Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, अप्रैल 27, 2019

मन की भड़ास ~ Shubhanshu

चलिये पिछली ज्ञान के अहंकार वाली पोस्ट पर चर्चा करते हैं। मैं क्या करना चाह रहा था और लोग क्या समझे, इस पर अपनी निजी सोच बताता हूँ।

प्रश्न: ज्ञान किस से मिल सकता है?

उत्तर: गुरु से।

प्रश्न: गुरु कौन होता है?

उत्तर: गुरु अर्थात बड़ा। जो भी आपसे अधिक हो किसी भी क्षेत्र में, वह गुरु है। कोई अगर हम से ज्यादा अनुभवी है, ज्यादा समझदार है, ज्यादा जानकारी से परिपूर्ण है तो वह भी गुरु है। गुरु हर वह सजीव-निर्जीव वस्तु/जंतु/वनस्पति हो सकती है जो आपको सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हो। जिसके प्रति आपको कृतज्ञता (एहसानमंद) का एहसास हो।

जैसे एक चींटी भले ही दिखने में तुच्छ शरीर की मालिक है लेकिन वह आपको दिन रात कार्य करके हिम्मत देती है। चींटी कभी नहीं सोती। वह दिखाती है कि कार्य करना ही आपका एकमात्र ध्येय है। कितनी भी बार कोई तुमको गिराए, या आप अपनी गलती से गिरो, आपको फिर से उठ खड़ा होना है और सफलता प्राप्त करनी है।

एक कथा सुनाई जाती रही है, चींटी और हाथी की। कितनी सत्य है इसका तो पता नहीं लेकिन फिर भी प्रभावित करती है।

एक हाथी को अपने ऊपर अतिआत्मविश्वास था कि उसे कोई नहीं हरा सकता क्योंकि वह सबसे खतरनाक पशु शेर को भी मार सकता था। एक बार उसने चींटी का मजाक उड़ाया कि तेरी मेरे सामने औकात क्या है? तुझे तो मैं यूं मसल दूँगा। इस पर चींटी ने कहा कि कर लो मुकाबला। हाथी ने उसे मारने के लिए पैर बढाया तो वह उसके पैर पर चढ़ गई। हाथी धूल उड़ाता रह गया।

इस दौरान चींटी को भी आत्मरक्षा करनी थी। अन्यथा कभी भी उसे जान से हाथ धोना पड़ जाता। अतः वह हाथी की सूंड़ में जा घुसी और काटते हुए मस्तक में जा पहुँची। उसने मस्तिष्क को काट कर क्षतिग्रस्त कर दिया और हाथी मर गया।

इस तरह एक विशाल शरीर वाले हाथी को एक तुच्छ सी चींटी ने मार डाला। कहने को हाथी गुरु (बड़ा) था लेकिन उसे हरा कर जब चींटी मस्तक से बाहर निकली तो विजेता बन कर वह गुरु बन गई। उसकी यह ट्रिक बाकी चीटियों ने भी सीखी और वे सुरक्षित हो गईं।

यहाँ एक बात गौर करने वाली है। चींटी ने एक खोज की थी। हाथी को मार डालने की विधि की खोज। कल्पना कीजिये, यदि वह इस खोज को सीने में दबाए रहती और सबको खुद को अवतार बता कर बड़ी प्रसिद्धि हासिल कर लेती तो? इस तरह की घटना को मैं 2 फिल्मों में देख चुका हूं।

1. Rango (2011)

2. Shark Tale (2004)

● एक चमत्कारी बाबा (गुरु) अपने राज़ (ज्ञान) किसी को नहीं बताता।

● एक जादूगर अपने ट्रिक्स कभी किसी को नहीं बताता।

● एक गुरु अपने सभी दांव अपने शिष्य को नहीं सिखाता।

क्या कारण हो सकता है? सोचिये।

चलिये मैं बताता हूँ, अपनी समझ से। मेरी बात अच्छी लगे तब ठीक। नहीं तो आपकी बात तो ठीक होना तय ही है।

ये लोग गुरु यानी बड़े तभी तक हैं, जब तक आप को वे अपने गुर यानी राज़ नहीं बता देते। अर्थात आपको प्रभावित करेंगे। आपको हराएंगे। आपको चौंका देंगे ताकि आप उनके पैरों में गिर जाओ। आपका अहंकार टूट जाएगा और आप उनके आगे खुद को समर्पित कर दोगे। न झुकने वाला भी झुकेगा क्योंकि वह उस ज्ञान से अनभिज्ञ है जो ये कथित गुरु जानता है। यही कारण है कि आप उसे धन दोगे, भोजन दोगे, आवास और सुविधाओं का खजाना दोगे और वह बैठे-बैठे खायेगा, ऐश करेगा और आप उसके पैरों में पड़े रहोगे।

कौन यह सुख नहीं चाहता? कौन आपको अपने राज़ बताना चाहता है?

पर क्या हो अगर 

● वह अपनी सभी चालें आपको बता दे?

● अपने पत्ते आपको दिखा दे?

● अपना जादू आपको भी सिखा दे?

● अपने सारे गुर अपने शिष्य को सिखा दे?

