Zahar Bujha Satya

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मंगलवार, जुलाई 15, 2025

Shubhanshu Manifesto



🌍 Shubhanshu Manifesto: जो दिखता नहीं, वही असली होता है

✍️ लेखक: शुभांशु


🔥 प्रस्तावना

मैं कोई साधारण मनुष्य नहीं हूँ।
मैं उन विचारों की संतान हूँ,
जो भीड़ के बीच पैदा नहीं होते —
बल्कि भीड़ से बाहर चलने की हिम्मत करने वालों में फलते हैं।

दुनिया चाहती है कि मैं
किसी धर्म, जाति, परंपरा, रिश्ते, परिवार या झूठ से अपनी पहचान बनाऊँ।
लेकिन मैंने इन सबका बहिष्कार किया है।
क्योंकि जो पहचान दूसरे तय करें,
वह ग़ुलामी होती है, स्वाभाविकता नहीं।


🔹 1. मैं जन्म से नहीं, सोच से बना हूँ।

धर्म ने मुझे बाँधने की कोशिश की,
जाति ने मुझे नाम देने की कोशिश की,
संस्कारों ने मेरी भाषा बदलने की कोशिश की —
पर मैं असहमति में पला हूँ।

मैंने इन सबसे अपना नाम वापिस ले लिया है।


🔹 2. मैं जीवन को उत्सव नहीं, उत्तरदायित्व मानता हूँ।

मैं जो खाता हूँ, उसमें किसी की चीख नहीं होनी चाहिए।
मैं जो प्यार करता हूँ, उसमें झूठ या मजबूरी नहीं होनी चाहिए।
मैं जो दुनिया में छोड़ जाऊँ,
वो संभालने लायक होनी चाहिए — जलाने लायक नहीं।


🔹 3. मैं रिश्ते नहीं निभाता, सच निभाता हूँ।

अगर रिश्ता झूठ पर टिका है —
तो वह रिश्ता नहीं, सौदा है।

मेरे लिए प्यार का मतलब है:

  • पूरी ईमानदारी
  • संपूर्ण स्वतंत्रता
  • बिना अधिकार की निकटता

Polyamory मेरे लिए कोई सनक नहीं,
वह ईमानदारी का चरम रूप है


🔹 4. मैं नग्न हूँ — विचारों में भी, शरीर में भी।

मुझे शर्म नहीं आती खुद से,
क्योंकि मैंने अपने शरीर को पाप नहीं माना है।
मेरे विचार भी खुले हैं,
और मेरी त्वचा भी।

मैं नहीं छिपता —
मैं उनसे डरता हूँ जो खुद से भी डरते हैं।


🔹 5. मैं अकेला हूँ, पर अकेला नहीं हूँ।

मेरे जैसे शायद बहुत कम लोग होंगे,
पर हम बिखरे सितारे हैं एक ही आकाश में।

हमें ना कोई संस्था चाहिए,
ना कोई झंडा।
हमारा अस्तित्व ही हमारी क्रांति है।


🔹 6. मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ, पर संवेदना में भी जीता हूँ।

मैंने ईश्वर को छोड़ा,
पर करुणा को पकड़ा।
मैंने मंदिरों की दीवारें गिराईं,
लेकिन दर्द में डूबे लोगों की सुनवाई नहीं छोड़ी।


🔹 7. मैं डरता नहीं — सिवाय झूठ के।

ना भगवान से,
ना समाज से,
ना अकेले मरने से।

मैं डरता हूँ सिर्फ़ उस दिन से,
जब मैं किसी झूठ को सच मान लूँ।


🔹 8. मैं संतान नहीं चाहता — मैं समझ चाहता हूँ।

मैं प्रकृति की भीड़ में एक और उपभोक्ता नहीं जोड़ना चाहता।
मैं चाहता हूँ कि मैं जो जी रहा हूँ,
वो ऐसा हो कि किसी और को जीने की ज़रूरत ही न पड़े।


🔹 9. मैं कोई विचारधारा नहीं, एक चेतना हूँ।

मेरे लिए:

  • नास्तिकता तर्क है
  • Veganism करुणा है
  • Feminism न्याय है
  • Nudism स्वीकृति है
  • और Polyamory ईमानदारी है

इनमें से कोई भी एक छोड़ूँ, तो मैं अधूरा हो जाऊँ।


🔹 10. मैं दूसरों को बदलने नहीं, खुद को जिंदा रखने के लिए लड़ता हूँ।

मैं अपनी तरह सोचने वालों को ढूंढ़ नहीं रहा,
मैं चाहता हूँ कि जो अकेले हैं, उन्हें लगे — वे पागल नहीं हैं।


✊🏻 अगर तुम मेरे जैसे हो — तो यह घोषणापत्र तुम्हारा भी है।

तुम कम हो सकते हो,
पर तुम गलत नहीं हो।
तुम्हारा मौन भी क्रांति है,
और तुम्हारा होना — दुनिया के हर ढोंग पर एक तमाचा है।


✍️
लेखक: शुभांशु
(एक ऐसा आत्मज्ञानी, जो विचारों से निर्वस्त्र है और सच से संपूर्ण।)

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