Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, जून 06, 2018

कुछ अनकही सी

"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझे भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्

बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो? ~ Shubhanshu Chauhan

"कुछ लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"

लेकिन इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार है।

साथ ही, धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी काफी बाद में शुरू हुआ था।

मैं किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?
धर्म एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से सिर्फ अच्छा ही चुनें?

"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।

और यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन) नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है। मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना बर्बाद कर दे रहे हैं।

अधिक जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा, अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।

चीन में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप करेंगे क्या?

आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?

मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।
बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।
-Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

आप इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।

जब दुनिया में सच और न्याय का विनाश हो रहा था तब मेरा जन्म हुआ. कुछ था जिसने मुझे कुछ ख़ास बनाया था बचपन से। माता-पिता ने शुरू के 8 साल तक मुझे राजकुमारों की तरह पाला पोसा और फिर जब मेरी इच्छाए और पसंद विकसित हुई तो छोड़ दिया मुझे मेरे हाल पर।

उनकी पसंद तो मैं उनका और मेरी पसंद तो मैं पराया। सब अजीब सा था लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा। 'क्यों जीना था मुझे' एक ही सवाल था। तभी टीवी पर मुझे कुछ दिखाई दिया, वह थी थॉमस अलवा एडिसन की जीवनी।

कुछ कुछ अपने जैसी ही लगी उसकी जिंदगी। पढने में बिलकुल दिल नहीं लगता था। मैडम मारती रहती थीं और मैं शिकायत करता रहता था। माँ टीचर से जा के लड़ती रहती थीं और मैं अपनी किस्मत से।

बहुत पिटा था मैं अपनी पढाई के दिनों में, किसी शरारत के लिए नहीं, बल्कि होमवर्क न करने और याद न कर पाने के कारण। आजकल के नोबिता की तरह।

जिंदगी नर्क से कम नहीं थी स्कूल की। और कॉलेज कौन सा स्वर्ग था? आज कल के लड़के लडकियां तीसरी-चौथी क्लास में ही अपनी लव स्टोरी शुरू कर देते हैं और मैं लडकियों से डरता रहा। शायद इसलिए क्योकि मेरे जन्म के दो साल और दो महीने बाद से ही मेरा नर्क शुरू हो गया था बस मैं मानता नहीं हूँ। ऐसा इसलिए कयोंकि तब मेरी बहन पैदा हुई और समझो मैं मर गया।

कैसे? क्योंकि प्यार बंट गया। किसी को पहले सिर आँखों पर चढाओ और फिर अगर गोद में भी उतार लो तो वो पूरा घर सिर पर उठा लेता है।

शायद ऐसा ही मेरे साथ भी था। दूसरी क्लास से मेरा वजन बढ़ गया और डीलडौल भी। ये प्यार नहीं था, इस से पहले मैं हड्डियों का कंकाल था। घरवालों को पहले तो डर था कि लड़का ही पैदा नहीं होगा फिर ये कंकाल देख कर वो सिहर गए थे।

छोटी बहन से लड़ता रहता था, तब मैं समझदार नहीं था। फिर पता लगा की ये तो घर घर की कहानी है।
एडिसन कभी भी मेरे अन्दर मरे नहीं और आज भी जिन्दा हैं। मैं माँ-पिता की बेरुखी को अपनी किस्मत मान के खुद को अनाथ मानता रहा। और मैं बड़ा हो गया।
खुद को अपना ही माँ-बाप बना के मैं जिंदगी की सबसे ऊँची नीची पढ़ाई की सीढ़ी चढ़ता गया। स्नातकोत्तर के बाद दो व्यावसायिक डिप्लोमा भी किये।

लोगों के कहने पर प्रतियोगी परीक्षा में भी बैठा लेकिन रूचि न होने के कारण सफल न हो सका। बी.एड. की प्रवेश परिक्षा अपनी बहन की देखा देखी में दी और 200 में से 170 अंक हासिल किये। attempt तो 189 ही किये थे। खास बात थी की मैंने कोई तैयारी नही की थी।

मैंने फीस के 51250₹ जमा कर के बी.एड. छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि मुझ से इतने ही रूपये और मांगे गए परीक्षा फ़ार्म भरने के लिए। कॉलेज था, जुगल किशोर डिग्री कॉलेज, गवां, बदायूँ।

मैं पागल नहीं था जो ये मांगी जाने वाली रिश्वत से अपनी जिंदगी में एक बड़ा दाग लगाऊं। लेकिन सब ने मेरे त्याग को मेरा पागलपन कहा। सब बुरे थे। आप खुद सोचिये 51250₹ खोना बुरा है या 100000₹ खोना? ऐसा बी.एड. जिसमें आपको वहां पढने की जगह घर पर पढने को कहा जाए और जहाँ सब पैसों से ख़रीदा जा सकता हो वहां पढ़ाई नहीं शौपिंग की जाती है।

मैं शौपिंग ऑनलाइन करता हूँ। ऑफलाइन तो अभी तक पढ़ाई ही की है।

मैं अभी भी लगा हुआ हूँ कुछ अनोखा और useful बनाने में जिसका इस्तेमाल करके लोग अपने इंसान होने पर और गर्व कर सकें।

मैं लोगों को अमीर बनाना चाहता हूँ और खुद को भी। मेरे ख़याल से अमीर दो तरीकों से बना जा सकता है। एक खूब धन कमाओ और उसे अमीर दिखाने वाली चीजों को खरीदने में खर्च करो; और दूसरा, अमीर बनाने वाली वस्तुएं कम दामों पर ले ली जाएँ।

आप को दूसरा तरीका कैसा लगा? ओह! फिर से नकारत्मक विचार, की फिर क्वालिटी में समझौता करना पड़ेगा जैसे चाइना का सामान। है न? मैं भी जानता हूँ की हम क्या चाहते हैं। मैं भी आप में से एक हूँ। अभी वस्तुएं महंगी इसलिए हैं क्योंकि तक्नीक पुरानी है। तकनीक बदल दूंगा तो क्वालिटी पर कौन सा फर्क पड़ेगा?
जैसे ऐ.सी. बहुत गर्मी पैदा करता है बाहर के वातावरण में और बहुत बिजली इस्तेमाल करता है। महंगा भी है और महंगा भी पड़ता है। क्यों न इसकी तकनीक में सुधार किया जाय या कुछ नया बनाया जाए? कैसा रहेगा अगर वो साधारण इन्वेर्टर से भी घंटो तक चले?

अपने विचार मुझ तक पहुँचाइये और मैं आप तक पहुँचाऊगा आप के सपने।

"गरीब इतना कि मैं सबको खुश न कर सका,
अमीर इतना कि जहां की हर खुशी खरीद ली।" ~शुभ्

Hi I’m a nature lover and Vegan. I believe in the power of Science & Technology and have the ambition of becoming one of the internationally reputed scientists/professors. I’m a good dreamer, believe in the beauty of my dreams and work hard to achieve them. I’m not that ntelligent but am a sincere and very confident person and believe in “Heartily & Honestly Hard Work can Evolute any Life” however, I like to make good friends and believe that friends earned in one's life are a treasure.I also like to mingle with like minded people in the society. I like to get involved in some social activities when I don’t do any science. I feel great pleasure when I help someone and make him/her happy. I believe “no one is perfect human being" However, one can achieve perfection by developing good human values.

Disclaimer: All of above is work of fiction!

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