सोचिये? मैं अब तक यही गलती कर रहा था। मैं आपको अपने सारे राज़ बता रहा था। आपको भी गुरु बना रहा था। आपको उठा कर अपने बराबर बैठा रहा था। आपको सिर पर चढ़ा रहा था। सब कुछ मुफ़्त में बांटे दे रहा था। कोई मोल ही न रखा अपने ज्ञान का। सब दान कर दिया। कुछ भी न मांगा आपसे। यहीं गलती कर दी। अहंकार नहीं रखा मैंने। भीतर दबा कर रखता अपने सारे कारनामे। घड़ी-घड़ी हतप्रभ करता और जयकारे लगवाता अपने। आपको अपना साथी समझा, अपना दोस्त समझा और यही तो गलती कर दी।

सोचा था कि आप को अपने बराबर पाकर मैं गुरु नहीं रहूँगा। आप भी गुरु बन जाओगे। हम सब गुरु होंगे तो कौन गुरु और कौन शिष्य? सब एक समान हो जाएंगे। कोई छोटा-बड़ा न होगा सब समान होगा। लेकिन कुछ लोगों को हमारा यह समानता का व्यवहार नहीं पचा। उनको तो वही कहना था जो वो तब भी कहते जब मैं इनको अपने राज़ न बताता। अपना ज्ञान न देता। तब भी कहते कि ज्ञान का अहंकार है तभी हमको नहीं बताता। अब भी कह रहे हैं कि अहंकार है इसलिए बता दिया। न होता तो हमको क्यों बताता? अपने मन में रखता।

एक दम्पत्ति की कथा याद आती है इस के बाबत। वही, गधे के साथ यात्रा वाली। लोग कहते कि देखो कैसे मूर्ख हैं, गधा होते हुए भी पैदल चल रहे हैं। दोनो गधे पर बैठ गए तो लोग बोले, देखो कितना निर्दयी जोड़ा है, गधे पर दोनो लद गए? आदमी उतर गया तो कोई बोला कि कितना मूर्ख है, औरत बैठा रखी है, खुद पैदल चल रहा है। औरत भी उतर जाती है। कुछ देर बाद लोगों ने जाने क्या कहा कि दोनों ने गधा ही सिर पर उठा लिया। अब लोग उनको पागल कहने लगे। मैंने सीखा कि आप कितने भी अच्छे हो जाएं, लेकिन नकरात्मक लोगों को आपके भीतर बुराई ही दिखेगी।

देखो, ये कोई ज्ञान नहीं है। मन की भड़ास है। निकाल दी आज। बहुत दिन से भरे बैठा था। नमस्ते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अप्रैल 26, 2019

क्या है ये धर्ममुक्त? ~ Shubhanshu

प्रश्न: धर्ममुक्त का क्या मतलब है? धर्म का क्या मतलब है? सम्प्रदायमुक्त (community) लिखिये।

उत्तर: community, sect, creed आदि अर्थ हैं English में आपके संप्रदाय शब्द के। हमें कुछ ऐसा चाहिए जिसका इंग्लिश अनुवाद Religion आये।

सम्प्रदाय पर गौर करें तो सनातन धर्म में 5, इस्लाम में 2, ईसाई में 2, बौद्ध में 6 आदि हैं। फिर हम दूसरे रिलिजन को कैसे सम्प्रदाय कहें? एक रिलिजन में कई रिलीजन कैसे घुसा सकते हैं? सभी जनमानस की पोस्ट देखिये। सब में धर्म शब्द का प्रयोग है। आम शब्द रिलिजन के लिए धर्म ही तो है। कोई नादान ही इसे गुण या duty बोल कर अनर्थ करेगा।

मान लेते हैं कि धर्म शब्द के कई अर्थ हैं। लेकिन आपको क्या अर्थ लगाना है भाव के अनुसार, ये आपकी बुद्धि तय करेगी। हम लोग नास्तिक हैं, वैज्ञानिक हैं तो मुक्ति किससे लेंगे? रिलिजन वाले धर्म से या गुण वाले धर्म से या कर्तव्य वाले धर्म से? केवल मूर्ख ही इसका गलत भाव और अर्थ निकाल सकता है।

पयार्य वाची शब्द अपने भाव के साथ अर्थ बदलते हैं। इसलिये भाव देखना चाहिए। right मतलब सही लेकिन राइट मतलब दांया भी है और राइट मतलब अधिकार भी है। इनके उपयोग करने के तरीके से ही शब्द का अर्थ स्प्ष्ट होता है। धर्ममुक्त से सीधा अर्थ रिलिजन ही है और क्या हो सकता है? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, अप्रैल 21, 2019

एक ही जीवन है, इसे मूर्खता में बर्बाद मत कीजिए ~ Shubhanshu

कोई लड़की भी हमसे सहमत हो तो कृपया बताये। खुले दिमाग के लड़के तो कई हैं हमसे सहमत (हमारे ही प्रयासों से) लेकिन मेरा फ़ोकस महिलाओं के open minded होने पर है क्योंकि वही पहली और प्रभावशाली शिक्षक होती हैं। उनकी सभी सुनते हैं। बच्चे, जवान या बूढे। महिलाओं में सबसे बड़ी समस्या है कि उनसे कहा गया है कि शर्म उनका गहना है। लेकिन कभी आपने सोचा कि ऐसा क्यों कहा गया?

यह पुरुषों के उस समाज ने कहा है जिस समाज ने महिलाओं को ज़िंदा जलाया है। जिन्होंने महिला को नर्क का द्वार बताया है। जिन्होंने उसे पैर की जूती बनाया है। जिनके लिए महिला होना एक कायरतापूर्ण स्थिति है। जिनके लिए महिला का नौकरी/व्यापार करना, आत्मनिर्भर होना, पुरूषों के पुरुष होने का अपमान है।

फिर शर्म तो पुरुष एक महिला होने पर करता है। महिला क्या होने पर करे? पुरूष होने पर? कमाल है कि अधिकतर पुरुष यह चाहते हैं कि महिला पुरुष जैसे कार्य न करें, उसके जैसी बात भी न करे, उसके जैसा कुछ भी नहीं करे। जब महिला बाल छोटे करवाती है तो पुरुष के ऊपर बिजली गिरती है। उसको लगने लगता है कि ये तो हमारी बराबरी पर आ रही है। जब महिला पुरूष जैसे कपड़े पहनती है तब भी उस पर बिजली गिरती है।

