"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझे भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्
"बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो?" ~ Shubhanshu Chauhan
इस बात से मेरे मन मे लड़कियों के प्रति भय बैठ गया था और मैं कभी किसी लड़की की ओर आंख उठा कर नहीं देख पाया। समय के साथ स्कूल, कॉलेज में बदल गया और वहाँ भी मैंने लड़को को लड़कियों से डरते हुये ही देखा। यदा-कदा कुछ लड़के लड़कियों ने आपस मे समूह बना लिए और बात करने लगे लेकिन मैं हमेशा अकेला पड़ गया।
0. स्नातक: जंतु, रसायन तथा पर्यावरण विज्ञान 56.6%
1. परास्नातक: जंतुविज्ञान (कीटशास्त्र) 55.5%
2. परास्नातक व्यवसायिक डिप्लोमा: पत्रकारिता, जनसंचार तथा मीडिया तकनीकी 75%
3. प्रोफशनल डिप्लोमा in Computer applications, DTP, Programming, MS Word, एक्सल, पॉवरपॉइंट, कोरल ड्रा, फ़ोटो शॉप 75%
4. डिप्लोमा in फ़ैशन डिजाइन 75%
एक्स्ट्रा कुरिकुलर एक्टिविटी:
0. सहायक निर्देशक का अनुभव
1. MLM का 5 साल का अनुभव
कार्य: लेखन व सलाहकार
कमाई: 25000₹ से 40000₹ प्रतिमाह (स्थायी स्रोत से कमाई है, अतः कभी कम नहीं होगी और लगातार प्रतिवर्ष बढ़ेगी)
ये सब पढ़ाई में से एक डिप्लोमा का अनुभव सबसे यादगार रहा:
(हालांकि परास्नातक भी कम मजेदार नहीं था और स्नातक भी)
मैं पहली बार एक अपनी पसंद के क्षेत्र में डिप्लोमा करने गया (परास्नातक डिप्लोमा in पत्रकारिता, जनसंचार तथा मीडिया तकनीक)। वहाँ पर भी लड़के-लडकिया अलग बैठते थे लेकिन सीटों की दूरी अधिक होने के कारण लड़के, लड़कियों के अगल बगल में भी बैठने लगे।
सबसे आगे बैठने की आदत मेरी हमेशा रही है। इसी लिये मेरा ध्यान शिक्षा में रहा और मैं पीछे के लोगों को देख ही नहीं पाया कभी। (लेकिन 12th तक ऐसा नहीं था)
लेकिन यहाँ एक अजूबा हुआ। मेरी तारीफों के पुल बांधे जाने लगे। मेरे कार्यों और लेखों की जम कर तारीफ की गई और सभी लड़के मेरे आलोचक और सभी लड़कियाँ मेरी फैन बन गईं। कुछ महिला शिक्षको को भी मेरी दिलरुबा करार दिया गया।
सभी लड़कियों में झिझकता, सकुचाता हुआ सा मैं सबको अपना इंटरव्यू देने लगा।
लड़के मेरे लिये साजिशें करने लगे और मुझे लड़की बाज का खिताब कब मिल गया पता ही नहीं चला।
शिक्षकों ने मुझे एक ज़िम्मेदार बना कर एक प्रोजेक्ट सौपा। पूरे सत्र में मैं एकमात्र ऐसा विधार्थी था जो handy cam लेकर आया। मुझे उसके ज़रिये पहली बार डॉक्यूमेंट्री बनाने का काम सौंपा गया। college का handy cam खराब पड़ा था।
मुझे एक डॉक्यूमेंट्री बनाने का काम सौंपा गया। इस लिस्ट में मैंने सबको पुकारा जो मेरी डॉक्यूमेंट्री में भाग लेना चाहते थे। सभी लड़कियाँ भाग के आ गईं और लगीं धडाधड अपने फोन नंबर लिखाने। एक अधिक उम्र की परित्यक्त महिला ने मेरे सामान्तर खड़े होकर दो लड़कियों, जो कि आपसी घनिष्ठ मित्र थीं, उनको इस वजह से बाहर कर दिया क्योंकि वे उनके हिसाब से नक्शेबाज थीं। इस बात का मैंने विरोध किया कि यह कोई कारण नहीं है किसी को बेदखल करने का। आप उनकी गलती पर ही उनको बाहर करने का अनुरोध करें और मर्यादा में रहें।
इस पर मामला बिगड़ गया और उन्होंने उन दोनों को मुद्दा बनाते हुए हाथ ही खड़े कर दिए। मेरे खिलाफ जो लड़के थे उन्होंने मिल कर उन मैडम को मना लिया था और अपनी बहन बना लिया था। उसी दौरान 2 और लड़कियो को भी उन्होंने बहन बनाया था जो बदसूरत थी, दरअसल जो भी बदसूरत लड़की दिखती थी वे लड़के उसको बहन बना लेते थे। जो मेरी नज़र में किसी इंसान का अपमान था। एक महिला एक दोस्त के साथ ज्यादा सुरक्षित और आनंददायक महसूस करती है, बजाय अपने भाई के साथ कहीं जाने में। यह एक माना हुआ तथ्य है।
