Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, जून 23, 2018

माफ़ करना! जीरो नहीं हूँ मैं।

एक हाल ही का अनुभव बताता हूँ। मुझे fb ने कुछ लोगों के नाम सुझाये जिनके प्रोफाइल में लिखा था "शून्य हूँ मैं या जीरो हूँ मैं" आदि। मुझे लगा कि बेचारे सीधे हैं सच में। मैंने इनको लिस्ट में जोड़ लिया।

अब इनकी post देखीं। सभी में यह खुद को सर्वे सर्वा बता रहे थे। इनकी सोच अंतिम सोच होती है। इसके आगे कोई सोच ही नहीं सकता ऐसा महसूस हुआ।

इनकी व्यवहार शैली भी एक समान मिली। मेरे fb app में जब कोई दूसरा कमेंट करता है जब मैं लिख रहा होता हूँ तो सारा लिखा हुआ गायब हो जाता है। इसलिये मैं एक दो वाक्य लिखते ही या जैसे ही कोई कमेंट लिख रहा है का संकेत आता है तो मैं लिखा हुआ ही पोस्ट कर देता हूँ। इसको ये लोग कहते हैं कि मैं उत्तेजित हो गया हूँ या दूसरे को मौका ही नहीं देता हूँ। धैर्य नहीं है मुझमें आदि तमाम व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं।

खुद मेरे एक भी विचार को like  नहीं करेंगे, टिप्पणी तभी करेंगे जब अपमान करना हो और भाषा में आप ज़रूर होगा लेकिन लहज़ा बार बार आप के ऊपर हंसने वाला, मजाक उड़ाने वाला होगा। फिर सोचता हूँ कि वह जीरो कैसे आया इनके दिमाग में।

दरअसल इनको इनके घमण्ड के चलते सब लोगों ने डांटा है कि आप अपने को समझते क्या हैं? आप कुछ नहीं हैं! आप जीरो हैं।

बस इन्होंने यह ताना इतनी बार सुना कि सुधरने के स्थान पर खुद को ही जीरो का टैग लगा दिया। अब लोग इनको बोलेंगे जीरो, तो ये कहेंगे कि हां वे तो पहले से ही लिखे हुए हैं। यह घमण्ड और खुद को सर्वेसर्वा समझने की निशानी है कि कोई खुद को शून्य लिखे।

खुद को अहं बृहमास्मि कहने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं इसलिये विनोदी व्यवहार के लिये ऐसे शब्द प्रयोग करते हैं जिनसे खुद के लिए आदर का भान होता है। लेकिन वे दिल के साफ होते हैं। उनसे आप कहेंगे कि आप कुछ नहीं हैं तो वे कहेंगे कि आप सिखा दीजिये।

आगे से खुद की तारीफ करने वाले अकेले पड़ गए लोगों को गलत मत समझियेगा क्योकि वे अपनी तारीफ इसलिये करते हैं क्योकि कोई और नहीं करता।

लेकिन जो खुद को कमतर और नीचा दिखाते हैं वे दरअसल बेशर्म होते हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या कहा जायेगा इसलिये वे खुद को ढीठ बनाने के लिये पहले ही वह लेबल लगा लेते हैं।

मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा लेकिन देखना उनकी ईगो उनको यहाँ खींच लाएगी। वह सुना है न, चोर की दाढ़ी में तिनका। 😀 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Dharmamukt 2018©

सोमवार, जून 18, 2018

अविवाहित नवयुवतियों के लिये मौका

यदि आप महिलाओं को अंध्विश्वास, मुक्त सोच के प्रति जागरूक करते हैं तो आप समझिये आपने उसके पूरे वंश को जागरूक कर दिया।

माँ ही होती है बच्चे की पहली शिक्षक फिर लडकियों की तो हर कोई सुनना चाहता है। रुचि होने के कारण उनका प्रयोग जब धर्म और चुनाव जैसे बेकार कामो में किया जा रहा है तो अच्छे कार्यों में क्यों नहीं?

