Zahar Bujha Satya

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If you have Steel Ears, You are Welcome!

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सोमवार, दिसंबर 31, 2018

परग्रही का रहस्य भाग 3

बहुत दूर कही किसी दूसरे ग्रह पर...

महामंत्री: महामहिम, ये आप क्या सिर्फ एक ही इंसान के पीछे हाथ धो के पड़े हो? और भी तो हैं दुनिया में।
महामहिम: हाँ बहुत हैं उसके जैसे जो मुझ में यकीन नहीं रखते। लेकिन वो सिर्फ इसलिए क्योंकि वो मुझे अभी तक देख नहीं पाये। जिस दिन मुझे देखेंगे मुझमे उनका यकीं लौट आएगा।
महामंत्री: तो इस वाले में क्या ख़ास है महामहिम जी?
महामहिम: ये वाला खुद पर यकीं रखता है। मेरे होने न होने से उसे कोई मतलब ही नहीं। जैसे अपना मालिक वो खुद ही हो।
महामंत्री: ओह! फिर आप क्या करते रहते हैं उसी की ज़िन्दगी के साथ?
महामहिम: मैं उसे परेशान कर रहा हूँ। देखता हूँ कि उसका खुद से यकीं उठता है कि नहीं।
महामंत्री: लेकिन महामहिम कहीं ऐसा करने पर वो आप पर और नाराज न हो जाए कि आप जबर दस्ती उसे डरा कर खुद में यकीं दिलाना चाहते हैं।
महामहिम: तो क्या करूँ? इसे लॉटरी में जितवा दूँ या इसका जैक पॉट लगवा दूँ? लॉटरी ये खरीदता नहीं और कैसीनो इसकी हद में नहीं हैं। होते भी तो ये उधर नहीं जाता। फायदा करवाया तो ये अपनी ईमांदारी के चलते उसे डुबो देगा। फिर कहेगा कि ये उसकी मेहनत से नहीं था इसी लिए चला गया। क्या करूँ इसका?
महामंत्री: आप इसे इगनोर क्यों नहीं करते?
महामहिम: तुम बेवकूफ हो महामंत्री। यही वो लड़का है जो भविष्य में मेरी जगह लेने वाला है। यही है मेरा उत्तराधिकारी।
महामंत्री: फ़क! महामहिम जी मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ लेकिन क्या आपकी तबियत ख़राब है? वो चींटी जैसा लड़का आपकी जगह लेगा? आप पगला गए हैं, मुझे जनता से बात करनी होगी।
महामहिम: गधे। तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुझे धमका रहा है? पूरी बात समझे बिना मुझे पागल करार दे दिया, नालायक।
महामंत्री: माफ़ कीजियेगा महामहिम, जुबां फिसल गई। वो पहली बार आपको उस अदने से इंसान के आगे कमजोर पाया तो मैं यकीं नहीं कर पाया कि ऐसा भी हो सकता है। कह दीजिये कि आप मज़ाक कर रहे थे।
महामहिम: काश! कि हम मज़ाक कर रहे होते। भले ही उसको बनाने वाले हम ही है लेकिन वो हमारे तौर तरीकों से नहीं पला है। जब हमने उसेे दूसरों से हट कर व्यवहार करता पाया तो लगा कि हमारे सिस्टम में कमी है लेकिन फिर पता चला कि उसने सिस्टम ही बदलना शुरू कर दिया था। हमने उसके इस व्यवहार का पता पहले से लगा लिया था और हमने उसे दुनिया की सबसे बेवकूफ फॅमिली दी ताकि वो भी बेवकूफ बन जाए। लेकिन सब चौपट हो गया। वो उसी फूल फैमिली की बदौलत और बुद्धिमान बन गया। वो चीज़ क्या है मुझे समझ में ही नही आ पाया।
महामंत्री: लेकिन इस बात से क्या फर्क पड़ता है। उससे हज़ार गुना बुद्धिमान पृथ्वी पर पहले से मौजूद हैं, मैं यहां स्क्रीन पर उसके द्वारा दिए गए आई.क्यू. टेस्टस को देख रहां हूँ। ये तो एवरेज़ से थोड़ा ही ऊपर दिख रहा है। दुसरा इसने अभी तक कोई नौकरी की औसत बौद्धिक परिक्षा तक पास नहीं कर पायी है। फिर भी इसे आप बुद्धि मान कह रहे हैं? महामहिम जी जल्दी समझाइये।
महामहिम: रहे न तुम गधे के गधे ही न। परीक्षा इसलिए पास नहीं की क्योंकि उसने उन्हें अरुचि के चलते गंभीरता से कभी लिया ही नहीं और दूसरे ये आई क्यू भविष्य में किसी काम का नहीं रहने वाला। सिर्फ गणित और मैमोरी से कोई बूद्धिमान नहीं हो जाता। अभी से लोग आई क्यू से ज्यादा इ क्यू पर भरोसा करने लगे हैं। ~ Shubhanshu Singh Chauhan फरवरी 7 2015

