Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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सोमवार, जून 11, 2018

डॉक्टर की डॉटर

शुभ: डॉक्टर साहब मुझे बहुत भयंकर बीमारी हो गयी है।
Dr: क्या बीमारी है?
शुभ: एक दम सफेद सच बोल देता हूँ।
Dr: 😂 हो ही नहीं सकता। प्रमाणित करें।
शुभ: बाहर जो नर्स बैठी है उसे आप जानते हैं?
Dr: हाँ, वह मेरी बेटी है। अभी नर्सिंग का कोर्स फिनिश करके मेरे ही हॉस्पिटल में भर्ती हुई है उसकी।
शुभ: मैं बाहर अभी वेटिंग में बैठा था तो मुझे प्यास लगी। मैंने नर्स से पानी मांगा। उसने लाकर दे दिया। फिर मुझे पता नहीं क्या हुआ मुझे हल्का सा चक्कर आया और मैं गिरते-गिरते बचा। आपकी बेटी ने मुझे पकड़ लिया था। फिर हम दोनों साथ में बैठ गए और मैंने अपना सिर उसकी गोद में रख लिया। अरे Dr साहब आप ये गुस्से वाला मुहँ क्यों बना रहे हैं?
Dr: अ...वो मैं बना नहीं रहा हूँ। वह अपनेआप बन गया। आप ध्यान न दें। आगे बताइये जल्दी। क्या हुआ फिर...(दांत पीसते हुए)।
शुभ: हाँ तो Dr साहब, फिर मैंने ऊपर देखा।
Dr: गोद में लेटे-लेटे?
शुभ: जी। लेकिन मुझे कुछ दिखा नहीं।
Dr: क्या मतलब?
शुभ: मेरा मतलब, कुछ बीच में था तो मैं आपकी बेटी का चेहरा नहीं देख पा रहा था लेटे हुए।
Dr: जल्दी बोल आगे...हफ़...हफ़...
शुभ: सत्यवादी का अपमान? आप गुस्सा क्यों हो रहे हैं? अभी आपने प्रमाण माँगा था और अब गुस्सा हो रहे हैं।
Dr: अरे हां! आपकी बीमारी बहुत गजब है। तभी आप इतना ख़तरा उठा रहे हैं। मानना पड़ेगा। आगे बताओगे sir जी?
शुभ्: ये हुई न बात। तो आगे सुनिए। फिर मैंने उठना चाहा तो मैं उस अवरोध से टकरा गया और फिर वापस गोद में गिर गया।
Dr: (घूंरते हुए) हाँ-हाँ आगे बोलो। कुछ नहीं।
शुभ: फिर मुझे उठने का मन ही नहीं हुआ। वह भी मेरे बालों में उंगलियां फिराने लगी तो अच्छा लगने लगा था।
Dr: आगे बोल झोपड़ी के...कब से यही अटका हुआ है। अ...न न मेरा मतलब वो नहीं था। सॉरी। कृपया ज़ल्दी से आखिर में पहुंचिये।
शुभ: एक दम से आखिर में?
Dr: हाँ आखिर में क्या हुआ? ज़ल्दी कहिये मुझे और भी पेशेंट देखने हैं।
शुभ: तो मैं बाद में आता हूँ।
Dr: अरे कहां चले? रुको। ऐसे नहीं जा सकते आप। पूरी बात बताये बिना।
शुभ: लेकिन अभी आपने कहा कि मरीज देखने हैं।
Dr: भाड़ में जाये मरीज। आपको देखूंगा आज सिर्फ।
शुभ: Okay! फिर यह हुआ कि मुझे सूसू आई और मैं उठने लगा। पानी पीने के बाद पेशाब आती है मुझे।
Dr: आगे...?
शुभ: मैं चलने को हुआ तो वह भी मुझे टॉयलेट तक ले गयी। मैंने कहा कि मैं अपने आप कर लूंगा तो वह बोली कि नर्स से शर्माना नहीं चाहिए। आप मुझसे डरे बिना अंदर चलिये।
Dr: गुर्र...
शुभ: क्या हुआ?
Dr: आगे...?
शुभ: आगे नहीं बताऊंगा।
Dr: ये लो 10000 रुपए और बताओ।
शुभ: आपके हॉस्पिटल में टॉयलेट का दरवाजा खराब है क्या? हम दोनों अंदर गए तो वह बन्द हो गया और खुला ही नहीं। बहुत देर तक। ये क्या है आपके हाथ में? Gun। हॉस्पिटल में gun कैसे लाये आप?
Dr: तुम उसे मत देखो बालक। आगे बोलो।
शुभ: आगे नहीं बताऊंगा। आपके इरादे नेक नहीं लग रहे।
Dr: ये लो 50000 रुपये। अब बताओ।
शुभ: 1 घण्टा हम अंदर बन्द रहे। इस दौरान हमारी जान पहचान हो गई। उसने आपके बारे में काफी कुछ बताया। जैसे आप 2 नंबर का पैसा किधर छुपाते हो और आपका कितनी नर्सों से चक्कर है आदि।
Dr: ये लो 10 लाख का चेक। व्हाइट मनी। किसी से कुछ मत कहना।
शुभ: जी इसकी क्या ज़रूरत थी। मैं क्यों किसी को कुछ बताउंगा भला?
Dr: आपको सत्य बोलने की खतरनाक बीमारी जो है।
शुभ: देखा। आखिर आप मान गए न। अब दवाई लिखो आप।
Dr: अब सोनी मेरा मतलब नर्स कहाँ है?
शुभ: आप फोन कर लो उसे। मेरी जान मत खाओ।
Dr: Ok। मतलब सब ठीक है। आप अपना blood सेंपल दीजिये। अभी तक ऐसी दवा बनी नहीं है जो झूठ बोलना सिखा दे या सच छुपाना। हम आपके ब्लड सीरम से दवा बनाएँगे। (डॉक्टर रक्त निकाल लेता है।)
शुभ: Okay!
Dr: आप 1 हफ्ते बाद मुझे इस नम्बर पर काल कर लेना।
शुभ: Okay!
Dr: रुकना यार।
शुभ: जी?
Dr: फिर क्या हुआ यार? आपके जानकारी लेने के बाद?
शुभ: जी मैंने इनकम टैक्स विभाग को फोन लगाया।
Dr: बेड़ा गर्क हो। सत्यानाश हो गया। तुझें तो मैं जिंदा गाड़ दूँगा।
शुभ: रिलेक्स। मैंने फोन लगाया लेकिन वह आउट ऑफ कवरेज जा रहा था।
Dr: Oh! बच गया। ये लो 20 लाख का चेक और। सब बियरर हैं। ऐश करो।
शुभ: आगे सुनाऊं?
Dr: ज़रूर।
शुभ: मैंने दोबारा try किया तो उठ गया फोन उधर से।
Dr: वापस कर सारे चेक कमीने!
शुभ: रिलेक्स। वह नम्बर कहीं और लग गया था। रोंग नम्बर था वह।
Dr: अरे! अभी जो बोला, उसके लिए माफी।
शुभ: कोई बात नहीं। सोनी के बारे में आप भूल गए एक दम।
Dr: अरे हां। उसका क्या हुआ?
शुभ: मेरे साथ टॉयलेट में बन्द हो जाने को लेकर मैं बहुत डर गया था कि कहीं सोनी ने शोर मचा दिया कि मैं उसके साथ कुछ कर रहा हूँ तो क्या होगा?
Dr: शाबाश! फिर क्या हुआ? उसने शोर मचाया?
शुभ: नहीं। उसने कहा कि वह कुछ बोलेगी तो सबको पता चल जाएगा कि वह मेरे साथ टॉयलेट में बन्द थी।
Dr: फिर? क्या हुआ? दरवाजा कैसे खुला?
शुभ: अपने आप थोड़े ही खुला। हम दोनों ने ताकत लगाई तब जाकर खुला। हम धोखे से एक साथ दरवाजे से टकरा गए और हम एक साथ बाहर आ गिरे। वह मेरे ऊपर थी।
Dr: ऐसा क्या कर रहे थे तुम दोनों?
शुभ: हमने एक साथ धक्का दिया दरवाजे को।
Dr: अच्छा। कितने धक्के मारे दोनो ने मिल कर।
शुभ: क्या? अ... होंगे 40-50 धक्के।
Dr: इतने धक्के लगाने पड़े? तब तो दरवाजा बहुत बुरा अटका होगा।
शुभ्: अरे कहां? आपकी लड़की ने ही उसमे अपनी चिमटी फंसा के जाम किया था।
Dr: अरे नहीं। सोनी बहुत बिगड़ गयी है। उसने कुछ कहा तुमसे? इस बारे में?
शुभ्: हाँ, कह रही थी कि चिमटी नहीं मिल रही। बार-बार बाल माथे पर आ रहे थे उसके।
Dr: और कोई बात जो कहना चाहते हो?
शुभ्: जी, उसने मुझे आपके घर कल आपके पीठ पीछे मिलने को बुलाया है। मुझे लगा कि आपको बताना चाहिए।
Dr: ओह। सही किया बताकर आपने। आना कल। कोई बात नहीं। मेरी बेटी की चॉइस कभी गलत नहीं हो सकती। मैं तो अब कल घर उस टाइम पर जाऊंगा नहीं।
शुभ: जी धन्यवाद!
अगले दिन मैं Dr साहब के घर गया। खूब मस्ती की हम दोनों ने। चैस खेला। फिर घर आ गया। क्रमशः ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

