मैं यह समझा सकता हूँ कि क्यों
लोग (प्रेमी जोड़े या पति-पत्नी) एक दूसरे को कुछ समय बाद छोड़ देते हैं!
क्योकि इंसान
मौलिक रूप से पोलिगेमस होता है, वैसे 99% सभी जीव ऐसे
ही होते हैं तो कुछ नया नहीं है। विवाह का अर्थ
सेक्स होता है विज्ञान में और लोगों की राय
में भी, तो पोलिगेमस को हिंदी में बहुविवाही कह सकते हैं।
दुनिया मे
सबसे सम्भोग नहीं किया जा सकता लेकिन जितनों से भी कर लिया जाए, ये मानव का मूलभूत प्रयास रहता है। क्योंकि न तो हर एक सम्भोग में
बच्चे हो सकते हैं और न ही हर जन्तु प्रजनन
क्रिया करने में सफल ही हो पाता है।
(मानवों में
तो यह इसलिए भी बेमौसम होता है क्योंकि एक महिला सिर्फ ४०० अंडे पैदा करने की क्षमता लेकर दुनिया में आती है और माह में केवल एक दिन
ही प्रजनन योग्य स्थिति में होती है जो हर माह का 14वां
दिन होता है (यदि महिला स्वस्थ है और
उसका माहवारी चक्र 28 दिन पर टिका हो)। बच्चे होने के सम्भावित
दिवस 14वें दिन से 3 दिन पहले और 3 दिन बाद तक
के हो सकते हैं। लेकिन ovolution (अन्डोत्सर्ग)
वाले दिन न सिर्फ 100% बच्चे होने की सम्भावना
होती है बल्कि महिला इसी दिन सम्भोग के प्रति वास्तविक रूप से लालायित होती है। उसकी योनी में श्लेष्मा का स्राव अधिक होने
से सम्भोग की इच्छा अपने आप जागृत हो जाती है। इस एक
हफ्ते में यदि वीर्य योनी से गर्भाशय में
पहुचता है तो निषेचन की प्रक्रिया होगी अन्यथा यह अंडा आत्महत्या
कर लेगा। इसी अंडे की प्रतिमाह आत्महत्या को हम माहवारी कह कर सम्बोधित करते हैं। (है न रोचक जानकारी, अब मत कहना
कभी कि मैं महिलाओं को समझ नहीं
सकता)।
अब सवाल
उठता है कि कैसे पता चले कि अन्डोत्सर्ग वाला दिन कौन सा है? यह
पता नहीं लगाया जा सकता क्योंकि अब मानव
कपड़े पहन कर रहते हैं। पहले माहवारी के रक्त
को बहता देख कर माहवारी के दिन का पता चल जाता था उसके बाद दिनों की गिनती करके अन्डोत्सर्ग का समय पता लगाया जा सकता था लेकिन अब
इसे गंदा-घिनौना बता कर छिपा लिया जाता है।
(इससे दाग
न लग जाए, इसलिए लोग आज भी गंदा कपड़ा इस्तेमाल करना उचित समझते हैं। सेनेटरी पैड महंगा जो है। अरे हाँ २ रूपये वाला भी आ गया है।
लेकिन सिर्फ फिल्म में। अब आ गया है pad man से
बढ़ कर चमत्कारी menstrual cup man! (ही ही
ही)। जी हाँ, 150 (सिफ़ारिश करता हूँ) रुपए से लेकर 2000 रुपए तक की प्रारम्भिक खर्च के बाद 5 से 10
वर्ष
तक माहवारी और कपड़े, सेनेटरी पैड से छुट्टी।
खरीदने के लिए सम्पर्क करें)।
इसलिए कुल मिला कर पुरुष जानता
ही नहीं कि प्रजनन का दिवस कब है। परिणामस्वरूप पुरुष हर समय सम्भोग की इच्छा
जताता रहता है।
ये मानव
दिमाग मे भरा हुआ है (coded in gene) कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा किये जायें ताकि मानव जाति या कोई भी जाति (अन्य जीवों के
मामले में) बची रहे। इस प्रावस्था को natalism
कहते
हैं।
प्रकृति में
ये ऐसा इसलिये था क्योंकि जब विवाह नहीं था और विज्ञान नहीं था तो सभी मानव बहुत कम समय तक जी पाते थे (अन्य जंतुओं की तरह)।
ऐसे में
सिर्फ वही प्रजाति जीवित बची रह सकी जो ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने में सफल हुई। Evolution (उद्विकास) के
दौरान केवल वही मानव जीवित बचे जो सम्भोग
करने में और अधिक बच्चे पैदा करने में ज्यादा सफल हुए।
इन मानवों
में सम्भोग के प्रति बहुत तीव्र इच्छा थी और इसी कारण ये यहाँ तक पहुच सके। यही तीव्र इच्छा आज के मेडिकल साइंस के आ जाने के
