Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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मंगलवार, मई 28, 2019

समीक्षा: भारत की राजनीति ~ Shubhanshu

बहुत दिनों बाद एक राजनीतिक पोस्ट डाल रहा हूँ। ये समीक्षा है पिछले 20 वर्षों की। लोग कहते रहे कि राजनीति पर लिखो। मैं सोचता रहा कि इस गन्दगी पर क्या लिखूं? कलम गन्दी हो जाएगी। पर्यावरण अराजकतावादी होकर लोकतंत्र में रहता हूँ। जिस से मतलब नहीं उस पर लिखना भी एक परीक्षा है।

आप सबको देख कर आपके हित में सोचता रहता हूँ। आपको चोट लगती है तो मुझे भी लगती है। आप मेरे विरोधी हो या साथी। मेरा दिल नहीं जानता ये सब। बस रो पड़ता हैं आपको मूर्खता करते देख कर।

जब भी टोकता, गाली खाता। फिर भी डटा रहता। बिना गाली दिए, कुढ़ता रहता, अंदर ही अंदर लेकिन कोई मुझे देख कर सीखता होगा, ये सोच कर नहीं बना बुरा कभी।

फिर भी बदनाम हो गया। अपने ही साथियों ने काट खाया। आपकी सूखी आँखो का तो पता नहीं पर मैं ज़रूर रो रहा हूँ। कनपटियों में भारी दर्द है। आंसू धुंधला कर रहे। टाइपिंग मुश्किल हो रही लेकिन फिर भी मैं मूर्ख, अपने बड़े दिल के कारण ढीठ हूँ। अच्छा इंसान होना भी अभिशाप है। एक दिन नहीं बीतता जब लोग आपको रुलाते नहीं।

फिर भी मैं अपनी चाल में चलता रहा और सब मुझे समाज का दुश्मन समझते रहे, लेकिन मैं जानता था इस वास्तविक समाज को। इसे वो चाहिए ही नहीं जो आप सब दे रहे हो। अब जब vvpat मिलान ने evm को सही साबित कर दिया तो बहुत से चुनावी मेंढकों के सुर बदल गए।

अपनी कमजोरी और लाचारी को छुपाने के लिए चुनाव प्रक्रिया पर ही चढ़ते रहे। जब 10 साल कांग्रेस सत्ता पर चढ़ी रही तब bjp evm पर चिल्लाती रही। कॉंग्रेस के भर्रष्टाचार से तंग आकर अन्ना हजारे ने लोकपाल आंदोलन करके bjp को जितवाया। जिससे केजरीवाल विद्रोह करके नेता बन गए।

bjp ने आते ही कांग्रेस के रुके हुए कार्यों को करवा कर लोगों को खुश कर दिया। बड़े रिस्क लिए जिससे बदनामी हुई। लेकिन स्मार्टसिटी, फ्री wifi, मेक इन इंडिया जैसे कार्यो से पढ़े लिखे लोगों को लगा कि ये सरकार वैसी नही जैसी पिछले 10 सालों से हम सब सोच रहे थे।

बातें आधुनिकता, विज्ञान की हुई, मेट्रो, बुलेट का ज़माना आया। ऑनलाइन बिलिंग शुरू हुई और कई कार्य ऑनलाइन हो गए। हाँ, अमित शाह और इनके साथियों ने मूर्खता पूर्ण हरकतें कीं, पंडे-पुजारियों ने अपने उल्टे-पलटे बयान देकर फजीहत करवाई। टाइम पत्रिका में लोकनायक मोदी जी डिवाइडर बन गए।

अपराधियों को धर्म के नाम पर वोट दिलवा कर विश्वास कम कर लिया और गाय, यज्ञ आदि नोटँकी पर धन बर्बाद किया जिससे उनकी खुले आम हंसी उड़ी। फिर घोटाले में फंसने पर फ़ाइल जल जाना आदि हरकतों से चौकीदार चोर जैसे नामों से पुकारा गया।

अजीब बयानों के कारण विपक्ष में मजाक उड़ाया गया और व्यक्तिगत क्षवि खराब हुई। लेकिन विकास कार्य भी हुए ये माना जायेगा। इन्हीं वर्षों में आधार, जनधन मुफ़्त खाता, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, cng और बैटरी वाली गाड़ियां सस्ती होना, gst, इनकम टैक्स का 250000 से 500000 तक छूट, मुकेश अम्बानी का मोदी के माध्यम से jio को प्रोमोट करवाना आदि, सब कुछ जनता को लुभाने वाले कार्य थे। जिनसे विपक्ष भी धरातल पर इनके पक्ष में हो गया।

