Dr. भीम राव अम्बेडकर की कांवड़ यात्रा निकालता उनका एक भक्त।
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शुक्रवार, जुलाई 13, 2018
बुधवार, जुलाई 11, 2018
शुक्रवार, जुलाई 06, 2018
भक्तों से प्रश्न
चलो अनपढ़ ऋषियों ने ब्रह्मा के प्रताप से उतपन्न हुए योगबल से ग्रँथ रचना कर डाली। ये योगबल क्या है?
और गजब, नबियों ने बिना किसी योगबल के ही ग्रँथ रचना कर डाली कबीर की तरह बिना लिखाई पढ़ाई करे।
यह तो चमत्कार हैं। क्या आप धार्मिक लोग चमत्कार में विश्वास रखते हैं? योगबल या ईश्वर से स्थानीय ज्ञान का अलग-अलग लिपि और भाषाओं में सीमित क्षेत्र के लिये अलग-अलग ज्ञान देना सम्भव है?
महात्मा बुद्ध की कहानी में बुद्ध को बैठे-बैठे ज्ञान प्राप्त हो जाता है। जिसके कारण वे त्रिपिटक लिख देते हैं। क्या यह ज्ञान उन्हीं ऊपर वाले लोगों की तरह नहीं था?
यदि था तो आप इस विवरण से क्या निष्कर्ष निकालते हैं? मुझे बताएं। धन्यवाद!
भक्तों आपके उंगली नहीं कर रहा हूँ बस जानकारी देकर मुझे प्रभावित करने का प्रयास करें। आपका ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018© 👀👅💋
सरकारी व निजी शिक्षा का राष्टीयकरण
सरकारी शिक्षा मुफ्त है इसलिये उससे कोई लाभ नहीं मिलता। जबकि निजी शिक्षा स्थल व्यापार के लिये खुले हैं। उनको ज्यादा माल (डोनेशन/फीस) चाहिए तो वे ज्यादा बेहतर प्रोडक्ट देते हैं। सरकारी विद्यालय बस काम चलाने भर का खर्च करते हैं क्योकि जनसँख्या ज्यादा है और टैक्स कम मिलता है। जो मिलता है वह मुआवजे, और सेना को दे दिया जाता है हथियार खरीदने के लिये। बाकी सरकारी तनख्वाह के रूप में कामचोर सरकारी कर्मचारी खा जाते हैं।
सरकार को सभी सरकारी स्कूलों की ज़मीन निजीकरण के ज़रिए राष्ट्रीयकृत कर देनी चाहिए ताकि निजी हाथों में बच्चो का बेहतर भविष्य बन सके। सरकार से अकेले यह सब नही हो पाएगा। निजी निवेश करके वह इस समस्या को हल कर सकती है। जैसे अन्य कई चीजों का निजीकरण करके बेहतर सुविधाएं दी जा सकीं उसी तरह सरकारी विद्यालयों का भी उद्धार हो सकता है। ~ शुभाँशु 2018
गुरुवार, जुलाई 05, 2018
बहन
कहानी: श्रीमान वीगन शुभाँशु सिंह चौहान जी।
मेरी एक दोस्त थी। वह पहले बहुत ही संकीर्ण विचारधारा की थी। उसने मिलते ही मुझे भैया कहना शुरू कर दिया। मैंने उससे कहा कि अपने पापा से कहकर पहले मुझे गोद लेकर जायदाद नाम करने की कार्यवाही तो करवाओ लेकिन वह बोली, "नहीं। आप को मैं भाई ही कहूंगी। कारण मैं नहीं बता सकती।"
मैंने सोचा, कोई बात नहीं। यार, कुछ लोग होते हैं डरपोक। होने दो। अभी हिम्मत नहीं है खुल कर जीने की तो कोई बात नहीं।
मैंने उसको उसी रूप में स्वीकार कर लिया। हम अब जब भी मिलते मैं उसको उसके नाम से बुलाता और वो मुझे भाई कह कर। धीरे-धीरे मैं भी घुलमिल गया। अपनी बहन से जैसे सब बातें करता था उससे भी करने लगा। जैसे आज फलाँ लड़की ने मुझे गले लगा लिया, फलाँ ने किस ले लिया आदि।
कभी-कभी लिपिस्टिक भी लगी रह जाती और मैं बताना भूल जाता तो वह टोक देती। तब उससे ही पुछवाता था मैं लिपिस्टिक। वह कारण पूछती, डांटते हुए, जैसे मेरी अम्मा हो। मैं बता देता कि मैं एक ग्रुप में सबको हंसा रहा था कि उसमें से एक खूबसूरत लड़की किस लेकर भाई गयी। पता नहीं कौन थी।
वह बहुत अजीब सी हालत में पहुँच जाती। कभी-कभी कहती कि उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है और यह कह कर वह चली जाती।
