महत्वपूर्ण प्रश्न: आपके धर्ममुक्त भारत अभियान और बाकी लोगों के संगठन/धर्मो में क्या फ़र्क है?
शुभ: हमारा अभियान लोगो को एकत्र कर रहा है न कि बाकी धर्मों और संगठनों की तरह उनको मूर्ख समझ कर उनको कोई किताब या धर्म ग्रँथ थमा रहा है, कि अंधों की तरह उसका पालन करो। इंसान बुद्धिमान है। उसे किसी के बताए रास्ते पर नहीं चलना। उसे सिर्फ इशारा किया जा सकता है जो पहले रास्ता खोज चुका, उसके द्वारा।
हमने रास्ता पहले खोज लिया तो उस पर हमारा हक नहीं हो गया। राह/सोच सबकी अपनी है। हम तो आज़ादी की मांग कर रहे, जो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। आज़ादी मानसिक गुलामी से। इंसान की मानसिक शक्ति ही उसकी जीवन की गति निर्धारित करती हैं। उसे कुछ धूर्त लोगों द्वारा प्राचीन काल में बलपूर्वक ईश्वर, पाखण्ड, ठगी, धोखे, मूर्खतापूर्ण बातों से उलझा कर व्यस्त कर दिया गया है और वो मानसिक शक्ति अपना वास्तविक कार्य नहीं कर पा रही।
● ये धर्म की अवधारणा इतनी क्यों फैली?
● क्यों ये इतनी सफ़ल रही?
● क्यों लोग इसके गुलाम बने?
इसका मूल कारण था दरिद्रता। दरिद्रता भी एक मानसिक अवस्था है जो जब असर दिखाती है तो व्यक्ति का पूरा सामाजिक जीवन ही भिन्न दिखने लगता है। दरिद्रता को दूर करने के लिये पहले तो घमंड त्यागना होगा। बड़े कार्य करने वाले लोग कभी भी छोटे कार्य को करने से परहेज नहीं करते थे। इसीलिये वे बड़े हुए। कोई भी बीज, अंडा बहुत छोटा होता है शुरू में लेकिन जब वह अपने जीवन के चरम पर होता है तो कभी बरगद तो कभी जिराफ़ जैसा ऊँचा हो जाता है।
पढ़-लिख कर इंसान ज्यादा बेरोजगार होते हैं जबकि अनपढ़ कभी बेरोजगारी नहीं झेलते। उनको घमण्ड नहीं होता, अपनी डिग्री या शिक्षा का। उनको भोजन कमाने की फिक्र होती है जोकि सबकी आधारभूत आवश्यकता है। इससे ऊपर जाने पर अन्य आवश्यकताएँ दिखने लगती हैं। इस पहली आवश्यकता के लिए हमको हर तरह के कार्य करने में संकोच छोड़ना होगा और उस कार्य को बेहतर और आधुनिक कार्य बना कर उसकी गुणवत्ता में सुधार करना होगा। तभी वह कार्य बड़ा बन जायेगा।
छोटे काम को आधुनिक और दूर तक पहुँचाने को ही बड़ा कार्य कहते हैं। जैसे जहाँ सुविधाएं कम हैं वहाँ रेस्टोरेंट ढाबा बन जाता है। जहाँ भोजन सस्ता होने के कारण वेतन कम मिलता है। जबकि सुविधाओं के बढ़ने पर वही ढाबा रेस्टोरेंट बन जाता है और भोजन महंगा करना आसान हो जाता है। वेतन अपने आप बढ़ेगा ही। पहले आप कारीगर कहलाते हो फिर बावर्ची या शेफ कहलाते हो। जिसके लिए लोग बड़े-बड़े कोर्स करके जॉब ढूंढने निकलते हैं।
सरकारों से उम्मीद रखने का क्या लाभ हुआ जनता को? कौन सा सफल व्यक्ति सरकारी मदद से सफल हुआ है आजतक? खुद ही रास्ता निकाला जा सकता है। सफल व्यक्तियों की जीवन गाथा पढ़िये और देखिये कि जो जितना ज्यादा गरीब, कमज़ोर, लाचार था वही महान अमीर हो सके। जिन पर पहले से कुछ था उनका नाम बहुत कम हुआ है। बदनामी ज्यादा हुई। हमारा अभियान छोटे समझे जाने वाले कार्यों को करने के लिए पढ़ीलिखी जनता को प्रोत्साहित करेगा ताकि कोई भुखमरी से न मरे।
दूसरे नम्बर पर संभोग आवश्यक है क्योंकि इसके बिना इंसान मानसिक रोगी हो जाता है और अपराध कर बैठता है।