कारण जनसँख्या बढ़ाने की ज़िम्मेदार कहलाई क्योकि
अब लोग चिकित्सा विज्ञान के कारण कम मरते हैं।
लेकिन इंसान की प्रवृत्ति (instinct)
नहीं
बदली। वह वैसी ही रह गई।
लोगों ने
इस प्रवृत्ति को बदलने के लिये monogamy (एकल विवाह) को अनिवार्य बनाया ताकि समाज मे धन का विनिमय करने के लिये मजदूर मिल सकें और
प्रति व्यक्ति परिवार के होने के कारण बच्चों
का पालनपोषण सुनिश्चित हो सके। इस प्रकार जनसँख्या
तीव्र गति से बढ़ने लगी। समाज की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये मोनोगैमी काम आई और एक व्यक्ति से विवाह बहुत प्रसिद्ध हुआ।
लेकिन इसके
दुष्परिणाम भी समय के साथ सामने आने लगे। एक समाज एक निश्चित स्थान पर स्थित परिवार के समान होता है। प्रायः समाज एक शहर, राज्य
या एक देश तक सीमित होता है। संगठित रूप में यह एक
समुदाय के रूप में होता है। इसकी एक निश्चित सीमा
होती है, निश्चित संसाधन (resources) होते हैं और
उनकी जीवटता उन्हीं पर निर्भर होती है। अर्थात यदि
संसाधनों में कमी आयी तो समाज में समस्याएं आनी
तय हैं।
उदाहरण 1: एक छोटे शहर
में 50 घर हैं। वे लोग वर्तमान परिस्थितियों में 60 घरो
का खर्च उठा सकें इतना ही कमाते हैं। यानी
अभी इसमें 10 और घर बसाए जा सकते हैं।
लेकिन जगह की कमी है। इसलिये वह संख्या 50 से आगे कभी नहीं बढ़ सकती। यह 10 घरों की अतिरिक्त राशि सभी परिवार आंशिक
रूप से अपने भविष्य की विकट परिस्थितियों
(आपातकाल) के लिये सुरक्षित रखते हैं।
लेकिन जनसँख्या
समानुपातिक ढंग से बढ़ रही है। कारण है नेटालिस्टिक भावना और संस्कृति
द्वारा इसके सन्दर्भ में बनाये गये विवाह और शीघ्र बच्चों को पैदा करने जैसे अनिवार्य व्यवहार/परम्पराएं।
नतीजा साफ
है। अपराध जन्म ले चुका है। अतिरिक्त लोग सड़कों पर भिखारी, विकलांग,
बेकार,
बेरोजगार
और गुंडे/चोर बनकर जीवन गुजारने लगे हैं। इससे उन 50 घरों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। उनका वह 10 घरों के
बराबर का आंशिक जमा धन इनको पाल रहा
है।
लोगों ने
कानून बनाया लेकिन फिर भी भृष्टाचारी समाज उसका पालन नहीं कर सका। यही एक सामान्य समाज का आर्थिक ढांचा है। इस प्रकार लोग मरते और नए
पैदा होते रहते हैं। लेकिन सिर्फ तभी तक जब तक
मृत्युदर और जन्म दर -50 और +60 रहती है। +10 परिवारों की वह अतिरिक्त जनसँख्या है जो
अपराध/छेड़छाड़/बलात्कार की जड़ है लेकिन
घटिया/भृष्ट समाज में स्वीकार्य है।
उदाहरण 2: उपर्युक्त
उदाहरण में एक नियमित समन्वय दिखाया गया है जब परिस्थिति नियंत्रण
में है। अब आती है अनियंत्रित परिस्थिति (वर्तमान)। वर्तमान समय में चिकित्सा विज्ञान उत्तरोत्तर प्रगति कर चुका हैं। असाध्य
रोग और समस्याएं सुलझाई जा रही हैं। जनसंख्या नियंत्रण
खतरे में है। इंसान की औसत आयु 80
तक
खिंच गई है। जो भविष्य में और ऊपर जा सकती है।
अब क्या होगा? सीमित
जगह, सीमित
संसाधन, सीमित स्थान लेकिन अधिक आबादी।
1. आपके बच्चे: मम्मी-पापा का कमरा
खाली हो जाता तो उनके पोते-पोतियों को दूसरे शहर में ऋण लेकर नया घर न लेना पड़ता।
2. आपके पोते-पोती: ये
बुड्ढे-बुढ़िया मरते क्यों नही? मुझे सम्पत्ति की ज़रूरत है और ये कुंडली
मारे बैठे हैं।
3. बैंक: 100 साल तक ही
पेंशन मिलेगी माता जी। उसके बाद भी जिंदा रहीं तो कुछ और जुगाड़ ढूंढ लो।
जब लोग ज्यादा और संसाधन कम
होंगे तो क्या होगा? सब एक दूसरे का मुहँ ताकना शुरू।
अब क्या
करें? फिर से मौत पीछे? फिर क्या फायदा जीकर जब जीने को
साधन नहीं। फिर से आदिमकाल शुरू। फिर से संघर्ष?