साथ ही एक और घटना भी घटी। जिनका पक्ष मैंने लिया था वह दोनों अगले दिन आकर मुझे आभार व्यक्त करने लगीं और मैं एक सेलेब्रिटी जैसा बन गया। अब क्या था कि वे भी हमारी लिस्ट में आ गईं लेकिन वे रेगुलर नहीं थीं। उनको दरअसल आकाशवाणी में ज्यादा रुचि थी और वे उसी सिलसिले में लगी रहती थी। फिलहाल मैंने उनको निकाला नहीं बल्कि उनको भी टीम में शामिल माना। लेकिन आप जानते ही होंगे कि मैं लड़कियों की टीम से क्या काम करवाता? उनको तो काम करने की आदत ही नहीं होती। वो तो अपने भाइयों, पिता या बॉयफ्रेंड के भरोसे बैठी रहती हैं।
ये समझिये अकेले मैंने शुरुआत की और खत्म वह डॉक्यूमेंट्री कभी हुई ही नहीं। कुछ हिस्से मैंने अपनी ही कक्षा की बदतर हालत पर फिल्मा लिए और एक लघु 15 मिनट की सेल्फ directed डॉक्यूमेंट्री बना डाली। इसी डॉक्यूमेंट्री में मैंने सभी सदस्यों को जिनमे वह मैडम भी शामिल रहीं, फिल्मा लिया। उसकी एडिटिंग करके CD बना के जमा भी कर दी। इस डॉक्यूमेंट्री का सर्वेसर्वा मैं ही था और मैं कैमरा मैन भी होने के कारण इसमें दृश्यमान रूप में शामिल नहीं हो सका। केवल मेरी आवाज ही उसमे रिकॉर्ड हुई। उसका director, प्रोड्यूसर, प्रोडक्शन कर्ता, पोस्ट प्रोडक्शन कर्ता, एडिटर इत्यादि सबकुछ मैं ही था। पता नहीं यह अच्छी बात थी या अफसोस जनक कि सब मुझे ही करना पड़ा।
उस डॉक्यूमेंट्री को मेरे ही फोन में देखा गया और सराहना भी की गई। कॉलेज में मीडिया का सबकुछ खराब था। समय बीता और तारीफों के पुल पार करते-करते मुझे फिर से एक नया प्रोजेक्ट मिला। इस बार सिर्फ 4-4 लोगों का समूह बनना था। सदस्य चुनना असम्भव हो गया क्योकि हर लड़की मेरे समूह में आना चाहती थी। इस समस्या को दूर करने के लिये हमारे शिक्षक इमरान जी ने अपने विवेक से मेरे साथ सबसे ज्यादा सहयोग और समर्थन करने वाली लड़कियों को चुन कर एक ग्रुप बना दिया। बाकियों के भी अलग ग्रुप बने। बहनों ने भाइयों का ग्रुप जॉइन किया और मेरी दोस्तों ने मेरा समूह जॉइन कर लिया।
यह प्रोजेक्ट दो विकल्पों में था, या तो हम समाचार पत्र बनाएं या हम एक मैग्जीन बनाएँ समाचारों की। मैंने मैगजीन को बेहतर समझा और उसे ही चुन लिया। दूसरे ग्रुप को अखबार सही लगा। हमने 15 दिन तक अथक मेहनत से वह मैगजीन तैयार की जिसका सारा आईडिया मेरा ही रहा। मैंने उन लोगों से लिखवाने का और समाचार इकट्ठे करने का काम करवाया सिर्फ। Direction मैंने ही किया। मेहनत उनसे करवाई। आख़िरकार हमारी बनाई मैगज़ीन सर्वश्रेष्ठ चुनी गई और अखबार पीछे छूट गया। दूसरे समूह की वह महिला मुझ से शर्मिंदा होकर मिलीं और उन्होंने पहली बार मुझे बधाई दी मेरे काम की।
बात यहीं तक सीमित नहीं रही। HOD ने मेरे समूह के मैगजीन को कॉलेज स्तर पर नामांकित कर दिया और प्रधानाचार्य जी से पुरुस्कार दिलवाने की बात तक होने लगी। यह बात कुछ लोगों को नागवार गुजरी और हमारी वह मैगज़ीन college से चोरी हो गई। मैगज़ीन गई, हमारा इनाम भी गया। लेकिन मान सम्मान बना रहा जो अच्छा था।
आने वाले समय मे मुझे जान से मारने, मेरी दोस्तों को सड़क से उठवाने तक की धमकी मुझे उनके फोन नंबर न देने पर दी गईं। लड़कियों का चहेता होना आसान बात नहीं होती है। सारी दुनिया आपकी दुश्मन बन जाती है।
खैर ज्यादा गहराई में न जाते हुए यही कहूंगा कि खट्टे मीठे पलों के साथ मैंने वर्ष 2010 में बरेली कॉलेज में इस परास्नातक डिप्लोमा में TOP किया और कुछ महिला मित्र अभी भी मेरे सम्पर्क में हैं जिनमे से एक विवाहिता भी है। कुल मिला कर मेरे समूह में दोस्त थे लेकिन रिश्तेदार नहीं थे। हालांकि मैं उस समय प्लेबॉय के नाम से बदनाम कर दिया गया था जबकि play मैंने कुछ नहीं किया। 2017/09/30 05:28
संस्मरण: Vegan Shubhanshu Singh Chauhan
"कुछ
लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की
कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं
जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"
लेकिन
इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना
लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों
जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश
व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार
है।
साथ ही,
धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं
बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले
ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी
काफी बाद में शुरू हुआ था।
मैं
किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो
नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े
की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को
धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?
धर्म
एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए
तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष
होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से
सिर्फ अच्छा ही चुनें?
"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।
और
यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन)
नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने
फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है।
मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी
भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों
के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना
बर्बाद कर दे रहे हैं।
अधिक
जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा,
अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी
विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह
करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल
फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।
चीन
में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया
जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू
भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप
करेंगे क्या?
आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?
"मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।
बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।"
-Vegan Shubhanshu Singh Chauhan
-Vegan Shubhanshu Singh Chauhan
आप
इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें
करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।
जब
दुनिया में सच और न्याय का विनाश हो रहा था तब मेरा जन्म हुआ. कुछ था
जिसने मुझे कुछ ख़ास बनाया था बचपन से। माता-पिता ने शुरू के 8 साल तक मुझे
राजकुमारों की तरह पाला पोसा और फिर जब मेरी इच्छाए और पसंद विकसित हुई तो
छोड़ दिया मुझे मेरे हाल पर।
उनकी
पसंद तो मैं उनका और मेरी पसंद तो मैं पराया। सब अजीब सा था लेकिन मैं
हिम्मत नहीं हारा। 'क्यों जीना था मुझे' एक ही सवाल था। तभी टीवी पर मुझे
कुछ दिखाई दिया, वह थी थॉमस अलवा एडिसन की जीवनी।
कुछ
कुछ अपने जैसी ही लगी उसकी जिंदगी। पढने में बिलकुल दिल नहीं लगता था।
मैडम मारती रहती थीं और मैं शिकायत करता रहता था। माँ टीचर से जा के लड़ती
रहती थीं और मैं अपनी किस्मत से।
बहुत
पिटा था मैं अपनी पढाई के दिनों में, किसी शरारत के लिए नहीं, बल्कि
होमवर्क न करने और याद न कर पाने के कारण। आजकल के नोबिता की तरह।
जिंदगी
नर्क से कम नहीं थी स्कूल की। और कॉलेज कौन सा स्वर्ग था? आज कल के लड़के
लडकियां तीसरी-चौथी क्लास में ही अपनी लव स्टोरी शुरू कर देते हैं और मैं
लडकियों से डरता रहा। शायद इसलिए क्योकि मेरे जन्म के दो साल और दो महीने
बाद से ही मेरा नर्क शुरू हो गया था बस मैं मानता नहीं हूँ। ऐसा इसलिए
कयोंकि तब मेरी बहन पैदा हुई और समझो मैं मर गया।
कैसे? क्योंकि प्यार बंट गया। किसी को पहले सिर आँखों पर चढाओ और फिर अगर गोद में भी उतार लो तो वो पूरा घर सिर पर उठा लेता है।
शायद
ऐसा ही मेरे साथ भी था। दूसरी क्लास से मेरा वजन बढ़ गया और डीलडौल भी। ये
प्यार नहीं था, इस से पहले मैं हड्डियों का कंकाल था। घरवालों को पहले तो
