प्रश्न: महिलाओं को ही ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में संलग्न देखा जाता है। यही सबसे ज्यादा पाखण्ड और धर्म की पूरक बन कर सामने आती हैं। ऐसा क्यों है?
उत्तर: आश्रित होने की सोच ने डराया हुआ है। समाज ये सोच थोपता है। बचपन से ही महिलाओं को ये सिखाया जाता है कि तुम कमज़ोर हो, ईश्वर सर्वशक्तिमान है। तुम मर्द से भी बहुत कमजोर हो। तुमको उसी के साथ जीवन गुजारना है। उसी की सेवा करनी है। वही तुम्हारी रक्षा करेगा, बाकी अन्य मर्दों से।
यह डर, परिवार और पति पर निर्भरता, और यदि ये न भी हों तो अपनी नौकरी/व्यवसाय में असफल हो जाने का डर क्योंकि उन्होंने अपारंपरिक कार्य करने का खतरा उठाया है जिसका विरोध समाज ही नहीं उनके व्यवसाय से जुड़ा हर मर्द करता है। साथी महिलाएं भी यही कहती हैं कि कोई आदमी ढूंढो, तुमसे ये काम न हो पायेगा। इस दशा में डरी हुई महिला अकेली पड़ जाती है। उसे कोई मार्शल आर्ट सीखने की सलाह नहीं देता, सेल्फडिफेंस के उपाय नहीं सुझाता। किसी तरह से वापस वह आम ग्रहणी बन जाये यही सिखाता है समाज।
और जब वह ग्रहणी होती है तो वह बाहर रहने वाले पुरुष के प्रति सदा आतंकित रहती है कि कहीं वो मर न जाये। मर गया तो मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा? आज भी हम अदालत और फिल्मों में किसी को सज़ा देते समय यह रहम करते हैं कि बीवी बच्चों वाला आदमी है, इस पर रहम करो।
इस तरह हम साबित करते हैं कि आदमी ही महिला और बच्चों का संरक्षक और दाता है। इस दशा में महिला केवल ऊपरी शक्ति के भरोसे ही बैठ जाती है क्योंकि उसने अपने पंख तो विवाह करके कतर दिए होते हैं। जिनका विवाह नहीं हुआ वे करने के सपने देखती हैं। कम बदमाश पति मिले, इसकी ही कामना करना, उनका प्रमुख कार्य होता है ईश्वर से। शरीफ पति (मूर्ख) उनको वैसे भी पसंद नहीं आएगा और अधिक बदमाश भी क्योंकि वो जेल जा सकता है या मौत के मुहँ में।
दूसरी एक जड़ है समाज के साथ सामंजस्य बैठाना। जैसे जो कुछ भी और साथी कर रही हैं और उनके बीच यदि बैठना है तो उनका कहना मानना ही उन सभी पाखण्डों को बलपूर्वक करवाने जैसा है।
साथ ही एक दूसरे से सुनी हुई चमत्कारी कहानियों से भी पाखण्ड पर विश्वास जाग्रत हो जाता है। जैसे यदि ये सत्य नहीं है तो इतने लोग क्यों कर रहे? खुद को मूर्ख और झुंड को सही मानना ही दरअसल इस तरह की घटनाओं की पोषक बन जाता है। जबकि होना यह चाहिए कि आपको, "मैं भी सही सोच सकती हूँ", "मैं भी सही हो सकती हूँ", "बहुत से लोग गलत भी हो सकते हैं", ऐसा सोच विचार रखना चाहिए।
अधिकतर पुरुष ऐसी सोच के कारण ही अधिक तेजी से बदलाव ले आते हैं क्योंकि उन पर समाज ज्यादा बंदिशें नहीं लगाता और वे खुद को शक्तिशाली समझते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 3019©