जंतुविज्ञान के शिक्षक: मानव के कुछ प्रमुख लक्षण बताओ।
शुभ: Sir, मानव पशु-जगत से आया एक निहायत ही चूतिया प्राणी है। इसने न सिर्फ अपनी दुर्बुद्धि से प्रकृति, पर्यावरण, नेचुरल इंस्टिंक्ट, समाज, व इंसानी चरित्र का नाश किया बल्कि अब अपनी जनसंख्या बढ़ा कर पृथ्वी के बचे खुचे हिस्सों पर भी कंक्रीट के जंगल बना देना चाहता है।
इसने न सिर्फ प्राकृतिक जीवन जीने वाले निरीह, अहिंसक अपने पूर्वजों समान पशुओं की हत्या की बल्कि उनको विलुप्त तक कर दिया। डोडो पक्षी अब इस दुनिया में नहीं है। उसकी वजह से एक अद्भुत वृक्ष भी विलुप्त हो गया जो केवल उसके द्वारा आधे पचाये बीज से पैदा होता था।
और ऐसा केवल उसके स्वादिष्ट मांस को खाने के लालच में किया गया। जबकि मानव शरीर Vegan फलाहारी प्रकार का है। ऐसे तमाम उदाहरण आपको जीववैज्ञानिक इतिहास में मिल जाएंगे। रेड डाटा बुक जल्द ही विलुप्त होने जा रही जन्तु प्रजातियों की एक सूची है।
जन्तु और वनस्पति इस तरह से आपस में गुंथे हुए हैं कि अगर एक को भी नष्ट करोगे तो दूसरा स्वतः ही नष्ट हो जाएगा। वनस्पतियों का जीवन व प्रजनन जन्तुओ द्वारा फैलाए (प्रकीर्णन) गए बीजों व मधुमक्खी, तितली, पतंगे, भौंरे, पक्षियों आदि पर निर्भर है। यही इनका साथी बन कर धरा पर जंगल बनाते हैं। केवल मधुमक्खी अगर खत्म हो जाये तो मनुष्य 4 साल में विलुप्त हो जाएगा। नर मच्छर भी यही कार्य करते हैं।
मानव ने न सिर्फ खदानों के ज़रिए पृथ्वी को खोखला किया बल्कि गलत उपकरणों को बना कर ओज़ोन परत को भी घायल कर दिया है। जो 2050 में ही अगर मानव थोड़ा जागरूक रहा तो शायद भर सकेगी।
न सिर्फ ओजोन परत, बल्कि ग्रीन हाउस गैसों, जैसे मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड को भारी मात्रा में मांस, डेयरी, पोल्ट्री फार्मिंग और बेहताशा फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) जैसे पेट्रोलियम, कोयला को पृथ्वी से चूस व खोद के, जला कर, उससे बिजली की ज़रूरत को पूरा करके पैदा कर दिया है। इसके कारण ग्लोबल वार्मिंग का जन्म हुआ और ध्रुवों व पाताल पर जमा भारी मात्रा में बर्फ पिघलने लगी है। इससे न सिर्फ रूस में भयंकर गड्ढे पैदा हो गए हैं बल्कि समुद्र का जलस्तर खतरनाक स्तर तक जाने वाला है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पृथ्वी पर जो जल महासागर में हमको दिखता है वह पीने योग्य नहीं है। जो जल झरनो व नदियों में है वह पिघलती बर्फ ही है जो पीने लायक है। परंतु मानव ने कोई नदी ऐसी नहीं छोड़ी जिसको उसने ज़हरीला न कर दिया हो। अब वो पानी ज़हर बन चुका है।
शहरीकरण होने, पक्की वाटरप्रूफ सड़कें बनने से न सिर्फ हरियाली नष्ट हुई बल्कि वाटर ब्लॉक भी पैदा हो गया है। वर्षा का जल पीने योग्य होता है। यही भूमि में फिल्टर होकर गहरे में शुद्ध रूप में उपलब्ध रहता है। लेकिन मानव ने मिट्टी में इतना ज़हर दफना दिया है कि वो पानी भी अब ज़हरीला हो चला है।
जल निगमों की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भूमि में शुद्ध जल का स्तर समाप्ति की कगार पर पहुँच रहा है। मानव ने वाटर हार्वेस्टिंग न करके शुद्ध जल नालों के ज़रिए बहा कर बेकार कर दिया। इस जल को भूमि मे जाने से रोका जा रहा है। सड़कें न भर जाएं इसके लिए समाज नगरनिगम को डाँट लगाता है लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग के ज़रिए पानी ज़मीन में समाने के इंतजामों पर चुप्पी साध लेता है।
