मित्र:
शब्द भाव व्यक्त करने का माध्यम है। विज्ञान जिसे सिद्ध न कर सके वह अवैज्ञानिक नहीं।यदि कोई ये सिद्ध कर दे आत्मा नहीं तो जो सजा दो मंजूर है।लेकिन विषय तर्क से समझें।
१-मैंने इस विषय पर स्वयं कड़ा मंथन किया है ।
२-संभवतः अमेरिका के छात्र मृत्यपरांत आजीवन आत्मा को इंटरनेट सुविधा देने पर ऑफर दे रहे हैं बुकिंग भी प्रारंभ है लेकिन मैं इस संबंध में स्पष्ट नहीं हूँ।
३-नील बोहर की परमाणु परिकल्पना पढ़ो पता चलेगा।
४-गीता में दो श्लोक हैं एक में मोक्ष का विवरण है तो दूसरे में आत्मा अजर-अमर है।
५-मोक्ष का अर्थ मुक्ति अर्थात आत्मा की मृत्यु तो जहाँ दूसरा है वहाँ आत्मा अमर है।
६-ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती अर्थात एक ऊर्जा दूसरी ऊर्जा में परिवर्तित होती है मतलब अजर-अमर।दूसरा संदर्भ लकड़ी जलकर नष्ट होकर कोयला बनीं मतलब एक की मृत्यु दूसरे का जन्म अर्थात मोक्ष।
७-जब शारीरिक ऊर्जा शून्य में विलीन होती है तब आत्मा मोक्ष की ओर प्रस्थान करती है।विपरीत जब शारीरिक ऊर्जा अपने चरम पर हो और शरीर पर प्राणघातक हमला हो तब वह उससे निपटने के लिए इतनी ऊर्जा का प्रयोग करती है कि एक सैकेंड के करोड़वें हिस्से में हमारे दिमाग(मशीन)को इतनी बाह्य ऊर्जा मिल जाती है कि वह आत्मा अर्थात दिमाग के उत्पाद सोच,मन,आत्मा इत्यादि को प्रकाश के रूप में बाहर फैंक देता है।
शेष आपकी जिज्ञासा पर---
शुभ:
ऊर्जा का कोई न कोई स्रोत होता है और उस ऊर्जा से कोई न कोई रूपांतरण होता है तभी कार्य होता है। जैसे श्वसन से ग्लूकोस का दहन होने से CO2 और ऊर्जा निकलती है जो तुरन्त शरीर में कार्य में खर्च हो जाती है। फिर हम अगली सांस लेकर इस क्रिया को चलाते रहते हैं। हम दरअसल एक मोटरसाइकिल के इंजन की तरह दहन करके ही ऊर्जा प्राप्त करते और इस्तेमाल करते हैं। अगर सांस रोक दी जाए तो ऊर्जा का उत्पादन रुक जाएगा और मृत्यु हो जाएगी।
ऊर्जा मानव में नहीं होती। ऊर्जा के लिये वह भोजन करता है। श्वशन करता है। उससे ऊर्जा उतपन्न होती है और हम उसे कार्य करने में लेते हैं। ऊर्जा के रूप में आप पहले से ही आत्मा की ही बात कर रहे हैं न कि वास्तविक ऊर्जा की। ऊर्जा स्वतन्त्र नहीं रह सकती। उससे कार्य होता है या वह बैटरी की तरह नहीं है। बैटरी परिपथ पूंर्ण होने पर अभिक्रिया करके इलेक्ट्रॉनिक धारा पैदा करती है।
ऊर्जा के प्रकार मुख्यतः 2 हैं गतिज और स्थतिज।
रासायनिक ऊर्जा एक कल्पित स्थिति है जो परिपथ के पूर्ण होने पर ही धारा प्रवाहित करती है।
एक और छोटी सी बात। आपातकाल में adrenaline हार्मोन तीव्र मात्रा में निकलता है और इंसान को महामानव बना देता है। इसका उदाहरण आप क्रेंक फ़िल्म में देख सकते हैं। इस हार्मोन का प्रयोग dope टेस्ट में पोसिटिव है। यानी इसका कृत्रिम रूप epinephrine एक ड्रग के रूप में दर्ज है।
आपातकाल में शरीर हमें यह अपने आप देता है और शरीर भयानक ऊर्जा उतपन्न करके इन्सान की हड्डियों की सामर्थ्य तक बल प्रयोग करवा देता है।
बात ख़त्म। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©