Demonetization से भले ही लोगों को समस्या हुई लेकिन इससे सरकार को लगभग 10720 करोड़ रुपये का लाभ हुआ और नकली नोटों का चलन कम हुआ। इससे भी ऊंचे तबके के पढ़े-लिखे वर्ग में मोदी की तारीफ सुनने को मिली।

करोड़ो रूपये अपने प्रचार में लगाना, नमो tv से धोखाधड़ी करके प्रचार करना, 15 लाख का जुमला, बहुत गलत बातें होंगी लेकिन जो जनता को अच्छा लगा, जनता ने उसे देखा। विरोध इतना ज्यादा हुआ कि सब जगह मोदी ही मोदी छा गया। विरोधी ही दरअसल मोदी के असली प्रचारक थे। जो इनको नहीं जानता था वो भी इनका ही नाम गुनगुनाने लगा।

मैं रुका रहा। मैं इस विरोध के खेल से दूर रहा। कुछ भी करना उनको ही सहयोग होता लेकिन मुझे भी विरोध न करने पर मोदी एजेंट कहा गया। संघी बोला गया। मैं चुप रहा। जानता था कि न्यूटन का तीसरा नियम अपना कार्य करेगा। वही हुआ। पक्ष-विपक्ष सबने bjp-मोदी कर-कर के मोदीमय भारत बना दिया और उनको इतनी सीटें दिलवा दीं जितनी पहले वे न पा सके।

आपको क्या लगता है ये अब कम होंगी? नहीं अब पता नहीं bjp कितने वर्षों तक काबिज रहने वाली है। 22 दल अब बर्बाद हो गए। कोई अब राजनीति में शायद ही वो बात पैदा कर सकेगा जो bjp इनकी कामचोरी के कारण फायदा उठा गयी। जोश सब ठंडा हो जाएगा।

अब कोई बड़ी गलती ही bjp को सरकार से गिरा सकती है, जिसकी उम्मीद अब कम ही है। विरोधियों ने उनको सभी छेद दिखा दिए। उन्होंने भर लिए और अब ये जहाज कैसे डूबेगा? खुद सोचो।

विरोध करने की जगह खुद क्या करोगे, इसका प्रचार करते। जनता का दिल जीतते। जय भीम, नमो बुद्धाय की जगह जय विकास बोलते और करते। लेकिन नहीं, आपको तो बस 1000-1200₹ की मूर्ति लगा कर ही विकास मिल गया था। विपक्ष के भाषणों में दम नहीं था, उनमें भी मोदी ही घुसा हुआ था।

उधर वो चौकीदार मन की बात मोबाइल पर सुना रहा था, रेडियो पर सुना रहा था। उसने सब के दिमाग पर कब्जा कर लिया और इधर बस आस्तिक-नास्तिक चलता रहा। सिक्का अपना खोटा हो तो बोलने का हक चला जाता है और फिर बिना सुबूत evm पर रोना और कुछ कर न पाना, "नाच न आये आंगन टेढ़ा" जैसा ही लगा मुझे तो।

मुझे जो उड़ती-उड़ती पता है, लिख रहा हूँ। कोई नेट से डाटा कॉपी करके डालने का नाटक नहीं करता। दिल से लिखता हूँ ताकि दिल में उतर जाए। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 4:25 PM 28 may

सोमवार, मई 27, 2019

क्या चिकित्सक आपको धीमी मौत दे रहे हैं?


जानवर का खून ही दूध होता है। उससे लाल रक्त कण निकाल कर केसीन प्रोटीन बदल दी जाती है बच्चे के लिए। बच्चा 3 वर्ष तक मांसाहारी होता है रिननेट एंजाइम बनने के कारण जो केसीन प्रोटीन को पचाता है फिर यह ग्रन्थि खत्म हो जाती है और दूध पचाना मुश्किल हो जाता है। यहीं से मानव vegan बन जाता है। अतः केवल डेढ़ से 3 वर्ष तक का शिशु मानव ही सर्वाहारी (omnivores) होता है। उसके बाद vegan बन जाता है।

कच्चा भोजन तक खाना मुश्किल हो जाता है उसे क्योंकि वह प्रसंस्करित (processed) खाद्य पदार्थ खाने के लिये नहीं बना। उसे जो सीधे और स्वादिष्ट खाने को मिलता है वही खाता है। जैसे मीठे-खट्टे फल, कंद, मूल आदि।
मांस, सींग, दांत, कस्तूरी, दूध, अंडे, चमड़े के अतिरिक्त शहद, लाख, रेशम, मूंगा, मोती, कीड़े से बना लाल रंग, कैंथरइडीन oil, सांडाह oil, पशुओं पर परीक्षण किए जाने वाले वनस्पति उत्पाद आदि भी पशुक्रूरता के अंतर्गत रजिस्टर उत्पाद हैं। जिनका विश्वव्यापी विरोध् बीते 100 सालों से चल रहा है। अब इस आंदोलन ने और भी गति पकड़ ली है क्योंकि लोग omnivores जीवन को अब खतरनाक मानने लगे हैं।

