Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

बुधवार, जनवरी 06, 2021

I have a Very Important Question for Vegan Theists

जो Vegan साथी जन आस्तिक हैं, उनसे एक प्रश्न है। अगर ईश्वर वाकई है तो हमें पहले क्रूर और फिर खुद ही के विवेक से Vegan बनने की ज़रूरत क्यों पड़ी? हमको लोगों को जगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? पृथ्वी को बचाने, ग्लोबल वार्मिंग से आने वाली सुनामियों को रोकने, और भुखमरी दूर करने के लिए हमें ही क्यों आगे आना पड़ा?

दुनिया का संचालन करने वाला क्या कर रहा है? जो गलत हो रहा, उसे होने दे रहा है और जब हम सही कर रहे हैं कुछ तो 70% दुनिया को हमारे ही खिलाफ कर रहा है। सभी महान और अच्छे लोगों को उम्र से पहले ही मार दिया या किसी दुष्ट को मारने दिया उसने जबकि बुरे लोगों को, अच्छे लोगों द्वारा कानून व सेना बना कर जान से मारना पड़ा है।

पृथ्वी की बुरी दशा और पशुओं की दुर्दशा क्यों हुई? सब हमें ही ठीक करना है और हम ही बिगाड़ रहे थे तो ये ईश्वर क्या करता है?

काहे इसकी इज़्ज़त करते हो? इसने आज तक अच्छा किया ही क्या है? खुद की इज़्ज़त करो क्योंकि जो कार्य उसे करना चाहिए था, वो हम कर रहे हैं।

मरे के लिए प्रार्थना करके दोषियों को गलत करने की खुली छूट देना बंद करो। मरा हुआ जंतु का जीवन अब कहीं नहीं है, जो तुम्हारी प्रार्थना उसे ज़िंदा कर देगी। हाँ अगर तुम खुद चिकित्सक बन कर उसे समय रहते बचा सको तो ज़रूर करो। लेकिन कायरों की तरह हाथ जोड़ने बन्द करो। इससे जुल्म नहीं रुकेगा।

सोचो और ईश्वर के सम्मान का एक भी कारण बताओ या आज ही अपने जीवन से एक और पाखंड हटाओ, लगे हाथ, तर्कवादी भी बन जाओ।

तर्कवादी (Rationalist) = विज्ञानवादी/युक्तिवादी/नास्तिक/धर्ममुक्त/सभी कुतर्को को नकारने वाला तर्कयुक्त सकारात्मक व्यक्ति। ~ Shubhanshu 2021©



मंगलवार, अक्टूबर 27, 2020

Female of Her Species is more deadly than the Male ~ Rudyard Kipling




मैं एक पुरुष हूँ लेकिन शर्मिंदा हूँ इसी लिंग के अन्य उन पुरुषों पर जिन्होंने जहाँ से भी लाभ मिला उस वस्तु या पेड़, जन्तु या इंसान का शोषण किया।

पेड़ व पशु उनके जितने धूर्त नहीं थे और स्त्री भी उनके जितना धूर्त नहीं थी क्योंकि उसमें वो हार्मोन ही उतनी मात्रा में नहीं था जो उसे विद्रोही बनाता।

टेस्टास्टरोन व Adrenaline के मिश्रण से पुरुष तो जम कर विद्रोही और तानाशाह हुए लेकिन बाकी जीवों ने अपने भोले पन और मुकाबला न कर पाने की नाक़ाबिलियत का नुकसान उठाया। तीनों का जम कर उपयोग किया गया। तीनों का वस्तुकरण किया गया। तीनो को अपने उपभोग की वस्तु बनाया गया और उनका शोषण किया गया।

कुछ की तो किस्में, विरासत और प्रजाति ही नष्ट कर दी गईं और जो बचे हैं उनका बाजार खोल दिया गया है। आओ और खरीदो; लकड़ी, जानवर और औरत!

क्या फर्क है एक व्यक्ति और एक उत्पाद में?

