आज से लगभग 100 साल पहले ही एक वैज्ञानिक ने अंदाज़ा लगा लिया था कि मानवों का भविष्य बरबादी की ओर जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग ने लगातार वैश्विक तापमान बढ़ाया है। कहीं अगर सर्दी पड़ रही है तो वह स्थानीय वायुमंडलीय दबाव व अन्य मौसम से जुड़े कारकों का परिणाम है। असली मौसम पृथ्वी के ध्रुव तय करते हैं। जहाँ 6 माह धूप और 6 माह अंधेरा रहता है।
सूर्य का ताप विकिरण सफेद बर्फ से टकरा कर अंतरिक्ष में जाता अवश्य है लेकिन वह मीथेन, CO2 आदि ग्रीन हाउस गैसों के आवरण से टकरा कर वापस लौट आता है। ये बार-बार होता है और जब सूर्य 6 माह गायब रहता है, तब भी बर्फ पिघलती रहती है। पृथ्वी पर स्थल इसलिये हैं क्योंकि ध्रुवों पर बर्फ के रूप में पानी बंधा हुआ है।
पानी क़भी नष्ट नहीं हुआ है। वह अभी भी इसी पृथ्वी पर है, जहाँ पहले बस पानी ही पानी था। बस वह जमा हुआ है। लगातार हर साल ध्रुव छोटे होते जा रहे हैं। बर्फ समुद्र में घुलती जा रही है। पृथ्वी पर केवल 2% पीने का पानी है। 1% मानव की पहुँच में नहीं है। अर्थात केवल 1% पानी पीने के लिये बचा है। जो अब शायद और भी कम हो चुका है। मानव समुद्र का पानी नहीं पी सकता।
अगर हमने अभी जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, मानव द्वारा व्यापार के रूप में पशुपालन, पशुउत्पाद निर्माण, पारम्परिक AC और CFC गैस युक्त उपकरण प्रयोग करने बन्द नहीं किये तो पृथ्वी फिर से खारे, प्रदूषित पानी का एक ऐसा ग्रह बन जाएगी जिस पर पीने योग्य पानी तक नहीं होगा। कोई पेड़ नहीं होगा, कोई अनाज और सब्जियां नहीं होंगीं। पानी पर तैरते घरों में अरबपति ही रह सकेंगे और बाकी सब स्थलीय मानव, पक्षी और जानवर समाप्त हो जाएंगे।
ये जांचा जा चुका है कि वातावरण में ठीक उतनी ही कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ रही है जितनी कि मानव और पशुपालन पैदा कर रहा है। अतः इस पृथ्वी को निर्जन बनाने के लिये मानव, हर वर्ष अपने ताबूत में एक और कील ठोकता जा रहा है।
यही कयामत है, यही प्रलय है और यही है मानव और स्थलीय जीवन का अंतिम पड़ाव। जलीय जीवन भी सम्भवतः नष्ट हो जाएगा क्योंकि स्थलों पर मानवों ने बहुत विषाक्तता फैला रखी है। बहुत कुछ भूमि में दबा रखा है, जो भूमि डूबने पर घुल कर बाहर आएगा और उस ज़हर से सब कुछ मर जायेगा।
लोगों को गणित नहीं पता। उनको अंदाज़ा लगाना नहीं आता। वे तभी चिकित्सा और मरम्मत करवाते हैं जब हालत बहुत खस्ता हो जाती है। वह तो आपके नियंत्रण में है। लेकिन ये ग्रह आपकी नहीं सुनेगा। वह बस चुपचाप मर रहा है। यह मरेगा तो सब मरेंगे। लोगों को जब इससे हुई बर्बादी का पता चलेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
तब अगर हम सायकिल चलाएं और प्रजनन मुक्त vegan बन जाएं तो ये कोई एक दिन में आने वाला परिवर्तन नहीं होगा जो हम लोग अचानक कर सकेंगे। जो ग्रीनहाउस कवच जितने वर्षों में पैदा हुआ, वह जाने में भी बहुत समय लेगा। उतना समय हमारे पास तब नहीं होगा। पानी सब जगह अपना तल बराबर कर लेता है। यानि समस्या सब जगह एक साथ आएगी। सब जब तकलीफ़ में होंगे तो मदद कोई नहीं करेगा।
जनसंख्या बढ़ाने से प्रतिव्यक्ति मीथेन-CO2 का बहुत उत्पादन बढ़ जाता है। एक इंसान पूरी पीढ़ी लेकर आता है। 1 से 2, 2 से 4, 4 से 8, के क्रम में जनसंख्या बढ़ती है। हर इंसान अपने साथ अधिकार और हक लेकर आता है। उसे समझाया जाना बहुत कठिन है। उसे जबर्दस्ती हम रोक नहीं सकते।
ये सत्य मानवों को खुद समझना होगा या फिर कोई अपराधी बन कर इन लापरवाह लोगों को सबक सिखाएगा। समझाने में सफलता कम होती है और बंदूक के आगे सब समझ जाते हैं। ऐसा अपराध करने वाला भले ही घमण्ड में अंधे समाज के लिये अपराधी हो लेकिन वह सबका हीरो होगा/होगी।
सुना है कि मानव हीरो सिर्फ काल्पनिक ही होते हैं और जो लोग अहिंसक रूप से पर्यावरण के लिये लड़ रहे हैं उनको हिंसा से मारा जा रहा है। मानव अब अपने ही ग्रह से जीवन को खुद के साथ खत्म करने वाला, आत्महत्या की प्रवर्ति वाला पहला जीव बनेगा।
हम Antinatalist Vegans बस अपने छोटे से प्रयासों से आपकी और इस पृथ्वी के समस्त जीवन को नष्ट होने की गिनती में थोड़ी और घड़ियां जोड़ रहे हैं। इस उल्टी गिनती को धीमा कर रहे हैं। जब तक एक भी non vegan मानव, natalist और जीवश्म ईंधन उपभोक्ता जीवित है, ये घड़ी नहीं रुकेगी।
इस ग्रह पर जीवन का अंत अब बस आने ही वाला है। मौत की उल्टी घड़ी लगातार चल रही है। जिसकी आवाज आप कभी नहीं सुनोगे, लेकिन मैं सुन रहा हूँ: टिक-टिक-टिक-टिक... ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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