कम शारीरिक श्रम के कारण अब पशुउत्पाद के घातक स्वास्थ्य परिणाम आने लगे हैं। केवल पशुउत्पाद ही cholesterol और अन्य घटक जैसे केसीन प्रोटीन लिए होते हैं। मानव की धमनियां 30 वर्ष की आयु के बाद से कठोर होने लगती हैं। उनका लचीला पन समाप्त होने लगता है और इस उम्र के बाद से अब तक जो भी खाया-पिया था वह संयुक्त रूप से अपना रंग दिखाने लगता है। हम अपनी आदतें आसानी से नहीं बदल सकते अतः जो 30 वर्ष तक कुछ न बिगाड़ पाया वह आगे भी नहीं बिगाड़ पायेगा जैसी सोच से ग्रस्त हो जाते हैं और मृत्यु आसानी से हमारे करीब पहुँच जाती है।

लचीलापन खत्म होने से लोहे के पाइप की तरह कठोर हो चुकी रक्त की धमनियों में यह cholesterol रक्तकणों के साथ मिल कर एक थक्का बनाता है और धमनियों में फंसने लगता है। इससे ह्रदय को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है। जब यही रास्ता इतना अधिक अवरुद्ध हो जाता है कि मस्तिष्क तक रक्त नहीं पहुँचता तो मृत्यु हो जाती है।

साथ ही यह भी पाया गया है कि दूध, अंडे, माँस में तरह तरह के कैंसर पैदा करने वाले कारक मौजूद होते हैं जो कि आपको मधुमेह, कैंसर, पथरी जैसे घातक रोगों से मार सकते हैं। बीते वर्षों में अपने बेहतर स्वास्थ्य के वादे के कारण वीगनिस्म विश्व भर में फैल गया है और 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस घोषित कर दिया गया है। साथ ही vegan समर्थन दर्शाने हेतु पशुक्रूरता के विरोध में और प्रेम के पक्ष में वीगनिस्म का झंडा भी अब बन चुका है।
केसीन यानी दूध की प्रोटीन दरअसल एक sedative पदार्थ है जिसकी आदत पड़ जाती है। यह अमाशय में पहुँचते ही डोपामाइन को उत्प्रेरित करके हमे अच्छा महसूस करवाता है और हमे इसकी आदत पड़ जाती है। चीज़, पनीर, छेना आदि शुद्ध केसीन के बने उत्पाद हैं। जिनको जो भी एक बार खा लेता है वह बार-बार खाने को मजबूर हो जाता है। खुद को शाकाहारी बोलने वाले सनातनी लोगों की पसंदीदा सब्जी पनीर ही मिलेगी। अतः उनको माँस ही पसन्द आता है।

उनकी हर पसंदीदा वस्तु में वे इस प्रोटीन को डालना अच्छा समझते हैं। जैसे दम आलू की सब्जी और छोले तक में ये मलाई या दही डाल देते हैं। दही और मक्खन सबसे ज्यादा पशुवसा (देशी घी के नाम से प्रचलित पशु वसा) लिए होता है जो कि दिल का दौरा पड़ने का प्रमुख कारण बनता है। इसे लोग मलाई, दही से निकाल कर मक्खन और बना बनाया खरीद कर भी खाते हैं जो कि स्वादिष्ट लगता है। ये इसी कारण लगभग हर भोजन में डाला जाता है। यह तेजी से पच जाता है और ऊर्जा का अनुभव होता है। लैक्टोज शर्करा भी ऊर्जा देती है। ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थ भी लती बना देते हैं।

दही में यह शर्करा लैक्टोबैसिलस जीवाणु द्वारा खा कर मल द्वारा अम्ल में बदल कर छोड़ दिया जाता है। दही का खट्टा पन इसी मल के कारण होता है। इसमें भी केसीन ही होती है अतः इसकी भी लत लग जाती है। लस्सी आदि अन्य दही के उत्पाद भी आपको मृत्यु के करीब ले जा रहे हैं।