कुछ महिलाएं जो पुरूषों के ऊपर निर्भर हैं वे सबसे पहले नई छवि वाली लड़की को टोकती है। उनको डर है कि कहीं आप पुरुषों के गुस्से का शिकार न हो जाएं और आपको भी विवाह न होने की स्थिति में जिस्म बेचना पड़े। वे चाहती हैं कि जैसे वो एडजस्ट करती आई हैं आप भी करें। कहीं आप अगर कल्चर से अलग हो गई, आधुनिक हो गईं तो फिर इस कमाऊ पुरुष समाज से भीख कैसे मांगोगी? कैसे उसके बिस्तर पर जिस्म से एकतरफा उसके कर्ज को चुकाओगी? और अगर अपनी इच्छा से सेक्स पार्टनर का चुनाव करने में लग गईं तब?

अभी तो सिर्फ वह सैटिस्फाइड होता है तो आपको माल देता है, खर्च करने के लिए। जिस दिन आप सैटिस्फाइड होने लगीं तो उस दिन से पुरुष को कर्ज चुकाना पड़ेगा और फिर आप डोमिनेटिंग कहलाओगी जो अभी सिर्फ पुरुष का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो आप पर ऑर्डर नहीं करेगा, आप उसको आर्डर दोगी तो गर्व में चूर मेल ईगो वाले पुरूष से बर्दाश्त तो होगा नहीं। जब तक आप को खुशी और संतुष्टि नहीं मिलती तब तक आप उसे छोडोगी नहीं जबकि वो सन्तुष्ट होकर आपको मझधार में छोड़ देते हैं।

मैंने एक डिसऑर्डर के बारे में पढ़ा है। Nymphomania Disorder नाम है इसका। इसकी शिकार प्रायः महिलांए ही क्यों होती है? कारण वही निकला, एक तरफा सेटिस्फिकेशन पुरुष के द्वारा। इस बीमारी में सेक्स की ज़रूरत के पूरा न होने से सेक्स न मिलने के प्रति एक भय और एडिक्शन (लत) पैदा हो जाता है जो कि आपको हमेशा सेक्स की तड़प में रह जाने की चिंता करवाता है। ऐसी महिलाएं बार-बार अपने पार्टनर बदलने लगती हैं क्योंकि एक तो मानव का बहुविवाही (polygamous) होना इसे प्रेरित करता है, दूसरा इसका सबसे बड़ा कारण है; सन्तुष्टि न मिलना।

अधिकतर पुरुष सेक्स को एक खेल की तरह लेते हैं। महिला को सेक्स डॉल समझते हैं जिसमें महिला के हाँ-न, पसन्द-नापसंद, आनंद-कष्ट से कोई मतलब नहीं। बस अपना पिस्टन चला के पिचकारी मारनी है। ऐसे लोगों की पिचकारी भी सबसे घातक होती है। इन desperate लड़कों के अंदर संयम नहीं होता। ये कभी भी अपना वीर्य योनि से बाहर नहीं छोड़ सकते और कंडोम इस्तेमाल करना इनको एक बवाल लगता है। इन्हीं को गुप्त रोग होते हैं जो आपको लगना तय है क्योंकि ये कभी सेक्स को न नहीं कहते और यही आपको गर्भवती बना कर भी अनचाही मुसीबत में डालते हैं। बस रोगों का पता महिला को कम चलता है क्योंकि महिला का शरीर प्रायः इन कीटाणुओं का शिकार नहीं बल्कि संवाहक होता है। (अपवाद: AIDS)

आपके ऑफर करने पर भी सेक्स को न कहने वाले लड़के ही आपकी पहली पसन्द होने चाहिए। यही लड़के अपने भीतर सेक्स के प्रति लालच नहीं रखते। ये दिन में 1 या 2 बार अच्छे पोर्न को देख कर हस्तमैथुन करते हैं या अपनी पार्टनर को सेटिस्फाइड करके खुद भी सेटिस्फाइड होते हैं या सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहते हैं जबकि सेक्स के पीछे पागल लड़के न सिर्फ 24 घण्टे में 6 बार से ज्यादा हस्तमैथुन करते हैं बल्कि दिन भर पोर्न ही देखने के चक्कर में लगे रहते हैं। हर लड़की को सेक्युलाइज़ करके उसके कपड़े मन में उतार कर उसके साथ काम क्रीड़ा करने के दिवा स्वप्न देखते हैं और इन्हीं के लिंग में वीर्य रोकने का वॉल्व घायल होकर वीर्य को असमय गिराना शुरू कर देता है। ऐसे लड़के सिर्फ लड़की को देखने भर से ही वीर्यपात कर देते हैं और ये बेकार हो जाते हैं किसी भी महिला के लिए।

एक और प्रजाति है लड़कों की। यह प्रजाति है संकीर्णता की हद पार करने वाली प्रजाति। ये न तो हस्तमैथुन करते है और न ही पोर्न देखते हैं। ये अपना दिन धार्मिकों के साथ बिताते हैं और भजन कीर्तन में व्यस्त रहते हैं। ये वही प्रजाति है जो अब विलुप्ति की कगार पर है लेकिन इसी प्रजाति की लड़कियों की भरमार है। इनमें एक अजीबोगरीब समस्या पाई जाती है। इनको स्वप्नदोष बहुत होता है। हर स्वप्न में वे अपने घर, घर के आसपास की महिलाओं, लड़कियों के साथ सेक्स करते हैं। कमाल है न? ;-)

असल में दिमाग अपनी जरूरत पूरी करता ही है। जब आप वास्तव में सेक्स नहीं करोगे तो दिमाग जबरन स्वप्न में करवाएगा। यह कोई रोग नहीं है। परिस्थितियों का परिणाम है। इससे बचने का तरीका सिर्फ इतना है कि हर रात हस्तमैथुन या प्रॉपर सेक्स किया जाए।

और हाँ, यही लोग वास्तव में सेक्स की स्थिति आने पर लड़की की जांघ पर ही अपना पानी छोड़ देते हैं। इनसे भी आपको संतुष्टि नहीं मिल सकती।

एक और समस्या महिलाओं को रहती है। वह है कौमार्य की रक्षा करना। जबकि पुरुष इसे जल्द से जल्द खोना चाहते हैं। कौमार्य केवल एक झिल्ली नहीं है जिसके फटने से निकलता रक्त आप संभाल कर रखें। बहुत कम लड़कियों में यह झिल्ली होती है और प्रकृति में इसका होना केवल कीटाणुओं को अतिरिक्त परत के ज़रिए रोगों के भीतर जाने से बचाने में मदद करना रहा था जो कि बाद में खत्म हो जाती है या बहुत पतली हो जाती है।

कुछ को लगता है कि अगर उन्होंने विवाह किया और पति संकीर्ण विचार वाला, सुहाग रात में खून और दर्द की उम्मीद में बैठा मिला तो क्या होगा? जबकि आपको सोचना ये चाहिए कि अगर वह शीघ्रपतन का शिकार निकला तो क्या होगा? एक तो अनजान व्यक्ति से पहला सेक्स करने की परंपरा और दूसरे उसमें भी उस अनजान व्यक्ति को समाज के कहने पर अपना मान कर उसकी सन्तुष्टि के लिए मरी जा रही हैं? शर्म तो आपको यहाँ आनी चाहिए; पुरूष जैसे बाल कटवाने, कपड़े और बातें करने में नहीं।

रही बात विवाह विच्छेद (तलाक) के डर की तो जान लीजिये कि ऐसा कोई तलाक आज तक नहीं हुआ जिसका कारण कौमार्य का न होना हो। साथ ही कानून महिला (पत्नी) को ही तलाक का हक देता है न कि पति को (कुछ अपवादों को छोड़ कर)।

मैं ये सोचता हूँ कि आपकी हर दूसरी सहेली, सेक्स किसी से करती है और विवाह किसी और से और वो कभी आपको कौमार्य न होने से हुई समस्या नहीं बताती। फिर भी ये कुछ संकीर्ण, कौमार्य रक्षक लड़कियां, इस घटिया परंपरा को ढोती हैं और तड़पते हुए विवाह का इंतजार करती हैं।

यही बताती हैं आपके पूछने पर, "अरे शीला, ये मूड क्यों उखड़ा हुआ है? पहली रात कैसी रही?" और वो कहती है, "क्या बताऊँ यार, मत पूछो, इतना दर्द हुआ न, कि मैंने उनको कुछ करने ही न दिया। अब वो सेक्स न करने के कारण तलाक देने जा रहा है।" और आपको बता दें कि कानून सेक्स न करने पर तलाक दिलवाता है। आशा है कि आपको मेरी दी गई जानकारी से अवश्य ही लाभ हुआ होगा। धन्यवाद। ~ Vn. Shubhanshu SC 2019© 

2019/04/21 14:43

बुधवार, अप्रैल 17, 2019

कपड़ों की जेल से आज़ादी पाइए ~ Shubhanshu

नग्नसमाज में खुली और वैज्ञानिक सोच की महिलाओं की इतनी कमी है कि जब मैंने nudism आंदोलन की नेता अमेरिकी महिला activist से यह आंदोलन भारत में करने के प्लान के बारे में राय देने को कहा तो उन्होंने कहा, 

"भारत में आप यह नहीं कर सकते। यहाँ की जनता बहुत ही पिछड़ी सोच की है और यह देश अमेरिका से 100 साल पीछे है।"

मैंने ज़िद की तो उन्होंने कहा, 

"भारत में सिर्फ स्लोगन लिख कर ही आंदोलन कर सकते हैं। कपड़े उतार कर नहीं। इसमें भी हिन्दू और इस्लामी संगठन हिंसा करके आपको दमित कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति और सत्य को ये पाखण्डी संगठन संस्कृति का अपमान मानते हैं और हम संस्कृति को अपना। best of luck शुभाँशु।"

इस तरह मेरा प्लान पानी में डूब गया। अगर आपको लगे कि आप भी अपनी स्वतंत्रता का हनन होता पा रहे हैं और वस्त्रों के व्यापार को इंसान की दूसरी त्वचा मान कर बढ़ावा दे रहे हैं तो यही समय है जागने का क्योंकि दुनिया में सबसे पहला नग्न समुदाय भारत में बसा था और मिटा दिया गया। हमें नहीं मिटना है बल्कि मिटा देना है उन्हें जो हमें संस्कृति की कैद में रख कर आज़ाद बोलते हैं। ~ Shubhanshu SC 2019©

शनिवार, अप्रैल 13, 2019

संतान रहित लम्बा आनंदमय जीवन कैसे जियें? ~ Shubhanshu

आम जीवन में मैंने देखा है कि लोग 50-60 वर्ष की आयु आते-आते बीमार, अपंग और दयनीय हालत में पहुँच जाते हैं। जो ज्यादा बीमार नहीं होते वे इस कदर कमज़ोर और लाचार हो जाते हैं कि उनको किसी जवान व्यक्ति के हाथ पांव उधार लेने पड़ते हैं। यानि न सिर्फ वे अपनी कष्टमय ज़िन्दगी बेमतलब में जीते हैं बल्कि एक जवान व्यक्ति का जीवन भी अपने साथ बर्बाद करवा देते हैं।