उत्पाद बेजान वस्तु की तरह है। उसकी कोई ज़िन्दगी नहीं। उसकी कोई माँ, बहन, बेटी, बेटा, प्रेमी या पति नहीं होता। उसका कोई परिवार नहीं होता।

उसको मार दीजिये, खा लीजिये, नोच डालिये, फाड़ डालिये, इस्तेमाल कीजिये, कोई रोकने-टोकने नहीं आएगा।

यूँ तो बाजार कभी बुरे नहीं थे। वे तो सुविधा थे और हैं। लेकिन इनको बुरा बनाया गया। लालच की अति ने और खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को निम्न समझने की हवस ने। कोई रोकने वाला नहीं था तो अति होनी ही थी। सरकारी अंकुश से अब व्यापार कुछ हद तक नियंत्रण में रहते हैं। परन्तु कुछ कानूनी कमी के चलते, तो कुछ गैरकानूनी रूप से, अमानवीय व्यापार चल ही रहे हैं।

हम जब इंसानों की बिक्री से मुहं मोड़ते हैं तो समाज हमको विवाह संस्था की ओर मोड़ता है। विवाह दरअसल महिला पर समाज द्वारा आरोपित पुरुषों की गुलामी है। विवाह का अर्थ ही है वंश बढाने के लिये और उस वंशज को पालने के लिये घर में एक सस्ता सुलभ गुलाम लाना जो यौन क्षुदा को भी आपातकाल में मिटाए।

आपातकाल का अर्थ यहाँ कोई नई स्त्री का न मिल पाना है। कुल मिला कर देखा जाए तो विवाह में और वैश्यावृत्ति में कोई फर्क नहीं है। दोनो में ही दूसरे घर से स्त्री बिना प्रेम के लाई जाती है। दोनो का शोषण होता है और दोनो को ही अंत में नफरत झेलनी पड़ती है।

विवाह में पहले दिन/रात से ही महिला को नोंचना शुरू कर दिया जाता है। उससे कोई मित्रतापूर्ण बात नहीं करता। कोई उसे नहीं समझता। कोई उसके हालचाल से मतलब नहीं रखता। मतलब रखता है तो केवल ये कि उत्पाद 'पहले इस्तेमाल तो नहीं हुआ? उसकी सील तो नहीं टूटी? उसका चरित्र* तो ठीक है?' आदि सवालों से।

*विवाह पूर्व संभोग न करने को ही चरित्र मान लिया गया है।

कोई बीवी/पत्नी नहीं लाता। सब एक उत्पाद लाते हैं। माँ जो कभी खुद सामान की तरह घर आई थी, उसने स्वीकार कर लिया है कि हाँ नारी है ही वस्तु। इसीलिए वह कहती है कि मैं देख परख कर बढ़िया माल दिलवाऊंगी। बाप कहता है, 'हाँ बढ़िया और प्रतिष्ठित कम्पनी (परिवार) का माल मिलेगा तुझको बेटा।'

ऐसे ही स्त्री/पशु/लकड़ी का दुकानदार कहता है, "दूध/अंडे/योनि/माल में मजा न आये तो पैसे वापस कर देना।"

विवाह का संस्कार/करार केवल उत्पाद की रसीद है। चोरी का माल लाना गलत है। इसीलिए कोई बिना रसीद (विवाह) के प्रेम करे, संभोग करे, प्रजनन करे तो समाज रूपी पुलिस सक्रिय हो जाती है। धरपकड़ चालू। सज़ा on the spot.

मैं समझ गया, इस सिस्टम को बचपन में ही। तभी से समाज को कदमो में रखता हूँ। समाज कौन है? हमारे माता-पिता, रिश्तेदार, आपके पडोसी, आपके पड़ोसियों के पड़ोसी। सबके सब इस सिस्टम के आगे हथियार डाल कर आत्मसमर्पण करे हुए सामाजिक पुलिस के सिपाही।

इसीलिए दूर रहता हूँ सबसे। क्या पता कब मेरी किस बात से इस सामाजिक घटिया पुलिस का पारा हाई हो जाये और मेरा एनकाउंटर हो जाये? यहाँ तो बोलना भी गुनाह है।

