ज्यादातर लोग सोचते हैं कि वे नेता बन कर ही दुनिया में जागृति ला सकते हैं। सुधार कर सकते हैं। परंतु ऐसा होता नहीं और वे अपनी पूरी योजना ठंडे बस्ते में डाल के खुद भी बाकी लोगों के साथ घटिया जीवन जीने लगते हैं। जबकि मैंने देखा है कि नेता बन के आप कुछ नहीं कर सकते।
सुधार व्यक्तिगत स्तर से होता है और वह हम खुद को सुधार के ही कर सकते हैं। जब हम सुधरते हैं तो हम अकेले नहीं सुधरते। हम एक उदाहरण बन जाते हैं। हमारी बाकियो से अलग और अच्छी गतिविधि चर्चा में आने लगती है और लोग आपको उदाहरण देख कर आपके जीवन से सीखने लगते हैं कि आपका उठाया गया सुधारवादी कदम safe है।
पूरी दुनिया में इंसान और जानवर डरा हुआ है। उसे हर नए या अलग कार्य से डर लगता है। उसे लगता है कि अगर कोई और नहीं कर रहा तो वह कार्य गलत है। जबकि सिद्धांत कहता है कि वह कार्य सही है।
जैसे,
1. दुनिया में पशु उत्पाद एक जीवन रक्षक की तरह पेश किए जाते हैं। जबकि वही जीवन नष्ट करने के पुराने और प्रभावी कारक हैं।
2. विटामिन B12 पशुउत्पाद में ही पाया जाता है ऐसा भ्रम फैलाया जाता है। जबकि वह तो पूरी पृथ्वी पर केवल बैक्टीरिया ही बनाता है। बैक्टीरिया तो हर जगह है। सबसे ज्यादा तो हमारे मुहं में और मलाशय में।
ये सत्य है कि हमारे मुहँ के मैल और गुदा के टट्टी/मल में विटामिन B12 होता है। जानवर मंजन नहीं करते, इसलिये वह उनके पेट में जाता है। अब ऐसा है तो B12 की कमी होती ही क्यों? तो डॉक्टर अनुमान लगाते हैं कि वह पचता नहीं है। (क्यों भई?)
दरअसल इस गलतफहमी का कारण यह है कि 90% मानव मंजन करता है। बैक्टीरिया सोते समय ही ठीक से अपना कार्य कर पाता है। सुबह आप उसका सब किया-कराया धो दोगे तो B12 कैसे मिलेगा? बेहतर होगा कि कुल्ला करके जल बाहर फेंकने की जगह भीतर ले लो। मिल गया विटामिन B12।
अब डॉक्टर ही कहते हैं कि B12 केवल टट्टी में होता है। जो कि बैक्टीरिया बनाते हैं। अब जानवरों में किधर से आया? तो वे बताते हैं कि हर जानवर अपनी टट्टी खाता है। (क्या वाकई?)
उसी खाई हुई टट्टी से मिला विटामिन B12 मांसाहारी मानव और जानवर को उस जानवर को खाने से मिल जाता है। मतलब आप जानवरों की टट्टी, जानवर को खिला कर और फिर उसे खाकर, दरअसल उसकी टट्टी ही खाते हो? अब डॉक्टर ही कह रहे, तो मानो। चिकित्सकों के अनुसार टट्टी खोर होते हैं सभी जंतु। मैं नहीं कहता। 😁
3. चीनी को ह्रदयघात का कारण बताया जाता है जबकि वह तो मधुमेह का कारण बन सकती है, अगर सीमा से अधिक सेवन किया जाए। मोटापा भी बढ़ सकता है। 😮 फिर भी उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिसे हम ह्रदय से जोड़ सकें। उसका बनाया वसा कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ाता।
4. धूम्रपान का भी ह्रदयघात से कोई सम्बन्ध नहीं दिखता क्योंकि वह तो फेफड़ों के कैंसर का कारण बनता है।
5. आजकल साजिश के तहत, डॉक्टर कोलेस्ट्रॉल का कोई सम्बंध ह्रदयघात से नहीं बता रहे हैं जबकि यही एक मात्र कारण है ह्रदयघात का। कोलेस्ट्रॉल केवल जंतुओं में पाया जाता है और ये ही 35 वर्ष की आयु के बाद कठोर हो चुकी नसों में फंस कर उनको चोक/ब्लॉक कर देता है। परिणाम स्वरूप दिल का दौरा तय। ये बात समझ में आती है लेकिन जो डॉक्टर बता रहे, वो? क्या वो समझ आता है? जी नहीं, वो नहीं समझा सकते। झूठ को समझाया नहीं जा सकता।
ये कुछ उदाहरण हैं जो दुनिया के भ्रामक और गलत होने को उजागर करते हैं। अब यदि आप इनके विरुद्ध जाने की कोशिश करोगे तो डर लगेगा। डरना ज़रूरी है। लेकिन केवल वास्तविक डर से। झूठे डर को फ़ोबिया कहते हैं। इंसानो को न जाने कितने फ़ोबिया होते हैं? ये वाले अभी जोड़े नहीं गए हैं।
ये फ़ोबिया है, एक्सपर्ट की सलाह को न मानने से होने वाले नुकसान का डर। खुद कुछ भी न सीखना और सब कुछ किसी सीखे हुए से पूछने का आलस। किसी पर ज़िम्मेदारी डाल के सोचना कि नुकसान होने पर उसे दोषी ठहरा देंगे।
सही है। ऐसा वाकई लगता है। परंतु हो नहीं पाता। क्या आप जब एक चिकित्सक की दवा से स्वस्थ नहीं होते तो क्या उसको जाकर बताते हो? क्या उस पर केस करते हो? या उसे छोड़ के दूसरे डॉक्टर के पास चले जाते हैं?
क्या कोई टीचर अच्छा नहीं पढ़ाता तो उस पर केस कर देते हैं? या उसे बदल देते हैं?
हम में से कोई, किसी एक्सपर्ट को ज़िम्मेदार बता कर सज़ा नहीं दिलाता। यही कारण है कि एक्सपर्ट झूठ बोलते हैं। आप तो दूसरे के पास चले जाओगे। उसका क्या जाता है? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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