लेकिन मैं समझ न सका। मैं उसे अब बहन की ही तरह ट्रीट कर रहा था। हर अंदर की बात खुल के उससे कह देता था लेकिन वह पता नहीं क्यों असहज हो जाती थी।
जब बाकी लड़कियाँ मुझे मेरे नाम से बुलातीं और हाथ मिलाती थीं तो वह मुझे ऐसे देखती थी जैसे मैने कोई गलती कर दी हो। लेकिन मैंने सोचा कि यह तो मेरा हाथ भी अपने हाथ से छूने नही देती। शायद इसीलिए इनकी संकीर्ण सोच का परिणाम है वह बात तो मैं अनदेखा कर देता था।
लेकिन अब बात बढ़ने लगी। वह और लड़कियों को मेरे साथ देखती तो नज़रें फेर लेती और अगर लड़कियां मेरे पास आ जातीं तो वह चली जाती बिना कुछ बोले।
उसका बोलना भी बहुत कम हो गया। कभी-कभी उसकी मिसकॉल आती लेकिन काल back करता तो वह काट देती थी। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में।
एक दिन लाईब्रेरी में हम दोनो साथ में चुपचाप बैठे किताब पढ़ रहे थे। अचानक उसका हाथ मेरे हाथ से छुआ। मुझे झुरझुरी सी आ गई। मैंने घबरा कर हाथ झटक दिया तो वह सकपका गई। मुझे लगा कि गलती से टच हुआ था।
वह हंसने लगी। तो मैं वापस बैठ गया। उसकी हल्की सी आवाज आई, "सुनो शुभ।"
"ह हाँ, कहो क्या हुआ?" मैं हड़बड़ा कर बोला।
"धीरे...बोलो।" इतना कह कर वह अपनी सीट मेरी सीट के एक दम करीब ले आई। मुझे लगा कि लाइब्रेरी में शोर न हो इसलिए वह ऐसा कर रही है।
"यह बताओ, तुम तो रोज न जाने कितनी लड़कियों से हाथ मिलाते हो और मेरे हाथ की छुअन से इतना क्यों घबरा गए?"
मैंने सिर झुकाए हुए ही उसे पुतलियाँ ऊपर करके देखा और बोला, "तुमने ही मना कर रखा है, तो कहीं गलती मेरी तो नहीं थी? यह सोच कर मैं घबरा गया था। बस।"
"और तो कोई बात नहीं है न?"
"नहीं और कोई बात नहीं है।"
"तो क्या मैं आज से तुमसे हाथ मिलाया करूँ?"
"हाँ, क्यों नहीं? लगता है तुम बदल रही हो।"
"नहीं। वह बस ऐसे ही। सोचा कि इसमें समस्या ही क्या है? जब तुम और दूसरी लड़कियों को नहीं है समस्या, तो मैं फिजूल में ही इतने टाइम तक इसे गलत समझती थी। ही ही ही।"
मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि अब वह अपनी सोच में खुलापन ल्ला रही थी। तभी उसने अचानक ही अपना हाथ, मेज के नीचे की आड़ में आगे बढ़ाया। मैंने देखा, उसकी आँखों में ऐसा कुछ था जैसे वह बहुत बड़ा काम करने जा रही थी। उसके हाथ में हो रहा कम्पन, उसकी एक हिलती टांग, उसकी घबराहट, जोश और हिम्मत उसका सच बोल रहे थे। कितनी दूर रही होगी वह विपरीत लिंग से? यह सोच कर बहुत अफसोस सा हुआ।
मैंने अपना हाथ धीरे से आगे बढ़ाया और उसने जैसे ही हाथ करीब आते देखा, अपनी आंखें बंद कर लीं। मैंने हल्के से उसके हाथ से अपना हाथ मिलाया और मुझे भी पहली बार उसकी छुअन महसूस करने के कारण झुरझुरी चढ़ गई।
लेकिन उसकी वह हिलती टांग पहले रुकी, फिर हाथ का थरथराना लेकिन होठ थरथराने लगे। उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर और मजबूत हो गई और उसकी हथेली के पसीने के कारण मेरा हाथ फिसलने लगा।
तभी लाइब्रेरियन करीब से गुजरी। उसे देख कर मेरी दोस्त (तथाकथित बहन) A ने अपना हाथ झटके से खींच लिया। लाइब्रेरियन को पता न चला।
वह उठी और वॉशरूम चली गई। थोड़ी देर बाद जब वह वापस आई तो तरोताज़ा लग रही थी। उसने चलने का इशारा किया और फिर हम लोगों ने अपने-अपने बैग उठाये और बुक्स वापस करके अपने-अपने icard वापस ले लिए।
लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगा जैसे अब तो हद हो गई। अब वह आये दिन मेरा हाथ ही पकड़े रहती। चलते-चलते हाथ पकड़ कर चलने लगती तो अजीब लगता कि सिर्फ हाथ मिलाने की बात हुई थी न?