परग्रही का रहस्य भाग 2

Author: V. S. S. Chauhan
परग्रही का रहस्य भाग 2

आप...आप लोग कौन हो? मैं स्वर्ग में हूँ क्या?

तुम्हारी ऐसे मौके पर भी मज़ाक करने की आदत नहीं गयी शुभ...अ...सर। मैं  √£¢€¥•∆π हूँ। मुझे भूल गए क्या?

हाँ, याद आ गया। तुम वही हो न जो उस डायमंड के आकार के यान में मिले थे?

जी हाँ सर। मैं वही हूँ। आज आपने खुद को इतनी बड़ी मुसीबत में डाल लिया था कि मुझे बीच में आना ही पड़ा।

नहीं आते तो क्या होता?

मेरे हिसाब से आप का ये शरीर नष्ट हो गया होता।

मतलब मैं मर गया होता?

हाँ कह सकते हैं लेकिन हकीकत में हम कभी भी नहीं मरते। बस शरीर बदल लेते हैं।

मतलब तुम भी पुनर्जन्म में यकीं रखते हो?

न न पृथ्वीवासी कुछ अलग तरह का पुनर्जन्म बनाये बैठे हैं। पिछले जन्म की बाते याद आ जाने को पुनर्जन्म नहीं कहते। पिछले जन्म की प्रव्रत्ति के बने रहने को पुनर्जन्म कहना चाहिए। देखिये पुनर्जन्म...

हाँ हाँ समझ गया। जैसे बच्चा पैदा होने पे 0 से शुरू करता है वैसे ही शुरू करे तभी तो हुआ जन्म का दोबारा होना।

बिल्कुल सही सर। यही मैं भी कहना चाहता था। पहले वाले पुनर्जन्म को रिकाल ऑफ़ लास्ट लाइफ मेमोरी कह सकते हैं। या पुनरस्मरण।

सही कहा दोस्त। अब बताओ मेरा पीछा क्यों कर रहे थे?

हम पीछा नहीं कर रहे थे। हम आप पर नज़र रखे थे। हाँ कुछ कुछ पीछा जैसा ही लेकिन आप के भले के लिए ही।

चलो भाई मैं इस लायक तो हूँ कि मेरा उस दुनिया में भी कोई ख्याल रखने वाला है।

हमेशा सर। आपके लिए तो सब कुछ। आप ही तो हमारी उम्मीद हो सर। आपके बिना हमारा और इन पृथ्वी वासियों का क्या होता। या क्या होगा?

मैं इतना ख़ास हूँ क्या?

आप और भी ज़्यादा हैं। आप जब इतना अनजान बनते हैं तो लगता है जैसे मज़ाक कर रहे हैं। लेकिन आप सही कह रहे हैं, आपको समय आने पर ही पता चलेगा कि आपको क्या करना है। अभी तो आप वो करें जो आपको करने का मन करे। हम आपको वापस आपके ऑफिस ले चलते हैं जहाँ आप हमारी मुलाकात भूल कर एक सामान्य वार्तालाप में पहुंचेंगे। अब...

आज तो मरते-मरते बचा। बहुत भयंकर सपना था।

शुभ तुम बार बार मरने की बातें क्यों करते हो? क्या तुम जानते हो कि हम सब तुमसे बेइन्तहां प्यार करते हैं इसलिये हमें तंग करते हो क्या?

