Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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गुरुवार, जुलाई 26, 2018

ज़हरबुझा खुलासा: धर्म और विज्ञान

कृपया अपनी अक्ल और मेहनत से अपना जीवन खुशहाल बनाइये।

जादू-टोने-पूजा-पाठ-नमाज-भजन-अरदास-प्रार्थना-आत्मा-पुनर्जन्म-नर्क-जन्नत-हूर आदि बकवास में अपना धन व समय बर्बाद करके खुद को और गड्ढे में न धकेलें।

यह मानसिक रोगियों के दिमाग में पैदा होने वाले हेलुसिनेशन होते हैं जो सकेज़ोफ्रेनिक लोगों को वास्तव में दिखते हैं। उनके चक्कर में आप तो पागल न बनिये।

दिमाग को क्षतिग्रस्त करने के लिये विशेष अगरबत्ती/धूप/यज्ञ आदि पारा व नशा मिश्रण करके बनाई जाती है जो सांस के रास्ते दिमाग में जाकर उसे क्षतिग्रस्त कर देती है और आपको अजीब अजीब अनुभव होने लगते हैं।

धार्मिक स्थलों पर अगरबत्ती का और कोई उद्देश्य नहीं है। प्रशाद इत्यादि में कम मात्रा में अफीम मिली होती है ताकि आप इसके तलबगार होकर बार बार आएं।

इसके अलावा बौद्ध सन्यासी एक फूल का प्रयोग भी इसी कार्य के लिये करते हैं। यदि आप इन बाबा-गुरु के पास जाते हैं तो वे आपको इसी प्रकार की चीजों से भृमित कर देते हैं और आपके मस्तिष्क को हमेशा के लिये क्षतिग्रस्त करके बर्बाद कर देते हैं।

जिन लोगों को भूत दिखते हैं, आत्मा/ईश्वर/जिन्न दिखता है वे सब अब कभी ठीक नहीं हो सकते। उन पर भरोसा न करें। वे कह तो सत्य रहे हैं लेकिन उन्होंने यह सब दिवास्वप्न में देखा है। जो मैं सोते समय देखता हूँ। मैं अपना स्वप्न आपको सुनाऊं तो वह lie detector में भी पास हो जायेगा।

ऐसे ही जो घोस्ट बस्टर आपको तरह तरह के उपकरण लेकर भूत ढूंढने, पॉजिटिव-निगेटिव ऊर्जा की बकवास करते दिखते हैं, वे भी पृथ्वी के गर्भ में होने वाली तरल कोर की गतिविधियों से दिमाग पर होने वाले और वस्तुओं के अपने आप हिलने डुलने (स्टैटिक एनर्जी) क्रियाकलापों को ही नापते हैं। साथ ही यह उनका धंधा है तो मनोविज्ञान का दुरुपयोग तो करेंगे ही। अगर मुफ्त में भी करते हैं तो यह उनका सेम्पल होगा या इनको कोई धार्मिक स्थल मदद दे रहा होगा।

कभी सोचा है कि कैसे केवल धर्म विशेष के व्यक्ति पर चढ़े भूत पर धर्म विशेष के चिंन्ह का ही असर होता है?

अब इतना हमने समझाया। थोड़ा खुद भी समझो। वैसे भी यह पोस्ट बुद्धिमान/MBBS/मनोचिकित्सक/वैज्ञानिक और रिसर्च करने वालों को ही समझ में आएगी। और हाँ उनको भी जिनकी मैंने पोल खोली है। ~ रहस्यमयी ज़हरबुझा Shubhanshu का भूत। 😁👊😬

बुधवार, जुलाई 25, 2018

लोकतंत्र और साम्यवाद में अंतर

लोकतंत्र में और साम्यवाद में समानता है। साम्यवाद में अमीरों से धन लेकर गरीबों को सुविधाएं दी जाती हैं।

लोकतंत्र में भी यही हो रहा है। अमीर लोग टैक्स भरते हैं और गरीब लोग मुफ्त में सुविधा लेते हैं उस धन से।

ज्यादा फर्क नहीं है। बस साम्यवाद में तानाशाही के कारण ज्यादा नुकसान पहुँचाया जाता है योग्य को। अयोग्य को सुविधा देने के लिए। चीन जैसे देश में कोई अमीर नहीं हो सकता। मानवाधिकार का उल्लंघन होता है और आप अपना हक नहीं मांग सकते।

