जो पूर्वाग्रह में ग्रस्त है कि जो भी किताबों में बिना साबित किये लिखा गया है वह सत्य है तो वह मूर्ख है क्योंकि मूर्ख उसे ही समझा जाता है जो हर बात को बिना तर्क और प्रमाण के मान जाए।
किताब में लिखा है:
1. मानव शुरूआत से ही मांसाहारी था।
शुभ: शुरुआत में तो उसे शिकार करना ही नहीं आता था। फिर कैसे?
2. उसने बहुत बाद में पत्थर से हथियार बनाना सीखा और आग की खोज के बाद मांस पकाना सीखा।
शुभ: लेकिन बिंदु 1 के हिसाब से मानव तो पैदा ही मांसाहारी (सर्वाहारी) होता है तो उसे ये सब सीखने की क्या ज़रूरत? क्या सीखने से पहले वह मिट्टी खाता था?
दुनिया में कौन सा सर्वाहारी जानवर पहले मिट्टी खाता है और सदियों बाद अचानक हथियार की खोज करके सबको बताता है और फिर सब शिकार करना सीखते हैं और तब जाकर वह हथियारों और झुंड में अनुभवी की मदद से शिकार करता है? 😁
3. बाद में मानव सर्वाहारी हो गया। उसने वनस्पतियों को भी खाना शुरू कर दिया। ऐसा कुछ व्यक्ति बोल रहे थे। जबकि किताब में लिखा है कि मानव सर्वाहारी जंतु है। उसके मुहं में केनाइन दांत हैं। जो सर्वाहारियो के मुहं में होते हैं।
शुभ: बाद में सर्वाहारी काहे हो गया भई? ऐसा क्या हो खतरनाक हो गया मांस में, जो उसे कम कर दिया? वो तो अमृत है न? 😊 अब किताब वाले वैज्ञानिक पर आते हैं। ये बताओ विद्वान, कभी सर्वाहारियो को देखा भी है या ऐसे ही सुनी-सुनाई पेल रहे?
मानव के केनाइन दन्त फलभक्षी (fruitarian) जंतुओं (जैसे ओरंगोटेन) की तरह होते हैं न कि सर्वाहारियो की तरह। सर्वाहारियो के नाम हैं, कुत्ता, सूअर, भालू। अब ये बताओ विद्वान, इनके दाँत, आंत और बाकी लक्षण किसी भी तरह से मानव जैसे हैं क्या? उनके दांत शेर जैसे लम्बे और नुकीले, तुम्हारे और हमारे दांत जैसे कोई मज़ाक हो। अब तुलना तक करना आता नहीं। पुस्तक में अधूरा ज्ञान लिखने के पैसे दिए गए थे क्या?
4. माँस में 10 ऐसे अमीनो अम्ल होते हैं जिनके बिना मानव मर सकता है। जंतुप्रोटीन मांस में ही होता है जो शरीर में स्वीकार होता है। अन्य प्रोटीन शरीर नहीं लेता। दूध, मांस और अंडे में कैल्शियम और विटामिन B12 होता है जो मस्तिष्क और रक्त के लिये आवश्यक है। दूध और अंडा तो सम्पूर्ण आहार हैं।
शुभ: वाह! गजब की जानकारी! अब ये बताओ कि जानवर ऐसा क्या जादुई भोजन करते हैं जो इंसान को नहीं मिल सकता? किस भोजन से उनके शरीर में ये पोषक तत्व आये? जो सब्जी मंडी वालों को आज तक पता नहीं हैं? अब जब मूर्ख बना ही रहे हो तो थोड़ा ढंग से बनाओ।
अ. B12 बैक्टीरिया बनाता है जो हमारे मुहँ में भरा रहता है। जिसके लिए पेप्सोडेंट जर्मीचेक अपने विज्ञापन में रोज दिखाता है कि अपने मुहँ के कीटाणु मारिये। अरे मत मारो कीटाणु। अच्छे बैक्टीरिया हैं, सबके मुहं में हैं और B12 बना रहे हैं।
ब. कैल्शियम पानी में पाया जाता है जो केवल विटामिन D की उपस्थिति में ही संश्लेषित होकर शरीर में लगता है। विटामिन D भी विटामिन B12 की तरह फ्री है और बदन में धूप लगने से बन जाता है। ऐसे ही तो पशु बनाते हैं। आपको नहीं बताया आपकी पुस्तकों ने? 😁