न...न...अ...ऐसा नहीं है। बिलकुल ऐसा नहीं है। अरे वो तो मैं इसलिये कहता हूँ कि मैं डरपोक नहीं हूँ।

शुभ तुमसे किसने कहा कि तुम डरपोक हो? शायद तुम से बहादुर मुझे कोई मिला ही नहीं अभी तक। बहादुरी सिर्फ वो नहीं होती जो जंग में दिखाई जाती है। बहादुरी वो होती है जब कोई अमन के समय पर भी खुद को स्वतन्त्र महसूस कर सके। वो ज़िन्दगी चुने जो वह खुद है। दूसरों के कहने पर कुछ न करे। वह करे जो स्वयं सही समझे।

म...म...मैं सचमुच बहादुर हूँ न? मुझे लगा कि कोई मानेगा ही नहीं। इसीलिए वैसा बोलता रहा। अब नहीं बोलूंगा। माफ़ कर दो।

अरे...शुभ...नहीं। तुम...माफ़ी मत माँगा करो। कुछ अजीब सा महसूस होता है जब तुम माफ़ी मांगते हो। जैसे...जैसे...तुम हमें शर्मिंदा कर रहे हो।

तुम मेरी इज़्ज़त करती हो यार। बस यही बात है और कुछ नहीं। लेकिन मेरे हिसाब से माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। इसलिए गलती महसूस होती है तो माफ़ी मांग लेता हूँ।

फिर भी पता नहीं क्यों, तुमको देख कर इज़्ज़त करने का दिल करने ही लगता है। एक तुम ही तो हो जो शुद्ध इंसान है। जिसे देख कर लगता है कि इंसान कुछ भी कर सकता है। दूसरों को देखती हूँ तो इंसानों से नफरत ही होती है।

हाँ यार, अफ़सोस तो मुझे भी है कि सब मेरी तरह क्यों नहीं सोचते?

देख भाई, सब तेरी तरह न ही सोचें तो ही बेहतर है।

अरे तुम? तुम कब आये?

बस अभी अभी, हाँ तो मैं कह रहा था कि सब तेरी तरह सोचेंगे तो सबसे पहले तो इंसानो की आने वाली पीढ़ी खत्म हो जायेगी। दूसरे, लोग नौकरी छोड़ के मालिक बन जाएंगे। अबे फिर काम क्या घण्टा होगा? दुनिया में कोई नौकर या मजदूर ही नहीं होगा तो हम मालिक बन के भी काम कैसे करेंगे? तेरे जैसे थोड़े और होने चाहिए लेकिन सब नहीं।

तू भी न यार। मेरे ही पीछे पड़ा रहता है। कभी कभी पॉजिटिव भी सोच लिया कर न?

अब इसमें क्या पॉजिटिव निकालेगा तू?

देख यार पहली बात जो तूने कही कि भावी पीढ़ी पैदा ही नहीं होगी तो तू गलत है, मैं बस भीड़ कम करने की बात कर रहा हूँ। जिनको सही लगेगा वे भावी पीढ़ी का निर्माण करेंगे ही। उन्हें क्या हम रोक लेंगे?

दूसरी बात जो तुमने कही कि सब मालिक हो जाएंगे तो काम क्या होगा तो सुन लो, तुम अब भी पुरानी सोच को लादे हुये फिर रहे हो। अरे ये कल युग है यानि विज्ञान का युग। सब काम मशीनें करेंगी और बाकि जो काम जो मशीनें अभी नहीं कर पातीं उनके लिए मोटी तनख्वाह पर सेवाएँ लेने में क्या हर्ज है। कुछ लोगों को नौकरी करने में ही मज़ा आता है। वो पैसों के लिए नहीं अपनी e.q. के लिये काम करते हैं। यानि सोशल रहने की भूख।

अबे...ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं।

बस यहीं पर तो मैं तुमसे अलग दिखता हूँ।

अब तुम दोनों प्लीज़ चुप हो जाओ। मैं तो जैसे यहाँ हूँ ही नहीं। हैं न?

