कुछ आदतें यदि बाल्यकाल से ही अभ्यासित न की जाएं तो वे ज़िद्दी हो जाती हैं। जैसे:
1.कपड़े पहनना जबकि अभ्यास से बहुत लोग बर्फ और तपती गर्मी में भी नग्न रहने में सफल हुए हैं। प्रारंभ में तो सब नग्न ही थे। गुप्तांग सबके होते हैं उनको खरोंच से बचाने का तर्क बेकार है क्योंकि तब आप झाड़ियों में घुसोगे ही नहीं।
2.चप्पल पहनना जबकि आदिवासी बिना चप्पल के ही पैरों को कठोर हो जाने देते हैं।
3.कमर-जांघ की मांसपेशियां का कठोर होना। अभ्यास से इनको तोड़ा और लचीला बनाया जा सकता है।
4.पका भोजन खाना और कच्चा खाने पर पेट दर्द होना। अभ्यास करके हम पेट को वापस मजबूत बना सकते हैं। किटाणु रहित करने के लिये पोटेशियम परमेगनेट से धुलें।
5.संस्कृति यानी जो बड़ों ने कहा उसे आंखें मीच के मान लेना। यह भी न सोचना कि क्या वह आपके समय और व्यक्तिव पर लागू होता है या नहीं।
6.धर्म यानि संस्कृति का मूल तत्व। इसी से प्रेरित होकर मानव खुद को दूसरे धर्म/संस्कृति से अलग दिखाने और खुद को श्रेष्ठ महसूस करने का एक आकर्षक प्रपंच रचता है। यह दूसरे धर्म के लिये नफरत की जड़ बनता है और अपने ही धर्म के लोगों का इसके ठेकेदार शोषण करते हैं। इसकी अच्छाइयों से धोखा न खाइए। इंसानों/पशुओं मे अच्छाई और बुराई के लिये सहानुभूति और सबक नाम का गुण होता है जो उसे भलाई/बुराई की समझ देता है। उदाहरण, सभी जंतु (गर्म खून) आग, गहरे पानी (जलचरों को छोड़ कर) और ऊंचाई (पक्षियों को छोड़ कर) से डरते हैं। यह उनको कोई सिखाता नहीं है।
7.संगत, यानी आपके आसपास के मित्र/सहयोगी/साथी/पड़ोसी रूपी परोक्ष/अपरोक्ष शिक्षक। जब भी हम 1 से अधिक लोगों को एक सा व्यवहार करते देखते हैं तो वह हमारे मन पर गहरा प्रभाव डालता है। हम उसे बिना परखे अपना लेते हैं क्योंकि हमें वह आज़माया हुआ नुस्खा लगता है। यही सही हो तो अच्छा इंसान और अगर गलत हो तो बुरे इंसांनो को जन्म देता है।
जिनकी इच्छाशक्ति प्रबल होती है और जो दूसरों को सर्वोच्च नहीं मानते बल्कि खुद ही फैसले लेने के लिये खतरे उठाते हैं वही दुनिया में नई बातों, सिद्धान्तों, आविष्कारों, कलाकृतियों, कलाओं और अन्य ऐसी ही नई विधाओं, सुविधाओं का सृजन करते हैं। यह लोग सही को अपनाते और गलत का सदुपयोग करते हैं।
ये किसी से नफ़रत नहीं करते बल्कि उनका कहां इस्तेमाल हो सकता है, यह देखते हैं। यही श्रेष्ठता है। यही मानव और जंतुजगत के अजूबे हैं। यही भावी एलियन हैं जो अभी से इसी पृथ्वी पर उपेक्षित जीवन जी रहे हैं, उनके द्वारा जो उनकी धूल बराबर भी नहीं हैं। फिर भी वे उनको प्रेम करते हैं। यही तो है उनकी true beauty!
Love them! They are all your true wellwishers! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Irriligious Free thinker 2019© 12:13 PM
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