इससे देश प्रारम्भ में तो सुविधा मय हो जाता है। जीवन सरल और सस्ता हो जाता है लेकिन दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होते क्योकि लोग बड़ा करने का सपना देखना बन्द करके आलसी होने लगते हैं। वे जान जाते हैं कि अयोग्य बने रहने पर भी उनको सरकार खिलाएगी।

उनकी 80% कमाई कम्युनिस्ट सरकार अपने अनुसार इस्तेमाल करती है। वहाँ लोकतंत्र नहीं है। किसी की कमाई पर कैपिंग लगाना मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन है जिसकी शिकायत करने पर देश पर UN द्वारा विश्वयुद्ध भी शुरू किया जा सकता है। यानी आप वहाँ अधिक कमाई करके भी अमीर नहीं हो सकते और यह व्यवस्था कभी भी ध्वस्त की जा सकती है। ~ VSSC 2018©

मंगलवार, जुलाई 24, 2018

तेली

न तो मैं किसी राजनैतिक पार्टी का पक्षधर हूँ और न ही विरोधी। कभी भी किसी की भी गलती पकड़ के खाल उधेड़ सकता हूँ। तेल गर्म कर रहा हूँ। ज़ल्दी डलवाने के लिये सम्पर्क करें। खाल उधड़ने की गारंटी। सुई धागा साथ रखें। सिलने के काम आएगा।

आपका अत्याचारी शिष्य,
कूट नाम: VSSC, 2018©
Ph.D in अपराध विज्ञान
LLB, मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक®

"हत्या करके कैसे बचें" पुस्तक (best seller) के लेखक।

Note: अपने कपड़े खराब न करें। नँगे ही आएं।

शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

स्वाभिमान और घमण्ड के अंतर को समझिये

हमारे 2 मित्रों को लगा कि मेरी एक post से मेरा, मेरे ज्ञान पर घमण्ड झलक रहा है लेकिन साबित नहीं कर सके। उसमें लिखा था कि मुझे सिखाने का प्रयास न करें बल्कि सीखने का प्रयास करें। इसी कड़ी को समझाने के लिये एक अन्य post किया गया था कि जो सीखने की इच्छा से जुड़ते हैं, मैं उनसे बहुत कुछ सीखता हूँ लेकिन जो सिखाने की इच्छा से जुड़ते हैं उनको दूर से अलविदा।

अब जो मैं देख रहा हूँ वह सभी नहीं देख पाए इन posts में। अब या तो यह सिखाने वाले हैं जो इनको बुरा लगा या फिर इनको पता नहीं कि घमण्ड और स्वाभिमान क्या होता है। मैंने इन दोनों के मध्य अंतर मेरी फ़ोटो एलबम में समझाया हुआ है। घमण्ड/arrogance और स्वाभिमान/self-respect देखने में एक से लगते हैं लेकिन वे विपरीत होते हैं। एक में बिना परिचय के ही दूसरे को तुच्छ कहा जाता है और दूसरे में सिर्फ गलत को नकारा जाता है। नकारात्मक लोगों और विचारों को अनदेखा किया जाता है।

अब जिनको मेरे वे शब्द बुरे लगे उनको दोबारा सोचना चाहिए कि जबरन सिखाने वाला घमण्डी होता है या जबरन सीखने से मना करने वाला? याद रखना आपने आपत्ति करके खुद को ज्ञानी साबित करना चाहा है। यही है जबरन सिखाने वाले घमण्डी की पहचान।

ज्ञान पर घमण्ड किसलिये कोई करे? ज्ञान तो पहले से मौजूद है। हासिल कर लेना बड़ी बात नहीं। कोई भी कर लेगा। फिर उस पर घमण्ड किस लिए? हाँ लेकिन बुद्धिमान (IQ लेवल) पर स्वाभिमान अवश्य रखा जा सकता है और मैं स्वाभिमानी हूँ कि अपने काम को स्वयं कर लेता हूँ। बार-बार दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाता बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उनसे स्वयं हाथ जोड़ कर मदद मांग लेता हूँ। ~ V. Shubhanshu SC, 2018©

मनुवादियों ने बाबा साहेब को भी नहीं छोड़ा

Dr. भीम राव अम्बेडकर की कांवड़ यात्रा निकालता उनका एक भक्त।

शुक्रवार, जुलाई 06, 2018

भक्तों से प्रश्न

चलो अनपढ़ ऋषियों ने ब्रह्मा के प्रताप से उतपन्न हुए योगबल से ग्रँथ रचना कर डाली। ये योगबल क्या है?

