है।


रास्ता क्या है?


इंसान का स्वभाव और समाज के नियमों में तालमेल बिठाने के लिए कुछ करना होगा:


गर्भनिरोध का इस्तेमाल: कंडोम, गोलियां या दूसरी चीजें बच्चों की संख्या को काबू में रख सकती हैं। ये बीमारियों से भी बचाते हैं।


नए रिश्ते: शादी ही सब कुछ नहीं। लिव-इन रिलेशनशिप में लोग अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं।


खुली बात: प्रजनन और रिश्तों के बारे में खुलकर बात करने से गलतफहमियां कम होंगी।


कम बच्चे: जहां लोग पहले ही बहुत हैं, वहां कम बच्चे पैदा करने से संसाधनों का बोझ कम होगा।


आखिरी बात


इंसान का स्वभाव उसे एक से ज्यादा साथियों की ओर खींचता है, लेकिन समाज ने शादी के नियम बनाए ताकि सब कुछ व्यवस्थित रहे। पर ये नियम कई बार दिक्कतें पैदा करते हैं—दहेज, हिंसा, और औरतों का दबना। अगर हम अपने स्वभाव को समझें, गर्भनिरोध का इस्तेमाल करें और रिश्तों में आजादी दें, तो जिंदगी आसान हो सकती है। जनसंख्या को काबू करना और एक-दूसरे का सम्मान करना ही बेहतर समाज की नींव है।


अस्वीकरण: ये विचार लेखक के हैं। आप अपने दिल और दिमाग से जो सही लगे, वही करें।

1 टिप्पणी:

Sudhir ने कहा…

Sahi h ye sb yu hi hota h