कहानी: VSS Chauhan 2020©
एक पुजारी ने मरते समय बेटे से कहा, "ये सब पोथी पत्रा आज से तुम्हारा है। ये मंदिर में पुजारी का सब काम तुम देखोगे आज से।"
बेटा: पिताजी, लेकिन मैं तो नास्तिक हूँ।
पुजारी: वो तो मैं भी हूँ। धर्म-कर्म से कोई आस्तिक नहीं हो जाता है। आस्तिकता/नास्तिकता तो मन से होती है। कर्म चाहे धर्म-अधर्म में लिप्त क्यों न हो।
बेटा: मतलब दुनिया जो भी सोचे, ऐश तू कर? मतलब एक पुजारी भी नास्तिक हो सकता है?
पुजारी: बिल्कुल। हमारे वीर सावरकर जी भी तो ऐसे ही नास्तिक थे। हम कौन सा असली ईश्वर की सेवा कर रहे? मूर्ति ईश्वर नहीं। प्राण प्रतिष्ठा ढोंग है। तसल्ली है। प्राण तो मानव में हैं, उसमें इतनी सामर्थ्य कैसे कि पत्थर में ईश्वर पैदा कर दे? वो बस पत्थर है। पत्थर की सेवा करना नास्तिकता ही है।
बेटा: समझ गया! लेकिन मैं कोई और काम भी तो कर सकता हूँ?
पुजारी: नहीं, और काम में खतरा है। लोग पुजारी की रक्षा खुद से पहले करते हैं। जबकि हम उनको मूर्ख बना कर उनसे सब कुछ हड़पते हैं। वे खुद हमारे पास आकर धार्मिक कृत्य करवाते हैं। बदले में पैसा मिलता है। भोजन और वस्त्र भी। सबसे सुरक्षित मंदिर ही है। पुलिस भी पूरी वर्दी में नहीं घुस सकती। इस लोकडाउन में गांड फट गई और मैं जल्दी मर रहा हूँ, अन्यथा सारा जीवन ऐश से कटता। जल्द ही ये सब खत्म होगा और फिर से अपना धंधा नई ऊंचाई पर होगा। लेकिन ध्यान रहे। नास्तिकता केवल मन मे रहे।
बेटा: जी पिता जी। आप जैसे नास्तिकों के कारण ही नास्तिकता बदनाम है। साला पता ही नहीं चलता कि आस्तिक कौन और नास्तिक कौन है? वाह! नास्तिकता मन में रहे और कर्म आस्तिकों जैसे? वाह! नास्तिक से अपने मन की करवाने की क्या निंजा तकनीक निकाली है। मतलब आपके धंधे पर कोई आंच न आये? चाहें लोग धर्मकर्म में बर्बाद हो जाएं? दूसरों का नुकसान करके अपना जीवन जीने वाले धूर्त होते हैं, पिता जी।
आज मैं ये सब सामान जला कर आपकी धूर्त सोच को खत्म कर रहा हूँ। आपके कर्म आपने भुगते और मुझे मेरे भुगतने दीजिये। आप जैसे लोग ही गिरगिट नास्तिक हैं। ऐसा एक गिरगिट विद्वान जाम्बालि, रामायण में भी था। मैं सब समझ गया। ये प्राचीन काल से ही हरामीगिरी होती आ रही है। मुझे आपकी सलाह अच्छी नहीं लगी।
आपकी धूर्तता इस लिये उचित है क्योंकि आपको लगता है कि स्वर्ग-नर्क कुछ नहीं होता तो जो मर्जी करो, सब उचित है लेकिन, करुणा, दया, सहानुभूति जैसे गुण हर जीव में पाये जाते हैं। सम्मान और अपमान खुद भी करता है अपना, मानव।
स्वाभिमान, संतुष्टि, कृतज्ञता, आदर आदि स्वभाव गत चरित्र ही इंसान को महान बनाते हैं। इनका आस्तिकता नास्तिकता से कोई मतलब नहीं लेकिन लोग इनका दुरूपयोग करके खुद को ही गड्ढे में धकेल देते हैं। आज आप मृत्यु शैया पर हैं क्योंकि आपके अपने कर्मों ने आपको सेहत का ध्यान नहीं रखने दिया।
आपने पशुउत्पाद खाकर और खिला कर पूरे परिवार को न सिर्फ हत्यारा बनाया; पृथ्वी पर जीवन खत्म करने वाली ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ाया, बल्कि हम सबको कोलेस्ट्रॉल और कैंसर देकर अपने जैसा रोगी भी बना दिया।
मैं यह गलती नहीं करूंगा। मैं चरित्रवान धर्ममुक्त नास्तिक और चरित्रवान vegan बनूँगा। विरोध नहीं तो समर्थन भी नहीं करूँगा। FB पर शुभ भाई से मिल कर मेरी सब बुद्धि साफ हो गयी। अन्यथा आज मैं शर्मिंदा हो रहा होता। पिता जी, गंगा जल और टोटी का पानी एक ही है। पी लो और निकल लो। नमस्ते।
पुजारी: मेरा जन्म सफल हुआ! तुझ जैसे बेटे के लिये ही सारी दुनिया में भटकता रहा और तू मुझे अब मिला है, जब मैं बीमारी से मर रहा हूँ। कौन है वो जिसने तुझे साक्षात देवता बना दिया? तू ही बदलेगा, ये घटिया समाज। मैं तो कायर था। हार कर उसी गंदगी में डूब गया। मुझे लगा ही नहीं था कि कोई ऐसा बन सकता है। इसलिये बेटे तुझे गलत सलाह दे डाली। बेटा माफ कर देना मुझे। हिच्च!
इसी के साथ पुजारी मर गया और पहली बार पुत्र के मन में अपने पिता के प्रति प्रेम पैदा हुआ। वह रोने लगा और कहता जा रहा था, "पिताजी, ये सब आपने मुझसे पहले क्यों न पूछा? आज आप ऐसा बोल रहे और मैं आपको गलत समझता रहा। मुझे क्या पता था कि आप कमज़ोर थे। आप को मोटिवेट करने वाला कोई नहीं मिला इसलिये आपने गलत राह अपना ली। पिताजी, वापस जिंदा हो जाओ, हम फिर से नया जीवन शुरू करेंगे। पिताजी..."
पास में खड़ी माँ सब देख रही थी। लड़के के पीछे मुड़ के देखते ही आंसू पोछते हुए बाहर भाग गई। आज उसने तय किया कि उसके पति का शव विद्युत शवदाह गृह में ही जलाया जाएगा। आज दोनो फूट-फूट के रो रहे थे, पुजारी के मर जाने के दुःख में कम और जीवन परिवर्तन की खुशी में अधिक। उधर पुजारी की मृत आंखों से भी 2 बूंद खुशी के आंसू टपक पड़े। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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