Zahar Bujha Satya

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सोमवार, दिसंबर 31, 2018

परग्रही का रहस्य भाग 2

Author: V. S. S. Chauhan
परग्रही का रहस्य भाग 2

आप...आप लोग कौन हो? मैं स्वर्ग में हूँ क्या?

तुम्हारी ऐसे मौके पर भी मज़ाक करने की आदत नहीं गयी शुभ...अ...सर। मैं  √£¢€¥•∆π हूँ। मुझे भूल गए क्या?

हाँ, याद आ गया। तुम वही हो न जो उस डायमंड के आकार के यान में मिले थे?

जी हाँ सर। मैं वही हूँ। आज आपने खुद को इतनी बड़ी मुसीबत में डाल लिया था कि मुझे बीच में आना ही पड़ा।

नहीं आते तो क्या होता?

मेरे हिसाब से आप का ये शरीर नष्ट हो गया होता।

मतलब मैं मर गया होता?

हाँ कह सकते हैं लेकिन हकीकत में हम कभी भी नहीं मरते। बस शरीर बदल लेते हैं।

मतलब तुम भी पुनर्जन्म में यकीं रखते हो?

न न पृथ्वीवासी कुछ अलग तरह का पुनर्जन्म बनाये बैठे हैं। पिछले जन्म की बाते याद आ जाने को पुनर्जन्म नहीं कहते। पिछले जन्म की प्रव्रत्ति के बने रहने को पुनर्जन्म कहना चाहिए। देखिये पुनर्जन्म...

हाँ हाँ समझ गया। जैसे बच्चा पैदा होने पे 0 से शुरू करता है वैसे ही शुरू करे तभी तो हुआ जन्म का दोबारा होना।

बिल्कुल सही सर। यही मैं भी कहना चाहता था। पहले वाले पुनर्जन्म को रिकाल ऑफ़ लास्ट लाइफ मेमोरी कह सकते हैं। या पुनरस्मरण।

सही कहा दोस्त। अब बताओ मेरा पीछा क्यों कर रहे थे?

हम पीछा नहीं कर रहे थे। हम आप पर नज़र रखे थे। हाँ कुछ कुछ पीछा जैसा ही लेकिन आप के भले के लिए ही।

चलो भाई मैं इस लायक तो हूँ कि मेरा उस दुनिया में भी कोई ख्याल रखने वाला है।

हमेशा सर। आपके लिए तो सब कुछ। आप ही तो हमारी उम्मीद हो सर। आपके बिना हमारा और इन पृथ्वी वासियों का क्या होता। या क्या होगा?

मैं इतना ख़ास हूँ क्या?

आप और भी ज़्यादा हैं। आप जब इतना अनजान बनते हैं तो लगता है जैसे मज़ाक कर रहे हैं। लेकिन आप सही कह रहे हैं, आपको समय आने पर ही पता चलेगा कि आपको क्या करना है। अभी तो आप वो करें जो आपको करने का मन करे। हम आपको वापस आपके ऑफिस ले चलते हैं जहाँ आप हमारी मुलाकात भूल कर एक सामान्य वार्तालाप में पहुंचेंगे। अब...

आज तो मरते-मरते बचा। बहुत भयंकर सपना था।

शुभ तुम बार बार मरने की बातें क्यों करते हो? क्या तुम जानते हो कि हम सब तुमसे बेइन्तहां प्यार करते हैं इसलिये हमें तंग करते हो क्या?

न...न...अ...ऐसा नहीं है। बिलकुल ऐसा नहीं है। अरे वो तो मैं इसलिये कहता हूँ कि मैं डरपोक नहीं हूँ।

शुभ तुमसे किसने कहा कि तुम डरपोक हो? शायद तुम से बहादुर मुझे कोई मिला ही नहीं अभी तक। बहादुरी सिर्फ वो नहीं होती जो जंग में दिखाई जाती है। बहादुरी वो होती है जब कोई अमन के समय पर भी खुद को स्वतन्त्र महसूस कर सके। वो ज़िन्दगी चुने जो वह खुद है। दूसरों के कहने पर कुछ न करे। वह करे जो स्वयं सही समझे।

म...म...मैं सचमुच बहादुर हूँ न? मुझे लगा कि कोई मानेगा ही नहीं। इसीलिए वैसा बोलता रहा। अब नहीं बोलूंगा। माफ़ कर दो।