अरे...न...न वो कुछ बात ही ऐसी निकल आई जिसका उत्तर देना ज़रूरी लगा मुझे। बस।

मैं तुमसे नहीं कह रही हूँ। इसे मुझसे हाल चाल पूछने की फुरसत ही नहीं है।

अरे...तुम कब आईं, मैंने ध्यान नहीं दिया। आई ऍम वैरी सौरी।

अब बहाने मत बनाओ। वैसे इट्स ओके। और हाँ मैं यहाँ पर पहले से थी, तुम...यहाँ आये हो।

अरे...ही ही ही वो मैं इससे बात करने में ही इतना उलझ गया कि बोलने का वक्त ही नहीं मिल पाया। इसके लिए भी सौरी यार।

ओके।

(मन में) देखा शुभ, इसे माफ़ करते समय वैसा महसूस नहीं हुआ जैसा तुम्हे माफ़ करने में होता है। सुना है उम्मीद पर दुनिया कायम है और शायद वह उम्मीद तुम ही हो। तुम्हें सब कुछ माफ़ है शुभ। सब कुछ। Sat, 12 Dec 2015 06:36 AM, Shubhanshu Singh Chauhan

सोमवार, दिसंबर 17, 2018

धार्मिक समाज का ज़हरबुझा सत्य

महिला के बारे में यह मत है कि उस के द्वारा बच्चा पालना और उसे पुरुष द्वारा अपना नाम देना, (वंशवृद्धि का प्रतीक) और उसे वयस्क बनने तक उस पर खर्च करना, कमाने वाले की ज़िम्मेदारी होती है। इस आधार पर विवाहित महिला को किसी अन्य की औलाद को अपनी कोख से पैदा करने की इजाज़त नहीं थी। इसी आधार पर अडल्ट्री कानून बना था और 150 वर्ष तक भारत में लागू रहा। इसे हाल ही में महिला का वस्तुकरण करने के आरोप में समाप्त कर दिया गया।

अतः उसे अन्य पुरुषों से अलग रखने के लिये सम्भवतः पंचायत हुई होगी और सबने तय किया होगा कि कोई किसी की सुहाग संकेतों से युक्त विवाहिता से सहमति से भी यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा। लेकिन पुरुष किसी से भी जबरन संबन्ध स्थापित कर लेंगे (बलात्कार) अगर कोई अविवाहित महिला घर से बाहर निकली। उसे किसी संकेत/चिन्ह की आवश्यकता नहीं। यह उसके (बलात्कार पीड़िता) घरवालों के लिये सबक होगा कि वे लड़की को घर में नहीं बन्द रख सके तो अब इसे वैश्या ही बना दो क्योंकि अब इस से कोई शादी तो करेगा नहीं।

इस तरह की मानसिकता गांवों में आज भी है और यही गांव वाले आज शहर में हैं। एक परिवार विवाह के रूप में अपना वंश चले, इस शुद्धता के लालच में महिला को इस्तेमाल करता है। इसी आधार पर वह प्रेम विवाह को रोकता है क्योंकि तब वह विवाह निजी हो जाता है। उसमें परिवार हस्तक्षेप नहीं कर सकता (अपितु जो लोग सपरिवार रहते हैं और प्रेम विवाह व्यवस्था विवाह की तरह स्वीकार हो जाता है तो वहाँ भी यह हालात कुछ समय बाद आ सकते हैं।)

सत्य तो यह है कि वर्तमान व्यवस्था में वंश जैसी कोई चीज शुद्ध होती ही नहीं है। जब महिला को दूसरे परिवार से लाते हैं तो उसके 50% गुणसूत्र और पुरुष के 50% गुणसूत्र स्त्री के ही बच्चे में आते हैं। इसमें भी उसके दादा दादी के 25% और उनके पड़दादा दादी के 12.5% गुणसूत्र शामिल होते हैं इसी तरह आधे करते जाइये और ऊपर के गुणसूत्रों को।

अतः आपका यदि अपनी सगी बहन से बच्चा पैदा नहीं हुआ है तो बच्चे में सिर्फ आपके 50% लक्षण ही आएगें। 100% अपने ही माता पिता के लक्षण (रक्त/खून के नाम से प्रचलित) केवल सगे भाई और सगी बहन से पैदा हुए बच्चे में ही हो सकते हैं। समाज में भाई-बहन का प्रजनन करना वर्जित है (कानून और मानवाधिकार में मान्य है) तो समाज खुद ही वंशवाद का ढोंग करता है।

असल में उसकी ढोंग करने की मंशा नहीं थी। धर्मग्रंथों में महिला को खेत और पुरुष के वीर्य को बीज की संज्ञा दी गई है। संभोग को भी हल चलाने की संज्ञा दी गई मालूम होती है। यानी महिला का परिवार में बच्चे को पालने के और पति की सेवा के अलावा कोई योगदान नहीं माना जाता था जिसमें घर संभालना स्वतः आता है।

