Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

बुधवार, मई 02, 2018

हाँ मैं सनकी हूँ। पागल भी हूँ। सत्यवादी ऐसे ही होते हैं।

मैं केवल यूनिवर्सल truth देने का प्रयास करता हूँ। भले ही समझा नहीं पाता कम शब्दों में। लोगों को 3 घण्टे के प्रवचन समझ आ जाते हैं लेकिन मेरी 30 शब्दों की पोस्ट समझ में नहीं आ पाती। इसीलिये कमेंट में चर्चा होने लगती है। मैं कोई आम विषय नहीं उठाता। मैं वह विषय उठाता हूँ जिसे उठाते हुए लोग थर-थर कांपते हैं। ब्लॉक हो जाने से डरते हैं और मित्र खो देने का खतरा उठाने से बचते हैं।

जबकि मैं बस सत्य का पथिक हूँ जो सत्य है वह सुनाता/दिखाता/पढ़ाता रहूँगा। शायर भी हूँ, गीतकार भी, लेखक और उपन्यासकार भी, वैज्ञानिक भी हूँ और आविष्कारक भी (अभी पेटेंट नहीं) कवि भी हूँ और विश्लेषक भी, लेकिन आपको मैं बस वही दिखाता हूँ जो कड़वा लगे क्योकि सत्यवादी जो ठहरा। इसलिये आप यह सब अनदेखा कर देते हैं और बस एक शब्द आपको याद रहेगा कि मैं सनकी हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

जनसँख्या विस्फोट: एक सच्चाई और एक अभिशाप

क्या विवाह और बच्चे न करने से यह ग्रह निर्जन हो जाएगा? यह समय पर छोड़ दीजिये। कोई परफेक्ट नही होता। सभी कभी एक से नहीं होते। यह बहुत आदर्शवाद की स्थिति है कि सब एक सा सोचे। कुछ लोग प्रेम नहीं करना चाहते, इसलिये ही विवाह करते हैं। उनकी ज़रूरतें पूरी हो जाएं बस। वही जनसँख्या बढ़ाते हैं। प्रेमी तो जान दे देते हैं। उनके वंश नहीं चलते।

सवाल तो यह है कि क्या अगर हमने जनसँख्या को न रोका तो क्या यह ग्रह निर्जन नहीं हो जाएगा? ~ शुभाँशु जी 2018©

बिखरे पन्ने: मौत को शह और मात: Shubhanshu

मैं कुछ महान लेखकों की लंबी पोस्ट पढ़ कर कई बार गद गद हो जाता हूँ कि कितना ज्यादा डेटा हैं इनमें। फिर खुद को याद करता हूँ, जैसे मेरा सीधा FB पर पोस्ट फायर करना। बिना ज्यादा मसाले, डेटा और लम्बज्ञान के। मैं कस्टमर केयर जैसा महसूस करता हूँ। मेरी हर पोस्ट पर "शुभाँशु जी हाय-हाय" के नारे लग रहे होते हैं, लोगों को लम्बी बहस में छोटी-छोटी बातें समझानी पड़ती हैं तब उनमें से डायरेक्ट फायर होती है नई पोस्ट। उसी को उठा कर पोस्ट कर देता हूँ। 

अनायास ही नित नई जानकारियां फूटती हैं और नया बाग तैयार होता है। मैं कोई किताब नहीं पढ़ता, कोई नेट पर ज्ञान नहीं खोजता, कोई ज्ञानी व्यक्ति सम्पर्क में नहीं है जिससे सवाल पूछता हूँ। यह ज्ञान कैसे, किधर से निकलता है, मुझे खुद पता नहीं। बस जवाब हाज़िर होता है हर उचित सवाल के साथ और मैं दे देता हूँ। जितनी तेजी से आपको मेरे जवाब मिलेंगे, उतनी तेजी से बहुत कम लोग खुद मुझे जवाब दे पाते हैं।