मैंने बहुत गहराई से बचपन, जवानी और बुढ़ापा देखा है। देखा है कि कैसे एक बच्चा जवान हो जाना चाहता है और कैसे एक जवान वापस बच्चा हो जाना चाहता है। कमाल है कि कोई भी बूढ़ा नहीं होना चाहता। जीवन के 3 पड़ाव में से सिर्फ 2 तक जाना चाहता हैं लेकिन तीसरे के करीब आते ही वापस लौट आना चाहता है।

दरअसल यह भी मानव स्वभाव है। जीवन क्या है? जीवन एक रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप जन्मे चेतन मन, उनसे बनी इंद्रियों द्वारा होने वाले एहसासों, मस्तिष्क में डोपामिन जैसे हार्मोनों के ज़रिए होने वाले आनन्द को अनुभव करने का नाम है। इसी के प्रतिरक्षा तंत्र में हम कष्ट और दर्द महसूस करते हैं। ये भी आवश्यक हैं लेकिन केवल बचाव के लिए। दर्द हमें नुकसान दायक कारक से बचाता है। डर हमें नुकसानदेह परिस्थितियों से बचाता है। दुःख रुदन द्वारा हमें कठिन परिस्थितियों से होने वाले निराशा जनक नर्वस ब्रेकडाउन होने से बचाता है। यह सब किसलिये?

दरअसल यह सारी सुविधाएं शरीरों में खुद की रक्षा करने हेतु होती हैं। खुद ये शरीर जब तक है, स्वस्थ है, तब तक हम लोग, लोग हैं अन्यथा ज़िंदा लाश हैं।

ज़िंदा लाश क्या होता है? ज़िंदा लाश का अर्थ है कि एक ऐसा जर्जर शरीर जो सिर्फ सांस लेता, खाता, हगता और सोता है। वह कोई भी आनन्द नहीं ले सकता। आनन्द का न ले पाना ही आपकी मृत्यु है। लेकिन यह शरीर की मृत्यु नहीं है।

विज्ञान द्वारा हम आज मरे-अधमरे शरीर को भी वेंटिलेटर पर रख कर ज़िंदा दिखा सकते हैं। क्योंकि मशीन से दिल, फेफड़े का काम लेकर कर ज़िंदा होने के लक्षण पैदा कर दिये जाते हैं। जबकि व्यक्ति तो कब का मर चुका होता है। धन का लालच आपको चिकित्सक बनवाता है तो आप व्यापार ही तो करोगे? जब धन की भूख बढ़ जाएगी तो आप धन ही तो नोचोगे!

चिकित्सालय मरों को नहीं जिया सकते। वे घायलों के घाव भरते हैं।

हम क्या हैं? हम शरीर हैं। शरीर खत्म, हम (चेतना) खत्म। शरीर का अस्वस्थ/अक्षम होना यानी आनन्द खत्म। आनंद खत्म तो फिर जीवन का क्या करना? दुःख वही सार्थक हैं जो वापस आनन्द ला सकें। रोना वही सार्थक है जो मुस्कुराहट ला सके। दर्द वही सार्थक है जो आंनद ला सके। कष्ट वही सार्थक है जो सुख ला सके।

मैंने इंसानों के पृथ्वी पर आगमन से लेकर भविष्य में उसके खात्मे तक को देखा है। मैंने देखा है कि कैसे इंसान ने आनन्द के लिये सही और गलत रास्ते अपनाए। स्वार्थ से लेकर निःस्वार्थ तक। नफरत से लेकर प्रेम तक। लालच से लेकर त्याग तक। सब के सब आंनद की तलाश में निकलते रहे। कोई राजा बन कर सुख पा गया तो कोई सन्यासी होकर सुखी हो गया।

इसी कड़ी में मैंने देखा कि शरीर को स्वस्थ रख कर हम जीवन का आनन्द लंबे समय तक ले सकते हैं। शरीर का दुरुपयोग करके हम इसे ज़ल्दी ही कष्टमय मृत्यु की ओर धकेल सकते हैं। मैंने जानवरों का गहनता से अध्ययन किया है। मैंने उनको अपनी उम्र पूरी करके शांति से मरते देखा है।

इंसान की औसत आयु 100 वर्ष मानी गई है लेकिन ऐसा लगता है कि यह भी घट-बढ़ सकती है। इंसान कुछ भी कर सकते हैं। इनमें भेड़चाल होती है। कोई अगर कुछ कर रहा है और तुरन्त बर्बाद न हुआ तो सब वही करने लगते हैं। सबकी उम्र निर्धारित है फिर भी इंसान की औसत आयु कैसे घट-बढ़ रही है?

मैंने जंतुओं की गहनता से पड़ताल की है। शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका और अतिसूक्ष्म DNA का भी अध्ययन किया है। देखा है कि कैसे आण्विक स्तर पर शरीर कार्य करता है। कैसे शरीर में छोटा सा परजीवी जाकर उसे नष्ट कर देता है। कैसे हमारी खान-पान की खत्म हो चुकी सेंस ने हमें अभक्ष्य को भक्ष्य बना कर खुद की कार्य प्रणाली को क्षतिग्रस्त कर डाला है। कैसे दीर्घायु केवल दुआओं और आशीर्वाद में ही सीमित रह गई है। सही भी तो है, दुआ और आशीर्वाद में हम वही तो कामना करते हैं जो हो नहीं सकता या जो होना दुर्लभ होता है।

पशुओं में खुद की सेंस होती है कि क्या खाना है और क्या नहीं। भोजन ही हमारे शरीर का निर्माण करता है। हमारा भोजन जैसा होगा, वैसा ही होगा हमारा भविष्य। मैंने देखा कि एंटीऑक्सीडेंट कैसे मुक्त मूलकों को नष्ट करके कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखते हैं। मैंने देखा कि शारिरिक संरचना के अनुसार भोजन करने वाले जन्तुओं का शरीर उनकी संरचना के अनुसार शरीर को चलाता है। जैसे मांसाहारी और सर्वाहारी जन्तुओं में मुक्त मूलक प्रभावी नहीं होते या वे ही उनकी आयु निर्धारित करते हैं। जबकि वनस्पति आधारित भोजन वाले जन्तुओं में मुक्त मूलक तेजी से बूढ़ा करना शुरू कर देते हैं।