एक् और अंतर आया उसमें। अब वह जब दूसरी लड़कियों को मुझे दूर से बुलाते देखती तो मेरा हाथ कस के पकड़ लेती और जाने नहीं देती। कई बार तो मुझे उसका हाथ झटकना भी पड़ गया क्योकि बेकार की ज़बरदस्ती मुझे पसन्द नहीं।
मैं लड़कियों को स्प्ष्ट देखना चाहता हूँ। मन में कुछ और बाहर कुछ जैसा मुझे पसन्द नहीं। मैं जब कुछ नहीं छिपाता तो आपको भी नहीं छिपाना चाहिए।
एक दिन और बड़ी हद हो गई। जब एक लड़की मुझसे बहुत हँस-हँस के बात कर रही थी (मैं उसे हँसा रहा था) तभी न जाने वह कहां से निकल आयी और मेरी बगल से आकर मेरी बायीं बाहं में अपनी बाहं डाल कर खड़ी हो गई। मैंने धीरे से उससे अपनी बाहं छुड़ाई और उसे हैरत भरी नज़र से देखा तो वह हंसने लगी।
पहले वाली लड़की सकपका के बोली, "मैं बाद में मिलती हूँ, ठीक है शुभ्? Bye!"
"Bye तारा!"
"यार यह अचानक तुमने क्या हरकत करी उसे देख के?"
"अरे, तो क्या हो गया?" वह कुटिल मुस्कान के साथ बोली।
"हुआ कुछ नहीं बस तुम तो मुझे छूने से भी डरती हो तो आज यह इतना कैसे चिपक गईं?"
"तुमको बुरा लगा क्या? आगे से ध्यान रखूंगी मैं। ok? Bye!"
"अरे, यार तुम भी न। छोड़ो, भूलो उसे। मुझे कुछ बुरा-वुरा नहीं लगा। बस मैं shocked हो गया था। अब ठीक लग रहा है।"
"मतलब अब मैं तुम्हारे हाथों में हाथ डाल सकती हूँ?"
"अरे...यार यहाँ सबके सामने ऐसे ठीक नहीं और तुम मुझे भाई बोलती हो उसका भी तो ख्याल करो न?" यह सुन कर वह एक दम अपसेट हो गई। फिर बोली, "तो क्या एक बहन ऐसे अपने भाई को नहीं छू सकती?"
"न...न...तुम गलत समझ रही हो यार। अब देखो वह रवि खड़ा है। क्या तुम उसे अपना भाई बना सकती हो?"
"हाँ, क्यों नहीं।"
"फिर उसके साथ ऐसे ही घूम सकोगी?"
इस बात पर उसने नज़रें झुका लीं।
"यही, कह रहा था मैं। तुम ठीक से झूठ तक तो कह नहीं पाती हो।"
यह सुनकर उसने एक दम मेरे चेहरे को देखा और रुमाल निकाल कर आंसू पोछते हुए जाने लगी। मैं वहीं खड़ा रहा। उसे जाते देखता रहा। वह न रुकी और नज़रों से ओझल हो गई। क्रमशः
2018/07/05 07:18
Author ~ Mr. Vegan Shubhanshu Singh Chauhan, 2018©
रविवार, जुलाई 01, 2018
बढ़ती आदमखोरी: कारण पशुभक्षी जीवनशैली?