अतः मानव की यौन प्रकृति को छेड़ना खतरे से खाली नहीं है। चरमसुख वाली घटना से परहेज क्यों? इसमें जो बाधा है, वह प्रजनन है जो कि आपका अधिकार है कि करें या रोक लें। अतिजनसंख्या और इस कष्टकारी दुनिया में बिना उस भावी शिशु से विचारविमर्श किये उसे इस दुनिया में लाना वैसे भी कानूनी नहीं है। हम सबका जन्म गैरकानूनी ढंग से होता है और इसके लिए हम अपने परिजनों पर मुकदमा भी कर सकते हैं। राफ़ायल नाम के व्यक्ति ने ऐसा कर भी दिया है।
बलात्कार, वैश्यालय, छेड़खानी, फोन सेक्स, सेक्स चैट, हस्तमैथुन, अवैध सम्बंध, पोर्नोग्राफी, अश्लील साहित्य, अश्लील गेम्स, विवाह के बिना संभोग आदि साबित करते हैं कि सम्भोग केवल आनंद के लिये बना है और ये एक ऐसी आवश्यकता है जिसके कारण व्यवस्था विवाह की व्यवस्था तक की गई।
दरअसल प्रकृति सर्वोत्तम का चुनाव करती है तभी विकास सम्भव होता है। हमारा मन सुंदर, गुणवान, कामोत्तेजक (सेक्सी), तन और मन के मालिक (नर या मादा) की ओर आकर्षित होता है ताकि अगली पीढ़ी वैसी ही निकले।
जब शक्तिशाली लोगों का राज़ हुआ तो सुजननिकी के सिद्धांत के चलते विवाह के 2 प्रकार हो गए।
1. ऊंचे कुल के लिए उत्कृष्ट रक्त का चुनाव व भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए पालनपोषण की उचित व्यवस्था।
2. आम जनता के लिये 'व्यवस्था विवाह' ताकि जो नकारा और घटिया गुणवत्ता के लोग स्वयं सम्भोग नहीं कर पाते थे, उनके लिए विवाह।
कालांतर में ऊँचे कुलों को तानाशाही और मानवाधिकार के उल्लंघन के चलते राजशाही तख्तों-ताज गंवाना पड़ा और अब केवल दूसरी श्रेणी का विवाह शेष रह गया है। इसमें भी पहली श्रेणी के विवाह का प्रयास किया ही जाता है जिसके चलते उच्च जाति, वर्ण, हैसियत, स्वभाव आदि का आंकलन करके सुजननिकी द्वारा पीढ़ी विकास का प्रयास किया जाता है। इसी कारण निम्न श्रेणी के लोगों को उच्च श्रेणी के लोगों के साथ विवाह करने से मना किया जाता रहा। आगे की सम्पूर्ण पीढ़ी ही खराब न निकले इसलिये माता-पिता अपने बच्चों को निम्न जाति में विवाह करने पर कत्ल तक कर देते हैं।
ये भी सही है लेकिन क्या अमानवीय नहीं? प्रकृति के साथ छेड़खानी नहीं? विवाह को केवल सुजननिकी के आधार पर ही उचित ठहराया का सकता है जोकि मानवीय नहीं है। मतलब दम्पति के सुख-प्रेम की कोई परवाह इसमें नहीं की जाती। परिवार को श्रेष्ठ रक्त की समझ है या नहीं? इसका भी कोई प्रमाण नहीं है।
बेहतर होगा कि सुजननिकी का कार्य केवल इसके लिए बनाई गई व्यवस्था (आयोग/विभाग) ही करे। जिसमें उचित बायोलॉजिकल भ्रूण तैयार करके उसका पालन पोषण किसी प्रशिक्षित से करवाया जाए। आम लोगों को इसमें जबरन न धकेला जाए जो कि एक दूसरे से प्रेम करने में असमर्थ हैं।
प्रेम और सेक्स दोनो भिन्न अवस्थाएं हैं। सेक्स आप किसी से भी कर सकते हैं जो आपको कामुक लगे। जबकि प्रेम करने के लिये दोस्ती अवश्य होनी चाहिए। कुछ लोग विवाह की अवधारणा को उचित मान कर प्रेमी-प्रेमिका से ही सम्भोग करने की प्रतिबद्धता (commitment) रखते हैं और एक दूसरे को खास महसूस करवाते हैं। लेकिन वे सब झूठे होते हैं क्योंकि या तो इनकी दूसरे से सेक्स करने को तड़पते हुए खुद को जबरन रोकने से हालत खराब रहती है या ये सब छुप कर एक दूसरे को धोखा देते हैं।
