Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, जुलाई 06, 2019

चलो भीड़ बढ़ाएं सनम! ~ Shubhanshu

Natalist (breeder): अपने आप को जारी रखने की नैसर्गिक इच्छा से संतान पैदा करते हैं!

दरअसल, यह प्रकृति ही है, जो #एकोsहं_बहुस्याम: के महत् उद्देश्य से जीवों का विस्तार करती रहती है! 

हम तो प्रकृति की #सृजन_फैक्टरी के #जॉब_वर्कर हैं, जो सैक्स-आनंद और वात्सल्य-सुख जैसे #इन्सेंटिव (प्रोत्साहन)  लेकर प्रकृति का #जॉब_वर्क करते हैं! 

हम तो दिन अस्त,  मजूर मस्त वाली भूमिका में है! 
सृजन-फैक्टरी, माल और फिनिश्ड गुड्स की मालकिन प्रकृति ही है! 

यह प्रकृति ही है, जिसने खुशबूदार परागयुक्त फूल (मादाएं) पैदा की हैं, और उसी ने  पराग वाले फूलों पर मंडराने वाले #भ्रमर पैदा किये है!

प्रकृति ने ही मादा में सारा वसंत उडेल दिया है और उसी ने भ्रमर में फूल-फूल पर मंडराने की #भूख भरी है!

Shubh: अहा! क्या सुंदर बगीचा खिला है हवाई पुलाव का! अतिसुन्दर! अहो भाग्य! जय बच्चा पार्टी। 😂😂😂

ये कोई नई बात नहीं है। आपको जबरन वो कार्य करने को क्यों कहा जा रहा है जो आप खुद करने को मरे जा रहे हैं? सेक्स किया नहीं कि बच्चा अंदर से हैलो डैड/माँ बोलने लगता है। फिर भी सामाजिक दबाव क्यों? दरअसल कोई बच्चा पैदा करना ही नहीं चाहता। जाकर देखिये कितना बिकता है गर्भनिरोधक। इतना कि आप सोच भी नहीं सकते। बाकी मैथुन भंग करके बच्चा होने से रोकते हैं।

इसीलिये समाज (प्रायः धार्मिक) आपसे जबरन बच्चे पैदा करवाना चाहता है। दरअसल विवाह संस्था को बचाना है। सरकार भी यही कह रही कि चाहें पति कितना भी बलात्कार करे, न तलाक हो और न ही उसे कोई सज़ा। यकीन न हो तो चेक कर लें। खुद जांचना है? बिना विवाह के मिठाई बांटो, बच्चा होने की। पता चल जाएगा कि समाज कितना प्रसन्न होता है। और यही 'विवाह कर लिया है' कह कर देखना साथ में। तब देखना, कितना फूले नहीं समाते लोग। दरअसल उनको आपके बच्चे से मतलब नहीं है। होता, तो उनको क्या मतलब कि यह विवाह का परिणाम है या सेक्स का? साथ ही वे उसके पालनपोषण का खर्च भी उठाते मिल कर। लेकिन नहीं। सब चाल है। समाजिक मनोरोग है ये।

Natalist मनोरोग से पीड़ित लोगों को लगता है कि वे पृथ्वी पर आखिरी मानव बचे हैं। इसी मनोरोग को natalism कहा जाता है। इसे भुनाने हेतु वह रंगीन कल्पनाएं गढ़ लेते हैं। इनको न तो दुनिया का कोई ज्ञान होता है और न ही इतनी समझ कि उनके पैदा हुए बच्चों का असल भविष्य क्या होगा और इस पृथ्वी के पर्यावरण, सीमित संसाधन (जल, जंगल, भोजन और ज़मीन) का वह क्या हाल करेगा? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

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