मानव मांसभक्षियो की पीढियां अब जड़ें जमा रही हैं। wrong turn movie सीरीज और the valley has eyes सत्य घटनाओं पर आधारित है। cannibal holocaust किसी परिचय की मोहताज नहीं है। henny bell नाम की सीरीज तो एक शहरी डॉक्टर की इंसान को खाने की कहानी है। भारत में कई मानव भक्षी फांसी की सजा का इंतज़ार कर रहे हैं, निठारी कांड और अघोरी समाज भी परिचय का मोहताज नहीं है। जानवरो के मांस की आड़ में सदियों से मानव मांस बेचा जाता रहा है। लाखों लोग रोज गायब हो जाते हैं जो कभी नहीं मिलते। क्या पता वो किसी के पाचन तंत्र का हिस्सा बन गए हों। Shubh 2018©
शुक्रवार, जून 29, 2018
क्या है अवयस्कता और अश्लीलता
भारतीय कानून में महिला के चूचुक (nipple), योनि, पुरुष के लिंग को obseen (18+) माना जाता है। इसी कारण इनको दिखाने की अनुमति बच्चों के सामने (सार्वजनिक स्थानों में जहाँ अवयस्क आ सकते हैं) नहीं दी जाती।
जैसे कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंन्त्रता, देशद्रोह, समानता का अधिकार, स्त्रियों के लिये एक पक्षीय कानून, स्वएच्छिक समलैंगिकता, पुरुष बलात्कार को अनदेखा करने इत्यादि में मतभेद और विसंगति है वैसे ही यह भी है। बिना किसी कारण के इसे कानून में रखा गया है। इसलिए जब लोग इसका विरोध करेंगे तो यह हट जाएगा।
बच्चे क्यों नहीं देख सकते वह जो उनके पास भी है, यह समझ से परे है। लेकिन वह हैं न कि वर्चस्व उन्हीं का होता है जो संख्या में ज्यादा होते हैं न कि बुद्धि में। 96% मूर्ख दुनिया चला रहे हैं और 4 प्रतिशत मेरे जैसी पोस्ट बना रहे हैं। नमस्कार। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©
मैं हूँ पृथ्वीवासी
मुझे लगता है भारत के लोग एक दूसरे से ही इतनी नफरत करते हैं कि उन्होंने अपने-अपने प्रान्त/क्षेत्र में पैदा होने के जैसे तुच्छ कार्य को ही गौरव का विषय बना लिया है। यही बात आपने फ़िल्म चक दे इंडिया में भी देखी थी। उसका कोई असर भारतीयों पर नहीं पड़ा। बल्कि अब तो वह अपनी DP भी अपनी जाति, धर्म व स्थान पर गर्व करने को लेकर समर्पित करे दे रहे हैं।
क्या हम कभी भारतीय नहीं बनेंगे? क्या पाकिस्तान, तेलंगाना, नेपाल, भूटान, उत्तराखंड, पश्चिम-पूर्व उत्तरप्रदेश आदि जैसे तमाम टुकड़े होते रहेंगे? खालिस्तान, हरिजनिस्तान आदि कितने टुकड़े करने पर लोग आमादा हो रहे हैं?
मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि पृथ्वी पर कोई सरहद भी होती। मैं खुद को भारतीय कह सकता हूँ जब मैं दूसरे देश में हूँ तो लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा हूँ उस दिन का जब इंसान अपनी गलतियों को सुधार लेगा। जनसँख्या कम करके धर्ममुक्त, विवाहमुक्त, सन्तानमुक्त (जब तक जनसंख्या नाजुक स्तर पर न पहुंचे), Vegan और तर्कवादी बन जाएगा, तब मैं गर्व से कह सकूँगा कि हाँ मैं पृथ्वीवासी हूँ। ~ Vegan, Religion free, Rationalist, Antinatalist (child free), marriage free Shubhanshu Singh Chauhan
बुधवार, जून 27, 2018
सही कहा न?
