सभी धर्मों में घुलनशील बन जाना भी आपका धार्मिक होना ही है। सबका मालिक एक है बोलने वाले साई बाबा (चांद मोहम्मद) इसका प्रमाण हैं कि धार्मिक सद्भावना का होना आपको आस्तिक होने से नहीं रोकता। बल्कि सभी धर्मों को एक ईश्वर तक ले जाने वाले रास्ते की अवधारणा को पुष्ट करता है।
धार्मिक सद्भावना दरअसल एक खुली निर्गुण आस्तिक विचारधारा है। ये धार्मिक नफ़रत से तो लाख बेहतर है ही लेकिन ये केवल एक धर्मजातिमुक्त परन्तु निर्गुण आस्तिक के भीतर ही पाई जा सकती है। कबीर और अन्य बहुत से निर्गुण उपासक बहुत प्रचलित रहे हैं।
जबकि धार्मिक शब्द, धर्म (रिलीजन) के प्रति प्रेम पर आधारित है। ये प्रेम केवल अपने धर्म से हो तो स्वधार्मिक होगा और अगर स्वयं, विज्ञान व सहानुभूति/दया पर केंद्रित होगा तो वह होगा तर्कवादी ईश्वर जाति धर्ममुक्त। मैं ऐसा ही हूँ। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©
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