2017 में ओम साईं प्रोडक्शन के सहयोग से एक खोजी पत्रकार ने अपने दादा और पिता की इन बीमारियों से हुई मृत्यु के बाद इस कड़वे सत्य की खोजबीन की। उसने डॉक्टरों के कहे अनुसार सब कुछ किया लेकिन अपने प्रियजनों को बचा नहीं पाया। इसी घटना से उसके मन में डॉक्टरों के प्रति शक बैठ गया और उसने एक खोजी पत्रकारिता के ज़रिए इन सभी हेल्थ ऑर्गनाइजेशनो के US में बने हेडक्वार्टर में खुद जाकर सवाल जवाब किए।
प्रतिक्रिया भयानक थी। इससे पहले भी जिन लोगों ने इस तरह के सवाल जवाब किये थे उनकी लाश तक गायब करवा दी गई थी। मतलब ये संस्थान धोखाधड़ी कर रहे थे। लेखक/पत्रकार ने अपनी खोज जारी रखी और WHO द्वारा घोषित processed मांस पर दी गई गाइडलाइन पर कार्य किया। इस गाइडलाइन में WHO ने बताया है कि मांस में कैंसर, डायबिटीज, ह्रदयघात और पथरी पैदा करने के गुण होते हैं। यह केवल शाकाहारी जंतुओं पर ही प्रभावी होते हैं। इसी कारण प्रकृति में प्रायः शाकाहारी जंतु मांस try भी नहीं करते।

पत्रकार ने ऐसे लोगों पर रिसर्च की जो कि इन बीमारियों से मरने वाले थे। पत्रकार ने उनको 2 हफ्ते vegan भोजन पर रखा और वे ठीक होने लगे। उनकी दवाइयां बन्द करनी पड़ीं और जब उन्होंने खुद इतना बड़ा असर देखा तो उन्होंने पत्रकार को खुशी के आंसुओं के साथ गले लगा लिया। बहुत ही मार्मिक दृश्य था।

दूसरी ओर कुछ लोग कहते पाए गए कि vegan भोजन पर जीवित तो रहा जा सकता है लेकिन ताकतवर नहीं हुआ जा सकता। मसल बनाने के लिये मांस ज़रूरी है। पत्रकार ने खोज जारी रखी और उसे vegan एथलीट मिल गए जो कि बड़े खिलाड़ी थे। उन्होंने बताया कि vegan बनने से पूर्व वे औसत दर्जे के खिलाड़ी थे लेकिन vegan बनते ही उनकी परफॉर्मेंस कई गुना बढ़ गयी। कई पहलवान और बॉडीबिल्डर भी vegan होकर ज्यादा ज़ल्दी मसल गेन कर सके थे।

कई डॉक्टर भी vegan मिले जिन्होंने इस सब को विस्तार से समझाया कि असल सत्य कुछ और है और हमको पढ़ाया कुछ और जाता रहा है। विटामिन बी12 का मांस से ही प्राप्त होना, शक्कर का ह्रदय घात से सम्बन्ध होना आदि बातें बकवास हैं। B12 केवल बैक्टीरिया बनाता है। यह हमारे मुहँ में और आंतों में होता है। यह लगातार बनता रहता है। शरीर को इसकी बहुत अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।

vegan लोगों के लिये जिनमें इसकी कमी महसूस हो वे इसे बाहर से खरीद कर खा सकते हैं या अधिक कमी हो तो इंजेक्शन से ले सकते हैं। शक्कर वाली बात बिल्कुल ही बकवास है कि उससे ह्रदय का कोई लेनदेन है। शक्कर शरीर में जाकर ग्लूकोस में बदल जाती है और ग्लूकोस क्या है यह सबको पता है। जिन पशुओं में विटामिन B12 होता है उनके फार्म मालिक उनको वह खिलाते हैं। कुदरत में यह मल में बड़ी आंत से निकल कर भूमि तक पहुँचता है। चरने वाले जानवर इस मल को अल्पमात्रा में खा जाते हैं। उसी से B12 उन के भीतर पहुँचता है।

मानव के सर्वाहारी होने की बात को करीबी सर्वाहारी जंतु भालू से तुलना करके जांचा गया और मानव तुलना करने योग्य भी न लगा। उसने सब कुछ साधनों के प्रयोग से करना सीखा था जबकि भालू इसके लिए ही बना निकला। केनाइन दांत कहीं से भी सर्वाहारी जैसे नहीं थे। आंखों की रात में देखने की क्षमता भी शून्य। नाक भी मांस की गंध के प्रति अरुचिकर निकली। कान और दौड़ने की क्षमता भी बिल्कुल बेकार निकली। साथ ही मारकाट करके खाने वाले जानवर के भोजन को देख कर 98 फीसदी मानवों को उल्टी और बेहोशी तक आ जाती है।

प्रायः रोगाणु युक्त कच्चा मांस खाने से मानव मर जाता है। दूध भी लोग उबाल कर पीते हैं मतलब उसमें भी रोगाणु। यानी वह बिना रोगाणु मुक्त किये मांसाहारी भोजन नहीं कर सकता लेकिन शाकाहारी वाला कर सकता है।

