एडोल्फ हिटलर ने अपने देश से यहूदियों को विदेशी समझ कर काटा-मारा क्योंकि कोई भी वापस अपनी मूल भूमि पर नहीं भेजा जा सकता जब तक उस देश की सरकार उनको अपना न माने और उनके रहने, रोजगार की व्यवस्था न कर दे। तब तक वे सभी शरणार्थी होते हैं। भारत में भी तमाम देशों से विदेशी शरणार्थियों के रूप मे आये और बस गए। यहाँ उन्होंने रोजगार ढूढे या बनाए, जिससे तेजी से आय हो। इसीलिए वे तेजी से आगे बढ़े और जो शिक्षा लेने में निपुण थे, वे अपनी शैक्षिक योग्यता से उच्च पदों पर पहुँच गए।
अब ये सब भारतीय हैं। जो इनके पूर्वज यहाँ आये थे वे कब के मर खप चुके। उनकी संताने अब भारतीय हैं। उन्होंने भारत में जन्म लिया है और भारतीय जीवन जिया है। ज्यादातर तो ये भी नहीं जानते कि उनके पूर्वज कहाँ से भाग के आये थे और क्यों।
इसीलिए ये विदेशी बोल के दोबारा एडोल्फ हिटलर बनने की जो भी कोशिश कर रहा है, उसका परित्याग करें। एडोल्फ ने निर्दोषों को केवल नस्लीय नफ़रत से मारा। यूरोप में काले लोगों को भी नस्लभेद के चलते मारा गया। नस्ल इंसान की एक ही है और वह है होमोसेपियंस। बाकी सब तो रंगरूप की भिन्नता है।
हम मानव सम्पूर्ण पृथ्वी पर हैं। पूरी पृथ्वी ही हमारा घर है। ये सीमा केवल नफरत पैदा करती हैं। नस्ल केवल दिमाग में बसी है। हर रेस अगर दूसरी रेस (नस्ल) से नफरत करेगी तो सोचो, क्या कोई बचेगा? क्या कोई कमज़ोर होता है?
एडोल्फ हिटलर ने जो किया उसका हश्र उसकी आत्महत्या के रूप में सबने देखा। वो न करता तो उसे फांसी लगा कर मार ही दिया जाता जैसे उसके सभी नाज़ी साथियों को मार डाला गया।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि नाज़ियों को लगता था कि वो आर्य यानि ब्राह्मण हैं। और वे खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते थे। यानी हिटलर नस्लीय रूप से ब्राह्मण था। तो सोचो क्या हम भी उनकी तरह बनेंगे? क्या हमारी भी उन नाज़ियों/आर्यो/ब्राह्मणों की तरह अंत में हार और सर्वनाश नहीं होगा? होगा, ज़रूर होगा। इतिहास दोहराया जाएगा तो उसका परिणाम भी दोहराया जाएगा। फैसला आपका। हम तो बस मार्गदर्शन कर सकते हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©
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