Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

We all are earthlings!



धार्मिक लोग, 'इंसान' को पशुओ से अलग करने हेतु पशुओं का शोषण करने को कहते हैं।

पशु से मानव (पशुओं की एक प्रजाति) बना, ये सत्य, वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं।

पशुओं में क्या गलत है? जो मानव उनको, मानवो से अलग (गलत) बताते हैं?

जानवरों में मैंने नहीं देखे जेल और थाने।
न देखी नियमों से बनी सभ्यता की धांधली।
नहीं देखे मैंने कभी जानवरों में दानव।
इंसानो में ही मैंने उनको देखा है।
नहीं मरता कोई निर्दोष प्रकृति में कभी।
कोई मरता आत्मरक्षा से तो कोई भोजन है किसी का।

हम खुद को ही श्रेष्ठतम बोल के खुश हो लेते हैं।
श्रेष्ठता का कोई नामोनिशान नहीं दिखाते।

क्या ये निम्न गुणों वाले, वाकई श्रेष्ठ हैं?

◆ विटामिन D को शरीर के लिए नुकसान देह बताने वाले वस्त्र निर्माता?
◆ स्त्री के नग्न शरीर को कुरूप और भद्दा बताने वाले, नग्न पुरुष वाली संस्कृति के रक्षक?
◆ इंसानो में ही भेद बना कर एक को दूसरे से श्रेष्ठ बता कर निम्न पर अत्याचार करने वाले?
◆ नर और मादा में भेद करके एक को दूसरे से श्रेष्ठतम बता कर निम्न का शोषण करने वाले?
◆ निर्दोष असहायों की संपत्ति को लूटने वाले? उनसे गुलामी करवाने वाले?
◆ ईमानदार और अच्छे लोगों को गोली मारने वाले?
◆ सड़क पर दुर्घटना होने पर मरते तड़पते लोगों की वीडियो बनाने वाले?
◆ ग्लोबल वॉर्मिंग को अफवाह और बढ़ती मानव जनसंख्या को वरदान बताने वाले? ये जानते हुए भी कि एक इंसान की पीढ़ी न जाने कितने पेड़ों, जानवरों और इंसानों की बलि लेती है?
◆ स्वाद के लिए निरीह, अपनी रक्षा करने में असमर्थ, जंतुओं की हत्या करके, उनको प्लेट में सजाने वाले और उनकी खोपड़ियों व खालों को मेहमानों के कमरे में सजाने वाले भीभत्स लोग?
◆ ज़रा-ज़रा सी बात पर 50 लोगों को बुला कर कत्लेआम करने वाले लोग?
◆ कानून बना कर उससे कैसे बचें इस पर रिसर्च करने वाले अपराधी?
◆ अस्पताल बना कर कैसे मरे को और मारें और उसकी लाश के भी लाखों रुपए वसूलने वाले सभ्य लोग?
◆तरह तरह के धर्म/पँथ बना कर एक दूसरे को नीचा दिखाने और नफ़रत के इतिहास गढ़ने वाले?
◆ विज्ञान और कानून के दम पर जीवन जीने वाले और उसी को तुच्छ बता कर उस पर थूकने वाले?
◆ मेहनत और बुद्धि से जीवन जीने के स्थान पर धोखाधड़ी से सबकुछ मिल जाने की आशा में किसी काल्पनिक शक्ति की आराधना, आवभगत करने वाले?
◆ गुरुओं को ईश्वर और भगवान बताने वाले?
◆ जिन गुरुओं ने काल्पनिक ईश्वर का धंधा किया और उसी से जीवन चलाया। उस गुरु से लुट पिट कर उसी गुरु की गुलामी करने वाले?
◆ खुद की खोपड़ी में दिमाग नहीं है, ऐसा सोच कर किसी धोखेबाज की गुलामी करने वाले?
◆ राजनीति करके अपने ही साथियों को लूटने, धोखा देने वाले विद्वान राजनेता?
◆ इंसानों को ही खाने वाले आदमखोर और बलात्कारी समाज के जनक?
◆ भ्रष्टाचार द्वारा अपने ही देश को खाने वाले शिक्षा में टॉपर?
◆ बच्चों का बलात्कार करके उनको मार डालने वाले सभ्य पुरुष?
◆ कानून का दुरुपयोग करने वाली और सीधे-साधे पुरुषों को ब्लैकमेल करने वाली होशियार महिला?