लेकिन तभी तक, जब तक आप इनके आगे पीछे घूमते हो। इनसे मतलब रखते हो। इनसे प्रेम करने लगते हो? कमाल है; बेड़ियों, अपने मालिक/हंटर बाज, कसाई से प्रेम? हाँ, हो जाता है जब धूर्तता की जाती है। धूर्त कभी नही बताता कि वह आपका शोषण कर रहा है। वह सारी जिंदगी धोखा दे सकता है। वह मुर्गी को हलाल करते समय कोई आयत या मंत्र पढ़ देता है और मुर्गी को लगता है कि वो मरी नहीं, जन्नत/स्वर्ग चली गई।

यही महिला के साथ है। उससे कहा जाता है कि पत्नी बने बिना तुम पूर्ण नहीं। पति के साथ ही जीवन आराम से कटेगा। बच्चे होंगे तो बुढ़ापे में साथ देंगे।

पर ऐसा होता नहीं। कितने श्रवण कुमार या कुमारी वास्तव में खुद की सोच से बने हैं? 1 या 2 जो उदाहरण हैं वे केवल अटेंशन सीकर सोच के कारण है। कि शायद टीवी में आ जाऊँ। दो कौड़ी का गरीब जीवन है। ऐसे ही कुछ कर जाउँ। काम धंधे के तो लायक नहीं।

जबकि रोज़ खबरों से अखबार पटा रहता है कि बच्चों ने माँ बाप मार डाले। माँ बाप ने बच्चे मांर डाले। पति ने पत्नी मार डाली। पत्नी ने पति मार डाला। इतनी नफ़रत? समय पर कोई चीज काम न आये या आपके मनमुताबिक कार्य न करे तो आप उसे पटक के तोड़ देते हो। उसी तरह जब वस्तु समझ कर अगले को देखोगे तो उसके साथ भी वही करोगे। क्योंकि तब आपके भीतर ये एहसास नहीं होगा कि अगले से भी गलती हो सकती है। अगले की भी कुछ सीमाएं हैं। अगला भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान है। कोई सामान नहीं जो दूसरा आ जाएगा, इसे तोड़ डालो।

अभी होश में आइये। अन्यथा अगर किसी की बेहोशी अधिक समय तक रहती है तो उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। उम्मीद है कि वक्त रहते जाग जाओ। विद्रोह जब महिला करती है तो पुरूष बौना हो जाता है। जाने-अनजाने उसी पर निर्भर हो गए हो तुम। जब वो गुस्से में आएगी तो तुम सब रोओगे। तब शायद माफी भी न मिले। तब सिर्फ सज़ा मिलेगी। पुरुष समाज ने भी यही किया है और फिर महिला ऐसा नहीं करेगी ऐसा कैसे सोच सकते हैं? आखिर महिला भी तो इसी समाज में रहती है। ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2020/07/10 10:59

The Female of the Species
Rudyard Kipling
1911

1 When the Himalayan peasant meets the he-bear in his pride,

2 He shouts to scare the monster, who will often turn aside.

3 But the she-bear thus accosted rends the peasant tooth and nail.

4 For the female of the species is more deadly than the male.

5 When Nag the basking cobra hears the careless foot of man,

6 He will sometimes wriggle sideways and avoid it if he can.

7 But his mate makes no such motion where she camps beside the trail.

8 For the female of the species is more deadly than the male.

9 When the early Jesuit fathers preached to Hurons and Choctaws,

10 They prayed to be delivered from the vengeance of the squaws.

11 'Twas the women, not the warriors, turned those stark enthusiasts pale.

