Zahar Bujha Satya

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शनिवार, फ़रवरी 01, 2020

ये हुई अक्ल की बात ~ Shubhanshu

संविधान में सैकड़ों परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे। तो ये संविधान बचाने कौन लोग निकले हैं? क्या इनको संविधान में संशोधन या संशोधन निरस्त करने की क्षमता प्राप्त है? क्या ये संविधान के विशेषज्ञ हैं? कानून जनता से पूछ कर नहीं बनते। वो मानवाधिकार के आधार पर बनते हैं।

जो भी कानून इन अधिकारों का पालन नहीं करता, वह कानून ही नहीं है। और देर सवेर वह बदलेगा ही। अतः कानून अगर गलत लगता है तो उसको अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। उसके लिए भीड़, तमाशा और आंदोलन नहीं चाहिए। चाहिए तो केवल एक अदद तर्क। केवल एक सही तर्क काले और सफेद को अलग-अलग कर देता है। इसके लिए 1000 या लाख लोगों का दबाव नहीं चाहिए।

फिर ये लोग कौन हैं जो शोर मचाने में विश्वास रखते हैं बजाय तर्क करने के? ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा/सुना कि हनुमान सूरज निगल गया और अपनी पूछ से सोना जला दिया। जिन्होंने कहा कि चंद्रमा के दो टुकड़े हुए और वो वापस जोड़ दिया गया। ऐसे ही तमाम कुतर्क सत्य और चमत्कार समझ कर, गीत गाये, प्रचार किया।

दरअसल जो भी ऐसा करता है उसका एक खास कूटनीतिक मकसद होता है। उसका मकसद है सत्ता पर काबिज होना। लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने का। तानाशाह बनने का। उसका मकसद है धोखे से जनता को ठगना। भोले-भाले लोगों को भड़का कर उनके खून-पसीने की कमाई लूटकर उस से अपने लिए महंगे इत्र खरीदना।

हमेशा ही इस देश को लूटने के लिए लोग आते जाते रहे हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने लूटा और अब आज़ादी के बाद काले अंग्रेज इस देश को राजनीति का तमंचा लगा कर लूट रहे हैं। याद रखिये, काम यदि खामोशी से किया जाए तो ही सफलता शोर मचाती है। जबकि इस तरह के शोर शराबे वाले देश के राजनीतिक, बस अपना बुरा हश्र ही देखेंगे और भुगतेंगे हम और आप जैसे अंतिम नागरिक। जो बस फेसबुक पर ही अपने मन की 2-4 बात बोल लेते हैं। हम पर हराम का, कॉलेज में पढ़ने आये लोगों से अवैध वसूली करके और कानून का उल्लंघन करने वालों से लिये हुए रिश्वत के अरबों रुपये जो नहीं हैं गुंडों पर लुटाने, सड़कों पर आन्दोलन करने की तनख्वाह देने के लिये।

हम यहीं मर जाएंगे बस यूँ ही बकबकाते हुए। बस कोई-कोई ही होता है जो समझेगा कि कौन था शुभ और क्या था उसका मकसद। और मैं हजार बार यही कहूंगा कि चैन से सोना है तो जाग जाइए। जहाँ राजनीति दिखे, उधर से भाग जाइये। अपना घर बचाइए जिसे ये नेता लूटने और जलाने आ रहे हैं। नमस्कार। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

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