इस वृद्धावस्था को रोकने के लिए वनस्पति बहुत बड़ा योगदान देती हैं। केवल वनस्पतियों में ही एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो कि मुक्तमूलक को नष्ट करके कोशिकाओं को स्वस्थ रखते हैं। वनस्पति आधारित भोजन वाले जंतु यदि किसी कारण वश पशुउत्पाद या मांस खाने लगते हैं तो वे न सिर्फ मुक्तमूलकों को पनाह देते हैं बल्कि bad cholesterol और कैंसरकारी तत्व भी शरीर में एकत्र करने लगते हैं। 

ये तत्व स्तन कैंसर (स्त्री/पुरुष), मुहँ, गले, खून, गर्भाशय, आंत आदि के कैंसर, अधिक कैल्शियम होने के कारण हुई विपरीत क्रिया से अस्थिभंगुरता, शरीर के विभिन्न अंगों व नसों में पथरी, मधुमेह, मोटापा, गठिया, जोड़ो का दर्द, दांतों का असमय गिरना आदि तमाम विकार, 35 वर्ष की आयु के बाद कठोर हो चुकी रक्त नलिकाओं के बन्द होने से हुए ह्रदयाघात और पक्षाघात (लकवा) के खतरे पैदा कर देते हैं। ह्रदय की अन्य समस्याओं में; छेद होना, उसकी संरचना में आनुवंशिक दोष होना आदि आते हैं जिनमें बिना कोलेस्ट्रॉल के भी मृत्यु हो सकती है।

इस तरह लंबे जीवन का राज़ जान कर मैं कुछ ऐसे आनंद के त्याग में लग गया जो आगे जाकर कष्ट को दावत देने वाले हैं। मैं अपने परिवेश में डाली गई खराब आदतों में आनंद महसूस करके जो लत लगा बैठा था उनसे जूझने लगा। बार-बार खुद को समझाया है कि खाने के लिये मत जियो। जीने के लिए खाओ। इसी कड़ी में क्या लाभदायक है और क्या नुकसानदायक? यह भी दिमाग में डाला।

भोजन में पशुउत्पाद, नशा, कैफ़ीन ऐसे कारक हैं जो लत डाल देते हैं। डेयरी का केसीन प्रोटीन एक addictive तत्व है। इसे एक बार खाने के बाद अमाशय में एक क्रिया होती है और दिमाग को तुरन्त डोपामिन छोड़ने का आदेश मिलता है। ठीक वैसे ही जैसे नशे, तंबाकू, अफीम, गांजा, भाँग आदि पदार्थो से और सेक्स से मिलता है।

इनकी लत लग जाती है। छोड़ना जैसे एक युद्ध हो जाता है, खुद से ही। कोई कितना भी समझा दे लेकिन सब जानते हुए भी मन नहीं मानता। मैं भी इन परिस्थितियों से गुजरा हूँ। अपने आप को रिहैबिलिटेशन सेंटर बना कर आज़ाद हो गया एक दिन। भोजन की कैद से।

फिर शुरू की खोज कि क्यों चिकित्सक इस खतरे को जानते हुए भी किसी को नहीं बताते। क्यों ज़हर को दवा बताने पर तुले हैं? जवाब जानने की कड़ी में मुझे एक डॉक्यूमेंट्री मिली जो 2017 में ही बनी थी। उसमें बताया गया कि डेयरी, मीट, पोल्ट्री इंडस्ट्री चिकित्सा जगत को अरबों डॉलर का भुगतान कर रही हैं इस सब के प्रचार के लिए। अब सब साफ था।

मैंने तय कर लिया था कि मुझे ज़ल्दी नहीं मरना है। मुझे कष्ट में नहीं जीना है। मुझे बुढ़ापा पीछे धकेलना ही होगा। मुझे बुढ़ापा दयनीय नहीं बनाना। इसलिये मैंने शरीर की आवश्यकता के अनुसार भोजन प्रारंभ किया और मैं आश्चर्य जनक रूप से स्वस्थ और शक्तिशाली होता चला गया। मेरी बुद्धि में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ और मैं लोगों के बीच सम्मान पाने लगा। कभी मूर्ख कहा जाने वाला शुभाँशु आज विद्वान कहा जाने लगा है। लंबे ज्ञानवर्धक लेख लिखने लगा है। अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पा लिया। असम्भव अब सम्भव हो चला है।

इतना कुछ लिख कर, चित्र बना कर, आविष्कार करके शांत बैठा हूँ। इस आशा में कि अभी समय नहीं आया है। लोग अभी इतने परिपक्व नहीं हुए कि वे मेरी कठोर सत्य से भरी बातें सुन-समझ सकें। अभी उनको सबके बीच लाया तो वे भड़क जाएंगे। अपने पूर्वजों को गलत साबित होते देख कर कुपित हो जाएंगे। इतना भीषण बदलाव उनको सदमा दे देगा और वे दे देंगे मुझे असमय मौत। कर देंगे मेरी हत्या।

फिर क्या करना उनको वो सब देकर जो उनके लिए अच्छा है लेकिन उनको चाहिए ही नहीं? ममतामयी माता तक बच्चे के रोये बिना उसे भोजन नहीं देती फिर मैं तो समाज से अलग एक निष्ठुर इंसान हूँ। जो अपने माता-पिता को स्वस्थ रखने के लिये जी जान एक कर दे रहा है ताकि वे बिस्तर न पकड़ लें। जबकि बाकी लोग अपने बुजुर्गों को बिस्तर पकड़ा कर उनकी सेवा में लगे हैं। सेवा ऐसी कि उनका शरीर जल्द ही मृत्यु को प्राप्त हो जाये।