हम किसी को नही बदल सकते। जिनको बदलना है वे हमारे विचार पढ़ कर बदल जाएंगे। कुआ प्यासे के पास नहीं जाता। हम तो मस्त हैं। दुनिया पस्त है। ज़रूरत है तो वह हमारे पास आएगी।
मुझे लोगों के लिये नहीं बदलना। लोगों को बदलना है तो मुझे देख के बदल जायें या तेल लेने जाएं। हम किसी को चम्मच से नहीं खिला सकते। सही कहा न? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free 😀
कश्मीर जी और शुभाँशु जी
आप सभी को बड़ी मेहनत से मुफ्त में जानकारी दी जा रही है तो जो आपको अपने काम की लगे, लीजिये और बांटिए। कश्मीर जी व्यक्तिगत तौर पर कुछ भी हों लेकिन वे केवल पुस्तकों में लिखे सत्य को सामने लाते हैं जिसको कोई प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं। सहमत हैं तो बस छोटा सा प्रोत्साहित करता हुआ रिप्लाई कर दें। काफी रहेगा। प्रमाणित बात को बहस का मुद्दा न बनने दें। संशय होने पर उनसे सन्दर्भ मांग लें।
मैं काश्मीर जी से मेरे एक पुराने fb मित्र Shailendra Kumar जी के द्वारा तब परिचित हुआ जब मेरा एक नास्तिक समूह के एडमिन के गाली देने पर उसकी रिपोर्ट दूसरे एडमिन से करने पर मुझे बहुत ज्यादा गाली गलौच करके जान से मारने की धमकी देने और ग्रुप से निकालने की धमकी देने पर मुझे ग्रुप छोड़ना पड़ा था। उस दौरान मुझे शैलेंद्र ने इनसे मिलने की सलाह दी कि इनसे मिलिए यह उन एडमिन की तरह पक्षपाती नहीं हैं। तब उनके द्वारा दिये गए लिंक से मेरी इनसे भेंट हुई।
कुछ दिनों बाद पता चला कि इनको भी वही झेलना पड़ा जो मेरे साथ हुआ था उस समूह में। तब हम दोनों ने स्क्रीनशॉट एक दूसरे को दिखाए एडमिनिस्ट्रेशन के और तब हम लोगों को एक दूसरे से सहानुभूति भी हो गई।
Kashmir जी ने अपनी एक वेबसाइट मेरी जानपहचान के बाद बनाई dharmamukt.in.
मुझे उन्होंने इसमें लिखने के लिये आमंत्रित किया। हम दोनों के लेखन में ज़मीन आसमान का अंतर था इसलिये एक ही वेबसाइट पर दोनो का लेखन उलझन पैदा करने लगा। इसलिये मैंने अपनी एक अलग वेबसाइट बनाई और कश्मीर जी ने मुझे अपना डोमेन देकर दोस्ती बनाये रखी।
इसलिए मैंने जो वेबसाइट बनाई उसका नाम zaharbujhasatya.dharmamukt.in पड़ा। ज़हरबुझा सत्य मेरा चुनाव था और धर्ममुक्त.इन मुझे कश्मीर जी ने दिया। मैं सामाजिक/वैज्ञानिक/व्यंग्य/लेख/निबंध/कथा आदि समस्त विषयों पर लिखता हूँ इसलिये मेरी अलग वेबसाइट होना बहुत ज़रूरी था और यह हो भी गया। धन्यवाद कश्मीर जी।
मेरा और कश्मीर जी का बस दोस्त जैसा रिश्ता है जैसा आपसे है। हम दोनों धर्ममुक्त के सिद्धांत पर एक समान हैं इसलिए दोस्त बने। न वे मेरे गुरु है और न मैं उनका। हम सहयोगी हैं बस। हम दोनों बाकी बहुत जगह पर अलग और भिन्न सोच वाले हैं लेकिन एक दूसरे को बदलने की कोशिश नहीं करते। एक दूसरे को चेताते/सावधान ज़रूर करते हैं लेकिन अंत में वही करते हैं जो मन करता है। कोई बाध्यता न मैं लगाता हूँ और न वे।
मेरे और उनके व्यक्तित्व/व्यवहार बिल्कुल अलग हैं जिनके लिये हम खुद ज़िम्मेदार हैं। कृपया हम लोगों को एक सा समझ कर अपनी मूर्खता का परिचय न दें। हर इंसान अपनी खूबियों और कमियों के साथ पैदा होता है जिससे सभी लोग समर्थन नहीं भी रखते हैं। यह मौलिकता ही हमें किसी को याद रखने में मदद करती है।
अतः सभी से निवेदन है कि सभी लोग खुद को समझदार समझें और एक दूसरे को व्यक्तिगत तौर पर हमारे बारे में फालतू बोलने और सोचने पर रोकें, समाज सुधार पर ध्यान दें। न कि अपनी बहन/बेटी के लिये हमसे रिश्ता जोड़ने के लिये व्यक्तिगत चरित्र प्रमाणपत्र देने लगें। वैसे भी वे शादीशुदा बीवी/बच्चेधारी हैं और मैं विवाहमुक्त डेटिंग/लिवइन समर्थक। धन्यवाद।
आशा करता हूँ कश्मीर जी भी मेरी इस बात से सहमत होंगे। आपका प्रिय Mr. Shubhanshu Singh Chauhan, Vegan, Non Religious (धर्ममुक्त)। M.Sc. Zoology, DFD, PGDM, PDCA