क्या इंसानों की ऐसी खूबियों की सूची कभी खत्म होगी? इतनी खूबियों वाले इंसान श्रेष्ठ हैं?

और मैं जानवरों की बुराई करते लोगों को देखता हूँ। वो इस लेख को पढ़ के अंत में पूछ्ने वाले हैं,

"क्या हम जानवर बन जाएं?"

ऐसे सवाल पूछने वाला मानव खुद को किसी और दुनिया से आया ईश्वर/ET नुमा प्राणी समझता है। जबकि वह खुद ही जानवर है, उसे नहीं पता। क्या सोच बदल देने से उसकी प्रजाति बदल जाएगी? क्या हम होमो सेपियंस की जगह किसी अन्य प्रजाति के जीव बन सकते हैं? क्या हमारा एक कोशिकीय जन्तु से मानव बनने तक का प्रमाणित सफर बदल जायेगा?

क्या हम खुद ही तय कर लेंगे कि हम जानवरों से अलग हैं? या हम उनका शोषण कर सकें इसलिए, हमने ये उनसे अलग दिखने का स्वांग रचा है?

यदि हम श्रेष्ठतम होते तो जंगली जानवरों में हमारे गीत गाये जाते। वो हमसे डर के भाग नहीं जाते। मानव अगर भालू की तरह सर्वाहारी होता तो उस पर भालू देखते ही जानलेवा हमला न करते। सर्वाहारी भालू, दूसरे भालू को नहीं खाता लेकिन मानव को खा जाता है। कुत्ता, कुत्ते को नहीं खाता लेकिन मानव को खा जाता है। ये लक्षण दर्शाते हैं कि मानव सर्वाहारी नहीं हो सकता।

यदि हम श्रेष्ठतम होते तो हमारे समाजों में कोई अपराधी नहीं होता। 1-2 अपवाद होते। हम श्रेष्ठतम होते तो पर्यावरण कक बचाते। हम श्रेष्ठतम होते तो जानवर और पेड़ों के साथ सौतेला व्यवहार नहीं करते। जब हम वनस्पतियों (फल, सब्जी, अनाज) को और पशुओं की तरह खा कर सर्वश्रेष्ठ पोषण प्राप्त कर सकते हैं तो फिर स्वाद के लिए किसी का परिवार क्यों उजाड़ना?

दुनिया ने कहा कि मनुष्य सर्वाहारी है और हमने पाया कि सर्वाहारियों से उसका एक भी लक्षण नहीं मिलता। 3 टेबल टेस्ट में प्रत्यक्ष इसका प्रमाण दिखता है।

टेबल 1. कच्चे बिना नमक-चीनी के सूखे अनाज।
टेबल 2. जिंदा जानवर, ज़िंदा कीड़े, कच्चे अंडे।
टेबल 3. पेड़ पर पके फल।

इंसान ने टेबल 3 को ही अपना प्राथमिक भोजन चुना। इससे साबित होता है कि वह, काटे-छीले और पकाये बिना और मजबूरी के बिना बाकी 2 मेजों पर रखा भोजन नहीं खा सकता।

मानव पर शिकार करने के लिए कुछ भी (पर्याप्त नुकीले दांत, नाखून, रात्रिचर्या, दौड़ने की शक्ति, पूछ, मांस खाने की प्राकृतिक इच्छा आदि का पूर्ण अभाव) प्राकृतिक है ही नहीं। जबकि फलभक्षी प्राणियों से उसका 100% मिलान हुआ है। अतः मनुष्य फलाहारी है।

मैं नहीं कहूँगा कि धर्ममुक्त-वीगन मानव सर्वश्रेष्ठ हैं। लेकिन अगर वे ऊपर दिए गए लक्षणों की सूची में दर्ज लोगों जैसे नहीं हैं तो आपके अनुसार अवश्य ही निम्नतम हैं।

और अगर यही आपकी परिभाषा है; श्रेष्ठतम और निम्नतम की तो मुझे सहर्ष स्वीकार है कि हाँ मैं निम्नतम हूँ। मुझे ऐसा श्रेष्ठ नहीं बनना।

हाँ, अगर यही सब, मानव को पशु से अलग करता है तो मैं पशु हूँ। और हाँ, मुझे ऐसा पशु होने पर गर्व है। तुम खुद के इंसान होने पर घमंड करते रहो।