फिर
से एक दूसरे से छीनने का दौर शुरू।
हिंसात्मक दृश्य। सब लड़-भिड़ के पुनः समाप्ति की ओर। यह क्या? तो
क्या करें? बच्चे न पैदा
करें? नेटालिस्टिक प्रवृत्ति का लोप कर दें? तब
anti-natalist समाज समाप्ति की ओर नहीं बढ़ जाएगा? मानव जाति
समाप्त नहीं हो जाएगी?
चलिये देखते
हैं। अभी हमने बात की थी कि पोलिगेमस मानव को सदियों से मोनोगेमस बनाये जाने का प्रयास किया गया। लेकिन फिर भी इसका उल्लंघन हुआ
और आज भी विश्व के 80% परिवार अपने
वंश को नहीं चला रहे हैं।
(असल में
तो कोई भी नहीं चला रहा* लेकिन जो सोचते हैं कि वे चला रहे हैं तो उनके लिये बुरी खबर। विदेशों में कुछ वर्ष पूर्व एक सर्वे हुआ।
जिसमें कई परिवारों के DNA जांच की गयी
और समझिये विस्फोट सा हुआ। कोई भी बच्चा उनके माता-पिता
का नहीं निकला। पड़ोसियों के निकले।
*वंश चलाने
के लिये यह परम आवश्यक है कि सभी 28 गुणसूत्र एक ही वंश से आये हों। अर्थात आपके माता-पिता एक ही माता-पिता की सन्तानें होना
परमावश्यक है। इसी सिद्धान्त पर मिस्र में
सदियों तक वंश चले। यदि आपके माता-पिता एक ही परिवार
के रक्त सम्बन्धी नहीं हैं तो आपके आधे गुणसूत्र आपके पिता के और आधे आपकी माता के वंश के होंगे। यानी अशुद्ध वंश)।
तो क्या
सीखा? मतलब प्रवृत्ति पर पूरी तरह रोक लगाना असम्भव। इसलिये मोनोगैमी की तरह एन्टी नेटालिस्ट सोच लाइये। जनसँख्या को स्वेच्छा से
रोकिये। गर्भनिरोधकों का जम कर उपयोग करें।
सरकार का सहयोग लें। कंडोम, नसबंदी, मैथुन भंग,
डायफ्राम,
IUV (आधुनिक
और सुरक्षित 3 से 5 वर्ष तक), copper T, फीमेल
कंडोम (reusable), 72 घंटे, आई पिल, माला-डी,
सहेली,
डिम्पा
इंजेक्शन इत्यादि का विकल्प चुनें। अनजान साथी से
सम्भोग करते समय कंडोम प्रयोग करें या उसकी
STD/HIV जांच अवश्य करवा लें।
कुछ लोग
मेरी बात कभी नहीं मानेंगे और जो विवाह को त्यागेंगे वे
live-in-relationship में बच्चे पैदा करेंगे ही और जनसँख्या संतुलित हो जाएगी।
अब बात आती है कि हम पोलिगेमस
हैं तो यह प्यार किस चिड़िया का नाम है? क्यों एक के साथ चिपक जाता है
यदि इंसान पोलिगेमस है असल में?