12 For the female of the species is more deadly than the male.

13 Man's timid heart is bursting with the things he must not say,

14 For the Woman that God gave him isn't his to give away;

15 But when hunter meets with husbands, each confirms the other's tale --

16 The female of the species is more deadly than the male.

17 Man, a bear in most relations -- worm and savage otherwise, --

18 Man propounds negotiations, Man accepts the compromise.

19 Very rarely will he squarely push the logic of a fact

20 To its ultimate conclusion in unmitigated act.

21 Fear, or foolishness, impels him, ere he lay the wicked low,

22 To concede some form of trial even to his fiercest foe.

23 Mirth obscene diverts his anger --- Doubt and Pity oft perplex

24 Him in dealing with an issue -- to the scandal of The Sex!

25 But the Woman that God gave him, every fibre of her frame

26 Proves her launched for one sole issue, armed and engined for the same,

27 And to serve that single issue, lest the generations fail,

28 The female of the species must be deadlier than the male.

29 She who faces Death by torture for each life beneath her breast

30 May not deal in doubt or pity -- must not swerve for fact or jest.

31 These be purely male diversions -- not in these her honour dwells.

32 She the Other Law we live by, is that Law and nothing else.

33 She can bring no more to living than the powers that make her great

34 As the Mother of the Infant and the Mistress of the Mate.

35 And when Babe and Man are lacking and she strides unchained to claim

36 Her right as femme (and baron), her equipment is the same.

37 She is wedded to convictions -- in default of grosser ties;

38 Her contentions are her children, Heaven help him who denies! --

39 He will meet no suave discussion, but the instant, white-hot, wild,

40 Wakened female of the species warring as for spouse and child.

41 Unprovoked and awful charges -- even so the she-bear fights,

42 Speech that drips, corrodes, and poisons -- even so the cobra bites,

43 Scientific vivisection of one nerve till it is raw

44 And the victim writhes in anguish -- like the Jesuit with the squaw!

45 So it cames that Man, the coward, when he gathers to confer

46 With his fellow-braves in council, dare not leave a place for her

47 Where, at war with Life and Conscience, he uplifts his erring hands

48 To some God of Abstract Justice -- which no woman understands.

49 And Man knows it! Knows, moreover, that the Woman that God gave him

50 Must command but may not govern -- shall enthral but not enslave him.

51 And She knows, because She warns him, and Her instincts never fail,

52 That the Female of Her Species is more deadly than the Male.

शुक्रवार, अक्टूबर 02, 2020

Boycott Marriage or Rape Crisis Will Be Continue



मैंने अधिकतर देखा है कि पुरुष छेड़खानी रोक देते हैं जब महिला का पति या भाई आकर उसे बचाता है। लेकिन यदि साथ में बॉयफ्रेंड है तो बलात्कार होना तय है। यह दर्शाता है कि बलात्कारी महिला को विवाहित देखना चाहते हैं।

अभी भी यदि कोई छेड़खानी होती है तो महिला को ही ताना पड़ता है कि अकेली आई क्यों? या बॉयफ्रेंड के साथ काहे घूम रही? इतनी आग लगी है तो विवाह क्यों नहीं कर लेती? विवाह ही है बलात्कार की जड़।

भारतीय संस्कृति भी यही कहती है कि महिला घर से अकेले बाहर न जाये। यूरोप, एशिया, अमेरिका और अरब की संस्कृति भी यही दोहराती है।

यह सभी संस्कृति धर्मो से निकली हैं। जो स्त्री को तो डिब्बे में बंद करके रखने की हिदायत देती है लेकिन पुरुषों को अकेली महिला देख कर उसकी हिफाज़त की हिदायत नहीं देती।

इसीलिए पुरुषों ने खुद ही उनको डिब्बे में बंद कर देने की हिदायत को मनवाने का कारगर तरीका खोज लिया है। 90% बलात्कार/छेड़छाड़ धार्मिक संस्कृति को बचाने के लिए ही होते हैं।

बाकी के 10% पुरुष, विवाहमुक्त महिला के संभोग साथी के रूप में न मिलने से मिली यौन कुंठा से ग्रस्त होकर और हस्तमैथुन को गलत मानने के कारण करते हैं। लेकिन इनके बलात्कार भीभत्स और भयंकर नहीं होते। कानून से बचने के चक्कर में भले ही वे बेमन से किसी को नुकसान पहुंचा दें।

पोर्न सिर्फ हस्तमैथुन न करने वाले के मस्तिष्क को बलात्कार की तरफ ले जा सकता है क्योंकि वह अपनी आग को भड़का तो लेता है लेकिन बुझाने के लिए उसे योनि ही चाहिए।