अरे...शुभ...नहीं। तुम...माफ़ी मत माँगा करो। कुछ अजीब सा महसूस होता है जब तुम माफ़ी मांगते हो। जैसे...जैसे...तुम हमें शर्मिंदा कर रहे हो।

तुम मेरी इज़्ज़त करती हो यार। बस यही बात है और कुछ नहीं। लेकिन मेरे हिसाब से माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। इसलिए गलती महसूस होती है तो माफ़ी मांग लेता हूँ।

फिर भी पता नहीं क्यों, तुमको देख कर इज़्ज़त करने का दिल करने ही लगता है। एक तुम ही तो हो जो शुद्ध इंसान है। जिसे देख कर लगता है कि इंसान कुछ भी कर सकता है। दूसरों को देखती हूँ तो इंसानों से नफरत ही होती है।

हाँ यार, अफ़सोस तो मुझे भी है कि सब मेरी तरह क्यों नहीं सोचते?

देख भाई, सब तेरी तरह न ही सोचें तो ही बेहतर है।

अरे तुम? तुम कब आये?

बस अभी अभी, हाँ तो मैं कह रहा था कि सब तेरी तरह सोचेंगे तो सबसे पहले तो इंसानो की आने वाली पीढ़ी खत्म हो जायेगी। दूसरे, लोग नौकरी छोड़ के मालिक बन जाएंगे। अबे फिर काम क्या घण्टा होगा? दुनिया में कोई नौकर या मजदूर ही नहीं होगा तो हम मालिक बन के भी काम कैसे करेंगे? तेरे जैसे थोड़े और होने चाहिए लेकिन सब नहीं।

तू भी न यार। मेरे ही पीछे पड़ा रहता है। कभी कभी पॉजिटिव भी सोच लिया कर न?

अब इसमें क्या पॉजिटिव निकालेगा तू?

देख यार पहली बात जो तूने कही कि भावी पीढ़ी पैदा ही नहीं होगी तो तू गलत है, मैं बस भीड़ कम करने की बात कर रहा हूँ। जिनको सही लगेगा वे भावी पीढ़ी का निर्माण करेंगे ही। उन्हें क्या हम रोक लेंगे?

दूसरी बात जो तुमने कही कि सब मालिक हो जाएंगे तो काम क्या होगा तो सुन लो, तुम अब भी पुरानी सोच को लादे हुये फिर रहे हो। अरे ये कल युग है यानि विज्ञान का युग। सब काम मशीनें करेंगी और बाकि जो काम जो मशीनें अभी नहीं कर पातीं उनके लिए मोटी तनख्वाह पर सेवाएँ लेने में क्या हर्ज है। कुछ लोगों को नौकरी करने में ही मज़ा आता है। वो पैसों के लिए नहीं अपनी e.q. के लिये काम करते हैं। यानि सोशल रहने की भूख।

अबे...ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं।

बस यहीं पर तो मैं तुमसे अलग दिखता हूँ।

अब तुम दोनों प्लीज़ चुप हो जाओ। मैं तो जैसे यहाँ हूँ ही नहीं। हैं न?

अरे...न...न वो कुछ बात ही ऐसी निकल आई जिसका उत्तर देना ज़रूरी लगा मुझे। बस।

मैं तुमसे नहीं कह रही हूँ। इसे मुझसे हाल चाल पूछने की फुरसत ही नहीं है।

अरे...तुम कब आईं, मैंने ध्यान नहीं दिया। आई ऍम वैरी सौरी।

अब बहाने मत बनाओ। वैसे इट्स ओके। और हाँ मैं यहाँ पर पहले से थी, तुम...यहाँ आये हो।

अरे...ही ही ही वो मैं इससे बात करने में ही इतना उलझ गया कि बोलने का वक्त ही नहीं मिल पाया। इसके लिए भी सौरी यार।

ओके।

(मन में) देखा शुभ, इसे माफ़ करते समय वैसा महसूस नहीं हुआ जैसा तुम्हे माफ़ करने में होता है। सुना है उम्मीद पर दुनिया कायम है और शायद वह उम्मीद तुम ही हो। तुम्हें सब कुछ माफ़ है शुभ। सब कुछ। Sat, 12 Dec 2015 06:36 AM, Shubhanshu Singh Chauhan

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