मैं कोई स्कॉलर नहीं रहा था। मैं अपनी कक्षा का सबसे मूर्ख और दयनीय छात्र रहा हूँ। मुझे कहा गया था कि मैं कभी हाईस्कूल पास नहीं कर पाऊंगा और मैं कर भी नही पाया। फिर एक दिन जोश चढ़ा। मैंने चुनौती स्वीकार की। फिर से पढ़ाई की और पास हो गया। फिर अगली कक्षा में लुढ़क गया। फिर दया की भीख से अगली कक्षा में सरकाया गया। फिर इंटरमीडिएट में अनुत्तीर्ण हो गया। 

लगा जैसे पढ़ाई मेरे लिये बनी ही नहीं। फिर भी हार नहीं मानी। दो बार ज़हर खाया। फिर भी बच गया। किसी को पता भी नहीं चला। मैं ज़हरबुझा हो गया। इससे पहले के भी भयंकर किस्से हैं। 9 माह की उम्र में बिजली के झटके से मौत हुई, वापस जीवित हुआ, मोटरसायकिल दुर्घटना में बाल-बाल बचा। चलती ट्रेन से लटक कर मरते-मरते बचा, साला कुछ था ऐसा जो मरने ही नहीं दे रहा था।

फिर मैंने सोचा कि शायद मैं गलत कर रहा हूँ। इसलिये सही करने की सोची। सोचा मुझे हर बार दूसरा मौका मिल रहा है। लग जाओ काम पर। लग गया। पास हो गया इंटरमीडिएट में। फिर तो पहाड़ तोड़ डाले। आगे की पढ़ाई में धुआंधार पास होता गया। डिप्लोमे किये तो सबमें top मारा। सोच रहा था कि क्या मैं इतने आगे के लिये बना हूँ? क्या इसलिये बेसिक में कमज़ोर रह गया?

इसी दौरान पेचिश की बीमारी हो गई। हफ्ते भर व्यस्त रहने के कारण ध्यान नहीं दिया। बढ़ कर खूनी पेचिश हो गई। लगा जान निकल जायेगी। डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने 3000 की दवा और टेस्ट लिख दिये। मेरे पास इतना पैसा नहीं, हिम्मत नहीं और समय भी नहीं था। सोचा, अभी तो बहुत लोग मुझे चाहने लगे हैं। अभी मरना उचित नहीं। इसलिये डॉक्टर के पास दोबारा गया। कहा कि मुझे अभी ठीक करो। मेरे पास यह आखिरी रात है।

डॉक्टर ने मेरी आँखों में सत्य देखा और पर्चे की दवाई काट दी। पूछा कि इंजेक्शन लगवा दूँ? मैंने कहा कि नेकी और पूछ पूछ? डॉक्टर ने 4 इंजेक्शन लिखे। दाम सिर्फ 20 रुपया। उन्ही के अस्पताल में दूसरे डॉक्टर ने डराते हुए इन वेन में इंजेक्शन लगाया। धीरे-धीरे...उंगलियां हिलाते रहना, पलकें झपकाते रहना...हो गया। सवेरे तक मैं बेहतर था। अगले दिन एक और इंजेक्शन लगवाया और बस चंगा हो गया। 2 इंजेक्शन रखे-रखें खराब हो गए और मैं निकल आया इस बवाल से।

परास्नातक के दौरान और बुरा हुआ। शाहजहांपुर के गांधी-फैज-ए-आम कालेज में 2 वर्ष में 2 बार डेंगू बुखार हुआ। 5 दिन में अपने तरीके से और डॉक्टर के तरीके को मिला कर ठीक हो गया। इतनी fast recovery कि डॉक्टर को लगा कि कोई गड़बड़ है, कहा कि आप अस्पताल में भर्ती हो जाओ। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब जूलॉजी पढ़ रहा हूँ, अपना ध्यान रख सकता हूँ।

रख भी लिया। पैर जवाब दे गए थे फिर भी किसी को पता तक न चला कि इस लड़के के भीतर सिर्फ 50000 प्लेटलेट्स बची थीं। प्लेटलेट्स काउंट 3 दिन में 4 लाख तक पहुँच गया। कोई मानता नहीं था। सब रिपोर्ट मांगते थे कॉलेज में। लेकर गया। सब हतप्रभ। कोई बोला नकली रिपोर्ट होंगी। मैंने सीखा कि सफ़ाई चाहे जितनी दीजिये वह अगले के अविश्वाश को खत्म नहीं कर सकती।

कालेज के पास नाला था। दिन में भी मच्छर काटते थे। फिर काट लिया अगले वर्ष भी। इस बार कॉलेज ही चला गया। पहली रिपोर्ट लेकर। सबने देखा कि यह मुर्दा दौड़ कैसे रहा है?

रोज शाम को खून की जांच होती और सुबह वह कॉलेज में। सबने देखा कि मैं फिर से 3 दिन में रिकवर हो गया। लैब वाले sir ने एक दिन प्लेटलेट्स काउंट करना सिखाया। सबको अनीमिया निकला। लड़कियों मे ज्यादा और लड़कों में कम। मेरी बारी आई। sir ने 3 बार चेक किया। 3 बार खून निकाला सुई भोंक कर के फिर भी यकीन नहीं आया कि इस लौंडे में पूरी क्लास से ज्यादा खून कैसे। बचे sir जी। उनको भी एनीमिया निकल आया। शर्मिंदा हो गए। मैं तो जैसे साइंस एक्सपेरिमेंट हो गया। अजूबा।

इसी तरह के न जाने कितने किस्से हैं। जो याद आया, धाराप्रवाह लिखता चला गया। पता नहीं क्यों लिखा? बस लिख दिया। दिल में आया और उंगलियों ने छाप दिया। वैसे भी मैं कोई पोस्ट सोच समझ कर लिखता भी नहीं। सोचता तो आप आज मुझे जानते भी नहीं। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुद्धत्व: 10 जन्मों का निष्कर्ष?

बुद्ध एक अवस्था है। जिसे बुद्धत्व कहते हैं यह सिर्फ एक कल्पना है। कोई नहीं जानता कि उसका पिछला जन्म क्या था। जितने भी केस हैं वे सभी पिछड़े इलाके के हैं और जिनको इसके लिये ही तैयार किया जाता रहा है। लॉजिक ही नहीं है तो कुछ सम्भव ही नहीं। सब फेक है।

इंसान धर्म के लिए क्या नहीं करता। मुस्लिम उग्रवादी आत्महत्या कर लेता है। सिख फांसी चढ़ जाता है। यहूदी शूली चढ़ जाता है। हिन्दू सती, जीभ काट देता है, भूत चढ़ने के ढोंग करते हैं, मुस्लिम जिन आने के ढोंग करते हैं। लेकिन बन्दूक दिखाओ तो हाथ ऊपर। ~ शुभाँशु जी 2018©

बलात्कारी समाज की पहचान

विदेशों में लड़कियाँ छोटे और चुस्त कपड़े इसलिये पहनती हैं क्योंकि वहाँ के लड़के उनको भाव नहीं देते। उनको आकर्षित करने के लिये वे नग्न तक होना चाहती हैं। दरअसल वहाँ अधिकतर लड़के विवाह के खिलाफ हैं और पोर्न तथा सेक्स टॉय से अपनी कामोत्तेजना को शान्त रखते हैं।

इंटरनेट पर जो आंकड़े बलात्कार के देखने को मिलते हैं वे सभी ज्यादातर झूठे होते हैं क्योंकि असली बलात्कार में प्रायः हत्या ही कर दी जाती है सज़ा से बचने के लिये। अधिकतर बलात्कार के मामले पैसे हड़पने के या विवाह का दबाव डलवाने के लिये किये गए प्रयास या बदला होते हैं।

असली बलात्कारी कभी पकड़े ही नहीं जाते हैं। इसीलिए वे कुछ लोग बलात्कार करते ही रहते हैं। हम समाज में महिलाओं के अज़ादख्याली होने के स्तर से ही समाज में पुरुषों की हवस की मात्रा जान सकते हैं।

जितना ज्यादा बदन ढका होगा, उतना ही महिला को पुरूष से बलात्कार का खतरा होता है, इसी आधार पर कोई महिला खुद को खुला या ढका रखती है। ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/05/02 04:51

मंगलवार, मई 01, 2018

विकास का पिता: मजदूर

अगर श्रमिक नहीं होते तो हम आज बंगलों में न बैठे होते। कारें, बसें, इमारतें, सड़के, खेत सिर्फ पत्थरों पर बने होते कोयले से या कंदराओं में, गुफाओं में। क्योकि कागज और कलम भी तो किसी मजदूर की मेहनत से ही बनती है।

मजदूर/श्रमिक हैं तो विकास है, प्रगति है। यह छोटा पेशा नहीं है। इसे सभी को अपनाना चाहिए। इसकी तनख्वाह/वेतन भी ऊंचा होना चाहिए और इसे भी सामान्य नौकरी की तरह समझना चाहिए।

उत्तम विश्व निर्माण में यही पसीने से दुर्गंध मारता असभ्य सा दिखने वाला इंसान ही सभ्यता को यथार्थ में बदलता है। जिसकी सुगंध लिए हम वर्षों तक अपनी धरोहरों पर गर्व करते फिरते हैं। इसलिये एक् श्रमिक/मजदूर को सम्मान से देखो।

मैं आज भी मजदूर बनना गौरव की बात समझता हूँ क्योंकि एक यही ऐसा पेशा था जिसने मुझे शून्य से अनन्त तक पहुचने का रास्ता दिया क्योंकि मैं न तो कभी पूंजी लेकर आया था और न ही भीख मांगने की हिम्मत थी मुझमें। आज एक मई 2018 को मैं शुभाँशु अपने मन की बात इस विषय पर पहली बार आपके समक्ष रख रहा हूँ। उम्मीद है कि आप समझेंगे। नमस्कार! ~ शुभाँशु जी 2018©

सोमवार, अप्रैल 30, 2018

शुभाँशु: एक ठग

हम में से अधिकतर विद्वान बहुत ज़ल्दी निराश हो जाते हैं। सबकुछ बहुत जल्दी जानने की चाह हमको ज्ञानी बना देती है लेकिन परेशान भी बहुत कर देती है। दरअसल हम में से बहुत लोग सबकुछ जानने के लिये नहीं बने या बनना ही नहीं चाहते।

जो यह बात नहीं जानते, वे कुएं से निकल कर, एक बड़े तालाब को ही दुनिया समझ बैठते हैं। गलती उनकी नहीं है। जब भी कोई छोटे से कुएं से बाहर निकलता है तो वह सीमित तालाब उसे दुनिया ही नज़र आतीं है, जैसे जब तक हम अंतरिक्ष में नही गए हम बस पृथ्वी को ही सबकुछ समझ बैठे थे।

आज हमें पता है कि ross 128 ख नाम का पृथ्वी के समान एक और ग्रह मिल चुका है। उस पर मानव के बसने की उम्मीद बढ़ती जा रही है। लेकिन हम में से ज्यादातर विद्वान क्या कर रहे हैं? बस इस छोटे से पृथ्वी रूपी तालाब के चक्कर काट कर खुद को पूर्ण हुआ समझ लेते हैं। उतना जानकर ही हम 50 वर्ष की उम्र में बस मृत्यु की राह देखने लगते हैं।

मैं भी कभी कभी ऐसा ही सोचने लगता हूँ। जैसे अब बस हुआ। यह मानव की आत्म घाती इंस्टिंक्ट कहलाती है। जबकि सत्य तो यह है कि जीवन के खुशनुमा पल एकांतवासी बन कर भी मिलते हैं लेकिन कथित परलोकवासी बन कर कभी नहीं। लाशें नहीं बोलतीं। लाशें नहीं सिखातीं। लाशें सड़ती हैं। लाशें दुर्गंध फैलाती हैं। लाशें बीमारी फैलाती हैं। हमकों लाश नहीं बनना। हमको तो दुनिया में ज्ञान की सुगंध फैलानी है।

जब तक विद्वान जीवन जीते हैं बस उतने ही दिन अच्छाई फलती-फूलती है। जब उन विद्वानों की मृत्यु होती है, तब सारी दुनिया अनाथ हो जाती है।

मैं इसीलिये जीवन जी रहा हूँ क्योकि लोगों को मैं अभी कुछ विद्वान लगता हूँ, उनको मेरी ज़रूरत है। जबकि मैं अभी भी कुएं से निकल कर तालाब में आया और अब उस से आगे जाने वाले अन्य विद्वानों की तरह का एक सामान्य सा मूर्ख इंसान रूपी मेढ़क ही हूँ।