जब सामने सेक्सी विपरीत लिंग का प्राणी होगा तो आप का शरीर सम्भोग के लिए तैयारी करेगा ही। उसे रोकने के लिए आप को अगले को अनदेखा करना ही होगा। इसी के चलते बुरका, दुपट्टा व कपड़े का चलन हुआ। लेकिन ये स्थिति और खराब करेगा, इसका पता बहुत देर से चला।
दरअसल इससे लाभ की जगह बड़ा नुकसान हुआ। सेक्स की इच्छा कम होने की जगह और भड़क गई क्योंकि अब लोग कपड़ो के भीतर धोखाधड़ी करके खुद को और भी कामुक दिखाने लगे। खुली मुट्ठी खाक की, बन्द मुट्ठी लाख की। अब हर विपरीत लिंग का प्राणी सेक्सी होने की संभावना लिये घूमने लगा। इससे भारी कुंठा पैदा हुई।
विवाह से पूर्व सेक्स करने पर जान से जाने की धमकी से महिला वर्ग सेक्स से अंजान बन के दूर रहना चाहता है तो उधर पढ़ाई और नौकरी की आवश्यकता के चलते हुई देरी से लड़कों का सम्भोग काल चरम पर होता है। जहां पहले (अब भी) बच्चों का विवाह कर दिया जाता था, वहाँ अब 35 साल तक के लड़के का विवाह उसके सेटल न हो पाने के कारण नहीं हो पा रहा है।
परिणाम भयानक होने तय हैं। जबरन सेक्स, शोषण, बलात्कार इसी व्यवस्था का नतीजा हैं। क्योंकि वैसे भी हर कोई वैश्यालय का उपयोग नहीं कर सकता। वैश्यालय अवैध होने के कारण ग्राहक को लूट लेते हैं और शर्म के कारण कोई पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं करता। दूसरे भयानक नतीजे पैदा हुए बलात्कारी को मौत की सज़ा, 7-10 साल के कारावास से।
अपराधी यही सोचता है कि वो तो अपनी नैसर्गिक आवश्यकता की पूर्ति कर रहा है, न कि कोई सोना-चांदी चुरा रहा है। फिर इसकी सज़ा क्यों? अतः वह सज़ा से बचने हेतु बलात्कार पीड़ित को ही जान से मार के खत्म कर देते हैं। बलात्कार रोकना सज़ा से सम्भव नहीं। ये कोई चोरी नहीं जो कोई सुधर जाएगा। ये शरीर की भूख जैसी आवश्यकता है। इसकी पूर्ति कहीं न कहीं से करनी पड़ेगी तभी काम बनेगा। सोचिये अगर भोजन करने पर सज़ा होती तो रोज़ अपराध होता। अतः भोजन की तरह सम्भोग की मुफ़्त व्यवस्था आवश्यक है।
अगर हम सम्भोग को मशीन द्वारा उपलब्ध नहीं करवा सकते तो स्वेच्छाचारी लीगल वैश्यालय को मान्यता तो देनी ही चाहिए जो कम से कम मूल्य पर सेवा दे सकें। अन्यथा महंगा होने की अवस्था में गरीब वर्ग बलात्कारी ही रहेगा।
विपरीत लिंगों में प्रेम इस मुफ़्त सेक्स की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है। प्रेम जीवन में मानसिक सुख के लिये आवश्यक है। प्रेम जीवन जीने के लिये आवश्यकता नहीं है जबकि सम्भोग है। इसीलिये इतने विवाह सफल हैं। दरअसल भोजन इतनी बड़ी आवश्यकता नज़र नहीं आती जितनी कि संभोग है। देखिये, भोजन के लिये कोई कत्ल नहीं कर देता। सामान्य मूल्य से अधिक मूल्य नहीं देता लेकिन संभोग के लिये इंसान न सिर्फ करोड़ो रूपये लुटा सकता है बल्कि कत्ल तक कर सकता है।
मनपसंद भोजन की थाली सामने हो तो इतनी प्रबल इच्छा नहीं होती कि खुद पर संयम न रखा जा सके लेकिन संभोग के लिये उचित साथी सामने हो तो अच्छे से अच्छे योगी-मुनि-साधु-साध्वी का भी पानी निकल जाता है।