और गजब, नबियों ने बिना किसी योगबल के ही ग्रँथ रचना कर डाली कबीर की तरह बिना लिखाई पढ़ाई करे।

यह तो चमत्कार हैं। क्या आप धार्मिक लोग चमत्कार में विश्वास रखते हैं? योगबल या ईश्वर से स्थानीय ज्ञान का अलग-अलग लिपि और भाषाओं में सीमित क्षेत्र के लिये अलग-अलग ज्ञान देना सम्भव है?

महात्मा बुद्ध की कहानी में बुद्ध को बैठे-बैठे ज्ञान प्राप्त हो जाता है। जिसके कारण वे त्रिपिटक लिख देते हैं। क्या यह ज्ञान उन्हीं ऊपर वाले लोगों की तरह नहीं था?

यदि था तो आप इस विवरण से क्या निष्कर्ष निकालते हैं? मुझे बताएं। धन्यवाद!

भक्तों आपके उंगली नहीं कर रहा हूँ बस जानकारी देकर मुझे प्रभावित करने का प्रयास करें। आपका ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018© 👀👅💋

सरकारी व निजी शिक्षा का राष्टीयकरण

सरकारी शिक्षा मुफ्त है इसलिये उससे कोई लाभ नहीं मिलता। जबकि निजी शिक्षा स्थल व्यापार के लिये खुले हैं। उनको ज्यादा माल (डोनेशन/फीस) चाहिए तो वे ज्यादा बेहतर प्रोडक्ट देते हैं। सरकारी विद्यालय बस काम चलाने भर का खर्च करते हैं क्योकि जनसँख्या ज्यादा है और टैक्स कम मिलता है। जो मिलता है वह मुआवजे, और सेना को दे दिया जाता है हथियार खरीदने के लिये। बाकी सरकारी तनख्वाह के रूप में कामचोर सरकारी कर्मचारी खा जाते हैं।

सरकार को सभी सरकारी स्कूलों की ज़मीन निजीकरण के ज़रिए राष्ट्रीयकृत कर देनी चाहिए ताकि निजी हाथों में बच्चो का बेहतर भविष्य बन सके। सरकार से अकेले यह सब नही हो पाएगा। निजी निवेश करके वह इस समस्या को हल कर सकती है। जैसे अन्य कई चीजों का निजीकरण करके बेहतर सुविधाएं दी जा सकीं उसी तरह सरकारी विद्यालयों का भी उद्धार हो सकता है। ~ शुभाँशु 2018

गुरुवार, जुलाई 05, 2018

बहन

कहानी: श्रीमान वीगन शुभाँशु सिंह चौहान जी।

मेरी एक दोस्त थी। वह पहले बहुत ही संकीर्ण विचारधारा की थी। उसने मिलते ही मुझे भैया कहना शुरू कर दिया। मैंने उससे कहा कि अपने पापा से कहकर पहले मुझे गोद लेकर जायदाद नाम करने की कार्यवाही तो करवाओ लेकिन वह बोली, "नहीं। आप को मैं भाई ही कहूंगी। कारण मैं नहीं बता सकती।"

मैंने सोचा, कोई बात नहीं। यार, कुछ लोग होते हैं डरपोक। होने दो। अभी हिम्मत नहीं है खुल कर जीने की तो कोई बात नहीं।

मैंने उसको उसी रूप में स्वीकार कर लिया। हम अब जब भी मिलते मैं उसको उसके नाम से बुलाता और वो मुझे भाई कह कर। धीरे-धीरे मैं भी घुलमिल गया। अपनी बहन से जैसे सब बातें करता था उससे भी करने लगा। जैसे आज फलाँ लड़की ने मुझे गले लगा लिया, फलाँ ने किस ले लिया आदि।

कभी-कभी लिपिस्टिक भी लगी रह जाती और मैं बताना भूल जाता तो वह टोक देती। तब उससे ही पुछवाता था मैं लिपिस्टिक। वह कारण पूछती, डांटते हुए, जैसे मेरी अम्मा हो। मैं बता देता कि मैं एक ग्रुप में सबको हंसा रहा था कि उसमें से एक खूबसूरत लड़की किस लेकर भाई गयी। पता नहीं कौन थी।

वह बहुत अजीब सी हालत में पहुँच जाती। कभी-कभी कहती कि उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है और यह कह कर वह चली जाती।

