Zahar Bujha Satya

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मंगलवार, मई 01, 2018

विकास का पिता: मजदूर

अगर श्रमिक नहीं होते तो हम आज बंगलों में न बैठे होते। कारें, बसें, इमारतें, सड़के, खेत सिर्फ पत्थरों पर बने होते कोयले से या कंदराओं में, गुफाओं में। क्योकि कागज और कलम भी तो किसी मजदूर की मेहनत से ही बनती है।

मजदूर/श्रमिक हैं तो विकास है, प्रगति है। यह छोटा पेशा नहीं है। इसे सभी को अपनाना चाहिए। इसकी तनख्वाह/वेतन भी ऊंचा होना चाहिए और इसे भी सामान्य नौकरी की तरह समझना चाहिए।

उत्तम विश्व निर्माण में यही पसीने से दुर्गंध मारता असभ्य सा दिखने वाला इंसान ही सभ्यता को यथार्थ में बदलता है। जिसकी सुगंध लिए हम वर्षों तक अपनी धरोहरों पर गर्व करते फिरते हैं। इसलिये एक् श्रमिक/मजदूर को सम्मान से देखो।

मैं आज भी मजदूर बनना गौरव की बात समझता हूँ क्योंकि एक यही ऐसा पेशा था जिसने मुझे शून्य से अनन्त तक पहुचने का रास्ता दिया क्योंकि मैं न तो कभी पूंजी लेकर आया था और न ही भीख मांगने की हिम्मत थी मुझमें। आज एक मई 2018 को मैं शुभाँशु अपने मन की बात इस विषय पर पहली बार आपके समक्ष रख रहा हूँ। उम्मीद है कि आप समझेंगे। नमस्कार! ~ शुभाँशु जी 2018©

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