Zahar Bujha Satya

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सोमवार, नवंबर 25, 2019

शिशुजन्म: न टाले जा सकने वाले दुःख की जड़


बुद्धिज़्म से भी यही संदेश मिलता है कि जीवन दुःखमय ही है।

यदि किसी बच्चे को बिना उसकी अनुमति के इस दुखभरी दुनिया में लाया जाए तो उसके साथ होने वाली हर बुरी घटना के ज़िम्मेदार उसके परिजन होंगे जबकि सज़ा उसे दी जायेगी। क्या यह न्याय होगा?

क्या पैदा होने से पूर्व बच्चे से उसे पैदा करने की अनुमति ली जा सकती है? जवाब है नहीं और इसलिए हम बच्चा पैदा नहीं कर सकते। हर माता पिता कानूनी/तार्किक रूप से अपने बच्चे के हर अपराध और गलतियों के दोषी/ज़िम्मेदार हैं।

अफसोस की बात यह है कि जीवन में अच्छे कार्य करने वाले लोगों की संख्या कम है और उन्होंने अच्छा बनने के दौरान इतने अधिक दुःख सहे हैं कि उनको कोई और न सहे इसलिये वो लोगों को अपनी खुशियों को भी दे देते हैं।

यह वे खुशी से नहीं करते बल्कि इसलिये करते हैं कि उनको अफसोस है कि कोई भी पैदा क्यों हो गया और हो गया तो वो मेरे जैसा दुःख न झेले। लेकिन वे भी उस दूसरे इंसान की जिंदगी में सिवाय पैबंद के कुछ नहीं लगा पाते।

हम लाख मदद ले लें लेकिन वह मदद एक दुःख से सदा जुड़ी रहेगी। हम लोग अक्सर सुख के पलों को भूल जाते हैं और दुःख के पलों को याद रखते हैं। हम कितने ही दोस्तों, रिश्तेदारों से घिरकर खुश दिखने लगे लेकिन जब हम उनसे बिछड़ेंगे (छोड़ कर जाना, मृत्यु) तब हम सदमें से गुजरेंगे जो कि इतना भयानक होता है कि नर्वस ब्रेकडाउन हो सकता है।

इससे पैदा हुए डिप्रेशन (तनाव) से मृत्यु भी हो जाती है। बिछड़ना तय है क्योंकि न तो हम एक इंसान के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करने के लिए बने हैं और न ही हम में से कोई अमर है।

अतः हर हाल में पैदा होकर हम आनंद को ढूंढने और दुःखों को झेलने में ही जीवन बिताते हैं। अपनी कामयाबी के ज़िम्मेदार बच्चे खुद होते हैं लेकिन नाकामयाबी के ज़िम्मेदार सदा उसके परिजन ही होंगे। क्या आप इस तरह की ज़िम्मेदारी लेकर खुश रह सकेंगे जो आपके नियंत्रण में कभी नहीं हो सकती? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©