विद्वान: तुम नास्तिक हो का?
शुभ: जे का होय बाबू जी?
विद्वान: जो ईश्वर को न मानता हो।
शुभ: जे का होत?
विद्वान: जिसने ये दुनिया बनाई, जिसने तुम्हें और मुझे बनाया, जो सूरज, चांद और तारे को चलाता है। वही।
शुभ: अबे जे तो अपने आप चल रहा है। इसे कोई चला कैसे सकता है? अच्छा चलो किधर है? आपने देखा?
विद्वान: देखा तो नहीं लेकिन महसूस किया है।
शुभ: भैया, वो जब दिखता नहीं तो महसूस कैसे होगा? हवा होगी भाई। आपने छोड़ी होगी तो महसूस हुई होगी।
विद्वान: न न न वो गहन तपस्या से दिखता है। जिसे उसे ढूढने की इच्छा होगी उसी को दिखता है।
शुभ: तो जिसको सबसे पहले दिखा उसे किसने बताया कि तपस्या से दिखेगा?
विद्वान: खुद ईश्वर ने।
शुभ: अबे यार, जब ईश्वर दिखता नहीं, महसूस करने के लिए तपस्या चाहिए तो तपस्या से पहले कैसे मिल कर बता गया कि मैं कैसे मिलूँगा? यार दिखते तो ठीक हो फिर भी अक्ल आप में भी न दिख रही।
विद्वान: अरे, ये तो मैंने सोचा ही नहीं।
शुभ: और तो और ये बताइये वो ऐसा करेगा क्यों? खुद सीधे सामने आकर सब न मानने वालों को मनवा दे कि वो है भी। ये बकवास बातें करके आपको रोटी मिलती है क्या? कोई काम धंधा कर लो भाई। भूखे रहोगे तो खुद ही ईश्वर बन जाओगे। ऐसी बकवास बातों मे समय बर्बाद करके अपना मस्तिष्क खराब कर लिया आपने। हकीकत में जियो। कोई दुनिया नहीं चला रहा। चलाता तो चलाता ही क्यों? क्या ज़रूरत है इस सब की? क्यों पैदा कर के यहाँ मरने के लिये छोड़ दिया? है कोई आज तक जो सदा से ज़िंदा हो? नहीं न, इसलिए अपना जीवन जी लो। ये बकवास कल्पना को कोई न मानेगा अगर अक्ल होगी। और अगर मान भी लो कि कोई ईश्वर है भी, तो आपको उससे लेनादेना क्या है भाई? आप क्या उससे दुनिया अपने हिसाब से चलवा लोगे? 🤣 नमस्ते! और हाँ नास्तिक वास्तिक आपके गढ़े शब्द हैं। मैं हूँ धर्ममुक्त, पंथमुक्त, धम्ममुक्त, vegan, सभी फालतू विचारों से मुक्त, विज्ञानवादी, करोड़पति, तर्कवादी! तुम भी होते तो मजा आता! 😊 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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