Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
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Endangered Species and Craulity Free Lifestyle is more important than Poor Humans




लोग पूछते हैं, "जानवरों के लिये इतनी करुणा और इंसानो के लिये प्रवचन?" शुक्र मनाओ कि प्रवचन ही दिए हैं। कहीं सज़ा देने पर आ जाता तो हगते फिर रहे होते। आप कहते हो कि गरीब है, दया दिखाओ। मैं कहता हूँ कि क्या आप किसी बलात्कारी/हत्यारे को अदालत में सज़ा सुना रहे जज से ऐसा बोलते हो? क्या गरीबी/लाचारी अपराध कम कर देते हैं?

दोषी अमीर भी है। कहीं-कहीं तो गरीब से भी ज्यादा दोषी। कसाई खाने अमीरों के ही हैं। उनके अपराध उनकी अमीरी से कम नहीं हो जाते। लेकिन कम से कम वे मदद तो नहीं मांग रहे। वो लाचारी तो नहीं दिखाते। भीख तो नहीं मांगते। खुद अपने पैरों पर तो खड़े हैं। शिक्षित हैं लेकिन ज्ञान उन पर भी उधार का ही है। इसलिए सबसे कमाई बढाने वाला धंधा उन्होंने चालू किया। उनका उत्पाद खरीद कौन रहा है? उनके अपराधों के बदले इनाम कौन दे रहा है? आप ही न?

तुम खरीदते हो, तभी वो बेचते हैं। मांग होगी तो उत्पादन होगा। तो अपराधी तो आप हैं न? वो तो कठपुतली हो गए। अमीरों को सज़ा देना आसान है। vegan बन जाओ। उनका कसाईखाना बन्द हो जाएगा। वो भी vegan बन जाएगा और जो vegan भोजन और उत्पाद आप मांगोगे, वही वह बनाने लगेंगे। आपका बदल जाना, उनका बदल जाना है।

जबकि जिस गरीब को न तो अपने बच्चों के काले भविष्य की फिक्र है और न ही जानवरों की, जो बस मजे के लिये या कमाने वाले हाथों के लालच में धड़ाधड़ बच्चे पैदा करके जहाँ महिला की दुर्दशा कर रहा है, बल्कि देश में अपने जैसे और गरीबी में पड़े और मजबूर लोग पैदा कर रहा है। इतने बड़े अपराधी से सबसे ज्यादा सहानुभूति कैसे हो सकती है?

गरीब सबसे ज्यादा जानवरों को खाने के लिए मारता है, ये बात आप जानते हैं। बेगुनाह इंसान की हत्या पर आप गरीबी नहीं देखते। सिर्फ अपराध देखते हैं।

फिर जानवरों की दूसरी प्रजाति होने पर उनको आपने निर्जीव वस्तु समझ लिया क्या?

उन पर भी आपकी तरह मस्तिष्क है। उनको भी पीड़ा का अनुभव होता है। उनका भी तुम्हारी तरह परिवार है। फिर ऐसे हत्यारे को लेकर कैसी दया?

किसी गरीबी को 'धंधा' बनाने वाले की फेसबुक वॉल देखो। कहीं भी किसी तड़पते जानवर के लिए दया की जगह नहीं मिलेगी। उनको तो इंसान श्रेष्ठ लगता है न!

फिर श्रेष्ठ की कैसी लाचारी? श्रेष्ठ तो दूसरों की मदद करते हैं न? मैं श्रेष्ठ नहीं। मैं दूसरों की मदद करने की हालत में नहीं। मैं बस मदद नहीं मांगता। आत्मनिर्भर हूँ, बस यही मेरी सफलता है। तुम भी बनो। श्रेष्ठ हो, तो दिखो भी।

लेकिन नहीं। दोगले हो न। श्रेष्ठ नहीं हो तुम। तुम बस झंड हो। लाचारी में लिपटे हुए जानवरों को खुद के श्रेष्ठ होने के दम्भ में काटे जा रहे। उनके स्तन निचोड़ रहे। उनके बच्चों को काट कर खाते हो। क्या दया दिखाई जाए तुम पर?