मतलब वह मांस से डरता है, खायेगा कैसे? मजबूरी ही इसका कारण हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे शेर और कुत्ते पेट खराब होने पर घास खाते है। प्राचीन काल में मानव ने मजबूरी में शिकार करने का निर्णय लिया। इससे पहले वह फलों पर जीवन काटता रहा। पेड़ों पर बंदर की तरह चढ़ना सीखा और मांसाहारी जानवरों से रक्षा करने के लिये हथियार और आग का इस्तेमाल किया। आग और पहिये का आविष्कार न किया गया होता किसी विद्रोही द्वारा तो आज मानव की भिंडी बिक गयी होती।

शिकार भी झुंड में और जब किसी कारण से भोजन लायक वनस्पतियों का अभाव हो गया तभी। इसीलिये वह प्रोसेस करके ही मांस खा सकता है जो कि कैंसर, डायबिटीज, पथरी और ह्रदयघात लिये होता है। यानी अभी नहीं तो कुछ समय बाद होने वाली निश्चित मृत्यु।

पत्रकार ने पता किया तो पाया कि ये सभी संस्थान अरबों रुपये egg, meat and dairy industry से दान में ले रहे थे। बदले में उनको इन उत्पादों का प्रचार करना होता है। सोचिये अगर ये सामान्य भोजन है तो इनको इतने महंगे प्रचार की क्या ज़रूरत? सीधी बात है कि ज़हर को अमृत बनाने के लिये इन बड़ी विश्वसनीय संस्थाओं को खरीदा जा चुका है और यही कारण है कि लोग बीमार पड़ते रहते हैं और दवा बनाने वाली कम्पनियां और इस तरह के भोजन रूपी ज़हर को बेचने वाले अमीर बनते रहते हैं। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2018© 5 pm to 6:08pm, Dec 12
संदर्भ:
 



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मंगलवार, मई 07, 2019

Why girls are feeling harassed on social media? ~ Shubhanshu

Girls: Why most of male indians and few of other countries eritating girls by contacting them on messenger and by messenger calles on social platforms? Every girl block them by this behavior. Then why? Also some of the atheists also doing this shit. Why? 

Shubhanshu Dharmamukt: These people has the motto to ditch girls from the social plateforms. It's certain that every girl will block them by this behavior but they will be successful to eritate all these girls.

Mostly, Religious people doing this shit. Never be fooled by Buddhists as they claimed them as a atheist but they are same as other religious people. After all Buddhism also a registered religion with other religions.

Every religion preventing girls to be social. Same as they want to capture them in the houses. Social platforms are the new gates to connect the world. So they are like a freedom to be social form their rooms. This is also not being tolerated by the society. Religion says that knowledge for women is very dangerous for the male domination.

If they got knowledge then they can do betrayal, rebaillan and can ditch the marriage which is the most important step of religions because this is a perfect way to make more people in their religion. The word wife means slave. Husband means master. If you support marriage then you also accepting this salve position too!

On social media, internet has all type of information. Bad, good, right or wrong. If you got wrong information then you will do more mistakes and if you got right information with logical proofs then you can become a very dangerous problem for religions and the society based on it.

There is only one rule that if you have no knowledge about your harassment then you are not declared as harassed. So simple and logical. People like me, doing a very dangerous job in this religion based society, because we are giving them knowledge by opening their eyes; and this type of logical behavior is forbidden in the society, so I am.

I know that I am in danger and most of the people want to see me dead. Even those therats, while I am alive I will try to give you knowledge to be free. Knowledge to be live fullest, free from useless boundations, free thinking and to make inspire others by your own life.

Why I am doing this by taking this heavy risk? Maybe because I have still a clear soft heart or I have sympathy for others or because maybe I am still a human? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 4:44 AM 7th may 2019

जियो ऐसे, आखिरी दिन हो जैसे ~ Shubhanshu

दुनिया की इच्छाएं पूरी करने लगे तो याद रखना, जीवन कम पड़ जायेगा क्योंकि ये दुनिया बहुत बड़ी है, फिर अपनी इच्छाओं को कब पूरा करोगे?

और रही घर वालों की बात, वो "पुरुष बच्चा" चाहते हैं क्योकि समाज चाहता है कि उनके धर्म के लोग बढ़ें और माता-पिता का झूठा दम्भ कहता है कि उनके गुण वाले वंशज पैदा हों व उनकी सम्पत्ति के वारिस बने।

ये उनका स्वार्थ है जो आपके जीवन के सभी सुखों को निगल लेगा और जब वे अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं तो आप भी सिर्फ अपना स्वार्थ देखें। एड़ी चोटी का जोर लगा दें, जैसे घरवाले और समाज अपनी इच्छाओँ को तुम पर थोप रहे है।

बिना स्वार्थ के कोई सम्बन्ध नहीं होता। बस जिसका देह और धन से कोई खास लेन-देन नहीं होता, उसे निस्वार्थ होना कह देते हैं। जबकि स्वार्थ दूसरों को आवश्यक रूप से खुश देखने का (जैसे बुरी परिस्थितियों में मदद करना) और खुद खुश रहने का उस जगह भी होता ही है। इस तरह के स्वार्थ को भावनात्मक स्वार्थ कहते हैं। यही प्राथमिक भावनात्मक स्वार्थ मेरा भी रहता है सबके प्रति।

जब कोई कहे कि बुढ़ापे में क्या करोगे? तब, जब हाथ पैर बेकार हो जायेगें?