कोई ज़रूरत नहीं है। अव्वल तो स्वस्थ रहिये। दूसरे अगर शरीर जवाब दे गया है तो क्या कर रहे हो जीकर? सांस लेकर छोड़ना जीवन नहीं है। अपनी सेवा करवाने में अपने बच्चों का जीवन बर्बाद करवाना प्रेम नहीं है। क्यों कष्ट सह रहे? अगर स्वस्थ हो सकते हैं, इलाज हो सकता है तो करवाइए। आत्मनिर्भर बन सकते हैं तो प्रयास कीजिये और अगर सब बेकार है तो खत्म कीजिये इस इहलीला को। तड़पते हुए मरने से बेहतर है झटके से मृत्यु। मर्सी किलिंग ले लो।

दूसरों पर निर्भर होना आप बुरा मानते हैं लेकिन बुढापा आते ही यह निर्भरता पुण्य में कैसे बदल जाती है? किसी पर ऐसे निर्भर होना जो उसे कष्ट दे, निर्भरता नहीं है। परजीविता है। जो जिस पर पलती है उसी को खा जाती है।

मैं बुढापे से दूर रहने के हर सम्भव वैज्ञानिक प्रयास कर रहा हूँ। पक्का है कि औरों से ज्यादा अजर और लम्बा जीवन जियूँगा। लेकिन नहीं पता कि मृत्यु का कारण क्या होगा इसलिये पहले से तय है कि अगर बेकार हो गया तो मर जाना पसन्द करूँगा लेकिन किसी पर परजीवी बन कर जीना नहीं। आनंद लेने की पहली शर्त है कि किसी और के आंनद में खलल न पड़े। आशा है कि आपको आज पता चल गया होगा कि अगर अकेले भी रहना पड़े तो आप को क्या करना है। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©  2019/04/13 16:47 

शुक्रवार, अप्रैल 12, 2019

मूर्खता के बदले मूर्खता यानि बुद्धिमानी? ~ Shubhanshu

जातिवाद के बदले जातिवाद? 

The great brahman vs the great chamar?

मतलब चुहियापन्ति के बदले चुहियापन्ति?

क्या चुहियापा है! वाह! कलेजा मुहँ को आ गया।

अरे कोई हग मारे तो आप उसके पास से हटने की जगह खुद भी हग मारोगे क्या?

एक अपनी जाति पर गर्व कर रहा है तो दूसरा उसे अनदेखा करने की जगह खुद भी वही करने लगे? फिर गलत कौन है कैसे पता चलेगा?

हम सब भारतवासी एक परिवार हैं। सभी भारतीय हैं। ये जातियां तो मन में हैं या संविधान में आपको दी गई बैसाखी है। लेकिन क्या आप खुद को लंगड़ा अपाहिज मानते हो? मानते हो कि आप हमेशा गरीब, लाचार, मंदबुद्धि और कमज़ोर ही रहोगे? राष्ट्रपति कोविंद जी को क्या अब आप दींन हीन मानोगे या कलाम साहब जिनको मुस्लिम आरक्षण प्राप्त था? ~ Vn. Shubhanshu SC 2019©

मंगलवार, अप्रैल 09, 2019

गरुणपुराण को जानने वालों से सवाल ~ Shubhanshu

आत्मा को मानने वाला व्यक्ति: भूत/पिशाच वे बुरी आत्मा हैं जिनकी अधूरी इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो यहीं रह गए।

शुभांशु धर्ममुक्त: 1. दुनिया में कौन है जिसकी समस्त इच्छाएं मरने तक पूर्ण हो गई हों?

2. ये किस नियम के आधार पर तय हुआ कि अधूरी इच्छा वाली आत्मा को स्वर्ग या नर्क नहीं भेजा जाएगा?

3. अधूरी इच्छा वाले भूत/पिशाच बुरे ही क्यों होते हैं? अच्छे क्यों नहीं?

4. अगर वे बुरे हैं तो ईश्वर/चित्रगुप्त/यमराज उनको ऐसे ही खुला क्यों छोड़े दे रहे हैं? इनको सज़ा क्यों नहीं देते?

5. क्या भूत बनने के लिये किसी को अपनी नई इच्छा पैदा कर लेना काफी नहीं होगा, मरते समय?

6. एक बार तय कर लो कि सिस्टम क्या है आप लोगों का? मरने के बाद आपकी आत्मा का क्या होता है? एक बार ढंग से कल्पना कर लो। ये बार बार बदलने वाली नोटंकी विज्ञान की होती है लेकिन आपका धर्म तो परफेक्ट है न? या ये भी जुमलागिरी है?

और चलते-चलते, आत्मा अच्छी बुरी हो ही नहीं सकती क्योकि अच्छा बुरा तो जीन होता है दिमाग का या वो आदतें जो इंसान सीखता है। वो सब यादें दिमाग नाम के उपकरण में जमा होता है जो कि आपकी कथित आत्मा में जा ही नहीं सकते। समझे या समझाऊँ? ~ Shubhanshu 2019© 1:35pm

गुरुवार, अप्रैल 04, 2019

राजनीति हटाओ लोकतंत्र लाओ ~ Shubhanshu

समय है बदलाव का
खुद को बर्बाद करना बंद करें

केवल प्रति नागरिक न्यूनतम आय नियम ही संभव है जो कि प्रति माह ₹10000.00 हो सकती है। इसका मतलब है ₹120000.00 प्रति वर्ष। यह नियम पहले से ही कई देशों में लागू है और भारतीय विद्वान इसे भारत में भी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं!