रविवार, जून 10, 2018

Decoding The Vegan Shubhanshu!

धर्ममुक्त तर्कवादी नास्तिक:

कुछ समय पूर्व जब मैं आस्तिकों को दूर होने को कहता था तब मुझे नास्तिकों से ही ताने मिलते थे कि अकेले में ही खेलोगे क्या फिर?

दरअसल उनको पता ही नहीं था कि नास्तिकता के अलावा भी दुनिया है कोई। नास्तिक जल्दी समझ जाते हैं इसलिये उनको जोड़ना अच्छा था। आप किसी को तब तक नास्तिक नहीं बना सकते जब तक वह खुद ही सवाल न खड़े करने लगे ईश्वर के ऊपर। साफ है कि आप किसी को उसके सवालों को समझने में उनकी मदद कर सकते हैं लेकिन किसी को उसकी इच्छा (will) के बिना बदल नहीं सकते। भले ही तर्क में जीत जाएं।

इसलिये मैं एक मिनट में जान जाता हूँ कि मैं किस से बात कर रहा हूँ। इसी प्रकार आपको मेरे साथ रह कर सिर्फ नास्तिकता के ऊपर बने घिसे पिटे post नहीं मिलते बल्कि जो भी उससे सम्बंधित मिलता है वह एक दम अनोखा और असरदार होता है। तुरन्त असर करने वाला।

आपको मेरे साथ रहकर ऐसी जानकारी मिलती है जो गूगल पर भी उपलब्ध नहीं। ऐसा मुझे कुछ लोगों ने हाल ही में कहा है इसलिये लिख रहा हूँ। कुछ का कहना है कि गूगल पर वे कुछ ढूंढ नहीं पाते जो मैं ढूंढ कर दे देता हूँ।

मेरा खुद का जीवन ही त्याग और तपस्या का परिणाम है। तपस्या का मतलब ईश्वर का ध्यान नहीं बल्कि कष्टों का वह अंधड़ है जो मैंने पार करके सुख को पा लिया है। मैंने बहुत कम उम्र में ही जीवन के उन रहस्यों को जान लिया जो लोग गहन रिसर्च से भी नहीं जान सके। मुझे यह भी आप ही लोगों ने कहा है।

