Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, फ़रवरी 22, 2020

दोगले परिवार: क्रूरता और अहिंसा ~ Shubhanshu






प्रश्न: जो माता पिता बचपन में हम पर इतना अधिक क्रूर होते हैं, वही पोते-पोतियों के लिये अहिंसक क्यों बन जाते हैं?

शुभ: उनका लालच होता है खुद का वंश चलाने का जो कि काफी समय से चल रहा एक कार्य है। कोई कार्य यदि ज्यादा लंबे समय से किया जा रहा हो तो वह एक परम्परा बन जाता है। जिसे विरासत कहते हैं। इसमें केवल काम के इंसान से मतलब रखा जाता है। उनको अपना नाम ज़िंदा रखना है। इसलिये वे पोते-पोतियों को पटाते हैं। अब आपसे क्या मतलब? आपने उनका काम कर दिया। अब आपकी क्या ज़रूरत?

जैसे यदि आपने अपने मन से किसी के साथ विवाह या बच्चा किया तो वंश अशुद्ध हो जाएगा। इसलिये घर वाले आपके लिये सम्भोग साथी स्वयं चुनते हैं। उनको आपकी खुशी की परवाह कभी नहीं होती। उनको अपना कार्य करना है जो पुरखे सौंप गए। यानि पहले पूर्वजों की निशानी बनाये रखना।

यदि आपने उनके वंश से बाहर विवाह या बच्चा किया तो वे आपका कत्ल (ऑनर किलिंग) तक कर देंगे। इसी तरह जब पोता हो गया तो अब वो ही ज़रूरी है। बाकी सब बेकार हो गए। उसकी सुरक्षा ही वंश के आगे बढ़ने की गारंटी है।

ये केवल शुद्ध स्वार्थ है। कोई प्रेम नहीं है फैमिली सिस्टम में। शुरुआत में मारपीट का कारण आपको अपना गुलाम बनाने से है ताकि आप उनकी मर्जी के खिलाफ कतई न जाएं। इसके लिए आपको पालतू जानवर की तरह प्रेम का ढोंग और कुटाई दोनो करके साम दाम दंड भेद से गुलाम बनाया जाएगा। प्रेम इसलिए क्योंकि आप का use भी तो करना है न? 😊 नेत्र ओपनम or not? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

बुधवार, फ़रवरी 19, 2020

3 कौड़ी का नास्तिक ~ Shubhanshu



विद्वान: ईश्वर सत्य है।

शुभ: ok लेकिन प्रमाण?

विद्वान: प्रमाण नहीं, लेकिन तर्क है कि दुनिया किसने बनाई? हमें किसने बनाया?

शुभ: उद्विकास पढ़ लो। विज्ञान में सबसे पहले इसी का उत्तर दिया गया है। जंतुविज्ञान में जीवन की उत्तपत्ति नाम का पाठ पढ़िये। ये दुनिया संयोगों और दुर्घटनाओं से अपने आप बनी।

आपने जो कहा कि किसी ने बनाया तो फिर आप जिसकी कल्पना करके प्रसन्न हो रहे उसे किसने बनाया और उसे भी किसी ने बनाया तो उसने दुनिया क्यों बनाई? बिना परीक्षण और प्रमाणों के ईश्वर गढ़ कर धंधा करना तो ठीक है लेकिन धंधा है ये न मान कर उसे तर्क और प्रमाण मान लेना मूर्खतापूर्ण है।

वैज्ञानिक विधि ही दरअसल हर समस्या का हल है। इसका इस्तेमाल करके ही आप सत्य का पता प्रमाण के साथ पा सकते हैं।

सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:

(१) ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण करिए,
(२) एक संभावित परिकल्पना (hypothesis) सुझाइए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो,
(३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
(४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियां प्रयोग से प्राप्त आंकडों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
(५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकडों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाय।

किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये। जबकी मजहबी मान्यताएं ऐसी होतीं हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये 'जो जीसस के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे' - इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।