इसीलिये अविवाहित महिला मित्रों से निवेदन है कि मुझसे व्यक्तिगत तौर पर मिल कर जागरूकता फैलाएं। विवाहितों को तो उनके पति ही न आने देंगे। इसलिये उनको इससे मुक्त रखा है। ~ Shubhanshu The Satisfaction 2018©

रविवार, जून 17, 2018

ज़हरबुझा फल

बुद्धिमान मित्र: भाई आजकल फलों की दुकान ऑनलाइन चालू की है क्या?
भोला शुभ: नहीं भाई, खुद भूखा सो रहा हूँ।
मित्र: फिर ये क्या है खरबूजा सत्य?
शुभ: 😵 रहम कर भाई। तेरे से न हो पायेगा! रहन दे। चश्मा बनवा लियो जाकर आज ही। नहीं तो मिल मत जाना दोबारा। समझे। 😬😤
~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

शनिवार, जून 16, 2018

दो दोस्त

दो लोग आपस में बात कर रहे थे।

😂: यार ये देख, ये कबूटिया कौन है? इसकी फ़ोटो देख। एक दम कोई स्मैकिया लग रहा है। बाल भी उड़े हुए हैं और दाढ़ी तो जैसे दादा की लगा ली है। कैसे-कैसे लोग fb पर आ जाते हैं।

😬: तुझें पता है? ये कौन हैं?

😂: हाँ Shubhanahu Singh Chauhan.

😬: तो ये बात उनके प्रोफाइल pic पर जा के लिख दे न? दाढ़ काहे फटे जा रही है लिखने में?

😕: अब क्या कहूँ। लिख दूँगा तो पता नहीं वो क्या करे। कहीं ब्लॉक मार दिया तो?

😒: मतलब क्या है तेरा? जुड़ा ही क्यों है उनसे जब पसन्द नहीं करता तो? तेरा 1 भी लाइक नहीं देखा मैंने उनकी किसी post में।

😧: अब कुछ कह दूँ जो जैसे बाकियों की धोते हैं मेरी भी धुल देंगे तो अपनी बेइज़्ज़ती न करवानी उनसे। like इसलिये नहीं करता क्योंकि उनको और मेरे दोस्तों को पता चल सकता है कि मुझे उनकी सभी post पसन्द आती हैं।

😮: अभी तो कह रहा था कि स्मैकिया हैं वो?

😧: तो वो मैं फ़ोटो की बात कर रहा था। फ़ोटो और शक्ल का क्या अचार डालना है? ये आदमी सिर्फ नास्तिकता पर नहीं लिखता बल्कि और भी बहुत कुछ लिखता है जो बहुत रोमांचक है, नया है और हैरान करने वाला है।

एक पोस्ट से असहमत हो भी जाओ तो दूसरी से सहमत होना ही पड़ता है। अब बताओ कैसे छोड़ दूं इनको? जितना ये जानते हैं उतना मेरा पण्डित बाप भी नहीं जानता तो बताओ कौन बड़ा?

पता नहीं क्या है इस आदमी में कि बस दिन भर इसी की पोस्ट पढ़ता रहता हूँ। आदमी है या कंप्यूटर? इतना जानकारी लाता किधर से है? अपने से तो गूगल पर गूगली ही हो जाती है। एक दिन में 50 पोस्ट कर देता है ये। ज्यादा भी। कोई भरोसा नहीं।

😑: अबे करेले के बीज, तू बुराई कर रहा है या तारीफ?

😁: यार कुछ मत पूछ, मेरा तो दिमाग ही बन्द हो गया है। दिन भर इसी के post दिमाग में घूमते रहते हैं। खुद दुनिया से भरोसा उठने लगा है। ये आदमी है क्या चीज़?

😏: भाई तू रहन दे। दिमाग पर ज्यादा जोर न डाल। तू समझने लगा है उनको और तुझे पता है वे क्या कहते हैं?

😶: क्या कहते हैं?

😀: जो उनको समझ गया, वो गया...

😗: मतलब मर गया?

☺: नहीं। उनके जैसा हो गया और फिर तू भी समाज में अजूबा बन जायेगा और मूर्ख समाज तुमको भी उनकी तरह पागल कहेगा। यानी तुम्हारी सामान्य ज़िन्दगी गई। दोस्त और रिश्तेदार भी। फिर वह मरे के समान ही हुआ न? दूसरे के लिए?

😊: अच्छा ये बात है। सुन एक बात कहूँ?

😏: बोल?

😁: भाड़ में जाये दुनिया!