कुछ ने कहा कि अब आपको जानने के लिये कुछ नहीं बचा। आप सब जान गए। लेकिन यह उनका कहना था। मेरा नहीं। मेरे लिये मैं ही हूँ अपना पालक और मैं कहता हूं कि ज्ञान कभी खत्म नहीं होता। वह हमेशा आपके लिए मौजूद रहेगा।

गृहस्थ जीवन का त्याग: विवाह मुक्त

लोग जब सुखों की बात करते हैं तो गृहस्थ जीवन को सुखों की खान बोलते हैं। इसको सबसे ऊपर रखते हैं क्योंकि यह पौराणिक कथाओं में लिखा है और बड़ों ने कहा भी है। इसके लिये वे जान भी दे सकते हैं। उनके लिए सबसे बड़ा सुख विपरीत लिंग ही है। मैने इसे त्याग दिया। अधिक जानकारी के लिये post देखें "राज़ प्रेम का"

जीवन साथी की अनिश्चितता:

दूसरा सुख लोग जीवन साथी की निश्चितता को मानते हैं जो कि एकल व्यक्ति पर निर्भर होता है लेकिन मैंने इसे भी सबके लिये खुला छोड़ दिया। मैंने लिव इन रिलेशन को भी त्याग दिया। जो जब तक संग रहना चाहे रहे जब जाना हो चला जाये। मैं नहीं भगाऊँगा, जब तक तंग नहीं करोगे। post देखें "मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ"

शिशुमुक्त जीवन:

लोगों के लिये सन्तान सुख सर्वोच्च होता है। अपने आनुवांशिक गुण आगे अग्रसारित करना प्रत्येक जीव की तरह मानव में भी कोडेड है। लेकिन प्रकृति में यह सिर्फ महिला को हक़ है कि वह अपने बच्चे को दूध पिलाये, पाले पोसे। हर माँ में अपने बच्चे के प्रति यह लगाव ही ममता कहलाता है।

पुरुष का कार्य बस सम्भोग करना और भाग जाना है। एक महिला 1 वर्ष में गर्भवती होकर प्रायः 1 बच्चा पैदा करती है जबकि पुरुष उस दौरान लाखों महिलाओं के साथ अपना जींस शेयर कर चुका होता है। उसमें भी उसका दोष नहीं। प्रकृति में किसी का दोष नहीं होता। वह वही कर रहे हैं जैसा उनके डीएनए में लिखा है।

महिलाओं को प्रतिमाह 1 अंडा मिलता है बच्चा पैदा करने के लिए। जब अंडा निकलता है उस दिन महिला को सम्भोग की प्राकृतिक इच्छा होती है लेकिन यह पुरुष को क्या पता? इसलिये वह हर समय सम्भोग की इच्छा के साथ पैदा हुआ।

उसके हर सम्भोग से बच्चा होना असम्भव है लेकिन वह जितना ज्यादा करेगा उतने ही मौके उसे ज्यादा मिलेंगे। अतः पुरुष बच्चों से प्रेम नहीं करते। स्त्रियां करती हैं। कालांतर में वंश चलाने, अपने धन-संपत्ति के हस्तांतरण के लिये पुरूष भी बच्चे को ज़रूरी समझने लगे।

वह समय और था जब इंसान जंगल में अपनी मौत से जूझता था और उसके लिए उसे ज्यादा से ज्यादा आबादी और सुरक्षा के लिये लोग चाहिए होते थे। शेर, गीदड़, भेड़िए, चीते, गुलदार, तेंदुआ, लकड़बग्घे, बंदर जैसे जंतु मानव के शत्रु बन गए थे। मानव की जनसँख्या बहुत कम थी। तब बच्चा पालना ज़रूरी कार्य था।

लेकिन आज क्या हाल है? आज सब सुरक्षित हैं। खतरनाक जानवर इंसान ने मार डाले। जंगल खत्म कर दिए और विज्ञान ने लोगों को महामारियों और दुर्घटना से बचाना शुरू कर दिया है। फिर अब अस्पताल तो जच्चा-बच्चा का जीवन बचा लेते हैं जो पहले प्रसव के समय ही खत्म हो जाता था। आज भी आपके प्रसव से मरने के चांस 90% हैं।

महिला का काल होता है प्रसव। बहुत भयानक समय, 6 माह के सम्भोग के मजे का बेहद दर्दनाक अंत। दर्द की अति। जान जाने का 90% खतरा। इसे मजाक न समझें। बहुत ज़रूरी हो तभी बच्चा करें।

ज़रूरी? ज़रूरी तो तब होगा जब सड़कों पर ट्रैफिक न हो। जब कंपनियां आपके घर आकर आपका इंटरव्यू लें। मोटी रकम पर काम देने के लिये। जब कहीं लाइन न लगी मिले, जब ट्रेनों/बसों/ऑटो में खालीपन सा लगे। स्कूल आपके घर आकर बच्चों को बिना एडमिशन फीस के "पढा कर तो देखिये" की तर्ज पर लालच देने लगें। वस्तुएं इतनी सस्ती हो जाएं कि 10 रुपये में, 10,000 की खरीदारी हो जाये। टैक्स भी कम हो जाएगा, जब लोग कम होने से सरकारी धन का दुरुपयोग रुकेगा।

यह सब होने का सपना पूरा तब होगा जब आप कुछ समय, करीब 10 वर्ष तक सम्भोग करें लेकिन गर्भनिरोधक के साथ। लेकिन आप वह भी नहीं करेंगे तो हम क्यों लाएं नया बच्चा, इस सड़े हुए सिस्टम में? सड़ाने के लिये? जहाँ भीड़ कभी कम ही नहीं होती? जहाँ ज़िन्दगी झंड है। मुझे माफ़ कीजियेगा। मैं जुआ नहीं खेलता। post देखें "मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ"

वस्त्रों के प्रति अरुचि:

1. वैज्ञानिक कारण: जब तक ज़रूरी न हो जैसे सर्दी, गर्मी, बरसात तब तक वस्त्रों का सीमित प्रयोग। सूर्य की प्राणदायक रौशनी हमारे शरीर को विटामिन D देती है जो कि साबित करता है कि हमारा शरीर photo sensitive है। मेलेनिन सूर्य के प्रकाश से नियंत्रित होता है जो हमारी त्वचा को गहरा रंग देता है और यह रंग ही हमें त्वचा कैंसर से बचाता है।

विटामिन D का सीधा सम्बन्ध हमारी हड्डियों से है। आपको पता होना चाहिए कि बलूव्हेल के शरीर में कई टन कैल्शियम होता है यह उसमें कहाँ से आया? लगभग हर मछली में काँटा यानी हड्डियों का ढांचा होता है। यह सब आता है पानी में घुले कैल्शियम से। लेकिन फिर भी हमें वह क्यों नहीं प्राप्त हो पाता?

