Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

शनिवार, नवंबर 23, 2019

अतिजनसँख्या का असर दिखने लगा है ~ Shubhanshu


यूरोप की आबादी 200 साल मे कईं गुणा बढ़ी है लेकिन जनसंख्या और अतिजनसँख्या में बहुत अंतर होता है। वहाँ जितनी ज़रूरत थी उतनी तो चाहिये ही। लेकिन उधर भी अतिजनसँख्या की समस्या वैसी ही विकराल है जैसी अन्य विकासशील देशों में। कम जनसंख्या और बुद्धिमानी (आविष्कार, उपाय) से प्राप्त अधिक GDP, वैज्ञानिक उपायों से अधिक संसाधन उपलब्ध करवा कर और गगनचुंबी इमारतों के कारण किसी तरह ये राज़ दबाया जाता रहा है लेकिन कब तक?

यूरोपीय फिल्मों जैसे इन्फ्रेंनो, फ्रोजन, एवेंजर्स के थानोस ने इस भीषण समस्या को दर्शाया है।

इसको आप इस तरह से समझ सकते हैं; जैसे एक 2 पहिया वाहन पर 1 मस्ती से, 2 लोग आराम से और 3 लोग तकलीफ से बैठ सकते हैं। दुर्घटना के अवसर 80% हो जाते हैं, लेकिन 4 लोगों के बैठने से दुर्घटना 100% तय हो जाती है। उसी तरह से एक देश भी, एक कमरे की तरह दीवारों (सीमा रेखा) से घिरा होता है।

अब ये कमरा कितना भी बड़ा समझिये लेकिन इसमें एक सीमा में ही लोग आराम से रह सकते हैं। उसके बाद सब आपस में लड़ मरेंगे। कितने लोग एक कमरे में रह सकते हैं?

विशाल देश में यह तय करना मुश्किल लग सकता है लेकिन जिस तरह से भूखा शेर घातक और पेट भरा हुआ जानवर शांत होता है; उसी तरह लोगों की भूख और तनाव देख कर, आप जगह और अवसरों की कमी का पता लगा सकते हैं।

जिस तरह कमरे के लोगों में संसाधन कम होते ही एक-दूसरे से नफरत पैदा हुई और लूट-खसोट मची, उसी तरह, यही आप अपने घर और घर से बाहर का माहौल देख कर भी पकड़ सकते हैं कि क्यों आखिर आज हर इंसान एक-दूसरे को लूटने-मारने में लगा हुआ है?

अतिजनसँख्या वास्तव में एक वास्तविक समस्या है। उसका असर लोगों की नफ़रत में नज़र आने लगा है। ~ Shubhanshu 2019©

कोई टिप्पणी नहीं: