बहुत दिनों बाद एक राजनीतिक पोस्ट डाल रहा हूँ। ये समीक्षा है पिछले 20 वर्षों की। लोग कहते रहे कि राजनीति पर लिखो। मैं सोचता रहा कि इस गन्दगी पर क्या लिखूं? कलम गन्दी हो जाएगी। पर्यावरण अराजकतावादी होकर लोकतंत्र में रहता हूँ। जिस से मतलब नहीं उस पर लिखना भी एक परीक्षा है।
आप सबको देख कर आपके हित में सोचता रहता हूँ। आपको चोट लगती है तो मुझे भी लगती है। आप मेरे विरोधी हो या साथी। मेरा दिल नहीं जानता ये सब। बस रो पड़ता हैं आपको मूर्खता करते देख कर।
जब भी टोकता, गाली खाता। फिर भी डटा रहता। बिना गाली दिए, कुढ़ता रहता, अंदर ही अंदर लेकिन कोई मुझे देख कर सीखता होगा, ये सोच कर नहीं बना बुरा कभी।
फिर भी बदनाम हो गया। अपने ही साथियों ने काट खाया। आपकी सूखी आँखो का तो पता नहीं पर मैं ज़रूर रो रहा हूँ। कनपटियों में भारी दर्द है। आंसू धुंधला कर रहे। टाइपिंग मुश्किल हो रही लेकिन फिर भी मैं मूर्ख, अपने बड़े दिल के कारण ढीठ हूँ। अच्छा इंसान होना भी अभिशाप है। एक दिन नहीं बीतता जब लोग आपको रुलाते नहीं।
फिर भी मैं अपनी चाल में चलता रहा और सब मुझे समाज का दुश्मन समझते रहे, लेकिन मैं जानता था इस वास्तविक समाज को। इसे वो चाहिए ही नहीं जो आप सब दे रहे हो। अब जब vvpat मिलान ने evm को सही साबित कर दिया तो बहुत से चुनावी मेंढकों के सुर बदल गए।
अपनी कमजोरी और लाचारी को छुपाने के लिए चुनाव प्रक्रिया पर ही चढ़ते रहे। जब 10 साल कांग्रेस सत्ता पर चढ़ी रही तब bjp evm पर चिल्लाती रही। कॉंग्रेस के भर्रष्टाचार से तंग आकर अन्ना हजारे ने लोकपाल आंदोलन करके bjp को जितवाया। जिससे केजरीवाल विद्रोह करके नेता बन गए।
bjp ने आते ही कांग्रेस के रुके हुए कार्यों को करवा कर लोगों को खुश कर दिया। बड़े रिस्क लिए जिससे बदनामी हुई। लेकिन स्मार्टसिटी, फ्री wifi, मेक इन इंडिया जैसे कार्यो से पढ़े लिखे लोगों को लगा कि ये सरकार वैसी नही जैसी पिछले 10 सालों से हम सब सोच रहे थे।
बातें आधुनिकता, विज्ञान की हुई, मेट्रो, बुलेट का ज़माना आया। ऑनलाइन बिलिंग शुरू हुई और कई कार्य ऑनलाइन हो गए। हाँ, अमित शाह और इनके साथियों ने मूर्खता पूर्ण हरकतें कीं, पंडे-पुजारियों ने अपने उल्टे-पलटे बयान देकर फजीहत करवाई। टाइम पत्रिका में लोकनायक मोदी जी डिवाइडर बन गए।
अपराधियों को धर्म के नाम पर वोट दिलवा कर विश्वास कम कर लिया और गाय, यज्ञ आदि नोटँकी पर धन बर्बाद किया जिससे उनकी खुले आम हंसी उड़ी। फिर घोटाले में फंसने पर फ़ाइल जल जाना आदि हरकतों से चौकीदार चोर जैसे नामों से पुकारा गया।