लेकिन मैं समझ न सका। मैं उसे अब बहन की ही तरह ट्रीट कर रहा था। हर अंदर की बात खुल के उससे कह देता था लेकिन वह पता नहीं क्यों असहज हो जाती थी।

जब बाकी लड़कियाँ मुझे मेरे नाम से बुलातीं और हाथ मिलाती थीं तो वह मुझे ऐसे देखती थी जैसे मैने कोई गलती कर दी हो। लेकिन मैंने सोचा कि यह तो मेरा हाथ भी अपने हाथ से छूने नही देती। शायद इसीलिए इनकी संकीर्ण सोच का परिणाम है वह बात तो मैं अनदेखा कर देता था।

लेकिन अब बात बढ़ने लगी। वह और लड़कियों को मेरे साथ देखती तो नज़रें फेर लेती और अगर लड़कियां मेरे पास आ जातीं तो वह चली जाती बिना कुछ बोले।

उसका बोलना भी बहुत कम हो गया। कभी-कभी उसकी मिसकॉल आती लेकिन काल back करता तो वह काट देती थी। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में।

एक दिन लाईब्रेरी में हम दोनो साथ में चुपचाप बैठे किताब पढ़ रहे थे। अचानक उसका हाथ मेरे हाथ से छुआ। मुझे झुरझुरी सी आ गई। मैंने घबरा कर हाथ झटक दिया तो वह सकपका गई। मुझे लगा कि गलती से टच हुआ था।

वह हंसने लगी। तो मैं वापस बैठ गया। उसकी हल्की सी आवाज आई, "सुनो शुभ।"
"ह हाँ, कहो क्या हुआ?" मैं हड़बड़ा कर बोला।
"धीरे...बोलो।" इतना कह कर वह अपनी सीट मेरी सीट के एक दम करीब ले आई। मुझे लगा कि लाइब्रेरी में शोर न हो इसलिए वह ऐसा कर रही है।
"यह बताओ, तुम तो रोज न जाने कितनी लड़कियों से हाथ मिलाते हो और मेरे हाथ की छुअन से इतना क्यों घबरा गए?"

मैंने सिर झुकाए हुए ही उसे पुतलियाँ ऊपर करके देखा और बोला, "तुमने ही मना कर रखा है, तो कहीं गलती मेरी तो नहीं थी? यह सोच कर मैं घबरा गया था। बस।"
"और तो कोई बात नहीं है न?"
"नहीं और कोई बात नहीं है।"
"तो क्या मैं आज से तुमसे हाथ मिलाया करूँ?"
"हाँ, क्यों नहीं? लगता है तुम बदल रही हो।"
"नहीं। वह बस ऐसे ही। सोचा कि इसमें समस्या ही क्या है? जब तुम और दूसरी लड़कियों को नहीं है समस्या, तो मैं फिजूल में ही इतने टाइम तक इसे गलत समझती थी। ही ही ही।"

मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि अब वह अपनी सोच में खुलापन ल्ला रही थी। तभी उसने अचानक ही अपना हाथ, मेज के नीचे की आड़ में आगे बढ़ाया। मैंने देखा, उसकी आँखों में ऐसा कुछ था जैसे वह बहुत बड़ा काम करने जा रही थी। उसके हाथ में हो रहा कम्पन, उसकी एक हिलती टांग, उसकी घबराहट, जोश और हिम्मत उसका सच बोल रहे थे। कितनी दूर रही होगी वह विपरीत लिंग से? यह सोच कर बहुत अफसोस सा हुआ।

मैंने अपना हाथ धीरे से आगे बढ़ाया और उसने जैसे ही हाथ करीब आते देखा, अपनी आंखें बंद कर लीं। मैंने हल्के से उसके हाथ से अपना हाथ मिलाया और मुझे भी पहली बार उसकी छुअन महसूस करने के कारण झुरझुरी चढ़ गई।

लेकिन उसकी वह हिलती टांग पहले रुकी, फिर हाथ का थरथराना लेकिन होठ थरथराने लगे। उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर और मजबूत हो गई और उसकी हथेली के पसीने के कारण मेरा हाथ फिसलने लगा।

तभी लाइब्रेरियन करीब से गुजरी। उसे देख कर मेरी दोस्त (तथाकथित बहन) A ने अपना हाथ झटके से खींच लिया। लाइब्रेरियन को पता न चला।

वह उठी और वॉशरूम चली गई। थोड़ी देर बाद जब वह वापस आई तो तरोताज़ा लग रही थी। उसने चलने का इशारा किया और फिर हम लोगों ने अपने-अपने बैग उठाये और बुक्स वापस करके अपने-अपने icard वापस ले लिए।

लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगा जैसे अब तो हद हो गई। अब वह आये दिन मेरा हाथ ही पकड़े रहती। चलते-चलते हाथ पकड़ कर चलने लगती तो अजीब लगता कि सिर्फ हाथ मिलाने की बात हुई थी न?

