एक हाल ही का अनुभव बताता हूँ। मुझे fb ने कुछ लोगों के नाम सुझाये जिनके प्रोफाइल में लिखा था "शून्य हूँ मैं या जीरो हूँ मैं" आदि। मुझे लगा कि बेचारे सीधे हैं सच में। मैंने इनको लिस्ट में जोड़ लिया।
अब इनकी post देखीं। सभी में यह खुद को सर्वे सर्वा बता रहे थे। इनकी सोच अंतिम सोच होती है। इसके आगे कोई सोच ही नहीं सकता ऐसा महसूस हुआ।
इनकी व्यवहार शैली भी एक समान मिली। मेरे fb app में जब कोई दूसरा कमेंट करता है जब मैं लिख रहा होता हूँ तो सारा लिखा हुआ गायब हो जाता है। इसलिये मैं एक दो वाक्य लिखते ही या जैसे ही कोई कमेंट लिख रहा है का संकेत आता है तो मैं लिखा हुआ ही पोस्ट कर देता हूँ। इसको ये लोग कहते हैं कि मैं उत्तेजित हो गया हूँ या दूसरे को मौका ही नहीं देता हूँ। धैर्य नहीं है मुझमें आदि तमाम व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं।
खुद मेरे एक भी विचार को like नहीं करेंगे, टिप्पणी तभी करेंगे जब अपमान करना हो और भाषा में आप ज़रूर होगा लेकिन लहज़ा बार बार आप के ऊपर हंसने वाला, मजाक उड़ाने वाला होगा। फिर सोचता हूँ कि वह जीरो कैसे आया इनके दिमाग में।
दरअसल इनको इनके घमण्ड के चलते सब लोगों ने डांटा है कि आप अपने को समझते क्या हैं? आप कुछ नहीं हैं! आप जीरो हैं।
बस इन्होंने यह ताना इतनी बार सुना कि सुधरने के स्थान पर खुद को ही जीरो का टैग लगा दिया। अब लोग इनको बोलेंगे जीरो, तो ये कहेंगे कि हां वे तो पहले से ही लिखे हुए हैं। यह घमण्ड और खुद को सर्वेसर्वा समझने की निशानी है कि कोई खुद को शून्य लिखे।
खुद को अहं बृहमास्मि कहने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं इसलिये विनोदी व्यवहार के लिये ऐसे शब्द प्रयोग करते हैं जिनसे खुद के लिए आदर का भान होता है। लेकिन वे दिल के साफ होते हैं। उनसे आप कहेंगे कि आप कुछ नहीं हैं तो वे कहेंगे कि आप सिखा दीजिये।
आगे से खुद की तारीफ करने वाले अकेले पड़ गए लोगों को गलत मत समझियेगा क्योकि वे अपनी तारीफ इसलिये करते हैं क्योकि कोई और नहीं करता।
लेकिन जो खुद को कमतर और नीचा दिखाते हैं वे दरअसल बेशर्म होते हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या कहा जायेगा इसलिये वे खुद को ढीठ बनाने के लिये पहले ही वह लेबल लगा लेते हैं।
मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा लेकिन देखना उनकी ईगो उनको यहाँ खींच लाएगी। वह सुना है न, चोर की दाढ़ी में तिनका। 😀 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Dharmamukt 2018©