ये पोस्ट सामाजिक भेदभाव के चलते मिट चुकी प्राकृतिक संवेदनशील भावनाओं का प्रतीक है। जहां महिला केवल धन समृद्धि के लालच में पुरुष ढूढ़ती है जबकि प्रकृति में ये चाहत केवल कामसुख के कारण उपजती है।
महिलाओं की काम-वासना को धर्म और समाज मिटाने में काफी हद तक सफल हो चुका है और ये महिलाओं के मानसिक शोषण का प्रमाण है। आपसी बातचीत और सवालों से मिली जानकारी के अनुसार, अनुमानतः 95% महिलाओं को कभी यौनानन्द (चर्मोत्कर्ष/ओर्गास्म) की प्राप्ति नहीं हुई है। घर्षण आनन्द को ही वे चरमसुख समझे बैठी हैं। इसीलिए सर्वे के आंकड़े भी प्रायः गलत आ रहे हैं।
ओर्गास्म/चरमसुख पुरुष के एजुकुलेशन/वीर्य पात के समान एक क्रिया होती है जो कि महिला के पूरे दिमाग को सक्रिय कर देती है। आज तक कोई भी तरीका पूरे दिमाग को सक्रिय नहीं कर सका है लेकिन, चर्मोत्कर्ष चाहे पुरुष का हो या स्त्री का, यह पूरे मस्तिष्क को सक्रिय करता है। जो कि एक जांचा परखा फैक्ट है।
इस क्रिया के तहत सम्भोग के समय शरीर में एक तेज़ झटका सा लगता है और पूरा शरीर कांप उठता है। गर्भाशय मुख से लेकर सिर तक एक तेज़ आनंद लहर जाती है और एकदम रिलेक्स फील होता है और संभोग रोकने का मन करता है, और पूर्ण होने का एहसास होता है। बहुत ही सुख का अनुभव होने, दिमाग के सक्रिय होने और मूड बेहतर होने के कारण ही इसे चरमसुख कहा गया है।
इससे दोनो ही के मानसिक स्वास्थ्य में भी अनुमानतः सुधार होने लगता है। ऐसा पाया गया है कि जो महिलाएं चर्मोत्कर्ष पाती हैं वे बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक समझदार होती हैं। पुरुषों का दिमाग इसीलिए ज्यादा चलता है क्योंकि वे हर सेक्स में चर्मोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। जो उनके मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखता है।
हालात ऐसे हैं कि आत्मनिर्भर महिला अब पुरुषों की जगह हस्तमैथुन, डिल्डो, डिल्डो डॉल का सहारा लेना ज्यादा उचित समझती है। जबकि यही हाल अच्छे व सच्ची सोच वाले कुछ कुछ आत्मनिर्भर पुरुषों का भी है, जो आत्मनिर्भर महिलाओं को ही दोस्त बनाने के इच्छुक होते हैं।
उनको ऐसी महिला नहीं मिलती इसलिए वे भी इन्हीं साधनों पॉकेटपुसी, सेक्स डॉल आदि का इस्तेमाल हस्तमैथुन करने में प्रयोग करते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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