भाईचारा: वास्तविक या अपना काम चलाने के लिए किया गया ढोंग?
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-बौद्ध-जैन-ईसाई।
आपस में सब भाई-भाई? मित्र क्यों नहीं?
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
फिर कौन सिखाता है? धर्ममुक्त?
वाकई? एकदम सत्य। ये लोग भाई बहिन ही तो हैं। तभी तो उनके जैसे ही आपस में लड़ते और विवाह/सेक्स नहीं होने देते हैं।
सारा झगड़ा किसे लेकर है जनाब? मजहब को लेकर ही तो है? काहे चूतिया बना रहे हो?
क्या वाकई धार्मिक सद्भावना सम्भव है? या ये ढोंग एक ज़रूरत है, एक स्थान पर स्थापित समाज की? सबका काम एक-दूसरे से चल रहा है, इसलिये मुहँ पर मुस्कान रखनी ज़रूरी है। दिल की नफरत, नफे को घटा देगी।
दोनो तरफ दबी जुबान में छींटाकशी होती रहती है। लोग बवाल न हो जाये इसलिये चुप रहते हैं। लेकिन एक सीमा होती है। दोनो तरफ जलावन हमेशा रहेगी अगर भाई चारे का ढोंग रहेगा। ये वैसा ही है कि अपनी अटकी है तो क्या करें?
विवाह दूसरे धर्म में करके देखो, दूसरी जात में करके देखो। भाईचारा दिखेगा। ऐसा दिखेगा कि देखने के लिए जिंदा नहीं बचोगे। जब तक एक दूसरे के जीवन में दखल नहीं देते। भाईचारे का ढोंग रहेगा।
लड़की की शादी हिंदू करेगा तो गोत्र-जाति देख कर, हैसियत देख कर और कुंडली देख कर करेगा। अपने परिवेश और अपने जैसों के यहाँ करेगा। अब उसमें उसे टैंट और व्यवस्था अगर मुसलमान से करवानी पड़े तो करवाएगा। ये भाई चारा नहीं, ज़रूरत है। कितने मुसलमान उसकी बेटी की शादी में आते हैं यह ज़रूर देखने वाली बात है। यही आप मुसलमान के साथ देख सकते हैं। अल्पसंख्यक होने के नाते वे थोड़ा ज्यादा नाटक कर के दिखा सकते हैं लेकिन उनकी अलग बस्ती सब साफ कहती है कि इनकी दूसरे धर्म के साथ गुजर बसर नहीं होनी।
अंदर ही अंदर मुसलमान जानता है कि भाईचारा केवल दंगे से बचने का एक प्रोटोकॉल है। सहन करोगे तो फायदे में रहोगे।
लेकिन क्या एक दिन कोई नेता वोट के लालच में इस भाईचारे की पोलपट्टी खोल कर आपको नहीं भड़का सकता? भड़का सकता है। भड़काता रहा है। फिर भड़कायेगा। इसलिये ये भाईचारे का ढोंग छोड़ के सब अपने-अपने धर्म को त्यागो। तभी बदलाव आएगा।
अन्यथा यूँ ही आप लोग वोटों के लिए किसी की कठपुतली बनते रहोगे। अपनो के खून से आपके हाथ गंदे होंगे और नोट कोई मोटे पेट वाला अपनी कोठी पर बैठ कर कमायेगा। वो जितना कमायेगा। उतना ही उसका सम्मान बढ़ता जाएगा।
गंदी राजनीति के दल-दल से आपको धर्ममुक्त होना ही निकाल सकता है लेकिन याद रखना, धर्ममुक्त स्वतंत्रता है। ये किसी और विचारधारा जो हिंसा का समर्थन करती हो, न जुड़ा हो। जैसे माओवाद। अन्यथा धर्ममुक्त होकर भी कोई न कोई माओवादी राजनेता, आपको कठपुतली बनाता रहेगा। लहू से होली खेलने वाले ये भी हैं। इनमें और धार्मिकों में बस विचारधारा का अंतर है। व्यवहार एक जैसा ही है। ~ Shubhanshu 2020©
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