Zahar Bujha Satya

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Incest: World's most favorite fantasy is actually our natural instinct



बलात्कारी: नास्तिक तो रिश्ते नहीं मानते तो अपनी माँ बहन भी *दते होंगे।

शुभ: पहली बात, बलात्कर आप की सँस्कृति में होता है, सामान्य मानव प्रेम और रुचि होने पर ही सम्भोग करता है। अगर दो भाई बहन आपस में सेक्स करना चाहते हैं तो क्या रोक लोगे? आपको बताएगा कौन?

जो विद्वान सोचते हैं कि सेक्स का मतलब बच्चा होता है वो खुद बच्चे हैं। वरना बच्चा कोई मूर्ख ही पैदा करेगा। सेक्स का मतलब बच्चा केवल मूर्खों के लिये ही हो सकता है। डीलक्स निरोध 1 ₹ में मिलता है।

कुछ विद्वान विज्ञान का हवाला देते हैं कि बच्चे में आनुवंशिक रोग आ जाते हैं तो बता दूँ कि शुरुआत में मानव रिश्ते नहीं जानता था और हम सब भाई-बहन-माँ-पिता-पुत्री के सम्भोग से बनी औलादें हैं। क्या हम सब मे आनुवंशिक रोग है? यदि हाँ तो काहे परेशान हो रहे अगर कोई फिर से प्रकृति के अनुसार जी रहा है तो?

इस तरह के झूठ जानबूझकर धार्मिकों ने विज्ञान में घुसाये हैं जिनका कोई प्रमाण उपलब्ध ही नहीं है। केवल अध्ययन हैं जो कि अपवाद हैं।

कई धर्मों में रिश्तों में विवाह पाप माना जाता है। उसके राजनीतिक कारण रहे थे। सम्भवतः लड़ाई जीतने पर अपनी बहन/बेटी सैनिकों को अय्याशी के लिये दान करने का रिवाज था। उसी रिवाज को बाद में विवाह कहा गया। हिदू धर्म में इसके प्रमाण मिलते हैं। दूल्हा सैनिक/सेनापति की वेशभूषा में आता है। तलवार लिए। घोड़े पर। अपनी सेना के साथ। प्राचीन काल में यह अपहरण जैसा होता था। जिसमें लड़की की जान के बदले में फिरौती की रकम मांगी जाती थी। आज भी यही प्रथा दहेज के रूप में उपस्थित है जो न जाने कितनी कन्याओं और उनके पिताओं को निगल गयी।

अब अगर सभी घर में ही विवाह कर लेंगे तो बाहरी पावर वाले लोगों को लड़की कौन उपलब्ध करवाएगा? नियोग और हलाला की प्रथा बताती है कि महिला को उपभोग की वस्तु समझा जाता है और इसमें पुजारी व मौलवियों को अय्याशी का मौका मिलता है।

हिंदू, मिस्र की सभ्यता में और इस्लाम के लोग रिश्तों में ही संभोग और विवाह किया करते थे।

इस्लाम और ईसाइयों के उदाहरण स्वयं कुरान व बाइबिल में हैं। उदाहरण के लिए, आदम के सिर्फ 3 बेटे थे। फिर आगे बच्चे कैसे हुए? यही बात ईसाई धर्म में है। एडम के 3 लड़के थे। दोनो ही धर्मों में उनके बच्चों ने अपनी ही माँ से संभोग करके आगे संताने पैदा करी थीं।

हिंदू धर्म में रिश्तों में विवाह के सभी प्रमाण आप काशी नाथ राजवाड़े की पुस्तक 'भारतीय विवाह संस्था का इतिहास' नामक पुस्तक में पढ़ सकते हैं। उसके प्रमुख अंश लेख के अंत में देखें।

जिस तरह जाति, धर्म, दहेज और प्रेम के चक्कर मे लड़के लड़कियों को मार दिया जाता है, वैसे ही गोत्र के चक्कर में भी। अतः जो लोग दूसरे के मामले में टांग अड़ा रहे हैं वे उन्हीं लोगों जितने अपराधी है जो ऑनर किलिंग और मोबलीचिग करते हैं। गोत्र का तातपर्य भाई बहन ही होता है।

अंत में, सम्भोग निजी मामला है और किसी को इसमें उंगली करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कानून जब सभी नागरिकों को 18 वर्ष की आयु के बाद अपने निजी फैसले लेने का हक सभी नागरिकों को देता है तो सम्भोग, भाई-बहन करें या बाप-बेटी या और कोई।