तो दिल थाम कर इसका विश्व में
प्रथम बार रहस्योद्घाटन देखिये शुभाँशु की कलम से।
इंसान खाली
नहीं बैठ सकता। इसलिये उसे कोई न कोई काम चाहिए। कुछ नहीं तो मनोरंजन या गप शप करने के लिये ही सही, एक साथी। ये
बात सिर्फ इंसान के लिये ही सही नहीं है।
लगभग सभी जीव-जंतु ऐसा ही करते हैं। उनको भी कोई न कोई चाहिए
ताकि
अपना फालतू समय काट सकें। जिनको यह साथी नहीं मिल पाता वे या तो निर्जीव वस्तुओं से मनोरंजन करते हैं। जैसे खेल इत्यादि या वे
सोते रहते हैं।
इस प्रकार
जो आनन्द प्राप्त होता है, उससे सभी के मस्तिष्क से डोपामिन,
सेरोटोनिन,
ऑक्सीटोसिन
तथा एंडोर्फिन्स हार्मोन निकलता है जो एडिक्टिव (जिसकी लत लग
जाती है) होता है। इनके अतिरिक्त विशेष प्रकार के शरीर से जोड़ रखने वाले फेरोमोन भी होते हैं जो मानव की पसीने की ग्रन्थियों
से स्रावित होते हैं। यह ऐसे गुण रखते हैं जो केवल
नाक् के विशेष ग्राहियों (receptors) को ही महसूस होते हैं। जिनको आप
पहचान नहीं सकते अर्थात गन्धहीन होते
हैं। यह सीधे कामोत्तेजना पैदा कर सकते हैं। आपने इसी के कारण पहली ही मुलाकात में प्यार हो जाने वाला गुण पाया है। भाई-बहन-माता-पिता-पुत्री-पुत्र के फेरोमोन समान होने के कारण
उनमें इनका प्रभाव हल्का होता है। लेकिन साफसफाई से
रहने के कारण यह फेरोमोन अब बेकार हो गए।
विपरीत फेरोमोन एक दूसरे को आकर्षित और समान प्रतिकर्षित करते हैं।
प्राचीन काल
में पसीने की गंध सेक्स का turn on होती थी। लेकिन आज डिओडरेंट ने इसको एक बुराई में बदल दिया है। अब हम बैक्टीरिया जनित मल की
गंध को साफ करने के चक्कर में असली फेरोमोन को भी
ख़त्म कर रहे हैं।
इसी लत
को प्यार/love/मोहब्बत/इश्क/प्रेम कहते हैं। ये किसी भी चीज से हो सकता है। जिससे भी आनन्द की प्राप्ति हो। परंतु संभोग की इच्छा
ऑक्सीटोसिन और डोपामिन का मिला जुला प्रभाव
होता है जिसमें ऑक्सीटोसिन love को बढाने वाला addictive हार्मोन
कहा जाता है। इसके प्रभाव से यौनांगों का विकास शीघ्र हो
जाता है। यह माता में दुग्ध उत्पादन में भी सहयोग करता है।
आवश्यकतानुसार इसमें भेद भी
उत्पन्न हुए और जब मानव समाज रिश्ते बना रहा था तो उसने प्रेम को तरह-तरह के भेदों
में बांट लिया।
माता-पिता का
प्यार, भाई-बहन का प्यार, रिश्तेदारों का प्यार, दोस्तों
का प्यार, शिक्षक और विद्यार्थियों का प्यार और सबसे महत्वपूर्ण, रोमांस
वाला प्यार (विश्व प्रसिद्ध), आकर्षण का सुख, कामोत्तेजना
का आनन्द, संभोग का आनंद।*
रोमांस के अतिरिक्त जो भी प्रेम होते हैं,
जैसे परिवार व रिश्तेनाते का प्रेम, वे रक्त सम्बन्ध कहलाते हैं। इसमें कुटुंब
भावना का असर रहता है। ये कुटुंब भावना
एक सहयोगी दल के आपसी एहसानों पर आधारित है।
दोस्ती,
एक रहस्यमय अटूट सम्बंध। इसमें सेक्स शामिल हो या न हो ये तब
भी कार्य करता है।
कारण वही है। एक दूसरे पर चढ़े हुए एहसान। एहसान, जिनको
चुकाना सम्भव न हो,
सेवा भाव पैदा करते हैं।
सेवा भाव एहसान के बदले दिया गया आभार होता
है। जिसे चुका कर खुद को एक बोझ से मुक्त