अजीब बयानों के कारण विपक्ष में मजाक उड़ाया गया और व्यक्तिगत क्षवि खराब हुई। लेकिन विकास कार्य भी हुए ये माना जायेगा। इन्हीं वर्षों में आधार, जनधन मुफ़्त खाता, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, cng और बैटरी वाली गाड़ियां सस्ती होना, gst, इनकम टैक्स का 250000 से 500000 तक छूट, मुकेश अम्बानी का मोदी के माध्यम से jio को प्रोमोट करवाना आदि, सब कुछ जनता को लुभाने वाले कार्य थे। जिनसे विपक्ष भी धरातल पर इनके पक्ष में हो गया।
Demonetization से भले ही लोगों को समस्या हुई लेकिन इससे सरकार को लगभग 10720 करोड़ रुपये का लाभ हुआ और नकली नोटों का चलन कम हुआ। इससे भी ऊंचे तबके के पढ़े-लिखे वर्ग में मोदी की तारीफ सुनने को मिली।
करोड़ो रूपये अपने प्रचार में लगाना, नमो tv से धोखाधड़ी करके प्रचार करना, 15 लाख का जुमला, बहुत गलत बातें होंगी लेकिन जो जनता को अच्छा लगा, जनता ने उसे देखा। विरोध इतना ज्यादा हुआ कि सब जगह मोदी ही मोदी छा गया। विरोधी ही दरअसल मोदी के असली प्रचारक थे। जो इनको नहीं जानता था वो भी इनका ही नाम गुनगुनाने लगा।
मैं रुका रहा। मैं इस विरोध के खेल से दूर रहा। कुछ भी करना उनको ही सहयोग होता लेकिन मुझे भी विरोध न करने पर मोदी एजेंट कहा गया। संघी बोला गया। मैं चुप रहा। जानता था कि न्यूटन का तीसरा नियम अपना कार्य करेगा। वही हुआ। पक्ष-विपक्ष सबने bjp-मोदी कर-कर के मोदीमय भारत बना दिया और उनको इतनी सीटें दिलवा दीं जितनी पहले वे न पा सके।
आपको क्या लगता है ये अब कम होंगी? नहीं अब पता नहीं bjp कितने वर्षों तक काबिज रहने वाली है। 22 दल अब बर्बाद हो गए। कोई अब राजनीति में शायद ही वो बात पैदा कर सकेगा जो bjp इनकी कामचोरी के कारण फायदा उठा गयी। जोश सब ठंडा हो जाएगा।
अब कोई बड़ी गलती ही bjp को सरकार से गिरा सकती है, जिसकी उम्मीद अब कम ही है। विरोधियों ने उनको सभी छेद दिखा दिए। उन्होंने भर लिए और अब ये जहाज कैसे डूबेगा? खुद सोचो।
विरोध करने की जगह खुद क्या करोगे, इसका प्रचार करते। जनता का दिल जीतते। जय भीम, नमो बुद्धाय की जगह जय विकास बोलते और करते। लेकिन नहीं, आपको तो बस 1000-1200₹ की मूर्ति लगा कर ही विकास मिल गया था। विपक्ष के भाषणों में दम नहीं था, उनमें भी मोदी ही घुसा हुआ था।
उधर वो चौकीदार मन की बात मोबाइल पर सुना रहा था, रेडियो पर सुना रहा था। उसने सब के दिमाग पर कब्जा कर लिया और इधर बस आस्तिक-नास्तिक चलता रहा। सिक्का अपना खोटा हो तो बोलने का हक चला जाता है और फिर बिना सुबूत evm पर रोना और कुछ कर न पाना, "नाच न आये आंगन टेढ़ा" जैसा ही लगा मुझे तो।
मुझे जो उड़ती-उड़ती पता है, लिख रहा हूँ। कोई नेट से डाटा कॉपी करके डालने का नाटक नहीं करता। दिल से लिखता हूँ ताकि दिल में उतर जाए। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 4:25 PM 28 may