आपको उसमें दखल देने पर धारा 306 के तहत 10 वर्ष कैद, जुर्माना, उम्रकैद या मृत्युदंड दिया जा सकता है। अतः अपने काम से काम रखें और तानाशाही न करें। अन्यथा जेल में अपनी दुर्दशा देखोगे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

भारतीय विवाह संस्था का इतिहास:

1. इतिहास में एक ऐसी भी अवस्था थी, जब स्त्री-पुरुष संभोग के सामाजिक नियम नहीं बने थे और न ही यौन शुचिता और नैतिकता का बोध विकसित हुआ था। संभोग क्रिया में रिश्ते-नाते नहीं देखे जाते थे, क्योंकि ऐसे संबंध उन दिनों बने ही नहीं थे। किसी भी स्त्री के साथ संभोग करना, पशुओं की तरह कहीं भी खुले में संभोग करना, अल्पवयस्क बालिकाओं को साथ संभोग करना और यहां तक कि पशुओं के साथ यौन क्रीड़ा करना आम बात थी। सेक्स स्वच्छंद एवं निर्बंध था।

2. महाभारत के 'आदिपर्व' के 63वें अध्याय में पाराशर ऋषि और मत्स्यगंधा सत्यवती के बीच खुले में संभोग का वर्णन मिलता है। 'आदिपर्व' के 104वें अध्याय में यह वर्णन मिलता है कि उत्थत के पुत्र दीर्घतमा ने सब लोगों के सामने ही स्त्री के साथ संभोग शुरू कर दिया। इसी पर्व के 83वें अध्याय में गुरु-पत्नी के साथ संभोग करने, पशुओं के समान यौन क्रीड़ा करने वाले मलेच्छ लोगों का वर्णन भी मिलता है।

3. आधुनिक इतिहास में यह वर्णन मिलता है कि महाराजा रणजीत सिंह हाथी के हौदे में सबके सामने संभोग किया करते थे। पुणे में बाजीराव के जमाने में 'घटकंचुकी' नाम का एक खेल खेला जाता था। अभिजात वर्ग के चुने हुए स्त्री-पुरुष रंगमहल में जुटते थे। वहां औरतों की कंचुकियां (चोली) एक घड़े में डाली जाती थी और फिर जिस पुरुष को जिस स्त्री की कंचुकी हाथ लगती थी, वो सबके सामने उस स्त्री के साथ संभोग करता था।

4. इस प्रथा का प्रचलन कर्नाटक प्रदेश में आजादी मिलने के कुछ पहले तक था। सामूहिक संभोग (ग्रुप सेक्स) के ऐसे आयोजनों में उम्र अथवा रिश्ते-नाते का कोई विचार नहीं किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में तमिल लोग भी खुले में सबके सामने संभोग किया करते थे। इतिहास के जनक कहे जाने वाले हेरोडेट्स ने लिखा है कि शक लोगों को जब संभोग की इच्छा होती थी, तो वे रथ से अपना तरकश लटका खुले में काम-क्रीड़ा करते थे। वेदों में यज्ञभूमि पर सामूहिक रूप से संभोग करने के वर्णन मिलते हैं।

5. कौटंबिक सेक्स (Incest) का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में काफी मिलता है। 'हरिवंश' में यह उल्लेख मिलता है कि महर्षि वशिष्ठ की पुत्री शतरूपा ने उन्हें पति माना और उनके साथ यौन संबंध बनाए। इसी ग्रंथ में यह उल्लेख है कि दक्ष ने अपनी कन्या अपने पिता ब्रह्मदेव को दी, जिससे नारद का जन्म हुआ। 'हरिभविष्य पर्व' के अनुसार इंद्र ने अपने पड़पोते जनमेजय की पत्नी वपुष्टमा के साथ संभोग किया। 'हरिवंश' में ही यह उल्लेख मिलता है कि सोम के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्यायें पिता को दी। जब जनमेजय ने इसे अनैतिक कृत्य बताया तो महर्षि वैंशपायन ने कहा कि यह प्राचीन रीति है।

6. महाभारत के 'आदिपर्व' में कहा गया है कि कामातुर स्त्री यदि एकांत में संभोग की इच्छा प्रकट करे तो उसे पूरा किया जाना चाहिए, नहीं तो धर्म की दृष्टि से यह भ्रूण हत्या होगी। उलूपी अर्जुन से स्पष्ट कहती है कि स्त्री की इच्छा पूर्ति लिए एक रात संभोग करना अधर्म नहीं।