स. जंन्तु प्रोटीन? वाह क्या बात कही है! ये बताओ विद्वानों, कि 99% जानवर जिनको तुम खाते हो वो किसका मांस खाते हैं जो उनके शरीर में प्रोटीन आ गया? उनमें आया तो वनस्पतियों से ही न? तो तुम काहे न खा लेते सीधे? अभी संतुलित भोजन में तो दालें, काजू बादाम में प्रोटीन बता रहे थे। दूध सम्पूर्ण आहार है तो संतुलित भोजन में सिर्फ वही क्यो नहीं पेल दिया? बाकी चीजें वनस्पतियों से काहे मंगा रहे? 😁
5. सब जगह लिखा है कि cholesterol से दिल का दौरा पड़ता है। यही पशुवसा में होता है। यही रक्तकणों से मिल कर नसों में जम जाता है। और रक्त प्रवाह में बाधा बन कर मस्तिष्क तक रक्त नहीं पहुँचने देता और बज गई टैं! परंतु यहाँ भी विद्वान आकर नया ज्ञान दे रहे कि चीनी और धूम्रपान से दिल का दौरा पड़ता है।
शुभ: अरे विद्वानों, ये बताओ, चीनी है क्या? ग्लूकोज़ का एक अपर रूप सुक्रोज। ये हर भोजन में पाया जाता है। कहीं फलों में फ्रक्टोज के रूप में तो कहीं दूध में लेक्टोज़ के रूप में। हमारा भोजन ही दरअसल ऊर्जा इसी से पैदा करता है। ये तीनो ही शर्करा टूट कर सरल ग्लूकोज़ में बदल जाती हैं और इसे शरीर ऊर्जा बनाने में खर्च करता है या ग्लायकोजन बना कर जमा कर लेता है।
कुछ कोलेस्ट्रॉल रहित वसा के रूप में भी जमा कर लेता है। अब इस वसा से मोटे हो सकते हो लेकिन दिल का दौरा गलती से भी न पड़ने वाला पुरुस्कार प्राप्त विद्वानों। उसका कारण पशुवसा से प्राप्त कोलेस्ट्रॉल था और रहेगा। वीगन/फलभक्षी को कभी दिल का दौरा, नसें बन्द होने से नहीं पड़ सकता।
6. वनस्पति घी में भी ट्रांसफैट पाया जाता है। जो कोलेस्ट्रॉल की तरह व्यवहार करता है।
शुभ: अरे विद्वानों, कौन से वनस्पति में ट्रांस फैट पाया जाता है? नाम बताओ ज़रा। एक भी नहीं। हाँ वनस्पति घी को मानव ने बनाया है। यानि निकिल धातु के चूर्ण पर अभिक्रिया करवा कर वनस्पति तेल को गाढ़ा करके घी में बदलना। तो विद्वानों, आपको ऐसा घी बनाने को किसने बोला था? अब जब बना ही लिया तो खाने को किसने बोला? और जब खा ही रहे हो तो दिमाग और आंखें खोल के देख तो लेते कि इसकी एक सुरक्षित मात्रा आराम से रोज़ खा सकते हो। देख लेना घी के डिब्बे पर।
तभी तो कहता हूँ कि बदल-बदल के रिफाइंड तेल इस्तेमाल करो। जैसे सोयाबीन, सूरजमुखी, करडी, राइसब्रान, पाम आयल (अगर सर्टिफाइड vegan हो तो) आदि। वो तो ट्रांसफैट को भी घोल कर कम कर देते हैं। जैतून का तेल तो जितना ले लो, उतना अच्छा। बाकी वजन को नियंत्रित रखिये। वसा कोई भी हो सीमित मात्रा में लीजिये। मोटे शरीर में इम्यूनिटी कम हो जाती है।
अब इस सब का भंडाफोड़ भी एक स्टिंग ऑपरेशन (What The Health?) में हो चुका है कि कौन इनको ये सब प्रोपोगेंडा करने, पुस्तकों में छापने और चिकित्सा जगत को सिफारिश करने को कह रहा है। जी हाँ, डेयरी, पोल्ट्री, मीट इंडस्ट्रीज मिल कर डॉक्टरों के बोर्ड को अरबों रुपये दान कर रही हैं। सोचो, किस खुशी में?
नोट: इस डॉक्यूमेंट्री के विरोध में आपने कोई वीडियो देखा? तो उसका भी पर्दाफाश इधर देखिये What the health debunked, debunked!
मतलब पशुउत्पाद बेचने वाले आपको स्कूल में ही मूर्ख बना गए और आपको पता भी न चला तो आप वाकई भोले ही हो। 😁 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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