कारण है कपड़े। दरअसल हमारा शरीर तब तक कैल्शियम को नहीं देखता जब तक शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन D न हो। जब आप डॉक्टर से कैल्शियम की गोली लेंगे तब वह आपको विटामिन D के साथ आने वाली गोली ही देंगे। यानि बिना विटामिन D के सारा कैल्शियम बेकार है। और वह कैसे बने बिना ऊपर से खाये, मुफ्त में? समझदार को इशारा काफी।

2. सामाजिक कारण: "बंधी मुट्ठी लाख की और खुली मुठ्ठी खाक की।" यानि रैपर में लिपटी चीज़ के प्रति ज्यादा आकर्षण होता है। आदिमानवों में वस्त्रों का अभाव था और उनके वंशज आज भी आदिवासी कहलाते हैं।

उनमें एक दूसरे के प्रति ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जो नज़रों से हो जाये। केवल शरीर के छूने से ही और गंध से ही कामोत्तेजक असर होता है। इसलिये कपड़े कभी भी उनकी जरूरत नहीं बने।

सभ्यता के नाम पर दूसरे को सिखाने का जो जाल फैलाया गया, इंसान खुद की सुनना बन्द कर बैठा। शिक्षा ने विद्वान नहीं पैदा किये बल्कि गुलाम पैदा किये जो कि बस सुना/पढ़ा ही करता रहा। उन्हीं में से एक है अनावश्यक वस्त्रों का जाल। अनावश्यक मतलब घूरती आंखों से बचने के लिये पहने जाने वाले वस्त्र।

लेकिन क्या आपको कभी घूरना बन्द किया गया? मुझे रोज लोग घूरते हैं। मैं तो लड़का हूँ तब भी। घूरना सम्विधान में क्रूरता के रूप में वर्णित है जिसकी सज़ा है। यह एक मानसिकता है जो लोगों ने अपना रखी है बिना छुए घायल करने की। इसका इलाज है पुलिस। ऐसा पाया गया है कि डंडे पड़ने के बाद यह आदत समाप्त हो जाती है।

अब देखिये कपड़ों का खेल। पूरी पोर्न इंडस्ट्री, वैश्यावृत्ति और फैशन इंडस्ट्री कपड़ों पर टिकी है। पोर्न/वैश्यावृत्ति और कपड़ों का क्या मेल? है न? नहीं यही पर आप मात खा जाते हैं।

कानून यौनांगों (जिसमें अकारण केवल महिला स्तनाग्र भी शामिल हैं) को छिपाने को बाध्य करता है और ज्यादातर धर्म भी। जब हम यौनांग नहीं देख पाते तो शरीर और दिमाग भ्रमित होकर तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है। जो भी उसे उभार और अंदाज़ा मिलता है वह उसे नग्न रूप में एक दम अपनी पसन्द के अनुरूप कल्पना कर लेता है और कामोत्तेजित हो जाता है। यह घटना आपको सभोंग में सक्रिय लोगों और प्रेमी जोड़ों में चिरपरिचित मिलेगी। ज़िसमें कपड़े बहुत बड़ा योगदान देते हैं।

जब कुछ अधूरा दिखता है मनुष्यों का मस्तिष्क अपने आप उस खाली स्थान को भर लेता है। वह उसे उत्तम भाग से भरता है जिससे प्रबल स्तरीय कामोत्तेजना प्रकट होती है। इसी कारण से नए लड़के लड़कीं के जांघों पर ही वीर्यपात तक कर देते हैं।

पूर्ण नग्न होते ही मन में मौजूद कल्पना को झटका लगता है और मन मुताबिक न होने के कारण कामोत्तेजना शनेः शनेः (धीरे-धीरे) समाप्त होने लगती है। इस घटना को न्यूड बीच (नग्न समुद्र तट; स्पेन, ब्राजील और गोआ में सीक्रेट न्यूड बीच हैं जिनमें गोआ वाले में भारतीयों का आना प्रतिबंधित है।) के नियम में परिलक्षित होते हुए देखा जा सकता है। न्यूड बीच में कोई भी व्यक्ति अपना तना हुआ उत्तेजित शिश्न लेकर नहीं घूम सकता। वह लोगों को तंग करता है। इसलिये इनकी परीक्षा होती है।

परीक्षा के लिये एक स्विम सूट वाली लड़की लड़के के सामने नग्न हो जाती है। अगर शिश्न में तनाव आया तो एंट्री निरस्त। ऐसी दशा मे उनको अलग बैठना पड़ता है और दूर से ही देख सकते हैं। कुछ दिन बाद उस लड़के का लिंग शिथिल हो जाता है और टेस्ट पास कर लेता है। यही है कपड़ों की सच्चाई से पर्दा उठाने का प्रमाण भी। इसलिये सभी लोगों को सार्वजनिक नग्नता का समर्थन करना चाहिये। भले ही सार्वजनिक सम्भोग पर प्रतिबंध जारी रखें।

दरअसल कानून ने लगभग सभी देशों में महिला के अभद्र निरूपण (vulgur presentation), nipples, vagina, Anus hole, penis के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगा रखी है। केवल अध्ययन शिक्षा और समाजसुधार के लिये किये गए प्रदर्शन ही मान्य हैं।

अगर इस नियम का उल्लंघन होता है तो कड़ी सजा का प्रावधान है। भारत में IPC धारा (292-294) 2 से 5 साल कैद और 5000 रुपये जुर्माना। अभी तक इच्छा से निर्वस्त्र होने पर क्या समस्या है यह पता नहीं चला है। पता चलते ही अद्यतन (अपडेट) कर दूंगा।

जब किसी औपचारिक जगह जाना हों तभी सूट या पैंटशर्ट टाई, बूट आदि पहने जा सकते हैं। post देखें "हमाम में सब नँगे"

प्राकृतिक जीवनशैली:

मैं ज़रूरी होने पर ही, ब्रश, स्नान, हाथ-मुहँ धोना, शेव करना, भोजन करना आदि कार्य करता हूँ। मेरे लिये भोजन प्राथमिक कभी नहीं था। मेरा मानना है कि खाने के लिये जीना गलत है, हमें जीने के लिये ही खाना चाहिए।

वीगन जीवन शैली:

पशुओं को उनका जीवन जीने दो। हम अपना जियें। यह है इसका एक सार। परन्तु यह 2 हिस्सों में है।

नाम: पशुक्रूरता निरोधक जीवन शैली (veganism)

| 'vee-gu, ni-zum |

1. किसी भी नैतिक सिद्धांत या जीवन का तरीका जो जानवरों के शोषण पर आधारित किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों और सेवाओं का सख्ती से उपयोग नहीं करता है।

2. एक आहार का पालन करने का अभ्यास जिसमें मांस, मछली, दूध और दूध उत्पादों जैसे किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों को शामिल नहीं किया जाता है, अंडे, शहद, पशु वसा या जिलेटिन आदि।

विस्तृत जानकारी के लिये "What the health" नामक documentary देखें व peta.org और vegansociety.com की वेबसाइट पर जाएं।

Note: मेरे भीतर यह सभी गुण प्राकृतिक थे। मैंने केवल इनका अद्ध्ययन किया है कि यह सही हैं या नहीं। इसलिये मैं अब वापस बदल नहीं सकता। इसलिये किसी प्रकार की बहस का स्वागत नहीं होगा। समस्त जानकारी के स्रोत ऊपर दिए गए हैं। उनका इस्तेमाल करें।
नमस्कार!

लिखते-लिखते थक गया। बाकी फिर कभी। क्रमशः
2018/06/10 22:18
Article ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

कृपया पूरी वेबसाइट पर दी गई post देखें। ज्यादा समझदार बनेंगे।

शुक्रवार, जून 08, 2018

मुस्कुराहट: कट्टा

एक बार शुभाँशु जी एक सुनसान जगह पर गए। उधर देखा कि कुछ गुंडे डील कर रहे थे। सबके पास देशी कट्टे थे। शुभाँशु जी ने भी अपनी जेब में हाथ डाला और एक बड़ा सा कट्टा निकाला।
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और खुरपी से गमलों के लिये उसमें मिट्टी खोद के भरने लगे। इसीलिए तो आये थे। ~ शुभाँशु जी 2018©

मुस्कुराहट: टोकना मत।

🙏: शुभ जी आप 6 घण्टे से लगातार ज़ोरदार आवाज में ज्ञान बाँट रहे हैं। कुछ देर शांत हो जायंगे क्या?

शुभ:👍

🙏: 👏

शुभ: 🙋 ✌

🙏: अब ये क्या? ये पेशाब जाने जैसी उंगली क्यों दिखा रहे हैं?
शुभ: मैडम जी मुझे बहुत जोर से विचार आ रहा है।

🙏: 😓 😕 😥 😵...

शुभ: अरे ज़ल्दी कीजिये कहीं निकल गया तो?

🙏: अरे क्या खाते हैं आप? बोलिये।

शुभ: निकल गया...! 🙎

😨: क्या निकल गया?

शुभ्: अरे विचार निकल गया दिमाग से। पानी से ईंधन बनाने की इंस्टेंट तकनीक सोची थी। आपके देर करने से लगा कि आपको रुचि नहीं। इसलिये भूल गया। 😬
~ शुभाँशु जी 2018©

बुधवार, जून 06, 2018

कुछ अनकही सी

"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझे भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्

बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो? ~ Shubhanshu Chauhan

"कुछ लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"

लेकिन इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार है।

साथ ही, धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी काफी बाद में शुरू हुआ था।

मैं किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?
धर्म एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से सिर्फ अच्छा ही चुनें?

"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।

और यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन) नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है। मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना बर्बाद कर दे रहे हैं।

अधिक जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा, अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।

चीन में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप करेंगे क्या?

आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?

मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।
बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।
-Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

आप इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।

जब दुनिया में सच और न्याय का विनाश हो रहा था तब मेरा जन्म हुआ. कुछ था जिसने मुझे कुछ ख़ास बनाया था बचपन से। माता-पिता ने शुरू के 8 साल तक मुझे राजकुमारों की तरह पाला पोसा और फिर जब मेरी इच्छाए और पसंद विकसित हुई तो छोड़ दिया मुझे मेरे हाल पर।

उनकी पसंद तो मैं उनका और मेरी पसंद तो मैं पराया। सब अजीब सा था लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा। 'क्यों जीना था मुझे' एक ही सवाल था। तभी टीवी पर मुझे कुछ दिखाई दिया, वह थी थॉमस अलवा एडिसन की जीवनी।

कुछ कुछ अपने जैसी ही लगी उसकी जिंदगी। पढने में बिलकुल दिल नहीं लगता था। मैडम मारती रहती थीं और मैं शिकायत करता रहता था। माँ टीचर से जा के लड़ती रहती थीं और मैं अपनी किस्मत से।

बहुत पिटा था मैं अपनी पढाई के दिनों में, किसी शरारत के लिए नहीं, बल्कि होमवर्क न करने और याद न कर पाने के कारण। आजकल के नोबिता की तरह।

