महिला के बारे में यह मत है कि उस के द्वारा बच्चा पालना और उसे पुरुष द्वारा अपना नाम देना, (वंशवृद्धि का प्रतीक) और उसे वयस्क बनने तक उस पर खर्च करना, कमाने वाले की ज़िम्मेदारी होती है। इस आधार पर विवाहित महिला को किसी अन्य की औलाद को अपनी कोख से पैदा करने की इजाज़त नहीं थी। इसी आधार पर अडल्ट्री कानून बना था और 150 वर्ष तक भारत में लागू रहा। इसे हाल ही में महिला का वस्तुकरण करने के आरोप में समाप्त कर दिया गया।
अतः उसे अन्य पुरुषों से अलग रखने के लिये सम्भवतः पंचायत हुई होगी और सबने तय किया होगा कि कोई किसी की सुहाग संकेतों से युक्त विवाहिता से सहमति से भी यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा। लेकिन पुरुष किसी से भी जबरन संबन्ध स्थापित कर लेंगे (बलात्कार) अगर कोई अविवाहित महिला घर से बाहर निकली। उसे किसी संकेत/चिन्ह की आवश्यकता नहीं। यह उसके (बलात्कार पीड़िता) घरवालों के लिये सबक होगा कि वे लड़की को घर में नहीं बन्द रख सके तो अब इसे वैश्या ही बना दो क्योंकि अब इस से कोई शादी तो करेगा नहीं।
इस तरह की मानसिकता गांवों में आज भी है और यही गांव वाले आज शहर में हैं। एक परिवार विवाह के रूप में अपना वंश चले, इस शुद्धता के लालच में महिला को इस्तेमाल करता है। इसी आधार पर वह प्रेम विवाह को रोकता है क्योंकि तब वह विवाह निजी हो जाता है। उसमें परिवार हस्तक्षेप नहीं कर सकता (अपितु जो लोग सपरिवार रहते हैं और प्रेम विवाह व्यवस्था विवाह की तरह स्वीकार हो जाता है तो वहाँ भी यह हालात कुछ समय बाद आ सकते हैं।)
सत्य तो यह है कि वर्तमान व्यवस्था में वंश जैसी कोई चीज शुद्ध होती ही नहीं है। जब महिला को दूसरे परिवार से लाते हैं तो उसके 50% गुणसूत्र और पुरुष के 50% गुणसूत्र स्त्री के ही बच्चे में आते हैं। इसमें भी उसके दादा दादी के 25% और उनके पड़दादा दादी के 12.5% गुणसूत्र शामिल होते हैं इसी तरह आधे करते जाइये और ऊपर के गुणसूत्रों को।
अतः आपका यदि अपनी सगी बहन से बच्चा पैदा नहीं हुआ है तो बच्चे में सिर्फ आपके 50% लक्षण ही आएगें। 100% अपने ही माता पिता के लक्षण (रक्त/खून के नाम से प्रचलित) केवल सगे भाई और सगी बहन से पैदा हुए बच्चे में ही हो सकते हैं। समाज में भाई-बहन का प्रजनन करना वर्जित है (कानून और मानवाधिकार में मान्य है) तो समाज खुद ही वंशवाद का ढोंग करता है।
असल में उसकी ढोंग करने की मंशा नहीं थी। धर्मग्रंथों में महिला को खेत और पुरुष के वीर्य को बीज की संज्ञा दी गई है। संभोग को भी हल चलाने की संज्ञा दी गई मालूम होती है। यानी महिला का परिवार में बच्चे को पालने के और पति की सेवा के अलावा कोई योगदान नहीं माना जाता था जिसमें घर संभालना स्वतः आता है।
इसी कारण से पुरुष खुद को ही जीवन दाता समझ कर खुद पर गर्व करते फिर रहे हैं। दूसरा कारण है कमाई करना जबकि आज महिला पुरुष दोनों कमाते हैं। वंशवाद की सच्चाई विज्ञान ने कई वर्षों से सामने लाकर रखी है कि दूसरे घर से लाई महिला आपके वंश में 50% अपने वंश को मिला रही है और बेचारे मेल ईगो से ग्रस्त अज्ञानी पुरुष सोच रहे हैं कि वे 100% अपना वंश बढ़ा रहे हैं। 😀
दूसरी तरफ पुरूषों को जानबूझ कर इसलिए किसी विवाह चिन्ह से आज़ाद छोड़ा गया ताकि वे किसी भी लड़की को अकेला पा कर उसे धोखाधड़ी से विवाह का वादा करके बच्चा पैदा कर के बदनाम कर के सज़ा दे या अधिक लोग हों तो "सामूहिक रूप से बलात्कार करके यही सज़ा दे सकें।" इस तरह उन पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आएगी। न ही उनको पंचायत सज़ा देगी। यही घटना फ़िल्म बेंडिट क्वीन में दिखाई गई थी।
यानी यह सब ही हमारा समाज है। हालांकि अब जब संविधान लागू है और UN ने जो मानवाधिकार दिए हैं उसके आधार पर आज बलात्कार, छेड़छाड़ आदि पर कठोर सजा है लेकिन सज़ा का डर बलात्कारी संस्कृति को भुला नहीं पाया और आप जानते हैं कि बलात्कारी समाज आज भी क्या कर रहा है! 😢
मैंने तो इस समाज से खुद को अलग कर लिया है और विवाह मुक्त, धर्ममुक्त, vegan, लिवइन का समर्थन करता हूँ। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©
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