और तो और, ऐसे लोग, जो न मानवता के काम के हैं और न ही प्रकृति के, उनके प्रति कैसी दया? जो सिर्फ बोझ हैं, उन पर कैसी दया? दया मृत्यु ही उनके लिए सही दया है।

कोई विद्वान मानव हो और मुश्किल में हो त उसे बचाना उचित है। लेकिन जो बस एक परजीवी हो, वो? केवल खाता और हगने वाला? उल्टे जो कुछ करने लायक हैं, उनसे मांग के उनकी गति/पूंजी और कम कर रहा। विकास की गति रुक जाती है, बेकार लोगों को पालने से। यही अपराधी बनते हैं। आज आप इनको दोगे तो कल इनको और चाहिए। कल और ज्यादा चाहिए। जिस दिन आपने कम दिया या न दिया, उस दिन के परजीवी, आपकी गर्दन काटना सीखेगा। और दोष तब उतना उसका नहीं होगा जितना आपका होगा।

अब कुछ विद्वान आकर अपने 'गरीबी के धंधे' को आकर defend करेंगे। कहेंगे, जानवर भी तो किसी काम का नहीं। उसके प्रति दया क्यों? तो ये बताइये किसने साबित किया है कि पशुजगत बेकार में है दुनिया में? पेड़ों और फलदार वृक्षों, फसलों में उनके परागण और बीजों के प्रकीर्णन में इन जानवरों का ही योगदान है।

इन जानवरों ने ही दुनिया में जंगल बसाए हैं। तुमको ऑक्सीजन दी है। ऑक्सीजन यानी कि ज़िन्दगी। ये जानवर ही हैं सबसे पुराने और बड़े किसान। इन्होंने ही ऐसे बीजों को उनके कठोर छिलके पचा कर बीजों को उगने लायक बनाया। उनके कारण ही बहुत से वृक्षों की प्रजातियां बची हुई हैं।

इंसान ने ऐसे ही एक पक्षी डोडो को खाकर खत्म कर दिया। उसी के साथ उसके द्वारा उगाया जाने वाला पेड़ भी खत्म हो गया। गिलहरी अपने भोजन रूपी बीजों को ज़मीन में दबा देती है और भूल जाती है। न जाने कितने जंगल उसने उगाए हैं। जंगल क्या है? ऑक्सीजन और भोजन के स्रोत। उनको उगाने, देखभाल करने वाले कौन हैं? समस्त पशुजगत। इसीलिए, पशुक्रूरता निवारण अधिनियम बनाया गया। इसीलिए अभ्यारण्य और उद्द्यान बनाये गए। इसीलिए वह विभाग बना। सलमान खान एक खतरे में पड़ी प्रजाति का शिकार जानबूझकर करते हैं। क्या उनको उस प्रजाति को खत्म करने का शौक था?

जी हां, मानवों को जानवरों को मारने और उनकी खोपड़ी जिसे ट्रॉफी बोलते हैं घर में टांगने में मजा आता है। शिकार के शौकीन होते हैं मानव। अमेरिका में तो बाकायदा लाइसेंस देकर शिकार करने दिया जाता है। जब इंसान हत्या करना अपना शौक समझता है तो फिर इसके लिये भी हम दोषी पशुजगत को ठहरा दें क्या? कोई जानवर अपने शौक के लिये इंसानो का शिकार नहीं करता। वह जान बचाने के लिए ही करता है। तुम भी कर सकते हो अगर कोई जानवर तुमको मार डालने की कगार पर हो। लेकिन निर्दोषों को? उनको काहे मारा?

मारने तक सीमित होते तो भी कम बुरा होता लेकिन तुमने तो उनको कैद करके उनका बलात्कार, दुर्दशा और तड़पाना शुरू कर दिया। लैब में उनको खिलौने बना डाला। use करते हो उनका एक्सपेरिमेंट के लिए ताकि श्रेष्ठ मानव कहीं न मर जाये। जब बार-बार श्रेष्ठता का दम्भ भरते हो तो श्रेष्ठता साबित भी करो। खुद अपने पैरों पर खड़े होना सीखो या डूब मरो, शर्म से कहीं जाकर।

तुम्हारे लिये यही प्रवचन है कि, ऐ मेहनत करने वालों, पढ़ना लिखना सीखो। ऐ बोझा ढोने वालों, पढ़ना लिखना सीखो। बाबा साहेब के जैसा बनो या उनसे भी श्रेष्ठ, और तब बेजुबानों के लिए लड़ कर, तुम अपनी श्रेष्ठता साबित कर देना। तभी तुम श्रेष्ठ बनोगे और तभी तुम पढ़ पाओगे कि मैं तुमको क्या प्रवचन दे रहा हूँ। ~ Shubhanshu 2020/06/03 18:30

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