तो कहना गाते हुए, "जब सब-कुछ टूट गया...तो जीकर क्या करेंगे? एक पुड़िया ज़हर की लेंगे और कहीं जाकर डूब मरेंगे..."

ऐसी हालत में कोई मूर्ख ही अपनी ऐसी-तैसी करवाने के लिए जीवित रहेगा। वैसे भी वृद्धाश्रम में बढ़ती भीड़ और अपने बच्चों द्वारा रोज पीटे जाते वृद्ध, समाज का कहा सबकुछ करके भी अकेले ही कष्टों भरा जीवन गुजार रहे हैं। उनके अधेड़ बच्चे तो खुद विवाहित जीवन की जद्दोजहद और अपने बच्चों को बर्बाद करने में व्यस्त हैं, जिनको इस तरह की ज़िंदगी उनके इन बुजुर्ग माता-पिता ने ही थमाई है।

● अब पछताए होत क्या? जब चिड़िया चुग गई खेत।

● जब बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होए?

वैसे भी बड़े विद्वानों ने अपने पूरे जीवन का केवल एक ही निगेटिव और पॉजीटिव मिश्रित वाक्य कहा था और वह वाक्य था:

"आप चाहें सुपर ह्यूमन ही क्यों न हों, कितने भी अमीर और समृद्ध क्यों न हों, सबकुछ करके थक जाओगे लेकिन सबको सन्तुष्ट/खुश नहीं कर पाओगे। खुद को खुश करने में ही जीवन निकल जायेगा, बेहतर होगा अभी इस काम पर लग जाएं।" ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शनिवार, मई 04, 2019

पारम्परिक विवाह: जीवनपर्यंत यातना ~ Shubhanshu

पारंपरिक विवाह धन पर केंद्रित हैं और शादी के दौरान दहेज की हत्याएं भी इसका एक हिस्सा हैं। जब परिवार भी प्यार/रोमांस में शामिल होता है तो यह एक दुःस्वप्न बन जाता है। सहजीवन, खुला सम्बंध और polyamory जैसे विकल्प अधिक प्यार का निर्माण करने में मदद करते है।

आप बच्चों के बिना, किसी भी परेशानी के बगैर एक दूसरे को और अधिक समय दे सकते हैं। रोमांटिक रिश्ते, जिनमे परिवार भी शामिल होता है, उनमें न सिर्फ दहेज से जुड़े क्लेश होते हैं बल्कि दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार का कोई भी सम्मान नहीं करता है।

एक ही व्यक्ति अपने जीवन भर की कमाई एक रात में लोगों को खाना खिलाने, सजावट करने, और दहेज में भस्म कर देता है और उसके बाद भी उसे खाने से लेकर सजावट तक में कमियां गिनाई जाती हैं। जैसे खर्च वर पक्ष ने उठाया हो और वधू पक्ष को नौकरी से निकाल दिया जाएगा।

लड़की का पिता इतना मजबूर दिखता है कि जैसे उसने लड़की नहीं बल्कि एक कलंक पैदा किया जिसे मिटाने के लिए वह न सिर्फ अपनी बिटिया वस्तु की तरह दान कर रहा है बल्कि उसके साथ जीवन भर की कमाई, भोजन व अपनी पगड़ी (इज़्ज़त) भी दांव पर लगा रहा है। क्या यह मानव अधिकारों का अपमान नहीँ?

समय है कि होश में आओ लोगों। मित्रवत व्यवहार करो। ये देश और दुनिया सब एक परिवार है। बेटी को आत्मनिर्भर बनाओ, सेल्फडिफेंस सिखाओ और खुल कर जीने की प्रेरणा दो। उसे बोझ मत समझिये। अब वह ज़माना गया जब महिला अनपढ़ और कमज़ोर समझी जाती थी। तब वह संरक्षण की मोहताज होती थी। आज वह परनिर्भरता समाप्त हो चुकी है। महिला पुरुषों से ज्यादा धन कमा रही हैं और कम टैक्स दे रही हैं। यह सब सम्भव हुआ महिला के लिए बने कानूनी नियमो से।

नये ज़माने में आप सब अपने मालिक हैं। महिला-पुरुष को अपना जीवन वयस्क होने के बाद स्वतंत्रता पूर्वक जीने दीजिये। सेक्स तो स्त्री पुरुष की ज़रूरत है। उसे स्वीकार करो और सहमतिपूर्ण सुरक्षित सेक्स करो।