शुक्रवार, जून 15, 2018

पौधे और जंतुओं का ज़हरबुझा सत्य ~ Shubhanshu

सामान्यतः जंतु तकलीफ महसूस करते हैं क्योंकि उनमें मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र होता है। सामान्यतः वनस्पतियों में मस्तिष्क और तंत्रिकाओं का पूर्णतः अभाव होता है इसलिये जगदीशचंद्र बसु का क्रिस्कोग्राफ सिर्फ एक धोखाधड़ी वाला प्रयोग था।

मस्तिष्क हीन जंतु जैसे जेलीफिश और बहुत से जलीय स्थिर जंतु खुद पौधे जैसे दिखते हैं होते हैं वे दर्द महसूस नहीं करते बल्कि जलीय दबाव के प्रति क्रिया दर्शाते हैं। उसे एक निर्जीव क्रिया समझा जा सकता है।

पौधों की जन्तुओ से तुलना करने वाले मूर्ख लोगों को यह पता होना चाहिए कि पौधे और जंतुओं को जोड़ने वाली कड़ियाँ सिर्फ अपवाद होती हैं जो कि वर्गीकरण में भिन्न स्थान पर रखी जाती हैं।

मूल वर्गीकरण पौधे और जंतु में किया गया है जो कि मस्तिष्क हीन जीवन और मस्तिष्क युक्त तंत्रिका तंत्र से व गतिमान अवस्थाओं, जंतु-वनस्पति कोशाओं के मूलभूत अंतर पर और मानव से उसकी समानता पर जंतु जगत में और सजीव परन्तु जड़ निकायों के रूप में पौधों (वनस्पतियों) में किया गया है।

स्वपोषी में भी क्लोरोफिल वाली वनस्पतियों के अतिरिक्त कवक व मशरूम शामिल हैं जो अपना भोजन मृतोपजीवी के रूप में स्वयं ही बनाते है। प्रकृति में भोजन स्वयं बनाने वाली प्रत्येक खाने योग्य वस्तु/जीव जो किसी का अन्य का शिकार न करती हो वह प्राथमिक भोजन होती है।

जो जैसे पाचन तंत्र के साथ पैदा हुआ है उसे वैसा ही भोजन करना चाहिए और मानव वनस्पति आधारित पाचनतंत्र के साथ पैदा हुआ है यही अंतिम सत्य है। सर्वाहारी जंतु के रूप में भालू और बंदर आपके सामने हैं उनसे खुद की तुलना करके खुद देख लें। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©

बुधवार, जून 13, 2018

Rationalism Campaign India

Marriage Free India Campaign

ॐ का आविष्कार

निष्कर्ष: बाबाओं की कुटिया से लगातार उई माँ-उई माँ जैसी आवाजों के आने से इस शब्द का उद्भव हुआ। जो कालांतर में उइम होकर ॐ हुआ।

छात्र: क्या सुबूत है इस बात का?

शुभ्: पुरातन काल की बातों का सिर्फ तर्क होता है सुबूत नहीं।

मेनका, उर्वशी की कहानियों में ऋषियों के उनसे सम्भोग का वर्णन है जो वे उनसे अपनी कुटिया में करते थे। जब बाहर आते थे तो वे इसे योग बोल कर अपने कर्म छुपा लेते थे।

उन्हीं आवाजों को लोग जब पूछते तो वे उनसे कहते थे कि वह महिला योग शब्द बोल रही है।

वही शब्द लोगों ने याद करके अफवाह की तरह फैलाया जो बाद में ॐ बन गया।

छात्र: क्यों?

शुभ्: क्योकि अप्सरा की तरह जब चाहे स्वर्ग और मृत्युलोक आजा सकें उसके लिए अप्सरा द्वारा बोला गया प्रत्येक मंत्र महत्वपूर्ण होता था।

यही आज बाबाओं के नित्य कर्म में भी दिखता है। ॐ का उच्चारण सम्भोग की इच्छा दर्शाने के लिये ऋषि बोलते थे जिसे सुनकर अप्सरा चली आती थी। आज भी ॐ बोलने पर यही होता है। बस आज अप्सराओं की जगह महिलाओं ने ले ली है।
~ शुभाँशु जी 2018©

मुस्कुराहट: मुरब्बा

मित्र: यार शुभ जल्दबाजी में फैसला मत लिया करो।

शुभ: क्यों?

मित्र: कल आपने जिस आदमी का मुरब्बा बना के पैक करके पार्सल किया है, वह आपसे पिटने नहीं, बल्कि आपको पीटने आया था।

शुभ: ओह मुझे सुनने में गलती हो गई। कल मैंने उससे पूछा था कि क्यों आये हो तो वह बोला, "पिटने"। तो मैंने भी उसे सन्तुष्ट करके भेजा था। अब ये उसकी गलती है कि वह आगे से मात्राओं की गलती न करे।

वैसे एक बात बता, तुझे कैसे पता कि वह क्या करने आया...अबे किधर गया? अभी तो यहीं खड़ा था। भाग गया ससुरा। इसी ने भेजा था।

मिल जाये तो मुरब्बा part 2 भी रिलीज करूँगा। ~ शुभाँशु जी 2018©

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