मुझे लगता है भारत के लोग एक दूसरे से ही इतनी नफरत करते हैं कि उन्होंने अपने-अपने प्रान्त/क्षेत्र में पैदा होने के जैसे तुच्छ कार्य को ही गौरव का विषय बना लिया है। यही बात आपने फ़िल्म चक दे इंडिया में भी देखी थी। उसका कोई असर भारतीयों पर नहीं पड़ा। बल्कि अब तो वह अपनी DP भी अपनी जाति, धर्म व स्थान पर गर्व करने को लेकर समर्पित करे दे रहे हैं।
क्या हम कभी भारतीय नहीं बनेंगे? क्या पाकिस्तान, तेलंगाना, नेपाल, भूटान, उत्तराखंड, पश्चिम-पूर्व उत्तरप्रदेश आदि जैसे तमाम टुकड़े होते रहेंगे? खालिस्तान, हरिजनिस्तान आदि कितने टुकड़े करने पर लोग आमादा हो रहे हैं?
मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि पृथ्वी पर कोई सरहद भी होती। मैं खुद को भारतीय कह सकता हूँ जब मैं दूसरे देश में हूँ तो लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा हूँ उस दिन का जब इंसान अपनी गलतियों को सुधार लेगा। जनसँख्या कम करके धर्ममुक्त, विवाहमुक्त, सन्तानमुक्त (जब तक जनसंख्या नाजुक स्तर पर न पहुंचे), Vegan और तर्कवादी बन जाएगा, तब मैं गर्व से कह सकूँगा कि हाँ मैं पृथ्वीवासी हूँ। ~ Vegan, Religion free, Rationalist, Antinatalist (child free), marriage free Shubhanshu Singh Chauhan
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