इसी कारण से पुरुष खुद को ही जीवन दाता समझ कर खुद पर गर्व करते फिर रहे हैं। दूसरा कारण है कमाई करना जबकि आज महिला पुरुष दोनों कमाते हैं। वंशवाद की सच्चाई विज्ञान ने कई वर्षों से सामने लाकर रखी है कि दूसरे घर से लाई महिला आपके वंश में 50% अपने वंश को मिला रही है और बेचारे मेल ईगो से ग्रस्त अज्ञानी पुरुष सोच रहे हैं कि वे 100% अपना वंश बढ़ा रहे हैं। 😀

दूसरी तरफ पुरूषों को जानबूझ कर इसलिए किसी विवाह चिन्ह से आज़ाद छोड़ा गया ताकि वे किसी भी लड़की को अकेला पा कर उसे धोखाधड़ी से विवाह का वादा करके बच्चा पैदा कर के बदनाम कर के सज़ा दे या अधिक लोग हों तो "सामूहिक रूप से बलात्कार करके यही सज़ा दे सकें।" इस तरह उन पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आएगी। न ही उनको पंचायत सज़ा देगी। यही घटना फ़िल्म बेंडिट क्वीन में दिखाई गई थी।

यानी यह सब ही हमारा समाज है। हालांकि अब जब संविधान लागू है और UN ने जो मानवाधिकार दिए हैं उसके आधार पर आज बलात्कार, छेड़छाड़ आदि पर कठोर सजा है लेकिन सज़ा का डर बलात्कारी संस्कृति को भुला नहीं पाया और आप जानते हैं कि बलात्कारी समाज आज भी क्या कर रहा है! 😢

मैंने तो इस समाज से खुद को अलग कर लिया है और विवाह मुक्त, धर्ममुक्त, vegan, लिवइन का समर्थन करता हूँ। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

रविवार, दिसंबर 16, 2018

उपनाम/अंतिम नाम का जाति से कोई मतलब नहीं

सरनेम से जाति नहीं बल्कि नाम की विशिष्टता (यूनिक) होने में मदद मिलती है क्योंकि प्रथम नाम बहुतों के समान होते हैं। सरनेम से हम किसी विशेष को इंगित कर सकते हैं। जैसे शुभाँशु नाम के बहुत लोग हैं लेकिन उनके सरनेम अलग होने के कारण मेरा नाम उनमें से कम लोगों में आता है जिस कारण मुझे ढूंढने में लोगों को कम समस्या आती है। इस से ज्यादा सरनेम कोई ज्यादा मदद नहीं करता।

पासपोर्ट में सरनेम ज़रुरी हो जाता है। विश्व भर में इंडोनेशिया और तमिल भाषिक को छोड़ कर सभी लोगों के नाम के साथ उपनाम लगा होता है।

नास्तिक/धर्ममुक्त/तर्कवादी व्यक्ति बहुत बाद में होता है तब तक पुराना नाम बहुत प्रचलित हो चुका होता है। उसे बदलवाने में हजारों रुपये खर्च हो सकते हैं साथ ही पहचान भी खो सकती है। बेमतलब की भागदौड़ अलग से। लाभ घण्टा।

वैसे भी कौन आपके सर्टिफिकेट या id देखता है? बस fb पर id वेरिफिकेशन करवाने पर नाम फिक्स हो जाता है। कोई भी रिपोर्ट कर दे तो fb account लॉक करके id अपलोड करवाता ही है।

मेरा नाम भी पहले सिर्फ शुभाँशु था लेकिन किसी ने रिपोर्ट करके वेरिफिकेशन करवा दिया। हम लिखते ही ऐसा हैं कि लोग हमारे पीछे पड़ जाते हैं।

साथ ही हमने तब सोचा कि ज्यादा बेहतर होगा कि लोगों की सोच बदली जाए। नाम से नहीं बल्कि काम से पहचान होती है और वही सार्थक किया जाए।

हम जातिवादी नहीं, धर्ममुक्त, नास्तिक, तर्कवादी, वैज्ञानिक, लेखक, चित्रकार, ब्लॉगर, पेज/ग्रुप runner, वेबसाइट लेखक आदि आदि तमाम लेबल लिए हैं और नाम कभी सोच और कार्य के आड़े नहीं आता।

आप खुद देखिये कि हम सभी जिन प्रसिद्ध नामों को जानते हैं दरअसल उन नामों को कभी सम्बोधित ही नहीं करते। जैसे हिटलर, एडिसन, टेस्ला, मोदी, अम्बेडकर, गांधी, बोस आदि। जबकि इनके प्रथम नाम क्रमशः एडोल्फ, थॉमस, निकोला, नरेन्द्र, मोहन, सुभाष हैं। क्या हम दुनिया में चल रहा सिस्टम बदल सकते हैं? नहीं, कम से कम तब तक जब तक इससे विश्व को जानमाल का नुकसान होता न दिखे। जो कि शायद ही हो।

जिन जिनको नाम में जाति दिखती है वे कृपया अपने जाति निर्धारण करने वाले धर्मग्रंथों में लोगों के नाम देखिये। सभी लोग बिना अंतिम नाम के थे। फिर जाति अंतिम नाम से नहीं बल्कि उसके द्वारा किये गए कार्य से तय होती थी। जैसे कुम्हार, लुहार, धोबी, चर्मकार, जुलाहा आदि। यही नाम धंधे की पहचान के लिये साथ में जोड़ा जाने लगा।

दूसरे पक्ष में यह उनके पद और वंश के लोगों के नाम से इज़्ज़त पाने और पहचान बनाने के लिये प्रयोग किया गया। जैसे सिंह एक पदवी है और चौहान शायद किसी वंशज के प्रथम नाम का प्रतीक है। इससे सिर्फ इतना अनुमान लगा सकते हैं कि अगले के किसी पूर्वज ने इन तमगों को हासिल किया और उनके पूर्वजों ने कुछ बड़ा कार्य किया होगा।

बेहतर होगा कि ऐसे लोगों से दूर रहिये जो आपका नाम देख कर तय करते हैं कि आपकी विचारधारा कैसी होगी, काम और सोच देख कर नहीं।  2018/12/16 09:33 ~ Shubhanshu SC 2018©

शनिवार, दिसंबर 15, 2018

मैं ब्लेड क्यों पहनता हूँ?

भीड़ लालच से लाई जाती है। नहीं तो किसी को सड़क पर पड़े घायल को भी सामने के अस्पताल में ले जाने तक का समय नहीं है। ये भीड़ सभी पक्षों में जाती है। जिधर माल मिलता है सब उधर चले ही जाते हैं। मैं भी जाता और आप भी जाते क्योंकि हमें देश की नहीं अपने परिवार और पेट की चिंता होती है। क्या फर्क पड़ता है कि देश के लोगो के साथ क्या हो रहा है? हमें लाभ होना चाहिए। अभी और तुरन्त।

वोट जब बिकने लगते हैं तो उनके रेट तय हो जाते हैं। यह देश ऐसे लोगों को वोट देता है जो नेता बनना चाहते हैं। किसी भी कीमत पर। लेकिन जनता किसी को नेता बनाना नहीं चाहती। इसीलिये नेता भी आपको ग्राहक ही समझता है। न कि अपने ही परिवार का हिस्सा। उसने कीमत देकर वोट लिया है तो किसी ने उस पर वोट देकर एहसान तो किया नहीं है।

फिर वह और लूटेगा आपको क्योंकि अगली बार भी तो बांटने के लिए पैसे काटने हैं आपकी जेब से। 5 साल लगते हैं रुपये गोदाम में भरने के लिए। टैक्स छापे का डर कैसा? जब जनता किसी खरीद की रसीद नहीं मांगती और चोरी का माल खरीदती है। उसे ही तो खपाना है यह 2 नंबर के घोटालों का पैसा।

बहुत बड़ा व्यापार है राजनीति। और इसे चुनाव आयोग नहीं बल्कि जनता और नेता के बीच में ब्रिज बन कर पैसा खेलता है। पैसा, एक ऐसी वस्तु जिस पर चाहें मलमूत्र लगा हो या खून वह अपना मूल्य नहीं खोता और जिसे पैसे का मूल्य पता हो वह कभी नहीं रोता।