तुम सबने स्वीकार कर लिया है कि अच्छा कोई हो ही नहीं सकता। क्योंकि तुम केवल दूसरों में अच्छाई ढूंढते हो। खुद कभी देखा कि तुम कितने बुरे हो? अच्छाई ढूढंने के हकदार तुम तभी होगे, जब तुम खुद अच्छाई के महासागर होंगे।

कोई कह गया कि फलां अच्छा कार्य, इंसान नहीं कर सकता। आपने मान लिया। क्योंकि उसने आपको बुरा बने रहने को मान्यता दे दी। ये नहीं सोचा कि वो आपको देख कर ऐसी राय बना रहा है।

तुम जब आदिमानव से आधुनिक मानव बन सकते हो, 'इंसान के लिए सब कुछ सम्भव है', ऐसा बोलते हो, तो ये गलत सोच और जीवनशैली बदलना क्या कठिन है?

कठिन कार्य है संगत बदलना।
कठिन कार्य है आत्मनिर्भर होना।
सही को सही कहना।
गलत को गलत कहना।

आसान है गुलामी।
आसान है, ध्यानाकर्षण के लालच में स्वयं का आत्मसमर्पण कर देना। हार जाना।
10 लोगों की हाँ में हाँ मिला कर उनके समूह का सदस्य बने रहना।
गलत को सही कहना।

देर-सवेर गलत का परिणाम सबको मिलता है। लेकिन तब वापस आने का समय नहीं बचता। गलत कार्यों को छोड़ के बीच से ही वापस लौट आओ तो तुमको वापस आने में आसानी होगी। पार कर गए सीमा को जो, तो वापस आने की पगडंडी मिट जायेगी।

यूँ तो इंसान को अपनी मृत्यु से बड़ा डर लगता है। परंतु मरने के बाद, उसको पुनः काल्पनिक जीवन में कितनी ऐश करनी है इसके लिए, रोज मरता है। मृत्यु के बाद अगर जीवन या बेहतर जीवन होता,

तो मृत्यु मातम न होती।
किसी की आंखों में आंसू न होते।
किसी को दुख न होता।
परन्तु ऐसा कहाँ होता है?
जन्म पर मिठाई बंटती है और मृत्यु पर भूखा रहा जाता है।
जन्म पर सब हँसते हैं।
मृत्यु पर हंसने वाले को सज़ा मिलती है।
वाकई कोई यदि मृत्यु के बाद आत्मा और पुनर्जन्म को मानता तो, दुनिया की सूरत ही कुछ और होती।
मृत्यु उत्सव बन जाती,
और जन्म मातम।

पर ये दुनिया और तुम दोगले हो न!

और निम्नतम होकर भी खुद को श्रेष्टतम कहने वालों को शर्म कहाँ आती है? वो तो धर्म, चंद रुपयों, और राजनीति के साथ कहीं दूर चली जाती है।

तो, हे कथित ईश्वर की श्रेष्टतम कृति! मुझ निम्तम की तरफ से तुम्हारे श्रेष्टतम होने की बधाई! ~ मैं हूँ Shubhanshu SC, धर्ममुक्त, पशुक्रूरता मुक्त (वीगन), शिशुजन्ममुक्त, विवाहमुक्त, सामाजिक नियम मुक्त, प्रतिबद्धता (possessiveness) मुक्त, ईमानदार बहुप्रेमी (polyamorous), रक्त रिश्ता मुक्त और मानव द्वारा बनाई गई हर नियमावली से मुक्त। खुद की स्वविवेक से बनाई, सहानुभूति प्रेरित, नैतिक नियमावली से संचालित 'दूसरे के साथ वह व्यवहार करो जो खुद के लिए पसन्द करते हो' पर आधारित जीवनशैली का अनुगामी।

भले ही ऐसा होकर मैं आपकी नज़रों में निम्नतम हो गया, बुरा हो गया...मान लिया कि मैं बहुत बुरा हूँ, लेकिन बस मुझे judge करने से पहले, एक बार पूरे जोश में, अपने दिल पर हाथ रख कर खुद से खुद के ही बारे में, पूरी गम्भीरता से पूछना, "क्या मैं वाकई में श्रेष्ठ हूँ?" नमस्कार! 😊👍💐 2020©/08/21 20:59

कोई टिप्पणी नहीं: