Zahar Bujha Satya

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गुरुवार, नवंबर 14, 2019

जनता के मध्य फूहड़ता और बिंदासियत में संतुलन व मर्यादा आवश्यक ~ Shubhanshu



साथियों द्वारा स्त्री सम्बन्धी अपशब्द प्रयोग ज्यादा ही हो रहे। गालियाँ गुस्से वाली और महिला वाली हो रही हैं। भले ही तोड़मरोड़ के हैं लेकिन आपकी छवि खराब हो रही है उनसे।

अपनी शक्ति सकारात्मक रूप से प्रयोग कीजिये। नकारात्मक और शिकायती नहीं। हमें दूसरों से कुछ बेहतर बनने का सोचना है। इसलिये किसी से भी प्रचलित से अलग और बेहतर बनना चाहिए। आप सब मेरे पोस्ट से तुलना करके देख सकते हैं कि बिंदासियत और फूहड़ता (vulgarity) की limit क्या होनी चाहिए।

खासकर लोगों में कितना बोलना है इसका ध्यान रखना है। लोगों को संस्कार संस्कृति की शिक्षा मिली है। उनको थोड़ी-थोड़ी dose देकर बदलावों को लाया जा सकता है लेकिन अगर हम सीधे फूहड़ स्त्री की छवि का वस्तुकरण करने वाले बिंदास बने तो उसका गलत मतलब निकलेगा और सब सीखने की जगह भाग जाएंगे।

हमारे frustration (हतोत्साहित होना) को किसी का अपमान करना शांति देता है। लेकिन कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना न हो इसी में बेहतरी है। जैसे हम जब किसी को बहनचो* बोलते हैं तो दरअसल हमने मन ही मन उसकी बहन का बलात्कार, उसके द्वारा करवा दिया और नहीं करवाया तो इसे कहने का फायदा क्या?

अगर उसकी बहन जिसकी कोई गलती नहीं है, उसका आपसे परिचय तक नहीं और वो वहीं खड़ी हो या उसे कभी पता चले तो वो पूछ सकती है, "आप कह रहे हो कि मेरे भाई ने मेरा बलात्कार किया और मैं चुप हूँ? क्योकि मुझे ये बलात्कार अच्छा लगा? क्या ये मेरी इच्छा-अनिच्छा का अपमान नहीं है?

क्या मेरे चरित्र को अपमानित करना नहीं है जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं? सोचो मेरा bf हो, मैं उससे मोनोगेम्स कमिटमेंट में हूँ और वो इस गाली को सत्य समझे, तो वो मुझे छोड़ देगा, पीटेगा या हो सकता है मार ही डाले।"

इतनी गहराई से सोचना पड़ता है तब हम महान बन सकते हैं। मैं जितना बिंदास हूँ और यदाकदा मैं भी इस तरह की गालियाँ मजाक में देता हूँ और कभी-कभी गुस्से में भी लेकिन कभी लिख कर सबके सामने दुर्भावना से नहीं करता क्योकि वो इतिहास में जुड़ जाता है।

बोले हुए को माफी मांग कर बदल सकते हैं और कह सकते हैं कि गलती से बोल गए लेकिन लिखने में जानबूझकर ही लिखा जाता है। और ये निजी हो तो ही बेहतर है जैसे निजी मेसेज और खास मित्रों का चैट समूह आदि।

क्योकि हम एक दूसरे को समझते हैं; समझा सकते हैं लेकिन तमाम लोग सीधे ब्लॉक करते और हमेशा के लिए बुरी राय बना लेते हैं। बड़ी बात नहीं कि लोग क्या कहेंगे लेकिन हम उनकी मदद से उनको ही वंचित कर रहे हैं, उनसे दूर जाकर।

हम सब डॉक्टर हैं और हमको ये हक मिला है कि लोगों का दिमाग ठीक करें लेकिन अगर हम ही अपने मरीज को डरा कर भगा देंगे तो हम डॉक्टर ही नहीं रहेंगे। मरीज के बिना डॉक्टर कुछ भी नहीं। अतः दूरदृष्टि आवश्यक है। ~ Vn. Shubhanshu SC 2019©

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