लेकिन आप हों या हम हों, बड़े संघर्षों से विश्वविजेता बने लोगों या व्यापारियों से हमारी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि, वो पेट के लिये नहीं जिये, वे जिये अपने लक्ष्य के लिये और उस जुनून के साथ जो अपना लाभ नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लाभ देखता है।

उम्मीदें कम हैं, लेकिन खोई नहीं हैं। मैं राजनीति से बाहर हूँ क्योंकि जब तक यह दल दल साफ पानी नहीं बनता इसमें घुसना मेरे जैसे जुनूनी पागल के लिए मौत को दावत देना ही है।

लेकिन सब एक ही कार्य करने के लिये नहीं बने। इसलिये आप में से किसी की आंखें शायद मेरे गले में पड़ा ब्लेड खोल सके। हाँ मैं ब्लेड पहनता हूँ क्योकि आज आँखें खुलती नहीं हैं। आँखों के आगे पड़ा पर्दा काट कर खोलनी पड़ती है। ~ Shubhanshu SC 2018©

सोमवार, दिसंबर 10, 2018

अपराध और मनोविज्ञान

मानव के दिमाग में कुछ ऐसे फैक्टर होते हैं जो जीन संचालित करते हैं जो कि नवीन प्रवर्ति विकसित करते हैं। इसे X फैक्टर कहा जाता है जो कि नकारात्मक या सकारात्मक हो सकता है।

इस तरह के नकारात्मक x फैक्टर वाले बच्चे बचपन से ही अलग प्रवर्ति के होते हैं। जैसे आपने देखा होगा कि कुछ बच्चे शुरू से ही झगड़ालू, दबंग, बद्तमीज और लड़कियों को छेड़ने वाले होते हैं। दूसरी तरफ इसके विपरीत शांत और अच्छे स्वभाव के बच्चे भी होते हैं।

इन सबके बीच में ज्यादातर जो बच्चे होते हैं वे ही नार्मल बच्चे कहलाते हैं जो आज्ञाकारी होते हैं। इन्हीं को आगे जाकर नौकरी मिलती है और यही विवाह करके वंशवृद्धि करते हैं।

बाकी दोनो प्रकार के बच्चे विशिष्ट बच्चे कहलाते हैं। दुष्ट स्वभाव का बच्चा आगे जाकर 2 प्रकार के परिवर्तन लाता है या तो वह किसी बड़ी घटना से सदमें में जाकर अपने उपर नियंत्रण पा लेता है या अनियंत्रित होकर अपराध की राह पकड़ लेता है। बचपन की शरारतें वयस्क होने के बाद अपराध में बदल जाती हैं। इनको अपराध में मज़ा आता है। ये उसे न करें तो पागल भी हो सकते हैं। इनका कोई इलाज नहीं। इनकी मृत्यु ही समाज के लिये उपयुक्त होती है। आतंकवादी, बलात्कारी, सीरियल किलर आदि इसी लक्षण के साथ पैदा होते हैं।

दूसरी तरफ सज़्ज़न बच्चे यदि ज़िद्दी होते हैं तो बड़े महापुरुष/स्त्री या अगर मजबूर होते हैं तो कोई कम भीड़भाड़ वाले पद पर कार्य करते हैं। ये अगर अपराध करते हैं तो मजबूरी में या नशे में होने के कारण। साथ ही ये दोबारा उन को नहीं करते। इनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं होता।

इनको सज़ा देने का कोई अर्थ ही नहीं। ये जानबूझकर कर ही अपराध करते हैं जो आत्मरक्षा, परिस्थितियों के वश में और मजबूर होकर ही ऐसे बनते हैं। वे दोबारा यह नहीं करते।

बाकी बीच वाले जो normal लोग हैं यह अपराधियों का शिकार बनते हैं। इन्हीं के पास कमाने और व्यस्त रहने के कारण सुरक्षा का अभाव होता है और इनको ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। ये जल्द ही पुलिस या गुंडों को मामला देकर free हो जाते हैं।

तो सज़ा देने का इन सब मामलों में कोई लाभ नहीं होता है। बस नकारात्मक x factor वाले लोगों को कैद करके रखने या मृत्युदंड देने के लिये ही जेल और अदालत होनी चाहिए बाकियों को सिर्फ अर्थदण्ड और पब्लिक सर्विस के कार्य करवा कर सिंसियर बनाया जा सकता है। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2018© 5:37pm 10 dec

रविवार, दिसंबर 09, 2018

कुदरती आहार और उसकी खोज

Plant based diet कुदरती है। यह भूख और रुचि अनुसार किया जाए। प्रायः जानवर स्वस्थ रहते हैं जबकि वे न तो साफ रहते हैं और न ही उनके कुदरती आवास में उनके लिए कोई चिकित्सक होता है।

समान्य सी बात है। जैसे हम जीने के लिए बने वैसे न जियें तो मर जायेंगे।

कुदरती खाने से मतलब यह नहीं है कि हम बाजार से खरीद कर न खाएं या पैक्ड फ़ूड न खरीदें बल्कि अपने शरीर की वास्तविक प्रव्रत्ति को पहचानें और उसके अनुसार भोजन करें। वास्तविक भोजन की पहचान कैसे की जाए इस पर बहस का समापन वर्षों पहले हो गया है लेकिन कुछ लोग पशुजगत से धन कमाने के लालच में विज्ञान में अपनी गलत राय डाल चुके हैं जिनका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं था।

सही सत्य प्रमाण के साथ हाल ही में पिछले वर्ष 2017 में वैश्विक भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करती एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ने उजागर कर दिया है अतः हम अब कह सकते हैं कि जंतु और कार्बनिक रसायन विज्ञान की किताब में भोजन से सम्बंधित पाठ कुछ प्रतिशत गलत बना कर डाला गया है। जिससे पशुओं का व्यापार किया जा सके।

डॉक्यूमेंट्री English में है और इसे भारत में दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। youtube पर इसे देखा जा सकता है या नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम किया जा सकता है। http://www.whatthehealthfilm.com

मनुष्य की जनसँख्या ख़त्म करने का यह कूटनीतिक तरीका धन बटोरने की नीयत से वर्षों पहले ही कट्टर धार्मिकता की आड़ में लाया गया था। इसे विज्ञान में चुपके से घुसा दिया गया। ठीक वैसे ही, जैसे प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षिप्त श्लोक डाल कर उनको मजाक बनाया गया।

अपितु उनको हटा कर जो संस्करण प्रकाशित किये जा रहे हैं उनका मैंने अध्ययन नहीं किया है क्योंकि मुझे ऑनलाइन free pdf फ़ाइल नहीं मिली लेकिन फिर भी इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि कोयले को कितना भी साफ कर लीजिए, वह रहता कोयला ही है।

अतः उनको पढ़ कर यदि कोई अच्छी बात पता चलती है तो अपना लीजिये, अन्यथा आधुनिक जीवन में पुरानी बातों का ज्यादा महत्व होता भी नहीं है।

आखिर कौन थे वे सनातन के दुश्मन जिन्होंने इन प्रक्षिप्त श्लोकों को बीच में घुसा कर इन धर्मग्रंथों को मजाक बना डाला?

संकेत: उस समय सनातनियों के दुश्मन चार्वाक मत और बौद्ध मत के नास्तिक लोग थे यह बात खुद एक धर्मग्रंथ में लिखी है। 😀😁😂

आज भी यही कार्य जारी है। अगर कहीं आपको गायत्री मंत्र और अन्य मंत्रों व ग्रन्थों के अश्लील अर्थ दिखें तो समझिये आपको उन मिलावट करने वालों के वंशज मिल गए। 😀😁😂

यह तरीका सही नहीं था क्योंकि ऐसा करके अब वैदिक प्रचारकों को बहाना मिल गया कि उनके धर्मग्रंथों में छेड़छाड़ की गई है। अतः वह इस हरकत से मजबूत ही हुए हैं। इसीलिए कहता हूं कि मक्कारी करना छोड़िये। इसका तुरन्त असर तो होता है लेकिन अस्थाई। स्थायी असर मक्कार पर होता है। वह भी घातक।

सत्य कहने के लिये झूठ का सहारा न लीजिये अन्यथा आप पर कोई विश्वास ही नहीं करेगा। ज़हरबुझे सत्य का स्वाद कड़वा अवश्य हो सकता है लेकिन जब यह कार्य करता है तो इससे मीठा कुछ नहीं। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©  2018/12/09 16:12