Zahar Bujha Satya

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रविवार, दिसंबर 16, 2018

उपनाम/अंतिम नाम का जाति से कोई मतलब नहीं

सरनेम से जाति नहीं बल्कि नाम की विशिष्टता (यूनिक) होने में मदद मिलती है क्योंकि प्रथम नाम बहुतों के समान होते हैं। सरनेम से हम किसी विशेष को इंगित कर सकते हैं। जैसे शुभाँशु नाम के बहुत लोग हैं लेकिन उनके सरनेम अलग होने के कारण मेरा नाम उनमें से कम लोगों में आता है जिस कारण मुझे ढूंढने में लोगों को कम समस्या आती है। इस से ज्यादा सरनेम कोई ज्यादा मदद नहीं करता।

पासपोर्ट में सरनेम ज़रुरी हो जाता है। विश्व भर में इंडोनेशिया और तमिल भाषिक को छोड़ कर सभी लोगों के नाम के साथ उपनाम लगा होता है।

नास्तिक/धर्ममुक्त/तर्कवादी व्यक्ति बहुत बाद में होता है तब तक पुराना नाम बहुत प्रचलित हो चुका होता है। उसे बदलवाने में हजारों रुपये खर्च हो सकते हैं साथ ही पहचान भी खो सकती है। बेमतलब की भागदौड़ अलग से। लाभ घण्टा।

वैसे भी कौन आपके सर्टिफिकेट या id देखता है? बस fb पर id वेरिफिकेशन करवाने पर नाम फिक्स हो जाता है। कोई भी रिपोर्ट कर दे तो fb account लॉक करके id अपलोड करवाता ही है।

मेरा नाम भी पहले सिर्फ शुभाँशु था लेकिन किसी ने रिपोर्ट करके वेरिफिकेशन करवा दिया। हम लिखते ही ऐसा हैं कि लोग हमारे पीछे पड़ जाते हैं।

साथ ही हमने तब सोचा कि ज्यादा बेहतर होगा कि लोगों की सोच बदली जाए। नाम से नहीं बल्कि काम से पहचान होती है और वही सार्थक किया जाए।

हम जातिवादी नहीं, धर्ममुक्त, नास्तिक, तर्कवादी, वैज्ञानिक, लेखक, चित्रकार, ब्लॉगर, पेज/ग्रुप runner, वेबसाइट लेखक आदि आदि तमाम लेबल लिए हैं और नाम कभी सोच और कार्य के आड़े नहीं आता।

आप खुद देखिये कि हम सभी जिन प्रसिद्ध नामों को जानते हैं दरअसल उन नामों को कभी सम्बोधित ही नहीं करते। जैसे हिटलर, एडिसन, टेस्ला, मोदी, अम्बेडकर, गांधी, बोस आदि। जबकि इनके प्रथम नाम क्रमशः एडोल्फ, थॉमस, निकोला, नरेन्द्र, मोहन, सुभाष हैं। क्या हम दुनिया में चल रहा सिस्टम बदल सकते हैं? नहीं, कम से कम तब तक जब तक इससे विश्व को जानमाल का नुकसान होता न दिखे। जो कि शायद ही हो।

जिन जिनको नाम में जाति दिखती है वे कृपया अपने जाति निर्धारण करने वाले धर्मग्रंथों में लोगों के नाम देखिये। सभी लोग बिना अंतिम नाम के थे। फिर जाति अंतिम नाम से नहीं बल्कि उसके द्वारा किये गए कार्य से तय होती थी। जैसे कुम्हार, लुहार, धोबी, चर्मकार, जुलाहा आदि। यही नाम धंधे की पहचान के लिये साथ में जोड़ा जाने लगा।

दूसरे पक्ष में यह उनके पद और वंश के लोगों के नाम से इज़्ज़त पाने और पहचान बनाने के लिये प्रयोग किया गया। जैसे सिंह एक पदवी है और चौहान शायद किसी वंशज के प्रथम नाम का प्रतीक है। इससे सिर्फ इतना अनुमान लगा सकते हैं कि अगले के किसी पूर्वज ने इन तमगों को हासिल किया और उनके पूर्वजों ने कुछ बड़ा कार्य किया होगा।

बेहतर होगा कि ऐसे लोगों से दूर रहिये जो आपका नाम देख कर तय करते हैं कि आपकी विचारधारा कैसी होगी, काम और सोच देख कर नहीं।  2018/12/16 09:33 ~ Shubhanshu SC 2018©

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