जिंदगी नर्क से कम नहीं थी स्कूल की। और कॉलेज कौन सा स्वर्ग था? आज कल के लड़के लडकियां तीसरी-चौथी क्लास में ही अपनी लव स्टोरी शुरू कर देते हैं और मैं लडकियों से डरता रहा। शायद इसलिए क्योकि मेरे जन्म के दो साल और दो महीने बाद से ही मेरा नर्क शुरू हो गया था बस मैं मानता नहीं हूँ। ऐसा इसलिए कयोंकि तब मेरी बहन पैदा हुई और समझो मैं मर गया।

कैसे? क्योंकि प्यार बंट गया। किसी को पहले सिर आँखों पर चढाओ और फिर अगर गोद में भी उतार लो तो वो पूरा घर सिर पर उठा लेता है।

शायद ऐसा ही मेरे साथ भी था। दूसरी क्लास से मेरा वजन बढ़ गया और डीलडौल भी। ये प्यार नहीं था, इस से पहले मैं हड्डियों का कंकाल था। घरवालों को पहले तो डर था कि लड़का ही पैदा नहीं होगा फिर ये कंकाल देख कर वो सिहर गए थे।

छोटी बहन से लड़ता रहता था, तब मैं समझदार नहीं था। फिर पता लगा की ये तो घर घर की कहानी है।
एडिसन कभी भी मेरे अन्दर मरे नहीं और आज भी जिन्दा हैं। मैं माँ-पिता की बेरुखी को अपनी किस्मत मान के खुद को अनाथ मानता रहा। और मैं बड़ा हो गया।
खुद को अपना ही माँ-बाप बना के मैं जिंदगी की सबसे ऊँची नीची पढ़ाई की सीढ़ी चढ़ता गया। स्नातकोत्तर के बाद दो व्यावसायिक डिप्लोमा भी किये।

लोगों के कहने पर प्रतियोगी परीक्षा में भी बैठा लेकिन रूचि न होने के कारण सफल न हो सका। बी.एड. की प्रवेश परिक्षा अपनी बहन की देखा देखी में दी और 200 में से 170 अंक हासिल किये। attempt तो 189 ही किये थे। खास बात थी की मैंने कोई तैयारी नही की थी।

मैंने फीस के 51250₹ जमा कर के बी.एड. छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि मुझ से इतने ही रूपये और मांगे गए परीक्षा फ़ार्म भरने के लिए। कॉलेज था, जुगल किशोर डिग्री कॉलेज, गवां, बदायूँ।

मैं पागल नहीं था जो ये मांगी जाने वाली रिश्वत से अपनी जिंदगी में एक बड़ा दाग लगाऊं। लेकिन सब ने मेरे त्याग को मेरा पागलपन कहा। सब बुरे थे। आप खुद सोचिये 51250₹ खोना बुरा है या 100000₹ खोना? ऐसा बी.एड. जिसमें आपको वहां पढने की जगह घर पर पढने को कहा जाए और जहाँ सब पैसों से ख़रीदा जा सकता हो वहां पढ़ाई नहीं शौपिंग की जाती है।

मैं शौपिंग ऑनलाइन करता हूँ। ऑफलाइन तो अभी तक पढ़ाई ही की है।

मैं अभी भी लगा हुआ हूँ कुछ अनोखा और useful बनाने में जिसका इस्तेमाल करके लोग अपने इंसान होने पर और गर्व कर सकें।

मैं लोगों को अमीर बनाना चाहता हूँ और खुद को भी। मेरे ख़याल से अमीर दो तरीकों से बना जा सकता है। एक खूब धन कमाओ और उसे अमीर दिखाने वाली चीजों को खरीदने में खर्च करो; और दूसरा, अमीर बनाने वाली वस्तुएं कम दामों पर ले ली जाएँ।

आप को दूसरा तरीका कैसा लगा? ओह! फिर से नकारत्मक विचार, की फिर क्वालिटी में समझौता करना पड़ेगा जैसे चाइना का सामान। है न? मैं भी जानता हूँ की हम क्या चाहते हैं। मैं भी आप में से एक हूँ। अभी वस्तुएं महंगी इसलिए हैं क्योंकि तक्नीक पुरानी है। तकनीक बदल दूंगा तो क्वालिटी पर कौन सा फर्क पड़ेगा?
जैसे ऐ.सी. बहुत गर्मी पैदा करता है बाहर के वातावरण में और बहुत बिजली इस्तेमाल करता है। महंगा भी है और महंगा भी पड़ता है। क्यों न इसकी तकनीक में सुधार किया जाय या कुछ नया बनाया जाए? कैसा रहेगा अगर वो साधारण इन्वेर्टर से भी घंटो तक चले?

अपने विचार मुझ तक पहुँचाइये और मैं आप तक पहुँचाऊगा आप के सपने।

"गरीब इतना कि मैं सबको खुश न कर सका,
अमीर इतना कि जहां की हर खुशी खरीद ली।" ~शुभ्

Hi I’m a nature lover and Vegan. I believe in the power of Science & Technology and have the ambition of becoming one of the internationally reputed scientists/professors. I’m a good dreamer, believe in the beauty of my dreams and work hard to achieve them. I’m not that ntelligent but am a sincere and very confident person and believe in “Heartily & Honestly Hard Work can Evolute any Life” however, I like to make good friends and believe that friends earned in one's life are a treasure.I also like to mingle with like minded people in the society. I like to get involved in some social activities when I don’t do any science. I feel great pleasure when I help someone and make him/her happy. I believe “no one is perfect human being" However, one can achieve perfection by developing good human values.

Disclaimer: All of above is work of fiction!

भारत की बेड़ियाँ

प्रश्न: भारत विकसित देशों के समान तरक्की क्यों नहीं करता?