7. पौरव वंश की जननी उर्वशी अर्जुन पर कामासक्त हुई। उसने अर्जुन से कहा कि पुरु वंश के जो पुत्र या पौत्र इंद्रलोक में आते हैं, वे हमसे रति-क्रीड़ा करते हैं। यह अधर्म नहीं है। अर्जुन ने उसकी याचना स्वीकार नहीं की, तब उर्वशी ने उसे नपुंसक होने का शाप दिया। 'वनपर्व' में यह भी उल्लेख मिलता है कि महर्षि अगस्त्य ने अपनी कन्या को विदर्भ के राजा के पास रखा और जब वह विवाह-योग्य हुई तो स्वयं उसके साथ विवाह किया।

8. ऋग्वेद के दसवें मंडल में यम-यमी संवाद उस समय प्रचलित यौन संबंधओं की परिपाटी को समझने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यमी अपने भाई से संभोग की इच्छा प्रकट करती है। यम के इनकार करने पर वह फिर आग्रह करती है और कहती है कि भाई के रहते बहन अनाथ रहे और उसे दुख भोगना पड़े तो भाई किस काम का?
'किं भ्राता सद्यदानार्थ भवाति।
किमु स्वसा यन्निर्ऋति र्नि गच्छात।।'
स्पष्ट है, उस काल में भाई-बहन के रिश्ते पूरी तरह निर्धारित नहीं हुए थे। भ्रातृ शब्द भृ से निकला है, जिसका अर्थ है पालन करने वाला, भरण-पोषण करने वाला। बाद में इसी से अपभ्रंश भर्तार और भतार शब्द निकला, जिसका प्रयोग पति के लिए किया जाता है।

9. प्राचीन काल में यौन संबंधों के बारे में इतिहासकार लेर्तुनो ने लिखा है कि चिपेवे कभी-कभी अपनी माताओं, बहनों और पुत्रियों के साथ संभोग किया करते थे। कादिएकों में भाई-बहनों और पिता-पुत्रियों के बीच खुलेआम यौन संबंध प्रचलित थे। कारिब मां और बेटियों के साथ संभोग किया करते थे। प्राचीन आयरलैंड में भी मां एवं बहनों के साथ संभोग का प्रचलन था।

10. महाभारत के 'आदिपर्व' में उल्लेख है कि यौन संबंधों की सीमाओं का निर्धारण उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु करता है। एक ब्राह्मण जब संभोग करने के लिए उसकी माता का हाथ पकड़ता है तो वह क्रोधित हो जाता है, लेकिन उद्दालक कहता है कि स्त्रियों द्वारा उन्मुक्त संभोग करना धर्म यानी मान्य व्यवहार है।

11. समय के साथ, जैसे-जैसे सभ्यता विकसित होती है, यौन संबंधों का स्पष्ट निर्धारण और सीमांकन होने लगता है, पर महाभारत काल तक पूरी तरह ऐसा नहीं हो पाता। कर्ण शल्य की निंदा करते हुए मद्र देश (पंजाब) की औरतों के बारे में कहता है कि वहां की स्त्रियां किसी भी पुरुष से स्वेच्छा से संभोग करती हैं, चाहे वे उनके परिचित हों या नहीं। वे बेहूदा गाने गाती हैं, शराब पीती हैं और नग्न होकर नाचती हैं। वे वैवाहिक विधियों से नियंत्रित नहीं हैं। मद्र देश की कुमारियां निर्लज्ज और विलासिनी होती हैं। दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का शासक बनाया था, इसलिए शल्य कहता है कि अंग देश में औरतों और बच्चों की बिक्री होती है।

12.जाहिर है, यौन संबंधों का नियमन सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ क्रमिक रूप में हुआ। पर सेक्स की आदिम इच्छा समय-समय पर मनुष्य में बलवती हो जाती है। यही कारण है कि आज भी हम ऐसे यौन संबंधों के बारे में सुनते हैं, जिन्हें अवैध एवं अनैतिक कहा जाता है। कौटंबिक व्यभिचार की न जाने कितनी घटनाएं प्रकाश में आती हैं। सभ्य मनुष्य के लिए ऐसे संबंध गर्हित हैं, पर भूलना न होगा कि सेक्स एक आदिम प्रवृत्ति है। समाज जहां अति आधुनिक होता चला जा रहा है, वहीं सेक्स संबंधों का पूरी तरह नियमन हो चुका है। पर आदिम प्रवृत्तियां जब-तब सिर उठाती ही रहती हैं।

~ काशीनाथ राजवड़े की पुस्तक 'भारतीय विवाह संस्था का इतिहास' पर आधारित।

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