आपने देखा होगा कि इस देश में मां होने का ही महत्व है, सिर्फ महिला होने का कोई महत्व नहीं है।
माँ गंगा,
मां धेनु,
मां धरती,
मां दुर्गा,
मां पार्वती,
मां सीता,
मां शारदा,
मां फ़लाँ ढिमका।
आपको पता ही होगा कि सामान्यतः माँ पुरुष से हुए सम्भोग से बेटा (पुरुष) जनने वाली स्त्री को ही माँ माना जाता है। बेटी जनने वाली महिला की कोई इज़्ज़त नहीं होती। पौराणिक कथाओं में भी 99% मामलों में लड़का ही पैदा होता है।
Meme भी सब माँ पर ही अधिक केंद्रित होते हैं। बहन-बेटी पर नहीं। बहन-बेटी के बारे में तो केवल यही बोला जाता है कि बाप-भाई का सिर मत झुकने देना। जबकि हकीकत में लड़की के जबरन विवाह के समय वे खुद ही अपने समधी के आगे सिर झुकाते ही हैं।
कुल मिला कर स्त्री को स्त्री ही तब माना जा रहा है जब वह बालक पैदा करके पुरुष के खानदान को आगे बढ़ाए। सभी सम्मान इसी आधार पर टिके हैं।
विधवा स्त्री चूँकि पुरूष विहीन हो जाती है इसी लिए उसे गंजा, श्रंगार मुक्त और सौंदर्य विहीन बन कर रहने पर मजबूर किया जाता है। वैसा ही जैसे कुरान के अनुसार इस्लाम में स्त्री पुरुष के बिना घर से बाहर नहीं जा सकती। गई तो उसके लिये मौत की सज़ा है।
स्त्रियों को केवल बच्चा पैदा करने की मशीन माना गया है और इसके भयानक कष्ट को आसानी से सह सकें इसीलिए माँ होने को गौरवांवित करके महिमामण्डित किया गया है।
सम्मान की आशा में महिला, कहीं बांझ न कहलाये, पति न छोड़ दे और वो दर-दर भटकने न लगे इसीलिए वो बच्चा पैदा होने पर खुश हो जाती है। पति इस लिए खुश हो जाता है कि अब उसके पुरखों का वंश आगे बढ़ेगा। उसकी जिम्मेदारी आज 90% पूरी हुई। बाकी 10% अपना पोता देख कर पूरी करेगा।
लड़की के माता-पिता इसीलिए नाती को प्रेम करते हैं क्योंकि अब उनकी बेटी सुरक्षित है। अब उसको उसका पति घर से नहीं निकालेगा। इसीलिये अक्सर बच्चे नानी के यहाँ पैदा करवाये जाते और पालनपोषण भी कई बार ननिहाल में ही करवाया जाता है। ताकि अगर बच्चा मरे या कोई खर्च बढ़े तो लड़की वाले ही झेलेंगे।
पति को तो पका-पकाया वंशज मिल जाएगा। जिसमें वो तो ओर्गास्म लेकर और वीर्यपात करके मुक्त हो लिया और पूरा साल कष्ट महिला सहती रही। दूसरे के घर जाकर पहली रात में जबरन बिना प्रेम के सेक्स करके (मैरिटल रेप) जिसमें उसे 90% मामलों में ओर्गास्म होता ही नहीं है, अर्थात आंनद भी नहीं आया और अगले माह से गर्भवती होकर कष्टों की नई श्रंखला शुरू कर दी जाती है।
आखिर के कुछ माह जब संभोग करने में समस्या होने लगती है, तब साली (पत्नी की बहन) को बुला कर अक्सर उसके साथ बलात्कार किया जाता है क्योंकि तब तक सेक्स की भूख कैसे मिटेगी? इसी बलात्कार को इतना आम समझा जाने लगा कि "साली है आधी घरवाली" जैसे वाक्य प्रसिद्ध हो गए।
आधी घरवाली मतलब, इमरजेंसी में सेक्स करने के लिये साली, बाकी समय घर व वंश चलाने के लिए घरवाली।
साली को गर्भपात करवाना ज़रूरी है। वो आपके वंश को नहीं बढ़ा सकती जब तक कि उससे भी विवाह न कर लिया जाए। कई मामलों में इसी कारण से 1 से अधिक बहनों की शादी एक ही दूल्हे से करवा दी जाती है क्योंकि अगर केवल एक की करवाई तो बाकियों के पेट में बच्चा तो यही लड़का डाल देगा।
कुल मिला कर पितृसत्ता बनी रहे तभी महिला की इज़्ज़त है। इसीलिए इसे मातृत्व सुख बोल कर पुत्र जन्म को महिमामण्डित किया जाता है। अन्यथा ये किसी को बताने की बात नहीं। आपका निजी अनुभव है। आपको अच्छा लगा तो ठीक, लेकिन ज़रूरी नहीं कि सबको अच्छा लगे बच्चा पैदा करना। बहुत लोग अब antinatalist भी होने लगे हैं। उनको आपका मातृत्व सुख गाली समान लगता है।
अतः आपका मातृत्व सुख अगर सच्चा है तो उसे दूसरों को न बताएं। खुद ही रखें अपने पास। क्या पता अगले को डिलीवरी के समय और गर्भवस्था में कष्ट हो। आप को नहीं हुआ तो ज़रुरी नहीं कि किसी को नहीं होगा।
बाकी मैं यही कहूंगा कि पितृसत्तात्मक समाज ने महिलाओं को केवल इस्तेमाल की वस्तु बना रखा है। जबकि वो एक पूरी इंसान हैं। वे हर वो कार्य कर सकती हैं जो कोई पुरुष कर सकता है। उनको चूल्हे चौके तक सीमित मत कीजिये। उनको विकसित होने दीजिये, पढ़ने लिखने दीजिये, उनको अच्छी संगत दीजिये तभी मैडम क्यूरी, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, अनिबेसेन्ट, pv sindhu, सानिया नेहवाल, प्रतिभा पाटिल, मेरी कॉम, मायावती, मीरा कुमार, शालिनी विश्वकर्मा आदि जैसे तमाम प्रतिभाशाली इंसान पैदा होंगे। ~ Shubhanshu 2022©
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