उत्तर: Well, क्योकि हम सबकुछ हैं (पंजाबी, मराठी, up वाले, बिहारी, कश्मीरी, पहाड़ी, बंगाली, मुस्लिम, हिन्दू, सिख, जैन आदि) लेकिन भारतीय नहीं इसलिये। 

देश टुकड़ों में बंटा है, और बंटना चाहता है। हमें हर दूसरे राज्य के, स्थान के, वर्ग के लोगों से नफरत है। प्रेम किधर है? सिर्फ नामों में? किताबों और फिल्मों में?

सभी अपना-अपना देखते हैं। किसी को परवाह है जैसे दिल्ली, मुम्बई वाले, लेकिन बाकी जगह वालों को परवाह ही नहीं है देश की। सबको अपने घर में सफ़ाई चाहिए लेकिन देश में नहीं।

अपनी चीज अपनी और सरकारी यानी सार्वजनिक संपत्ति को चुरा लाएंगे या तोड़ देंगे। किसी को विकास चाहिए ही नहीं। जब तक खुले में हगने में आंनद आता रहेगा तब तक देश यूं ही देश की टट्टी से महकता रहेगा। ~ शुभाँशु जी 2018©

बौद्ध धर्म (पाली: धम्म) ज़िंदाबाद

: ओये, बौद्ध धर्म को मजाक समझा है क्या? मुझसे तर्क कर। किस धर्म का है तू?

शुभ: धर्ममुक्त। यह बताओ कि गौतम बुद्ध किस धर्म से आये थे?

: हिन्दू धर्म से।

शुभ: हिन्दू धर्म में कितने अवतार माने जाते हैं?

: 24

शुभ्: 23वाँ कौन था?

: गौतम बुद्ध। लेकिन वह ईश्वर में विश्वास नहीं रखते थे।

शुभ: हाँ, क्योकि अवतार खुद ही ईश्वर होता है। वह अपनी ही पूजा क्यों करेगा?

: अब क्या कहूँ? फिर उन्होंने सबसे किसी की पूजा करने से क्यों रोका?

शुभ्: अपने जीते जी किसी अवतार ने अपनी पूजा नहीं करवाई। लेकिन अपने सामने किसी दूसरे की पूजा होते हुए भी नहीं देखा जा सकता।

: फिर उनके अवतार लेने का उद्देश्य क्या था?

शुभ्: मूलनिवासियों (राक्षसों, असुरों) को मनुवादियों (हिंदुओं/सनातनियों) से दूर रखना। अहिंसा का पाठ पढ़ा कर ब्राह्मणो के प्राणों की रक्षा करना। अपने उपदेशों से चोरी न करने, संग्रह न करने, अपरिग्रह यानी मोह न करने के लाभ बता कर ब्राह्मणों को लुटवाने से बचाया।

: लेकिन...उन्होंने तो हिन्दू धर्म की बहुत पोल खोली थी। वह क्यों?

शुभ्: वाल्मीकि रामायण में जब भरत राम को लेने जंगल जाते हैं तो उनका विद्वान दरबारी सुमंत्र चर्वाक मत का प्रयोग करके हिन्दू/सनातन धर्म की धज्जियाँ उड़ाता है।

पूरे 5 पेजों में वह विदुर, पूरे सनातन सम्प्रदाय को झूठा साबित कर देता है। सोचो वह मत उसमें क्या कर रहा है? इसका मतलब वाल्मीकि ने भी हिंदू सम्प्रदाय की पोल उसी के प्रमुख धर्म में खोल रखी थी जो कि बुद्ध के द्वारा किये गए कार्य से एक दम मेल खाता है।

इससे साबित होता है कि गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के ग्रँथों में उनका ज़िक्र किया गया हैं। वाल्मीकि रामायण में भी 2 जगह बौद्ध भिक्षु शब्द (क्षेपक/क्षेपण) आया है।
कल्किपुराण में साफ लिखा है कि शूद्र लोग कलयुग में बौद्ध/चर्वाक मत का प्रयोग करके राजनीति करेंगे। उसी का पालन किया जा रहा है। आप हिन्दू ही हो लेकिन दूसरे यानी नास्तिक मत वाले जो कि अहिंसा करने के लिए दानवों को दिया गया था। हो गई न गूगली?

: शुभ् भाई, थोड़ा पानी मिलेगा?

शुभ्: लो पी लो भाई, तुम्हारे लिये ही रखा था। (वह पीता है) तो मैं आगे यह कह रहा था कि...

: और भी कुछ बाकी हैं क्या भाई? (गड़ब)

शुभ्: अरे अभी तो बस शुरू किया है। यह बताओ ब्रह्मा का आसन क्या है? भाजपा का चुनाव चिंन्ह क्या है और महात्मा बुद्ध का आसन क्या है?

: कमल का फूल।

शुभ्: सही, अब यह बताओ ब्रह्मा और महात्मा बुद्ध के सिर के पीछे जो औरा चक्र तेज़ प्रकाश है वह क्या है?

: शायद देवताओं को दर्शाने के लिये यह एक प्रतीक होता है।

शुभ्: मतलब बुद्ध हिन्दू धर्म के एक देवता ही हैं।

: लग तो ऐसा ही रहा है। लेकिन यार बाकी जो चीन और कुछ देश बौद्ध हैं वे क्या मूर्ख हैं?

शुभ्: आपको क्या लग रहा है?

: मूर्ख ही लग रहे हैं। उनकी फिल्में देखीं हैं। सबमें पिशाच, इच्छाधारी नाग, नागिन, हनुमान जैसा कोई देवता, तरह-तरह के जादू टोने भरे पड़े हैं।

शुभ्: सावधान, अब आप मेरी तरह बोल रहे हैं। क्या कोई तर्क नहीं बचा?

: ये लो भाई इस कागज़ पर मैंने अपना मत लिख कर रख दिया है। मेरे जाने के बाद पढ़ लेना।

उसके जाने के बाद मैंने कागज खोला और पढा, "जय धर्ममुक्त!"  ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/06 01:32

इस्लाम धर्म ज़िंदाबाद

: ओये तूने इस्लाम को मजाक समझ रखा है? आ मुझसे तर्क कर। किस धर्म से है तू?

