आदिमानव विवाह के बिना ही सभ्यता को यहाँ तक ला सके।
अब जब विवाह है तब जाति/धर्म/भेदभाव/सम्मान और रक्तसम्बंधों से जुड़ी नफरतों ने बस हत्या और नफरत ही की है। प्रेमियों को मौत की सज़ा दी जाती है तो सोचिये नफरत करने वाले कितने होंगे और मजे में तो पक्का होंगे।
आदिमानव यह अनजाने में करता रहा लेकिन आज आप वैज्ञानिक सोच से उस सत्य को स्वीकार करके भी उससे कुछ अच्छा सीख सकते हैं। शुरुआत में हम लोग ज्यादा नहीं सोचते और सामान्य जीवन जीते हैं लेकिन फिर हम धर्मों के गुलाम हो जाते हैं और फिर हमें आदिमानव दिखना बन्द हो जाता है।
धर्म उसका वजूद ही मिटा देता है, केवल विज्ञान उसे जीवित रखता है। कमाल की मूर्खता है न विद्वान होने का दम्भ भरते मानव की कि सारी दुनिया में काल्पनिक धर्म का बोलबाला है और हम खुद को आधुनिक कहते हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? दुनिया का लगभग हर व्यक्ति इसकी बेड़ी में जकड़ा हुआ है। केवल विज्ञान ही हमें आदिमानव और डायनासौर दिखा सका जिससे हम जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को समझ कर सत्य और असत्य में भेद कर सके। ~ तपस्यारत शुभाँशु 2018©
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