खुद की उपलब्धियों पर गर्व करना अच्छी बात है लेकिन दूसरों को प्रेरित करने की जगह उनको तुच्छ समझना मूर्खतापूर्ण है जबकि ऐसा करके आप स्वयं को तुच्छ साबित कर रहे क्योंकि कोई जन्म से ज्ञानी नहीं होता। ज्ञानी भी कभी अज्ञानी था। अधिकतर जिनको कुछ कर नहीं मिलता वही करने वालों को मूर्ख समझते हैं। होते खुद हैं। ज़िन्दगी झंड और फिर भी घमंड ऐसे ही लोगों के लिए बना एक मुहावरा है।

विद्वान: चल हट 3 कौड़ी का नास्तिक साला! घमंडी। भाग नहीं तो अभी गर्दन दबा दूंगा। ईश्वर का अपमान करता है? अभी मोबलीचिंग करवा दूंगा। निकल।

शुभ: 🤣😂🤣😀😀😂🤣😀😂🤣😃😂😅😄😆😎 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, फ़रवरी 01, 2020

ये हुई अक्ल की बात ~ Shubhanshu

संविधान में सैकड़ों परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे। तो ये संविधान बचाने कौन लोग निकले हैं? क्या इनको संविधान में संशोधन या संशोधन निरस्त करने की क्षमता प्राप्त है? क्या ये संविधान के विशेषज्ञ हैं? कानून जनता से पूछ कर नहीं बनते। वो मानवाधिकार के आधार पर बनते हैं।

जो भी कानून इन अधिकारों का पालन नहीं करता, वह कानून ही नहीं है। और देर सवेर वह बदलेगा ही। अतः कानून अगर गलत लगता है तो उसको अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। उसके लिए भीड़, तमाशा और आंदोलन नहीं चाहिए। चाहिए तो केवल एक अदद तर्क। केवल एक सही तर्क काले और सफेद को अलग-अलग कर देता है। इसके लिए 1000 या लाख लोगों का दबाव नहीं चाहिए।

फिर ये लोग कौन हैं जो शोर मचाने में विश्वास रखते हैं बजाय तर्क करने के? ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा/सुना कि हनुमान सूरज निगल गया और अपनी पूछ से सोना जला दिया। जिन्होंने कहा कि चंद्रमा के दो टुकड़े हुए और वो वापस जोड़ दिया गया। ऐसे ही तमाम कुतर्क सत्य और चमत्कार समझ कर, गीत गाये, प्रचार किया।

दरअसल जो भी ऐसा करता है उसका एक खास कूटनीतिक मकसद होता है। उसका मकसद है सत्ता पर काबिज होना। लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने का। तानाशाह बनने का। उसका मकसद है धोखे से जनता को ठगना। भोले-भाले लोगों को भड़का कर उनके खून-पसीने की कमाई लूटकर उस से अपने लिए महंगे इत्र खरीदना।

हमेशा ही इस देश को लूटने के लिए लोग आते जाते रहे हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने लूटा और अब आज़ादी के बाद काले अंग्रेज इस देश को राजनीति का तमंचा लगा कर लूट रहे हैं। याद रखिये, काम यदि खामोशी से किया जाए तो ही सफलता शोर मचाती है। जबकि इस तरह के शोर शराबे वाले देश के राजनीतिक, बस अपना बुरा हश्र ही देखेंगे और भुगतेंगे हम और आप जैसे अंतिम नागरिक। जो बस फेसबुक पर ही अपने मन की 2-4 बात बोल लेते हैं। हम पर हराम का, कॉलेज में पढ़ने आये लोगों से अवैध वसूली करके और कानून का उल्लंघन करने वालों से लिये हुए रिश्वत के अरबों रुपये जो नहीं हैं गुंडों पर लुटाने, सड़कों पर आन्दोलन करने की तनख्वाह देने के लिये।

हम यहीं मर जाएंगे बस यूँ ही बकबकाते हुए। बस कोई-कोई ही होता है जो समझेगा कि कौन था शुभ और क्या था उसका मकसद। और मैं हजार बार यही कहूंगा कि चैन से सोना है तो जाग जाइए। जहाँ राजनीति दिखे, उधर से भाग जाइये। अपना घर बचाइए जिसे ये नेता लूटने और जलाने आ रहे हैं। नमस्कार। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©