कोई कानून आपको विवाह पूर्व सेक्स करने से नहीं रोक सकता। यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है और इसके लिए विवाह रूपी यातना की आवश्यकता नहीं। ~ Shubhanshu धर्ममुक्त 2019© (Admin)

गुरुवार, मई 02, 2019

आप कुछ भी कर सकते हैं, मेरी तरह ~ Shubhanshu

मुझे तो ऐसी लड़की अच्छी लग जाती है जो करोड़ों में एक होती है। आम लड़कियों से शारीरिक आकर्षण कम ही होता है। वो कोई महारानी या सेलिब्रिटी टाइप या सच में वैसी होती है। लोग कहते हैं कि साले इतनी ऊँची पसंद के कारण कोई न मिलेगी लेकिन मैंने उनको गलत साबित किया।

आज से कई वर्ष पूर्व 2005 में मैं आयशा टाकिया से सम्पर्क करने में कामयाब रहा। दरअसल उसने मुझे सम्पर्क किया। मैंने तो सिर्फ अपना कांटेक्ट छोड़ा था; उसके बारे में अपनी राय लिख कर। शुरू में तो यकीन ही न हुआ कि सच में उसी अभिनेत्री ने सम्पर्क किया है। मैंने पलट कर पूछा कि मुझे आप पर भरोसा नहीं।

तब आयशा ने मुझे कुछ ऐसी पर्सनल बातें बताईं जो सिर्फ मैं और वो ही जानते हैं। जैसे अपने परिवार और अपनी बहन के बारे में। मुझे तब भी भरोसा न हुआ तो मैंने उसका ip address चेक किया। कमाल था। मुंबई का ही निकला।

इसके बाद उसने मुझसे अपनी फिल्मों के review लेने शुरू किये और फिर धीरे-धीरे हम और गहरे दोस्त बन गए। मैं उसे मोटी बोलता तो उसे बहुत बुरा लगता। फिर कुछ दिन बाद खबर छपी कि यही बात कोई पत्रकार भी उससे बोला तो वह खूब रोई और मुझे honest कहा। तब से वो veganism की ओर आकर्षित हुई और आज उसके खुद के vegan रेस्टोरेंट हैं। वह vegan चाय की बहुत शौकीन है।

हमारी दोस्ती और झगड़ा 2 साल तक चला। तब तक, जब तक उसकी शादी उसके प्रेमी फरहान आज़मी से नहीं हो गई। उसको veganism से परिचय भी मैंने ही करवाया था। आज वह vegan है। तो आप समझिये मेरे लिए कुछ भी असम्भव नहीं है इसलिए इरादे भी बड़े रखता हूँ। वो कहते हैं न, "ऊंचे लोग, ऊंची पसंद।"

फिर उससे नीचे में गुजारा करना मतलब अपनी पसन्द से समझौता करना। तो पसन्द के मामले में अभी कुछ पक्का नही कह सकता। हर लड़की में तमाम बातें देखनी पड़ती हैं और इस लिहाज से उम्र, जाति, धर्म, समुदाय, आदि बातें मायने नहीं रखती। हांलाकि मैं उसको क्या बेहतर है अवश्य समझाऊंगा तर्क और सबूतों के साथ। बाकी तो समय और हालातों पर निर्भर करेगा। वैसे भी अंत में, एक स्वस्थ शरीर और आपसी समझ सर्वोपरि हो जाती है।

नोट: कुछ निकम्म्मे और नकारात्मक लोग कहते हैं कि पहले अपनी शक्ल देख आईने में, फिर सेलिब्रिटी के ख्वाब देखना। मैं उनसे कहता हूँ कि अगर अपनी शक्ल देख कर इंसान अपनी पसन्द तय करता तो आईने के बनने से पहले तो कोई प्यार करता ही न होगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

इस बार ऊंची दोस्ती के बारे में बताया। अगली बार आपको अपनी ऊंची दुश्मनी के बारे में बताऊंगा। जिसका परिणाम दुश्मन की मौत रहा।

बुधवार, मई 01, 2019

प्रेमी को समाज के चक्कर में न खोएं ~ Shubhanshu

शुभ: इतने दिन से नैन मटक्का कर रही हो। क्या चाहती हो?

लड़की: तुमको समझ नहीं आता क्या?

शुभ: क्यों? मुझे क्यों समझ में आना चाहिए?

लड़की: तुम भी तो बदले में देखते हो।

शुभ: अरे, मैं तो इसलिये देखता हूँ कि ये कौन पागल लड़की मुझसे न जाने किस जन्म का बदला लेने के लिए घूर रही है।

लड़की: मेरे बारे में ऐसा सोचते हो?