एक् और अंतर आया उसमें। अब वह जब दूसरी लड़कियों को मुझे दूर से बुलाते देखती तो मेरा हाथ कस के पकड़ लेती और जाने नहीं देती। कई बार तो मुझे उसका हाथ झटकना भी पड़ गया क्योकि बेकार की ज़बरदस्ती मुझे पसन्द नहीं।

मैं लड़कियों को स्प्ष्ट देखना चाहता हूँ। मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा मुझे पसन्द नहीं। मैं जब कुछ नहीं छिपाता तो आपको भी नहीं छिपाना चाहिए।

एक दिन और बड़ी हद हो गई। जब एक लड़की मुझसे बहुत हँस-हँस के बात कर रही थी (मैं उसे हँसा रहा था) तभी न जाने वह कहां से निकल आयी और मेरी बगल से आकर मेरी बायीं बाहं में अपनी बाहं डाल कर खड़ी हो गई। मैंने धीरे से उससे अपनी बाहं छुड़ाई और उसे हैरत भरी नज़र से देखा तो वह हंसने लगी।

पहले वाली लड़की सकपका के बोली, "मैं बाद में मिलती हूँ, ठीक है शुभ्? Bye!"
"Bye तारा!"
"यार यह अचानक तुमने क्या हरकत करी उसे देख के?"
"अरे, तो क्या हो गया?" वह कुटिल मुस्कान के साथ बोली।
"हुआ कुछ नहीं बस तुम तो मुझे छूने से भी डरती हो तो आज यह इतना कैसे चिपक गईं?"
"तुमको बुरा लगा क्या? आगे से ध्यान रखूंगी मैं। ok? Bye!"
"अरे, यार तुम भी न। छोड़ो, भूलो उसे। मुझे कुछ बुरा-वुरा नहीं लगा। बस मैं shocked हो गया था। अब ठीक लग रहा है।"
"मतलब अब मैं तुम्हारे हाथों में हाथ डाल सकती हूँ?"
"अरे...यार यहाँ सबके सामने ऐसे ठीक नहीं और तुम मुझे भाई बोलती हो उसका भी तो ख्याल करो न?" यह सुन कर वह एक दम अपसेट हो गई। फिर बोली, "तो क्या एक बहन ऐसे अपने भाई को नहीं छू सकती?"
"न...न...तुम गलत समझ रही हो यार। अब देखो वह रवि खड़ा है। क्या तुम उसे अपना भाई बना सकती हो?"
"हाँ, क्यों नहीं।"
"फिर उसके साथ ऐसे ही घूम सकोगी?"

इस बात पर उसने नज़रें झुका लीं।

"यही, कह रहा था मैं। तुम ठीक से झूठ तक तो कह नहीं पाती हो।"

यह सुनकर उसने एक दम मेरे चेहरे को देखा और रुमाल निकाल कर आंसू पोछते हुए जाने लगी। मैं वहीं खड़ा रहा। उसे जाते देखता रहा। वह न रुकी और नज़रों से ओझल हो गई। क्रमशः
2018/07/05 07:18
Author ~ Mr. Vegan Shubhanshu Singh Chauhan, 2018©

रविवार, जुलाई 01, 2018

बढ़ती आदमखोरी: कारण पशुभक्षी जीवनशैली?

मानव मांसभक्षियो की पीढियां अब जड़ें जमा रही हैं। wrong turn movie सीरीज और the valley has eyes सत्य घटनाओं पर आधारित है। cannibal holocaust किसी परिचय की मोहताज नहीं है। henny bell नाम की सीरीज तो एक शहरी डॉक्टर की इंसान को खाने की कहानी है। भारत में कई मानव भक्षी फांसी की सजा का इंतज़ार कर रहे हैं, निठारी कांड और अघोरी समाज भी परिचय का मोहताज नहीं है। जानवरो के मांस की आड़ में सदियों से मानव मांस बेचा जाता रहा है। लाखों लोग रोज गायब हो जाते हैं जो कभी नहीं मिलते। क्या पता वो किसी के पाचन तंत्र का हिस्सा बन गए हों। Shubh 2018©