किया जाता है। यह अगर निजी है तो एक दूसरे की परवाह (care) से प्रदर्शित होता है। सबको कद्रदान चाहिए।
अब
हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि हमने तो अपने दोस्त पर कोई एहसान नहीं किया फिर भी
हम बहुत प्रेम से रहते हैं, तो इसका अर्थ है कि आपकी नज़र में एहसान कोई भौतिक
वस्तु तक ही सीमित है, जबकि हर वह कार्य एक एहसान है जो आपके मस्तिष्क में डोपामाइन
हार्मोन का निर्माण करे| अतः हर वह कार्य जो आपको अच्छा महसूस करवाये, वह एक एहसान
है| इसमें बातें, छोटी सेवा जैसे चाय, समोसा, भोजन, नाश्ता, बिस्कुट आदि खाद्य
सामग्री, फिल्म देखने जाना, सलाह देना, खेल खेलना, साथ में कुछ भी खाना या मनोरंजन
करना, समय बिताना आदि बहुत कुछ शामिल है|
(*सम्भोग का
आनंद एक ऐसा आनंद है जिसके कारण प्रजनन की भावना जीवित है। यह सभ्यता के साथ-साथ मनोरंजन में बदल गया। इसी के चलते पोलिगेमस स्वभाव
फलाफूला। इसे आम भाषा में हवस (lust) कहते
हैं। यह डोपामिन और ऑक्सीटोसिन का मिला जुला प्रभाव
हैं। यह एक सम्पन्न समाज में एक अनिवार्य समझी जाने वाली बुराई* यानि वैश्यावृत्ति और पोर्न बन कर उभरा। पोलिगेमस पुरुषों ने
सत्ता में आकर नगर वधु का चलन शुरू किया। नाम
से ही स्पष्ट है कि सारे नगर की पत्नी। यह विधुरों
(जिसकी पत्नी मर गई हो) के लिए शुरू की गई सेवा रही होगी लेकिन जल्द ही इसने पूरे नगर को अपनी चपेट में ले लिया। कारण वही,
एक
बार से दिल नहीं भरता, जाऊंगा मैं
फिर दोबारा। क्यों? आखिर क्यों एक साथी से दिल नहीं भरता?
*बुराई इसलिए क्योंकि कुछ लोगों
ने इनके चक्कर में अपनी पत्नी ही छोड़ दी।
प्रश्न: इन वैश्याओं के बच्चों
का क्या होता है?
उत्तर: लड़की को रख लिया जाता है
और लड़के को मार डाला जाता है। जी हाँ, आज भी)।
ऐसा पाया
गया है कि एक ही साथी से सम्भोग करते-करते बोरियत हो जाती है। यानि कामोत्तेजना ही समाप्त हो जाती है। अब क्या करें? वियाग्रा/केलियास
खाएं? अगर एक के साथ ही रहना है तो अवश्य खाइए लेकिन इसके दुष्परिणाम
भी इन्टरनेट पर देखें। बहुत लोग मर गए इन दवाओं के
प्रयोग से।
कमाल देखिये,
नयी/नया
साथी देखते ही ये बंद कलियाँ खिलने लगती हैं। जगह/स्थान/रोल
बदलने से भी कुछ समय तक यही असर। फिर क्या कोई 1500-2000 रुपये की
गोली लेगा या नया साथी? (अरे भई सेक्स गुरु नहीं हूँ। जानकारी रखता हूँ। अनुभव भी है कुछ।)
प्रारम्भ में केवल विपरीत लिंग
के लोगों में ही रोमांस सम्भव माना जाता था परंतु कालांतर में इसके अन्य भेद भी
सामने आए। जैसे LGBTQ*
(LGBTQ = Lesbian, Gay, Bisexual,
Transgender, Questioned)।
इन सभी रोमांटिक प्रेमों के
खिलाफ धर्म और कानूनों ने व्यापक मुहिम छेड़ दी।
खरबों जोड़ो
को मार डाला गया, उनके ही, अपने घरवालों के द्वारा, या
जो जोड़े नहीं मार पाए गए, उनको बाकायदा
पापी घोषित करके धर्म के ठेकेदारों ने कत्ल कर दिया।
क्यों?
बहुत कड़वा जवाब है इस क्यों का।
जानने से पहले खुद को मजबूत कर लो...
तो चलो कुछ सवालों का जवाब
ढूंढते हैं पहले:
विवाह जो समर्थन प्राप्त संस्था
है, उसकी
सामान्य विधि क्या है?