डर था कि लड़का ही पैदा नहीं होगा फिर ये कंकाल देख कर वो सिहर गए थे।
छोटी बहन से लड़ता रहता था, तब मैं समझदार नहीं था। फिर पता लगा की ये तो घर घर की कहानी है।
एडिसन
कभी भी मेरे अन्दर मरे नहीं और आज भी जिन्दा हैं। मैं माँ-पिता की बेरुखी
को अपनी किस्मत मान के खुद को अनाथ मानता रहा। और मैं बड़ा हो गया।
खुद
को अपना ही माँ-बाप बना के मैं जिंदगी की सबसे ऊँची नीची पढ़ाई की सीढ़ी
चढ़ता गया। स्नातकोत्तर के बाद दो व्यावसायिक डिप्लोमा भी किये।
लोगों
के कहने पर प्रतियोगी परीक्षा में भी बैठा लेकिन रूचि न होने के कारण सफल न
हो सका। बी.एड. की प्रवेश परिक्षा अपनी बहन की देखा देखी में दी और 200
में से 170 अंक हासिल किये। attempt तो 189 ही किये थे। खास बात थी की
मैंने कोई तैयारी नही की थी।
मैंने
फीस के 51250₹ जमा कर के बी.एड. छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि मुझ से इतने ही
रूपये और मांगे गए परीक्षा फ़ार्म भरने के लिए। कॉलेज था, जुगल किशोर डिग्री
कॉलेज, गवां, बदायूँ।
मैं
पागल नहीं था जो ये मांगी जाने वाली रिश्वत से अपनी जिंदगी में एक बड़ा दाग
लगाऊं। लेकिन सब ने मेरे त्याग को मेरा पागलपन कहा। सब बुरे थे। आप खुद
सोचिये 51250₹ खोना बुरा है या 100000₹ खोना? ऐसा बी.एड. जिसमें आपको वहां
पढने की जगह घर पर पढने को कहा जाए और जहाँ सब पैसों से ख़रीदा जा सकता हो
वहां पढ़ाई नहीं शौपिंग की जाती है।
मैं शौपिंग ऑनलाइन करता हूँ। ऑफलाइन तो अभी तक पढ़ाई ही की है।
मैं अभी भी लगा हुआ हूँ कुछ अनोखा और useful बनाने में जिसका इस्तेमाल करके लोग अपने इंसान होने पर और गर्व कर सकें।
मैं
लोगों को अमीर बनाना चाहता हूँ और खुद को भी। मेरे ख़याल से अमीर दो तरीकों
से बना जा सकता है। एक खूब धन कमाओ और उसे अमीर दिखाने वाली चीजों को
खरीदने में खर्च करो; और दूसरा, अमीर बनाने वाली वस्तुएं कम दामों पर ले ली
जाएँ।
आप को
दूसरा तरीका कैसा लगा? ओह! फिर से नकारत्मक विचार, की फिर क्वालिटी में
समझौता करना पड़ेगा जैसे चाइना का सामान। है न? मैं भी जानता हूँ की हम क्या
चाहते हैं। मैं भी आप में से एक हूँ। अभी वस्तुएं महंगी इसलिए हैं क्योंकि
तक्नीक पुरानी है। तकनीक बदल दूंगा तो क्वालिटी पर कौन सा फर्क पड़ेगा?
जैसे
ऐ.सी. बहुत गर्मी पैदा करता है बाहर के वातावरण में और बहुत बिजली
इस्तेमाल करता है। महंगा भी है और महंगा भी पड़ता है। क्यों न इसकी तकनीक
में सुधार किया जाय या कुछ नया बनाया जाए? कैसा रहेगा अगर वो साधारण
इन्वेर्टर से भी घंटो तक चले?
अपने विचार मुझ तक पहुँचाइये और मैं आप तक पहुँचाऊगा आप के सपने।
"गरीब इतना कि मैं सबको खुश न कर सका,
अमीर इतना कि जहां की हर खुशी खरीद ली।" ~ शुभ्
अमीर इतना कि जहां की हर खुशी खरीद ली।" ~ शुभ्
Hi
I’m a nature lover and Vegan. I believe in the power of Science &
Technology and have the ambition of becoming one of the internationally
reputed scientists/professors. I’m a good dreamer, believe in the beauty
of my dreams and work hard to achieve them. I’m not that intelligent but
am a sincere and very confident person and believe in “Heartily &
Honestly Hard Work can Evolute any Life” however, I like to make good
friends and believe that friends earned in one's life are a treasure.I
also like to mingle with like minded people in the society. I like to
get involved in some social activities when I don’t do any science. I
feel great pleasure when I help someone and make him/her happy. I
believe “no one is perfect human being" However, one can achieve
perfection by developing good human values.
Disclaimer: All of above is work of fiction!
नोट: उपर दिया गया विवरण काल्पनिक है, इससे किसी की भी समानता संयोग मात्र होगी!
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