Zahar Bujha Satya

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शनिवार, जनवरी 11, 2020

स्त्रीसूचक अपशब्दों की जड़ और काट ~ Shubhanshu




समाज में लड़की के पैदा होने से पहले ही महिला को समस्या समझा जाता है क्योंकि विवाह नाम की संस्था खर्चे मांगती है। लड़का होगा तो उसकी पत्नी पैसा देगी और लड़की हुई तो उनको देना पड़ेगा। लड़की परिवार के लिए एक आर्थिक और सामाजिक दंड की तरह होती है। और इसकी एकमात्र वजह है विवाह की अवधारणा।

इसमें ऐसा इसलिये है क्योकि महिला को खाना कम देकर पुरुष से कमज़ोर बनाया जाता है। बड़े काम के लिए उसे कमज़ोर बोल के मांसपेशियों को कमज़ोर रखा जाता है। कारण सिर्फ यही है कि जब उसका पति उसे पीटे तो वो उसका मुकाबला न कर सके। 

बच्चा होता है तो लड़के का होता है। उसका वंश चलेगा, वो मर्द साबित होगा। महिला 9 माह जीवन नरक बनाये और फिर गोद में लादे, अपना बाकी का जीवन भी नरक बनाये सिर्फ इसलिये क्योंकि उसे लड़के के पिता के बनाये घर में रहना है। क्योंकि उसका खुद का कोई घर ही नहीं है।

फिर इस तरह से मजबूर स्त्री जब बार बार लड़की पैदा होने पर या बांझ हो जाने पर अकेली छोड़ दी जाती है तो इस तरह की कंडीशनिंग से कमज़ोर पड़ी महिला बलात्कार और वैश्यावृत्ति के जाल में डाल कर मजे के लिये इस्तेमाल होने लगती है। और इस धंधे को वो अपनी इच्छा से भी करे तो उसे ही खराब बताया जाता है क्योकि उसका कोई पति नहीं है। है तो इस लायक नहीं है कि कमा कर खिला सके।

मर्द द्वारा महिला को पालना है ये नियम समाज में बना है। जो मर्द न पाले वो गलत और जो महिला मर्द को छोड़ आये या मर्द छोड़ दे तो महिला दोषी क्योंकि उसने किसी भी तरह झुक कर क्यों नहीं मना लिया पति को?

अब इस दुनिया का तो नियम ही है कि कमज़ोर को कोई नहीं छोड़ता तो महिला को कमज़ोर बना कर उसे नीचा दिखाया जाता है और फिर जो नीच है उसे गन्दा बोलना पड़ेगा। कोई तो इसे नरक का द्वार बोलेगा तो कोई माहवारी को लेकर ही उसे गन्दा बता देगा।

सब कुछ ये समाज है जिसने मिल कर नारी का गला घोंटा है और फिर उसके जननांगों को फूहड़ भाषा में केंद्र में लेकर उसके पालने वाले (पति,पुत्र,पिता) को अपमानित किया जाता है तो यही दर्शाया जाता है कि मर्द में ताकत नहीं जो अपनी महिला की रक्षा कर सके। इस बात में 'अपनी' महिला एक सम्पत्ति की तरह है और उसके अंग कीमती सामान की तरह जिसे इज़्ज़त बोलते हैं समाज के लोग जो लूटी जा सकती है और इससे महिला मरे या जिये उसके पालक का ही अपमान होगा ऐसा सोचा जाता है।

तो मूल क्या है? मूल है महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होना। विवाह करके मर्द के धन पर आश्रित हो जाना। जिम न जाकर, पेट भर आयरन/प्रोटीन युक्त भोजन न करके, मार्शल आर्ट न सीख कर साधारण पुरूष से कमज़ोर बने रहना और ऐसा पुरुषों की बलपूर्वक आज्ञा पालन से ही सम्भव हुआ है।

इन कारणों को खत्म कर दीजिए। स्त्री सूचक गाली बन्द हो जाएंगी। और न सिर्फ ये बन्द होंगी बल्कि हर समाज की बुराई खत्म हो जाएगी जो कहीं न कहीं महिलाओं से जुड़ी होती हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020 ©

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