शुभ: मैं धर्ममुक्त! आदम और हव्वा कितने साल पहले बने?

: इतना कठिन सवाल? बने होगेे करोड़ो साल पहले।

शुभ्: और इस्लाम कब आया सबके सामने?

: लगभग 1500 साल पहले।

शुभ्: तब तक जो लोग बिना इस्लाम के प्रकाश में इस्लाम के खिलाफ कार्य कर रहे थे उनको सज़ा मिलेगी क्या?

: पता नहीं। यार इस्लाम इतना देर से क्यों आया?

शुभ: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझे तो बताना है बाबू!

: धर्ममुक्त जयते! विजय हो आपकी। मैं भी हो गया धर्ममुक्त! ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/06/06 01:32

ईसाई धर्म ज़िंदाबाद ~ Shubhanshu

: ओये, तूने ईसाईयत को मजाक समझा है क्या? चल मुझसे तर्क कर। किस धर्म से है तू?

शुभ: मैं धर्ममुक्त। सूरज और चांद कौन से दिन बने थे?

: चौथे दिन।

शुभ्: दिन और रात का पता कैसे चलता है?

: सूरज के निकलने और अस्त होने से।

शुभ्: चार दिन कैसे गिने सूरज-चाँद बनाने से पहले?

: हाँ यार, आज तक मैंने ऐसा क्यों नहीं सोचा। कैसे गिने पिछले 3 दिन?

शुभ्: मत पूछ भाई, मत पूछ। तुझें तो बताना है।

: भाई, पानी मिलेगा? ज़रा गला सूख रहा है।

शुभ्: बोल तो मैं रहा हूँ, फिर भी ये लो।

: पानी पीता है...

शुभ्: यह बताओ, पृथ्वी पर जब एक तरफ दिन होता है तो दूसरी तरफ रात होती है। यानि सूर्य का अस्त होना जगह के आधार पर निर्भर होता है। तो यहोवा की आत्मा किस जगह खड़ी होकर सूर्योदय और सूर्यास्त की गणना कर रही थी? क्योकि वास्तव में सूर्योदय और सूर्यास्त जैसा कुछ होता ही नहीं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है।

: अरे यार, वो आपने क्या बताया था शुरू में?

शुभ्: धर्ममुक्त!

: हाँ वही। विजय हो धर्ममुक्त विचारधारा! धर्ममुक्त जयते! आपकी भी जय हो। मैं भी बन गया आज से धर्ममुक्त! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©

मंगलवार, जून 05, 2018

मेरा निजी ज़हरबुझा खुलासा

दोस्तों एक बात कहनी थी आपसे। मैं जानबूझ कर अपना स्वभाव अच्छा नहीं दिखाता हूँ क्योंकि फिर लोग मुझसे मिलने की ज़िद करने लगते हैं और मुझे हमेशा के लिये खो देते हैं। (ब्लॉक हो जाते हैं।)

मैं किसी से भी मिल नहीं सकता, यह बात गांठ बांध लीजिये। मैं अंतर्मुखी स्वभाव का हूँ और इस स्वभाव के लोग अन्य लोगों से प्रत्यक्ष नहीं मिलते। इसलिये मेरा प्रयास रहता है कि आप सभी मेरे विचार और लेखन पर ही ध्यान दें।

वास्तविक जीवन में मैं एकांत ज्यादा पसन्द करता हूँ। इसलिये आपको मैं घमण्डी दिखता रहूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें लेकिन मेरे विचारों को अपने जीवन में उतार के प्रसन्न रहें। ऐसा निःस्वार्थ व्यक्ति आपको कम ही मिलेगा जो खुद को जला कर दूसरों को रौशनी देना जानता है।

जब भी आप मुझसे ज्यादा लगाव दिखायँगे आपको झटका ज़रूर लगेगा और फिर आपको मुझसे नफरत हो जाएगी। यह बात मैं आपको कभी नहीं बताता लेकिन धीरे-धीरे लोग झटके खा कर विदा ले रहे हैं। सिर्फ लगाव के कारण। मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे नफरत करें। मुझसे मिलने का विचार त्याग दें।

मैं नाम कमाने, राजनीति करने या मित्रों की भीड़ जमा करने नहीं आया। मैं बस एक गुमनाम इंसान हूँ जो बस निःस्वार्थ आपकी मदद करना चाहता है। आपकी इच्छा हो तो मुझे भोजन के लिये धन दे सकते हैं, मकान के किराए के लिये रेंट दे सकते हैं लेकिन मुझे आपकी मेहनत की कमाई से दारू नहीं पीनी।

कुछ नहीं दे सकते तो धन्यवाद से भी मेरा पेट भर सकता है। यही कहना चाहूंगा कि मैं कुछ बहुत अमीर नहीं हूँ जो घमण्ड करूँ खुद पर। मैं आपसे भी गया गुजरा एक इंसान हूँ जो नौकरी नहीं कर सकता, भीख नहीं मांग सकता और इस लायक भी नहीं कि दुकान खोल कर दिन भर उसमें बैठ सकूँ।

जो भी मैं कमाता हूँ वह बातों से ही कमाता हूँ। लोगों को सलाह देकर ही मेरी रोजी चलती है। मेरे पास वे लोग आते हैं जिनके पास असम्भव समस्याओं का पिटारा होता है और मैं उनको समाधान देकर उनसे मुहँ मांगी रकम लेता हूँ। मेरे पास काम करने वाला शरीर नहीं लेकिन दिमाग ज़रूर है और यह दिमाग ही आपसे बात कर रहा है। मैं शरीर हूँ ही नहीं। मैं हूँ सिर्फ एक विचार मशीन। ~ शुभाँशु SC 2018©

सलाह खरीदने के लिये सम्पर्क करें: http://solutionseveryday.zohosites.co

Note: ऊपर लिखी पात्र और घटनाएं कल्पनिक् हैं।