चलिये पिछली ज्ञान के अहंकार वाली पोस्ट पर चर्चा करते हैं। मैं क्या करना चाह रहा था और लोग क्या समझे, इस पर अपनी निजी सोच बताता हूँ।
प्रश्न: ज्ञान किस से मिल सकता है?
उत्तर: गुरु से।
प्रश्न: गुरु कौन होता है?
उत्तर: गुरु अर्थात बड़ा। जो भी आपसे अधिक हो किसी भी क्षेत्र में, वह गुरु है। कोई अगर हम से ज्यादा अनुभवी है, ज्यादा समझदार है, ज्यादा जानकारी से परिपूर्ण है तो वह भी गुरु है। गुरु हर वह सजीव-निर्जीव वस्तु/जंतु/वनस्पति हो सकती है जो आपको सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हो। जिसके प्रति आपको कृतज्ञता (एहसानमंद) का एहसास हो।
जैसे एक चींटी भले ही दिखने में तुच्छ शरीर की मालिक है लेकिन वह आपको दिन रात कार्य करके हिम्मत देती है। चींटी कभी नहीं सोती। वह दिखाती है कि कार्य करना ही आपका एकमात्र ध्येय है। कितनी भी बार कोई तुमको गिराए, या आप अपनी गलती से गिरो, आपको फिर से उठ खड़ा होना है और सफलता प्राप्त करनी है।
एक कथा सुनाई जाती रही है, चींटी और हाथी की। कितनी सत्य है इसका तो पता नहीं लेकिन फिर भी प्रभावित करती है।
एक हाथी को अपने ऊपर अतिआत्मविश्वास था कि उसे कोई नहीं हरा सकता क्योंकि वह सबसे खतरनाक पशु शेर को भी मार सकता था। एक बार उसने चींटी का मजाक उड़ाया कि तेरी मेरे सामने औकात क्या है? तुझे तो मैं यूं मसल दूँगा। इस पर चींटी ने कहा कि कर लो मुकाबला। हाथी ने उसे मारने के लिए पैर बढाया तो वह उसके पैर पर चढ़ गई। हाथी धूल उड़ाता रह गया।
इस दौरान चींटी को भी आत्मरक्षा करनी थी। अन्यथा कभी भी उसे जान से हाथ धोना पड़ जाता। अतः वह हाथी की सूंड़ में जा घुसी और काटते हुए मस्तक में जा पहुँची। उसने मस्तिष्क को काट कर क्षतिग्रस्त कर दिया और हाथी मर गया।
इस तरह एक विशाल शरीर वाले हाथी को एक तुच्छ सी चींटी ने मार डाला। कहने को हाथी गुरु (बड़ा) था लेकिन उसे हरा कर जब चींटी मस्तक से बाहर निकली तो विजेता बन कर वह गुरु बन गई। उसकी यह ट्रिक बाकी चीटियों ने भी सीखी और वे सुरक्षित हो गईं।
यहाँ एक बात गौर करने वाली है। चींटी ने एक खोज की थी। हाथी को मार डालने की विधि की खोज। कल्पना कीजिये, यदि वह इस खोज को सीने में दबाए रहती और सबको खुद को अवतार बता कर बड़ी प्रसिद्धि हासिल कर लेती तो? इस तरह की घटना को मैं 2 फिल्मों में देख चुका हूं।
1. Rango (2011)
2. Shark Tale (2004)
● एक चमत्कारी बाबा (गुरु) अपने राज़ (ज्ञान) किसी को नहीं बताता।
● एक जादूगर अपने ट्रिक्स कभी किसी को नहीं बताता।
● एक गुरु अपने सभी दांव अपने शिष्य को नहीं सिखाता।
क्या कारण हो सकता है? सोचिये।
चलिये मैं बताता हूँ, अपनी समझ से। मेरी बात अच्छी लगे तब ठीक। नहीं तो आपकी बात तो ठीक होना तय ही है।
ये लोग गुरु यानी बड़े तभी तक हैं, जब तक आप को वे अपने गुर यानी राज़ नहीं बता देते। अर्थात आपको प्रभावित करेंगे। आपको हराएंगे। आपको चौंका देंगे ताकि आप उनके पैरों में गिर जाओ। आपका अहंकार टूट जाएगा और आप उनके आगे खुद को समर्पित कर दोगे। न झुकने वाला भी झुकेगा क्योंकि वह उस ज्ञान से अनभिज्ञ है जो ये कथित गुरु जानता है। यही कारण है कि आप उसे धन दोगे, भोजन दोगे, आवास और सुविधाओं का खजाना दोगे और वह बैठे-बैठे खायेगा, ऐश करेगा और आप उसके पैरों में पड़े रहोगे।
कौन यह सुख नहीं चाहता? कौन आपको अपने राज़ बताना चाहता है?
पर क्या हो अगर
● वह अपनी सभी चालें आपको बता दे?
● अपने पत्ते आपको दिखा दे?
● अपना जादू आपको भी सिखा दे?
● अपने सारे गुर अपने शिष्य को सिखा दे?
सोचिये? मैं अब तक यही गलती कर रहा था। मैं आपको अपने सारे राज़ बता रहा था। आपको भी गुरु बना रहा था। आपको उठा कर अपने बराबर बैठा रहा था। आपको सिर पर चढ़ा रहा था। सब कुछ मुफ़्त में बांटे दे रहा था। कोई मोल ही न रखा अपने ज्ञान का। सब दान कर दिया। कुछ भी न मांगा आपसे। यहीं गलती कर दी। अहंकार नहीं रखा मैंने। भीतर दबा कर रखता अपने सारे कारनामे। घड़ी-घड़ी हतप्रभ करता और जयकारे लगवाता अपने। आपको अपना साथी समझा, अपना दोस्त समझा और यही तो गलती कर दी।
सोचा था कि आप को अपने बराबर पाकर मैं गुरु नहीं रहूँगा। आप भी गुरु बन जाओगे। हम सब गुरु होंगे तो कौन गुरु और कौन शिष्य? सब एक समान हो जाएंगे। कोई छोटा-बड़ा न होगा सब समान होगा। लेकिन कुछ लोगों को हमारा यह समानता का व्यवहार नहीं पचा। उनको तो वही कहना था जो वो तब भी कहते जब मैं इनको अपने राज़ न बताता। अपना ज्ञान न देता। तब भी कहते कि ज्ञान का अहंकार है तभी हमको नहीं बताता। अब भी कह रहे हैं कि अहंकार है इसलिए बता दिया। न होता तो हमको क्यों बताता? अपने मन में रखता।
एक दम्पत्ति की कथा याद आती है इस के बाबत। वही, गधे के साथ यात्रा वाली। लोग कहते कि देखो कैसे मूर्ख हैं, गधा होते हुए भी पैदल चल रहे हैं। दोनो गधे पर बैठ गए तो लोग बोले, देखो कितना निर्दयी जोड़ा है, गधे पर दोनो लद गए? आदमी उतर गया तो कोई बोला कि कितना मूर्ख है, औरत बैठा रखी है, खुद पैदल चल रहा है। औरत भी उतर जाती है। कुछ देर बाद लोगों ने जाने क्या कहा कि दोनों ने गधा ही सिर पर उठा लिया। अब लोग उनको पागल कहने लगे। मैंने सीखा कि आप कितने भी अच्छे हो जाएं, लेकिन नकरात्मक लोगों को आपके भीतर बुराई ही दिखेगी।
देखो, ये कोई ज्ञान नहीं है। मन की भड़ास है। निकाल दी आज। बहुत दिन से भरे बैठा था। नमस्ते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©