बड़ा हुआ तो पता चला कि इनकी कोई वैल्यू ही नहीं है इस समाज में। डॉक्टर, इंजीनियर, बैंक PO, IAS, PCS बस यही सबकुछ है।
लेखन, आविष्कार, विज्ञान, इसमें फेमस भी वही होता है जो खुद ही अपने पर्चे बांटे। जो खुद का ही प्रचार करे। इधर खाने को लाल पड़े थे और हम लड्डू बांटे?
हटा सावन की घटा। बन तो मैं दोनो गया, कब का, लेकिन भाड़ में जाएं दुनिया वाले। जब बन रहा था, तब तो जूते मारे, गालियां दीं, अपमान किया और परेशान किया।
मुझे आपका असली चेहरा दिखा और मैं आप की दुनिया से दूर होता गया। अब अकेला करने के बाद, मेरा दिल, हिम्मत और उम्मीदें तोड़ने के बाद भी, साथ दूँ? आपका? चूतिया समझा है क्या?
ये तो वही बात हुई कि तुम सबसे विद्रोह करके तुम्हारे लिए खाना बनाऊं और तुमसे ही पिट कर, मार ख़ाकर तुमको अपने हाथों से खिलाऊं? मेरे को मूर्खता के कीड़े ने अभी न काटा है...
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा जा बे, फूट बे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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