Zahar Bujha Satya

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शनिवार, दिसंबर 15, 2018

मैं ब्लेड क्यों पहनता हूँ?

भीड़ लालच से लाई जाती है। नहीं तो किसी को सड़क पर पड़े घायल को भी सामने के अस्पताल में ले जाने तक का समय नहीं है। ये भीड़ सभी पक्षों में जाती है। जिधर माल मिलता है सब उधर चले ही जाते हैं। मैं भी जाता और आप भी जाते क्योंकि हमें देश की नहीं अपने परिवार और पेट की चिंता होती है। क्या फर्क पड़ता है कि देश के लोगो के साथ क्या हो रहा है? हमें लाभ होना चाहिए। अभी और तुरन्त।

वोट जब बिकने लगते हैं तो उनके रेट तय हो जाते हैं। यह देश ऐसे लोगों को वोट देता है जो नेता बनना चाहते हैं। किसी भी कीमत पर। लेकिन जनता किसी को नेता बनाना नहीं चाहती। इसीलिये नेता भी आपको ग्राहक ही समझता है। न कि अपने ही परिवार का हिस्सा। उसने कीमत देकर वोट लिया है तो किसी ने उस पर वोट देकर एहसान तो किया नहीं है।

फिर वह और लूटेगा आपको क्योंकि अगली बार भी तो बांटने के लिए पैसे काटने हैं आपकी जेब से। 5 साल लगते हैं रुपये गोदाम में भरने के लिए। टैक्स छापे का डर कैसा? जब जनता किसी खरीद की रसीद नहीं मांगती और चोरी का माल खरीदती है। उसे ही तो खपाना है यह 2 नंबर के घोटालों का पैसा।

बहुत बड़ा व्यापार है राजनीति। और इसे चुनाव आयोग नहीं बल्कि जनता और नेता के बीच में ब्रिज बन कर पैसा खेलता है। पैसा, एक ऐसी वस्तु जिस पर चाहें मलमूत्र लगा हो या खून वह अपना मूल्य नहीं खोता और जिसे पैसे का मूल्य पता हो वह कभी नहीं रोता।

लेकिन आप हों या हम हों, बड़े संघर्षों से विश्वविजेता बने लोगों या व्यापारियों से हमारी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि, वो पेट के लिये नहीं जिये, वे जिये अपने लक्ष्य के लिये और उस जुनून के साथ जो अपना लाभ नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लाभ देखता है।

उम्मीदें कम हैं, लेकिन खोई नहीं हैं। मैं राजनीति से बाहर हूँ क्योंकि जब तक यह दल दल साफ पानी नहीं बनता इसमें घुसना मेरे जैसे जुनूनी पागल के लिए मौत को दावत देना ही है।

लेकिन सब एक ही कार्य करने के लिये नहीं बने। इसलिये आप में से किसी की आंखें शायद मेरे गले में पड़ा ब्लेड खोल सके। हाँ मैं ब्लेड पहनता हूँ क्योकि आज आँखें खुलती नहीं हैं। आँखों के आगे पड़ा पर्दा काट कर खोलनी पड़ती है। ~ Shubhanshu SC 2018©

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