अतः संभोग कानूनन सभी नागरिकों का कानूनी अधिकार है। इसके लिए किसी तीसरे से आज्ञा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। संविधान आपको इसी वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर बिना विवाह के संभोग का अधिकार देता है। परंतु समस्या है समाज। जिस तरह संविधान धर्ममुक्त है लेकिन समाज अंधविश्वास से भरा हुआ, वैसे ही सेक्स को लेकर भी समाज में अंधविश्वास भरा है।
उनको विवाह के बिना सेक्स से बच्चा होने का डर रहता है जबकि वह तो सहउत्पाद (by product) है सम्भोग का। वह भी माह में केवल अण्डोत्सर्ग के दिन ही सम्भोग करने पर सक्रिय शुक्राणुओं से युक्त वीर्य के अंडे से निषेचन पर ही हो सकता है।
यानि प्रकृति भी चाहती है कि माह के 29 दिन केवल आनंद लिया जाए। केवल एक दिन ही शिशु होने की प्रभावी स्थिति बनती है।
नोट: चूंकि शुक्राणु योनि में 72 घण्टे तक जीवित रह सकते हैं तो अण्डोत्सर्ग के 3 दिन पहले और 3 दिन बाद तक के वीर्य से भी बच्चा होने के आसार होते हैं लेकिन संभावना अण्डोत्सर्ग वाले दिन से अपेक्षाकृत रूप से कम होती जाती है।
फिर संभोग से प्रजनन न हो उसके बहुत से सस्ते उपाय हैं जैसे मैथुन भंग (मुफ़्त), अण्डोत्सर्ग से दूर वाले दिन संभोग (मुफ़्त), कंडोम (99% safe) (मुफ़्त/1₹/5₹), गर्भनिरोधक गोली, 72 hr pill, डायफ्रॉम, इंजेक्शन, IUD आदि तमाम साधन उपलब्ध हैं। बच्चों को सुरक्षित सेक्स कब और कैसे करना है इसका ज्ञान सेक्स एडुकेशन से होगा। STD (सेक्स से फैलने वाली बीमारियां) से बचने के लिये अंजान लोगों से सुरक्षित सेक्स (कंडोम सहित) करें व खून की जांच कराते रहें। जांच में स्वस्थ आने पर असुरक्षित लेकिन गर्भनिरोधक के साथ सम्भोग कर सकते हैं।
स्थायी समाधान नसबंदी है। पुरुष की आसान है। महिला की मुश्किल।
फिर हम कौन होते हैं पुरानी सोच थोपने वाले? विदेश में लोग सेक्स की क्रांति के कारण ज्यादा तनाव रहित होते हैं और बेहतरीन सोचते हैं। (बिल्कुल जैसे आदिमानव ने संभोग की पर्याप्त आपूर्ति के चलते पहिया, आग और पके भोजन की खोज कर डाली थी) वहां सेक्स को लेकर बहुत कम अंधविश्वास है। पोर्नोग्राफी सबसे ज्यादा वहीं बनती है। सेक्स के खिलौने हर चौराहे पर शोरूम में बिकते देखे जा सकते हैं।
लड़कियां इतनी आज़ाद हैं कि वे जो लड़का पसन्द आता है उसे अपनी जगह पर पहल करके, इजाजत लेकर, ले जा कर उससे संभोग कर लेती हैं और पैसा भी देती हैं (यदि आपको चाहिए तो)। वैसा ही आदमी भी करते हैं। सब 50-50%। जबकि इस देश में जैसे इस्लामिक-सनातनी कानून लागू है, ऐसा माहौल बना रखा है। हमने इस तरह के पाखण्ड को नष्ट करके आपके स्वविवेक पर संभोग को रखा है ताकि हम भी विश्व के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकें।
अंततः हमारा अभियान विवाहमुक्त प्रेम, सुरक्षित संभोग, शिशुमुक्त व क्रूरतामुक्त जीवन शैली को भी सहयोग और बढ़ावा देगा। तो बताइये हमारा धर्ममुक्त अभियान किसी भी अभियान से ज्यादा मजबूत और आकर्षक नहीं है क्या? 2019/11/19 18:48 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
1 टिप्पणी:
शानदार।🤗
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