1. अपनी ही जाति और स्टेटस वाले,
सुदंर
चेहरे वाले या उनसे ऊपर के खानदान से बात चलाई जाती है।
2. यदि बात नहीं बनती तो कम से कम
में जो भी मानक पूरे करता हो उसके साथ रिश्ता पक्का किया जाता है।
3. धन का लेनदेन शुरू।
4. विवाह के उम्मीदवारों से या तो
कुछ नहीं पूछा जाता है या कुछ लोग (जो खुद को
आधुनिक कहते हैं) फ़ोटो दिखा कर या आमने-सामने बिठा कर परिचय करवा देते हैं। ज्यादा सम्पन्न हैं तो आपस में फोन पर बकलोली भी होती है।
5. फिर उचित समय निर्धारित करके,
विवाह
समारोह आयोजित किया जाता है जिसमे ज्यादा से
ज्यादा लोगों को, अपना स्टेटस दिखाने और जान पहचान बढ़ाने के लिये, तथा नेग/उपहार रूपी धन की वापसी की
उम्मीद में, बुलाया जाता है।
इनकी आव-भगत
की जाती है, वर पक्ष और वधू पक्ष के तमाम लोग इस तमाशे में शामिल होते हैं। जिनको भोजन कराने, ठहराने,
घुमाने,
लाने
और ले जाने की व्यवस्था मेजबान करता
है। भारी धन हानि। सूट बूट में तोंद वाले लोग आकर गरिष्ठ और महंगा
भोजन भकोसते हैं और भरी हुई प्लेट कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं।
6. इस सब के बाद या पहले
(परम्परानुसार) विवाह की रस्म होती है। जिसमे कोई धार्मिक
पुजारी/काजी/मुल्ला/पादरी आकर वर और वधु को सैकडों लोगों की मौजूदगी
में जीवन भर साथ रहने की शपथ दिलवाता है और ईश्वर का डर दिखाता है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो बुरा होगा। सभी लोग इस agreement
के
गवाह बनते हैं और आज कल तो इसकी वीडियो
रिकॉर्डिंग भी करा ली जाती है कि कहीं दोनों में से
कोई भाग निकला तो पकड़ा जा सके।
7. सम्भोग रात्रि (सुहाग रात): दो
अनजान लोग सीधे कुश्ती लड़ते हैं। समाज का कुंवारी
कन्या को प्रथम सम्भोग में रक्त रंजित करके यह कहना कि उसकी इस रक्त पात में सहमति थी। कमाल का समाज है न?
(यह तथ्य
है कि बिना foreplay के कुवारी कन्या कभी कौमार्य भंग करवाने की इच्छुक नहीं हो सकती। भारतवासी ये foreplay किस
चिड़िया का नाम है यही पूछते रहते हैं,
आप
अब समझ गए होंगे कि बलात्कार संस्कृति कैसे बनता है। कानून भी
संस्कृति से प्रेरित। मेरिटल रेप पहले दिन ही हुआ है तो सभी पति जेल में होंगे। इसलिए जज दुरूपयोग का बहाना बना कर इसे टाल देते हैं।
कुछ ऐसा ही जैसे पुरुष का बलात्कार कानून में अपराध
नहीं है। बस खाली कहने को सम्विधान में समानता
का अधिकार है)।
इतनी बड़ी परियोजना केवल 2
लोगों
के बच्चे पैदा करने के लिये? नहीं मित्रों, बहुत बड़ी
साजिश है इसके पीछे।
ये सब
इसलिये ताकि कोई भी अपनी मर्जी से विवाह न कर ले। एक विवाह एक व्यापारी के लिए विज्ञापन, एक कारपोरेट के लिये नए व्यापार
के लिये रास्ते खोलने वाला और बड़े
लोगो से सम्पर्क बनाना हो सकता है।
धर्म को
क्या फायदा है? जितने ज्यादा कमाने वाले होंगे उतना ज्यादा दान। उतने ज्यादा नामकरण, यग्योपवीत संस्कार, मुंडन,
इत्यादि
16 संस्कारों
में धन कमाने का अवसर। और फिर खानदानी लॉयल्टी।
अब अगर उन माता-पिता के बच्चे
खुद ही अपना जीवन साथी चुन लेंगे तो उनके इस प्लान का क्या होगा?
भारत के परिपेक्ष्य में:
वधू पक्ष:
कितने निष्ठुर हैं न ये माता पिता? एक तो लड़की को घर से विदा कर दिया जबरन और फिर रोने का नाटक भी? ज़िन्दगी भर
अपमान करवाने और ससुराल वालों के
नखरे और फरमाइशों को पूरा करने का वादा भी कर लिया। उनकी तरफ के बच्चे का भी चरणस्पर्श। दान देने वाला बाप छोटा और लेने वाला
बड़ा?
वर पक्ष: एक तो लड़की ले आये
दूसरे की खा पी कर, साथ में पैसा भी ले आये, फिर भी dowry
चाहिए?
नहीं
दें तो?
1. लड़की केरोसीन stove से
जल मरी। दुर्घटना है।
2. लड़की ने जहर खा लिया। कायर है।
3. लड़की के फांसी लगा ली। चाय में
चीनी डालने को कह दिया, इतनी सी बात पर नाराज हो गई थी।
4. नई शादी...
5. Repeat...
यदि दहेज की मांग पूरी करते रहे:
वधू पक्ष:
1. गरीबी में जीवन।
2. अपनी ही लड़की को कोसना।
3. किस्मत को कोसना।
4. अपने लड़के की शादी में 2 गुना
दहेज माँगूँगा तब जा कर कुछ आराम मिलेगा।
उधर वर-वधु का जीवन:
पति:
1. तू लाई ही क्या थी? ये
दो कौड़ी का सामान?
2. तेरे बाप ने तुझे यही सिखा पढ़ा
के भेजा है कि तू हमसे जुबान लड़ाती है?
3. अब तेरे में वो पहले वाली बात
नहीं रही, अब तेरे साथ मज़ा नहीं आता।
4. आफिस में अपनी जूनियर को
पटाऊंगा। वो नया माल लगती है।
5. अब मस्त ज़िंदगी है, घरवाली
और बाहरवाली दोनों होनी चाहिए।
सास:
1. अरे करमजली, फिर
दूध जला दिया, यही सिखा कर भेजा है तेरी माँ ने?
2. अरे नास पीटी, तुझ
से कहा था कि मुझे नाश्ता टाइम पर चाहिए, अभी तेरे बाप को बुलाती हूँ ठहर
जा।
3. अरे ये पोछे का पानी अब तक नहीं
सूखा? अभी मैं गिर जाती तो? मार डालने का प्लान है।
4. फिर लड़की? लड़का कब देगी
तू डायन?
ससुर:
1. बहू, ज़रा मेरा भी
थोड़ा ध्यान रख लिया कर, तेरी सास तो कुछ करती नहीं है, तू आ
गई तो लगा कि जीवन आराम से कट जाएगा, मेरे कपड़े, सामान
वगेरह का ध्यान तुमको ही रखना है अब।
बहू:
1. एक आदमी से शादी की थी, ये
तो पूरा कुटुंब ही पल्ले पड़ गया। क्या क्या कर लूँ अकेले मैं?
2. इज़्ज़त तो कोई है नहीं, नौकर
बन कर जीना पड़ रहा है।
3. लड़का क्या पड़ोस से कर लूं?
जो
होगा वही तो मिलेगा? में क्या जानू पेट मे क्या पल रहा है?
4. मैं कहाँ फंस गई?
5. वो पी कर आते हैं, 1 मिनट
से ज्यादा सम्भोग नहीं करते, में तड़पती रहती हूं।
6. देवर की नज़र मेरे ऊपर है,
अब
तक खुद को रोका लेकिन अब कहीं फिसल न जाऊं।
7. पड़ौस का लड़का बहुत लाइन मारता है,
इधर
मुझे ये खुश कर नहीं पाते, कहीं मन बहक न जाये।
8. अब क्या कर सकती हूं, ऐसे
ही जीना है अब मुझको। चुप रहूंगी।
ऑफिस की जूनियर:
1. Sir ने मेरा रेप
किया। किस से कहूं? सहेली से कहती हूँ।
2. पागल हो गई क्या? वो
तेरे से मजे ले रहा है तो लेने दे, मैंने भी यही झेला
है।
कुछ कहेगी तो demotion करवा देगा या निकलवा देगा, कॉन्ट्रासेप्टिव लेती रहना। सब ठीक होगा। किसी से कहना मत, नहीं
तो सब तुझे ही गलत कहेंगे। सोसायटी
लड़कियों को जॉब करते नहीं देख सकती, उनके लिये तो हम हमेशा धंधे वाली ही रहेंगे। और तुझे करना क्या है? शादी ही न?
कर
देगा तेरा बाप।
परिणाम: विवाह सफल! बधाई हो।
लड़का हुआ है।
गुलामी स्वीकार
कर लो तो कोई दिक्कत नहीं है। लड़की समाज के पांव की जूती ही तो है। लड़की का तो नाम ही समर्पण है। बोले तो आत्मसमर्पण (surrender)।
विरोध किया तो? समस्या
शुरू। यहीं से सब दिक्कत शुरू है। समाज कहता है कि विरोध मत करो।
तो मत
करिए, यही चाहते हैं न आप सब भी? जो चलता है
चलने दो न। शुभांशु जी काहे पंगा ले
रहे हैं दुनिया से? उंगली न करें। अच्छा नहीं होगा। है न?
