Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, सितंबर 04, 2020

Government doesn't affect by your social media posts, it's a fact


कुछ लोग बोलते हैं कि "वो तुमको फलां में उलझाएंगे, तुम फलाँ पर डटे रहना।" इस पर मेरा कहना है कि मैंने पिछले दिनों, सरकार के बनाये कई कानूनों और अव्यवस्थाओं पर पोस्ट किए।

जैसे,

● स्पेशल विवाह कानून के फार्म में धर्म को पूछना व निषिद्ध सम्बन्धों में विवाह न होना लेकिन धर्म या रिवाज इजाजत दे, तो उचित है और पहले से, अनजाने में ऐसा विवाह करने पर सज़ा व जुर्माना क्यों?

● पशुक्रूरता निरोधी कानून में पशुबली व भोजन हेतु पशुहत्या की छूट।

● सरकार व न्यायालय में धर्म से जुड़े सिम्बल और कोट्स आदि।

क्या सरकार को पता चला? क्या सरकार को कोई फर्क पड़ा? सरकार को सोशलमीडिया पर हमारे विरोध या समर्थन से कोई फर्क नहीं पड़ता है। फर्क केवल हमारे दिमाग पर पड़ता है। हम सब थोड़ा और फ्रस्ट्रेशन में चले जाते हैं। वैसे भी हो तो हम से कुछ पाना नहीं है।

● RTI डालने में जान से जाने का डर बोल के फट जाती है।
● पुलिस थाने में कम्प्लेंट करने में हमारी फट जाती है क्योंकि गलती तो हमारी भी होती है।
● करने भी जाओ तो अपराधियों का दलाल दरोगा रिपोर्ट दर्ज नहीं करता और हम भाग आते हैं।
● फिर तो हम कतई SSP से शिकायत करने नहीं जाते, क्योंकि हमारी दरोगा से भी फटती है। कहीं झूठे केस में अंदर न कर दे।
● मानवाधिकार आयोग की जानकारी है भी तो कौन जाए केस करने? कहीं हमारी सड़क दुर्घटना में मौत न हो जाये।
● कौन जाए वकील करने? पैसा लगेगा। बहुजन को फ्री में वकील विधिक समिति से उपलब्ध है, लेकिन फ्री वाले पर भरोसा नहीं है।
● फ्री के इलाज से भी डर लगता है। इसलिए जिला अस्पताल नहीं जाएंगे। महंगा इलाज करवा के निजी अस्पताल ने किडनी निकाल ली, लाखों का बिल बना दिया, गलत रिपोर्ट बना दी, मार डाला और अब लाश नहीं दे रहे बिल भरे बिना।
● सरकारी कोई सुविधा नहीं चाहिए। तुम रखो अपनी सब्सिडी, हम ब्लैक में लेंगे।
● सरकारी स्कूल में पढ़ा कर क्या बच्चों को भीख मंगवाई जाएगी? उसमें तो मजबूर पढ़ते हैं। हमारे बच्चे बिगड़ जाएंगे। हम तो कॉन्वेंट में डालेंगे।
● जेनरिक दवा नहीं लेंगे। क्योंकि वो सरकारी है। 100₹ की दवा 1₹ में कैसे मिल रही है? नकली होगी।
● डीलक्स निरोध कंडोम सिर्फ 1₹ और बाकी कंडोम 10₹ से शुरू। ज़रूर घटिया होगा। फट गया तो? हम तो 50₹ वाला लेंगे।
● जिला अस्पताल में डिलीवरी? न जी न, जच्चा बच्चा मरवाना थोड़े ही है। चाहे गुर्दे निकल जाएं, हम तो बड़ा बिल फड़वाने वाले हैं।

तो इस तरह केवल गरीब और मजबूर ही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है। जिसके पास विकल्प है वो तो उसे पीठ ही दिखाने वाला है। फिर भी हम सब विकल्प वालों को सोशल मीडिया पर सरकार की बहुत फिक्र है। भले ही पिछली सभी सरकारों ने हमारे लोढ़े लगा रखे हैं। ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt, धर्ममुक्त जयते, सत्यमेव जयते। 2020©

Orgasmed women is more relaxed and successful



ये पोस्ट सामाजिक भेदभाव के चलते मिट चुकी प्राकृतिक संवेदनशील भावनाओं का प्रतीक है। जहां महिला केवल धन समृद्धि के लालच में पुरुष ढूढ़ती है जबकि प्रकृति में ये चाहत केवल कामसुख के कारण उपजती है।

महिलाओं की काम-वासना को धर्म और समाज मिटाने में काफी हद तक सफल हो चुका है और ये महिलाओं के मानसिक शोषण का प्रमाण है। आपसी बातचीत और सवालों से मिली जानकारी के अनुसार, अनुमानतः 95% महिलाओं को कभी यौनानन्द (चर्मोत्कर्ष/ओर्गास्म) की प्राप्ति नहीं हुई है। घर्षण आनन्द को ही वे चरमसुख समझे बैठी हैं। इसीलिए सर्वे के आंकड़े भी प्रायः गलत आ रहे हैं।

ओर्गास्म/चरमसुख पुरुष के एजुकुलेशन/वीर्य पात के समान एक क्रिया होती है जो कि महिला के पूरे दिमाग को सक्रिय कर देती है। आज तक कोई भी तरीका पूरे दिमाग को सक्रिय नहीं कर सका है लेकिन, चर्मोत्कर्ष चाहे पुरुष का हो या स्त्री का, यह पूरे मस्तिष्क को सक्रिय करता है। जो कि एक जांचा परखा फैक्ट है।

इस क्रिया के तहत सम्भोग के समय शरीर में एक तेज़ झटका सा लगता है और पूरा शरीर कांप उठता है। गर्भाशय मुख से लेकर सिर तक एक तेज़ आनंद लहर जाती है और एकदम रिलेक्स फील होता है और संभोग रोकने का मन करता है, और पूर्ण होने का एहसास होता है। बहुत ही सुख का अनुभव होने, दिमाग के सक्रिय होने और मूड बेहतर होने के कारण ही इसे चरमसुख कहा गया है।

इससे दोनो ही के मानसिक स्वास्थ्य में भी अनुमानतः सुधार होने लगता है। ऐसा पाया गया है कि जो महिलाएं चर्मोत्कर्ष पाती हैं वे बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक समझदार होती हैं। पुरुषों का दिमाग इसीलिए ज्यादा चलता है क्योंकि वे हर सेक्स में चर्मोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। जो उनके मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखता है।

हालात ऐसे हैं कि आत्मनिर्भर महिला अब पुरुषों की जगह हस्तमैथुन, डिल्डो, डिल्डो डॉल का सहारा लेना ज्यादा उचित समझती है। जबकि यही हाल अच्छे व सच्ची सोच वाले कुछ कुछ आत्मनिर्भर पुरुषों का भी है, जो आत्मनिर्भर महिलाओं को ही दोस्त बनाने के इच्छुक होते हैं।

उनको ऐसी महिला नहीं मिलती इसलिए वे भी इन्हीं साधनों पॉकेटपुसी, सेक्स डॉल आदि का इस्तेमाल हस्तमैथुन करने में प्रयोग करते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©