खुद मानव भी अपनी करतूतें जानता है लेकिन उसने इनको बेशर्मी से धर्म और समाज के कायदे कानूनों के पीछे छुपा लिया है। वह हर गलत कार्य करके उसको ईश्वर पर डाल देता है जो उसने केवल दोषारोपण करने हेतु काल्पनिक पात्र के रूप में बनाया है। उसका कोई प्रमाण इस को खुद नहीं मिला आज तक।
मानव ने अंतरिक्ष को खंगाला और उसे कोई ईश्वर नहीं मिला लेकिन बेशर्मी की इन्तहां देखिये कि अभी भी उसी लीक पर अड़ा बैठा है। पृथ्वी ग्रह को निर्जन बना देने का कुछ एहसास हुआ अवश्य है लेकिन बदलाव नहीं आया है। उल्टे अब दूसरे ग्रहों पर मानव की नज़र टिकी हुई है। मंगल और चंद्रमा पर घर बसाने के सपने कुछ अमीर लोग अभी से देखने लगे हैं। इसी कोशिश में सारा सौरमंडल मानव ने धात्विक कचरे से भर दिया है जो गाहे-बगाहे वातावरण में नीचे गिरता रहता है।
हम समाज में एक दूसरे को मानव नहीं समझते। लुटेरा, बलात्कारी और चोर समझते हैं। आखिर क्यों? क्योकि हम खुद को अच्छी तरह से जानते हैं। हम मानव किसी मरते हुए घायल की वीडियो बना कर शेयर करते हैं। उसके लिए एम्बुलेंस नहीं बुलाते। हम मानव कहीं होती हिंसा में दर्शक ज़रूर बनते हैं लेकिन कभी पुलिस को फोन नहीं लगाते। बीच बचाव तो, कोई अपना खतरे में हो, तो ही करते हैं। तमाशा देखने फ्री में आ जाते है।
'अगला करेगा तो ही मैं करूँगा' कह कर सब जीती मक्खी निगल जाते हैं। लेकिन जब अगला मरेगा तभी मैं मरूँगा, ऐसा कभी नहीं होता। मरते सब हैं, लेकिन हमारे कर्म हमारा जीवन काल तय करते हैं। बस जितना जियो, निर्दोष जिओ, यही सबका ध्येय होना चाहिए।
हमारा भोजन, कपड़ा, मकान और सम्भोग साथी निर्दोष होना चाहिए। किसी का हक न मारा जाए और किसी के साथ अन्याय न हो इसके लिए हमको जीवन संघर्ष तो करना चाहिए लेकिन किसी और को जैसे अपने बच्चे पैदा करके इसे किसी निर्दोष को हस्तांतरित नहीं करना चाहिए।
हमको याद रखना चाहिए कि एक मानव पूरे वंश को पैदा करता है जिसमें अनगिनत मानव हो सकते हैं। उस पूरे वंश के द्वारा होने वाले भावी नुकसान के ज़िम्मेदार आप अकेले बन सकते हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सम्पूर्ण पृथ्वी को नष्ट करने के लिए 1 इंसान ही काफ़ी है।
शिक्षक: तेरी माँ का झोपड़ा! निकल बाहर झोपड़ी के। साला टीचर मैं हूँ और पूरा पीरियड तेरे लेक्चर में निकल गया। सुन ले कान खोल के चादर मोद, ये सब अफवाहें हैं और मानव जानवर नहीं है समझा? सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर की बनाई अनमोल कृति है और बच्चे उसका सबसे खूबसूरत उपहार हैं। साले हिजड़े। तेरे माँ बाप रोते होंगे कि कैसी औलाद पैदा कर डाली। तेरे जैसे तो न पैदा हों तो ही बेहतर है। साला नास्तिक, हिजड़ा, चूतिया कहीं का। अपने बाप को बुलाकर लाना कल, समझा? वरना तेरा नाम काट के TC पकड़ा दूंगा। निकल साले। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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