मैं भी कभी कुएं को तो कभी तालाब को पूरी दुनिया ही समझ बैठा था लेकिन आशा की किरण किसी न किसी कोने से आती दिखती ही रही और मैं फुदक कर एक दिन तालाब से बाहर निकल ही आया। यह दुनिया पहले वाली दोनो दुनिया से बेहतर थी। मैंने अपनी कंफर्ट ज़ोन छोड़ दी थी और संघर्ष की एक नई राह पकड़ कर जीवन को फिर से रोमांच से भर दिया।

दुनिया 1. कूप या कुंआ (स्थानीय परिवेश: देश यात्रा व देशी पुस्तके)
दुनिया 2. तालाब (बाहरी परिवेश: विदेश यात्रा व विदेशी पुस्तकें)
दुनिया 3. समुद्र (गूढ़ ज्ञान की दुनिया, छिपी हुई दुनिया, रहस्य और हर समस्या का हल)

और मैं और आप एक मण्डूक (मेढ़क: उभयचर प्राणी)

इस तीसरी दुनिया में मैं आज विचरण कर रहा हूँ। जो ब्रह्मांड जैसी विशाल है। वैसे ही हमारे लिये समुद्र भी बहुत विशाल है। इसे देखने के लिये बहुत जीवन चाहिए। बहुत ज्यादा, बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा। लेकिन वह कैसे मिले? जर्जर ज़िस्म, चारपाई पकड़े हुए, 100 वर्ष जीवन जीने से तो मर जाना बेहतर। फिर कैसे रहें चिरंजीवी? चिरयुवा?

जब आप इस तीसरी दुनिया में जाते हैं तो जीवन अपने आप लम्बा और शरीर युवा होने लगता है। शरीर अपने आप एडजस्ट करता है खुद को, बदली हुई दुनिया के अनुसार। हमें ऐसा ज्ञान मिलने लगता है जो पहले सर्वथा असम्भव था। यानि वह अब जब आपकी सच्ची आवश्यकता बना, तब सम्भव हो गया। जवान और अमर होना अब सम्भव हो चुका। मृत्यु अब अंतिम सत्य नहीं।

कोई भी जीव अब तक नहीं बचा इसलिये हम कहते हैं कि मृत्यु अंतिम है। इससे कोई पार नहीं जा सका। लेकिन फिर यह क्यो भूल जाते हैं कि पहले कोई हवाई यात्रा भी तो नहीं करता था, मोबाइल पर फेसबुक-ट्विटर-व्हाट्सप्प-इंस्टाग्राम आदि भी तो नहीं चलाता था।

पहले वाले जीव-जंतु-मानव अभावग्रस्त थे लेकिन हम लोग तो सम्पन्न हैं। उम्मीद ने ही हमको जीवन दे रखा है। फिर भी हम उसे छोड़ देने में देर नहीं लगाते। यह कैसा शुक्रिया है? यह कैसा सम्मान है उम्मीद का? उसे गले लगा कर मान देने की जगह फटकार? छी, थू है ऐसे तिरस्कार पर।

जब भी सब दरवाजे बंद दिखें तो हमको नये दरवाजे के खुलने की उम्मीद लग जानी चाहिए। न मिले तो समझ लीजिए कि आपको वह अब खुद बनाना है।

याद रखिये मैं आपको सबकुछ घोल कर नहीं पिलाने वाला। इशारा कर सकता हूँ लेकिन चम्मच से नहीं खिला सकता। मैं बहुत स्वार्थी व्यक्ति हूँ। सबकुछ लुटा कर चैन और सुकून खरीद लेना चाहता हूँ। मुस्कुराहट देकर मुस्कुराहट प्राप्त करता हूँ। सौदेबाज हूँ, सौदागर हूँ। छलिया हूँ। आपसे आपके दुःख की धूप ठग कर सुख की छांव का चूना लगा दूँगा।

मैं आया ही इसीलिये हूँ, आप सबको ठगने के लिए। ~ शुभाँशु जी 2018©

रविवार, अप्रैल 29, 2018

माता-पिता की ज़िम्मेदारी हैं अवयस्क बच्चे

सभी जगह डेटिंग शुरू करनी होगी। लड़कों को "संस्कारी" लड़कियां भाव नहीं देतीं तो कुंठा में वे बच्चो को शिकार बना लेते हैं और आप लोग लगे रहिये सयंम का उपदेश देने में या गुड टच बैड टच 6 महीने या 6 साल की बच्चियों को घोलके पिलाने में क्योकि उनको तो कुछ समझ में आएगा नहीं।

पता नहीं यह कैसी सुरक्षा है? जो उनको रेप करेगा तो पहले मुहँ बन्द करेगा या उसे चिल्लाने का मौका देगा? बेवकूफ लोग, गधे।

छोटे बच्चों को अपने साथ रखने में क्या मरती है माता-पिता की जो उनको अकेला छोड़ देते हैं? जब तक 18 के नहीं होते बच्चों की ज़िम्मेदारी माता-पिता की है। उनके साथ कुछ हो तो सज़ा अपराधी से ज्यादा माता-पिता को दी जाए तो ज़रूर रेप रुकेंगे बच्चों के।

सेक्स एडुकेशन भी सिर्फ समझदार हो रहे बच्चो को दे सकते हैं। 10-12 वर्ष के बाद लगभग। इससे पहले तो उनके भीतर कुछ यौवन के लक्षण भी नहीं दिखते।

सेक्स एजुकेशन में सेक्स करने का तरीका, उसके फायदे और नुकसान समझाए जाते हैं। साथ ही अगर कोई अपनी मर्जी से कर बैठता है तो क्या करना चाहिए सुरक्षा के लिये आदि। सारी दुनिया का ठेका तो मैं लिए बैठा हूँ। आप लोग ऐश करो। 😬 ~ शुभाँशु जी 2018©

फुलझड़ी और बारूद

समाज को, उसके बंधनो को जो लोग अच्छा समझते हैं, वही दरअसल समाज के दुश्मन हैं। यही वे लोग हैं जो तमाम अच्छी सोच वाले बनकर भीतर से घटिया ही बने रहते हैं। सबसे निम्नस्तरीय सोच वाले वह हैं जो दूसरों के लिये बड़ी बड़ी बातें करेंगे जैसे,

"आप अपनी लड़की को खूब पढ़ाइये, चाहें जैसे कपड़े पहनाइए। हमारे यहाँ लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता। पढ़ाने से लड़कियां बिगड़ जाती हैं (तभी इनके लड़के बिगड़ गए पढ़ाई करके) और आधुनिक कपड़े वाली लड़कियाँ (इनके) लड़कों का शिकार बन जाती हैं।"

मतलब दूसरा करे तो कोई दिक्कत नहीं है क्योकि खुद की नज़र दूसरों के ऊपर रहती है। लेकिन अपने वाले परम्परागत ढंग से ही चलने चाहिए। यह दरअसल उसी तटस्थता के नियम की झलक है जो आपको धर्मनिरपेक्ष होने के  संदर्भ में दर्शाया जाता है, जैसे,

"आप मना लो होली, दिवाली हम भी गुझिया खाने, रंग लगाने आ जायँगे। आप भी आ जाना ईदी खाने को हमारे यहाँ।"

"खान साहब, हमारे यहाँ दुर्गापूजा और जागरण है आपको सादर आमंत्रित किया है"

"आ जाएंगे जी। ज़रुर आ जाएंगे।"

"आप आये नहीं पूजा में खान साहब?"

"अरे क्या बताएं, उसी समय बिटिया को दस्त लग गए और उसे दवाई दिलाने ले जाना पड़ा। बताइये क्या करते?"

"अरे पांडे जी, आप ईदी खाने नहीं आये। आपके लिये बिरयानी बनवाई थी।"

"हमारा उपवास था उस दिन खान भाई। इसलिये आपको तकलीफ नहीं दी। खान साहब"

इस तरह से चलता है भाई चारा। अंदर क्या चलता है वह भी देखिये।

"अब क्या बताएँ पांडे जी को कि हमारे यहाँ मूर्ति पूजा हराम है। ख़ुदा माफ करना, धर्म की रक्षा के लिये झूठ बोलना पड़ा!"

"हरे राम, हरे राम, अब क्या कहें खान साहब को, उनकी बिरयानी ख़ाकर धर्म थोड़े ही भृष्ट करना है। माफ करना राम जी, धर्म की रक्षा के लिये झूठ बोलना पड़ा! हरि ॐ तत्सत!"

क्या है यह झूठा समाज? खाली दिखावा? बस एक चिंगारी का इंतज़ार करता हुआ विस्फोटक? और जब नेता चुनोगे तो मुद्दे तो चाहिए ही जिन पर आपको सबसे ज्यादा गुस्सा हो। वही न जिसके कारण आपको धर्मरक्षा करनी पड़ती है? कि काश दूसरे धर्म वालों के बीच रहना ही नहीं पड़ता तो कितना अच्छा होता?

भारत कभी धर्म तटस्थ (कथित धर्मनिरपेक्ष) था ही नहीं। बस दिखावा करना था ताकि चैन से जी सकें। लेकिन क्या नेता ऐसा होने देंगे? आप अपनी कास्ट, धर्म और पैरवी करने वाले को ही तो वोट देते हैं। क्यों? क्योकि आपको उससे उम्मीद हैं और बाकियों से नफरत।

उम्मीद भी किस बात की? यही कि हमको अलग कालोनी/राज्य/देश मिल जाये, लड़के-लड़कियों को गैर धर्म में रिश्ता न जोड़ना पड़े। अलग सुविधायें मिल जाएं। सब कुछ धर्मानुसार होता रहे; चाहें वह कितना भी गलत ही क्यों न हो। पुरखों ने किया तो कुछ तो बात होगी! यही सोच कर पाप पुण्य और पुण्य पाप में बदलते रहते हैं।

हम सब धर्म/सम्प्रदाय की बारूद से बने बम बने घूम रहे हैं और नेता फुलझड़ी लेकर आपके करीब आ रहे हैं। सावधान रहें। वैसे भी आप बारुद को आग पकड़ने से रोक नहीं सकते। क्या फुलझड़ी को कभी फूंक मार के बुझा पाया है कोई? ~ शुभाँशु जी 2018©

शुक्रवार, अप्रैल 27, 2018

Porn: एक हस्तमैथुन प्रेरक और बलात्कार से बचाने वाला

पोर्न विश्वभर में (जहाँ भी मुस्लिम नहीं हैं) सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त व्यापार है। मनोविज्ञान कहता है कि अच्छा और वैध पोर्न लोगो की कामुकता को घरों में ही खत्म् कर देता है (हस्तमैथुन/सेक्स टॉय के द्वारा)।

इससे व्यक्ति बिना काम वासना के अपना जीवन आसानी से गुजार लेता है। जो लोग पोर्न नहीं देखते या देखते हुए हस्तमैथुन/सेक्सटॉय इस्तेमाल नहीं करते वह ज़रूर अपनी कुंठा को भड़काते हैं और बलात्कार के लिए प्रेरित हो सकते हैं। समस्या पोर्न नहीं है बल्कि उसे देखते समय हस्तमैथुन न करना है।

कृपया पोर्न देखते समय कामोत्तेजित हों तो अपने आस पास किसी महिला/पुरूष को न दबोचें बल्कि हस्तमैथुन कर के अपनी कामुकता को नाली में बहा दें। धन्यवाद! 💐 ~ शुभाँशु जी।

विशेष note: बच्चा पोर्न सम्पूर्ण विश्व में प्रतिबंधित है और बलात्कार की सच्ची घटनाओ का फिल्मांकन भी। किसी का निजी वीडियो और ऐसा कोई भी वीडियो जो आपराधिक घटना को प्रेरित करे, उसे वेबसाइट में दिए गए रिपोर्ट लिंक से रिपोर्ट कर दें। वह हटा लिया जाता है। पोर्न के बस यही रूप घातक हैं बाकी वरदान हैं, हर बलात्कारी को अपने कमरे या बाथरूम में बन्द रखने के लिये। ~ शुभाँशु जी 2018©

महिलाओं और पुरुषों के हित में जारी।