इस सब का विरोध शुरू से क्यों
नहीं हुआ? क्योकि इसको चलाने में धर्म का बहुत बड़ा हाथ था जिसके डर से
लोगों ने विरोध नहीं किया।
"लड़की की अब
लाश ही वापस आएगी।"
"पति का घर ही
अब उसका घर है।"
इसी तरह
लोग अपनी वास्तविक पृवृत्ति को छुपा कर जीने लगे, अपने
पोलिगेमस होने को दबाए रहे, लेकिन
समय बदला और इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे, क्योकि इंसान अपनी पृवृत्ति को नहीं बदल सकता और बलात्कार का आविष्कार
हुआ।
विवाहेतर सम्बन्ध, बलात्कार
और हत्या सब अवैध कहलाने के डर से चुप चाप होने लगीं।
समाज के
ठेकेदारों ने इस पर सजा रख दी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, बलात्कार के बाद सज़ा के डर से लड़की को मारा जाने लगा, यानी
सज़ा से फायदे के स्थान पर नुकसान हो
गया।
आज भी
यही हो रहा है, दिल्ली रेप केस में ज्यादातर लड़के शादी शुदा थे। जो नाबालिग थे उनको शादीशुदा लोग भड़काते और उकसाते हैं। कहते हैं,
नहीं
करेगा? मर्द नही है साला।
शादी शुदा
जीवन तो पत्नी का बलात्कार ही होता है 90%। कितनी पत्नियां होंगी जो खुद पति से आकर कहती हैं, "ऐ जी बहुत मन
कर रहा है आज, चलो कमरे में।"
हमेशा पति
ही अपनी इच्छा पूर्ति करता रहता है, महिला तो कह तक नहीं पाती। और
यदि कहे तो? रंडी है,
छिनाल
है। पति भी कौन सा स्टैमिना वाला होता है, 1 या 2 मिनट
में out। मौसम की तरह। जब मौसम का मजा आने लगता है तभी खत्म।
जो लोग
बलात्कार नही कर सकते थे वो gf-bf खेलने लगे। वैसे इसमें भी पहले दिन बलात्कार होता ही है। इसे डेट रेप कहते हैं। फर्क सिर्फ इतना
है कि ये बलात्कारी प्यार का वास्ता देकर मना लेता
है, जबकि
दूसरे बन्दूक दिखा कर या ब्लैकमेल
करके।
और क्या
आपको सबसे बढ़िया उपाय पता है बलात्कार के केस से बचने का? लड़की से समझौता करके शादी कर लो। वह केस अपने आप ही निरस्त हो जाएगा।
फिर चाहे उसी दिन तलाक/divorce देकर मुक्त
हो जाओ। कमाते हो तो गुजारा भत्ता देने का नुकसान
होगा। साथ ही कभी-कभी माफी मांगने भी जा सकते हैं, रात भर माफी मांगिये फिर अपने रस्ते। लड़की तलाक न दे तो? घरेलू
हिंसा है न। झक मार के देगी...तलाक।
जब मुझे
ये सब पता है तो मैं प्यार का नाटक नहीं करता, जिसके साथ
सेक्स का मन है उस से सेक्स करो और जिस से प्यार
करना है उस से प्यार करो। दोनों को मिलाने से ही
क्लेश और अपराध होते हैं। सेक्स लोयल्टी की निशानी नहीं होता, लेकिन
प्यार होता है।
इतना गन्दा
समाज, इतना घटिया सिस्टम, इतने घटिया लोग। फिर क्यों न मैं
साथ दूँ लिव इन रिलेशनशिप का? कोई
दखल नहीं दूसरे का। आज़ादी, दो लोगों का व्यक्तिगत सम्बन्ध। ये उनके लिए जो बच्चे चाहते हैं।
जिनके बच्चे
नहीं और अलग/व्यस्त रहते हैं तो वे अपने माता-पिता की देखभाल के लिये नौकर रख लें और माता-पिता स्वीकार लें इस सम्बंध को। नौकर,
जिसकी पुलिस पड़ताल हो चुकी हो।
जो Antinatalist Vegans* हैं,
वे
Freesex का concept पढ़ें और सेफ सेक्स और प्यार को कायदे से
मैनेज करें।
*Veganism : क्लिक करो
अस्वीकरण: मेरी व्यक्तिगत सोच,
किसी
को बाध्य नहीं किया गया है। वही करें जो दिल कहे। धन्यवाद।
Final Edited: 2018/02/16 17:55 IST,
First written: 2017/06/16 06:51 IST
मौलिक लेख: ~ Vegan
Shubhanshu Singh Chauhan.
Email: vegan1983@gmail.com
Please Donate: www.paypal.me/vegan1983
Note: Disclaimer पढने के बाद
भी मुझे गाली देने के लिये कृपया इन नंबरों पर काल करें: 112, 100,
+17028462255 😜
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