शुभ: जी मैडम।

लड़की: ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो प्यार से देखती हूँ तुमको।

शुभ: अरे! प्यार से ऐसे घूरा जाता है?

लड़की: फिर कैसे घूरा जाता है?

शुभ: अरे, घूरा जाता है ही नहीं। घूरना तो मानसिक क्रूरता है। प्यार से निहारा जाता है।

लड़की: प्यार से कैसे निहारा जाता है?

शुभ: अरे, जब प्यार होगा तो अपने आप ऐसा होगा।

लड़की: तो मुझे प्यार से निहार के दिखाओ ज़रा।

शुभ: दिमाग ठीक है? मुझे तुमसे प्यार थोड़े ही है जो तुमको प्यार से निहारूँ? आखिर तुम हो कौन?

लड़की: कितने अजीब हो तुम। और कोई होता तो अब तक मुझे कब का ILU बोल चुका होता।

शुभ: और आपको बोलने में क्या तकलीफ़ है?

लड़की: मैं कैसे बोल सकती हूँ? चरित्रहीन नहीं लगूँगी?

शुभ: मतलब चरित्रहीन लड़के की तलाश में हो क्या?

लड़की: पागल हो क्या? ऐसा होता, तो लाइन लगी रहती है, किसी को भी अपना लेती।

शुभ: मतलब तुम कहो तो तुम्हारा करेक्टर ढीला और मैं बोलूं तो मैं क्या हुआ फिर?

लड़की: फिर अगर कोई न बोलेगा तो कैसे काम चलेगा?

शुभ: वाह! मतलब जबरदस्ती सोच लिया कि propose करने से करेक्टर लूज होता है? जिसे प्यार है, वह पहले बोलेगा कि प्यार है। वो जिसे आपके बारे में कुछ पता नहीं उसे क्या सपना आ रहा है कि आप क्या सोच रही हो?

लड़की: उसी लिए तो आखों से इशारे कर रही थी!

शुभ: इशारे कौन समझेगा? जब उसे पता ही नहीं इनका मतलब? मैं तो हिम्मत करके तुमसे बात करने आ गया। सोचा कि क्या दुश्मनी है पूछ ही डालूं। वरना मैं तो कभी आता ही नहीं।

लड़की: लड़कों को तो पता होता है। मेरी सहेलियों ने बताया था।

शुभ: उन सहेलियों से ज्ञान ले रही हो जो खेली खाई हैं? वे जिनकी बात कर रही हैं वे अवश्य ही सेक्स के भूखे लड़के हैं यानि चरित्रहीन लड़कों की। सीधा और लड़की को लड़की ही समझने वाले लड़के को कोई इशारा समझ कैसे आएगा? इशारे तो लड़की पहले समझाती है कि किस इशारे का क्या मतलब होता है। तब लड़के को पता चलता है। क्या तुम उन लड़कियों में से हो जो सेक्स के लिए लड़के ढूंढती हैं या तुम वो हो जिसे किसी से प्यार हो गया है? बुरे दोनो नहीं हैं लेकिन ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप किसे अच्छा समझती हो।पहले प्यार और फिर सेक्स या पहले सेक्स और फिर अगला व्यक्ति। ये मत कहना कि पहले सेक्स और फिर प्यार। ये नहीं होता। ये तो शरीर से जुड़ा मोह ही हो सकता है जो थोड़े समय के लिए ही होता है। मन से प्यार होता है जो लोगों को जोड़े रखता है। फिर अगर लड़के बदनाम हो ही गए तो फिर अच्छा लड़का क्या प्रोपोज़ करके खुद को अच्छा दिखा सकेगा? बेहतर होगा कि लड़की ही शुरुआत करे। तभी लड़के को समझना आसान होगा। जो तुरन्त लार टपकाये, उसे जिस्म का भूखा समझिये। जो देर में माने और आपके मनाने पर ही, वही आपकी सही पसन्द और सही पात्र है।

लड़की: बात तो लाख टके की कही आपने। आप कोई दार्शनिक हो क्या?

शुभ: न बस एक लड़का हूँ। जो इस मूर्खों के समाज को आईना दिखाना चाहता है।

लड़की: ओये, सुनो।

शुभ: हाँ, कुछ कहा क्या?

लड़की: हाँ, आई लव यू।

शुभ: धन्यवाद! लेकिन अभी मैं आपको जानता भी नहीं तो चलो पहले दोस्त बनते हैं। कुछ टाइम साथ में बिताते हैं फिर बताता हूँ अपना जवाब।

लड़की: आई लव यू, आई लव यू, आई लव यू टू मच!

शुभ: कल मिलते हैं, पार्क में, शाम को 5 बजे।

लड़की: ओके dear! Bye!  2019/05/01 08:50 ~ Vn. Shubhanshu SC 2019©