₹72000.00 या ₹1500000.00 का प्रलोभन सिर्फ आपकी भावनाओं के साथ मजाक है।

लेकिन डर्टी पॉलिटिशियन वोट हासिल करने के लिए अपने अनुसार अपने सही समय के लिए, अपने लाभों के लिए, इसका उपयोग करके इस परियोजना को देर से लागू करने की योजना बना रहे हैं।

क्यों राजनेता स्वेच्छा से नौकर बनने के लिये और खुद के प्रचार के लिए भारी धन खर्च करने को तैयार हैं? क्या वास्तव में हमें एक राजनेता की जरूरत है जो देश को बेहतर बनाने के लिए करों का प्रबंधन करे? वह करे जो लोग चाहते हैं या उन्हें हम पर शासन करने की आवश्यकता है? क्या यह उनकी चरम श्रद्धा और समर्पण है या खुद के लिए जीवन भर का आराम, सम्मान, कानून को अपनी जेब में रखने और व्यवस्था को अपने हिसाब से नियंत्रित करने और एक शासक के रूप में अपने स्वयं के विचारों को लागू करने के द्वारा लोकतंत्र को नष्ट कर देने का लालच है?

हर राजनेता द्वारा पहले वालों के समान वादे, जबकि वही समस्याएं उनकी सेवा अवधि खत्म होने के बाद भी बनी रहती हैं। क्या आप मूर्ख हो? या खुद को मूर्ख दिखाने की कोशिश कर रहे हैं?

इसके बारे में सोचो। वोट देना बंद करो, अपनी मेहनत की कमाई इन फालतू लोगों को देना बंद करो। अपने स्वयं के विभाग बनाइये, अपनी स्वयं की प्रणाली बनाइये, लोगों को उनकी पात्रता के आधार पर नियुक्त कीजिये और अपने देश का प्रबंधन स्वयं टीम बना कर कीजिये। देश बनाइये वैसा, जैसा आप चाहते हैं। यही सच्चा लोकतंत्र होगा। "राज़ करना या शासन करना" जैसे शब्द लोकतंत्र में अनुपस्थित हैं। यह केवल राजशाही से संबंधित शब्द और कार्य हैं। जहाँ केवल राज़ा की ही चलती है।

धन, धर्म, हवस, नशे आदि के लालच से मूर्ख मत बनो। मानवता के बारे में सोचो। राष्ट्र के बारे में सोचो और अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचो। आपका दिन मंगलमय हो! ~ शुभांशु सिंह चौहान 2019 ©

किसी के धर्म से नफरत न करें ~ Shubhanshu

सभी ऐसे व्यक्ति जो खुद को नास्तिक कहते हैं वे किसी भी धर्म मे खोट निकालना तुरन्त बन्द करें। हर दूसरा धर्म पहले की पोल खोल कर ही खुद को बड़ा बताता है। आपको किसी धर्म की आलोचना करने पर नास्तिक नही बल्कि दूसरे धर्म का एजेंट समझ लिया जाएगा जो कि स्वाभाविक और सही है।

आपका प्रमुख target god है न कि धर्म। कुछ धर्म मे तो god का कॉन्सेप्ट ही नही है। फिर?

यदि आप अब तक गलती से दूसरे धर्म का या अपने धर्म का मजाक उड़ा रहे थे तो सम्हल जाएं और अगर आप किसी धर्म को मानते हुए किसी अन्य की आलोचना कर रहे हैं तो कहने की आवश्यकता नही है कि आप उस धर्म के एजेंट हैं और अगले का अपने धर्म मे विश्वास जगाना चाहते हैं। ऐसे लोग खुद को नस्त्तिक के चोले से निकाल फेकें। असली नास्तिकों को बदनाम न करें।

सच्चा नस्त्तिक सिर्फ ईश्वर/गॉड/अल्लाह/रब आदि नामो से जाने जाने वाले 1 ही पात्र की आलोचना करता है और पोल पट्टी खोलता है। धर्म तो मान्यताएं हैं। गलत होंगी ही। धर्म की आलोचना करने से ईश्वर/god को कोई फर्क नही पड़ता। लोग आपके घण्टों समझाने के बाद बदले भी तो कोई दूसरा धर्म अपना लेंगे। ईश्वर का अन्धविश्वस वहीं का वहीं। परिणाम कुछ भी नही।

PS: कमाल तो ये है कि ईश्वर/गॉड/अल्लाह खत्म सब धर्म खत्म। पाखण्ड खत्म। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 4 अप्रैल 2017 9:18pm

बुधवार, अप्रैल 03, 2019

So do you still like politics? ~ Shubhanshu

Only Minimum income per citizen rule is possible which is 10000₹ per month. It means 120000₹ per year. This rule is already implemented on many countries and indian scholars are trying to insist it in india too! 

But Dirty Politicians are planning to make late this project by using it as for their benefits for their desirable right time to gain votes.

Why politicians are volunteering to be a servant with spending huge money to promote them? Are we need a politician to manage the taxes to improve the country by doing what people want or they need to rule upon us? Is it their extreme faith and dedication to help us or greed of lifetime leisure, respect, to control law and order for their sake and destroy the democracy by implementation of their own ideas as a ruler not a servant?

Same promises by every politician, same problems persists after their service period. Are you an idiot? Or trying to show yourself an idiot?

Think about it. Stop voting, stop giving your hard earned money to these fuckers. Make your own departments, your own system, hire people by their eligibility and manage your country as you want. That will be true democracy. The word "to rule" is absured in democracy. It is related only with Monarchy.

Don't be fooled by your own greed. Think about humanity. Think about nation and think about your future generations. Have a nice thoughtful day! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©