इसलिए सभी महिलाओं को, हस्तमैथुन न करने वाले/इसका विरोध करने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिये क्योंकि ऐसा व्यक्ति जब भी कामोत्तेजित होगा तो आपका बलात्कार तय है। और उसे कामोत्तेजित करने के लिए हर बार पोर्न की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि अगर बहुत समय तक संभोग न किया जाए तो विपरीत लिंग की शक्ल/आवाज और साये से भी यौन उत्तेजना जाग्रत हो सकती है। यही कारण है कि बुर्का/दुपट्टा किसी काम के नहीं हैं।

अगर वास्तव में बलात्कार जैसी घृणित परिस्थिति को खत्म करना है तो मैरिटल रेप को स्वीकृति देने वाली विवाह संस्था को नष्ट करना ही होगा। विवाह और बच्चों को पैदा करना आप पर थोपा जाता है। यह आप कभी स्वयं करना नहीं चाहते। इसका जीता जागता प्रमाण है; विवाह पूर्व सम्भोग और बच्चा हो जाने पर गर्भपात करवाना या आत्महत्या कर लेना। बॉयकॉट विवाह! 👍 ~ Shubhanshu 2020©

शुक्रवार, सितंबर 04, 2020

Government doesn't affect by your social media posts, it's a fact


कुछ लोग बोलते हैं कि "वो तुमको फलां में उलझाएंगे, तुम फलाँ पर डटे रहना।" इस पर मेरा कहना है कि मैंने पिछले दिनों, सरकार के बनाये कई कानूनों और अव्यवस्थाओं पर पोस्ट किए।

जैसे,

● स्पेशल विवाह कानून के फार्म में धर्म को पूछना व निषिद्ध सम्बन्धों में विवाह न होना लेकिन धर्म या रिवाज इजाजत दे, तो उचित है और पहले से, अनजाने में ऐसा विवाह करने पर सज़ा व जुर्माना क्यों?

● पशुक्रूरता निरोधी कानून में पशुबली व भोजन हेतु पशुहत्या की छूट।

● सरकार व न्यायालय में धर्म से जुड़े सिम्बल और कोट्स आदि।

क्या सरकार को पता चला? क्या सरकार को कोई फर्क पड़ा? सरकार को सोशलमीडिया पर हमारे विरोध या समर्थन से कोई फर्क नहीं पड़ता है। फर्क केवल हमारे दिमाग पर पड़ता है। हम सब थोड़ा और फ्रस्ट्रेशन में चले जाते हैं। वैसे भी हो तो हम से कुछ पाना नहीं है।

● RTI डालने में जान से जाने का डर बोल के फट जाती है।
● पुलिस थाने में कम्प्लेंट करने में हमारी फट जाती है क्योंकि गलती तो हमारी भी होती है।
● करने भी जाओ तो अपराधियों का दलाल दरोगा रिपोर्ट दर्ज नहीं करता और हम भाग आते हैं।
● फिर तो हम कतई SSP से शिकायत करने नहीं जाते, क्योंकि हमारी दरोगा से भी फटती है। कहीं झूठे केस में अंदर न कर दे।
● मानवाधिकार आयोग की जानकारी है भी तो कौन जाए केस करने? कहीं हमारी सड़क दुर्घटना में मौत न हो जाये।
● कौन जाए वकील करने? पैसा लगेगा। बहुजन को फ्री में वकील विधिक समिति से उपलब्ध है, लेकिन फ्री वाले पर भरोसा नहीं है।
● फ्री के इलाज से भी डर लगता है। इसलिए जिला अस्पताल नहीं जाएंगे। महंगा इलाज करवा के निजी अस्पताल ने किडनी निकाल ली, लाखों का बिल बना दिया, गलत रिपोर्ट बना दी, मार डाला और अब लाश नहीं दे रहे बिल भरे बिना।
● सरकारी कोई सुविधा नहीं चाहिए। तुम रखो अपनी सब्सिडी, हम ब्लैक में लेंगे।
● सरकारी स्कूल में पढ़ा कर क्या बच्चों को भीख मंगवाई जाएगी? उसमें तो मजबूर पढ़ते हैं। हमारे बच्चे बिगड़ जाएंगे। हम तो कॉन्वेंट में डालेंगे।
● जेनरिक दवा नहीं लेंगे। क्योंकि वो सरकारी है। 100₹ की दवा 1₹ में कैसे मिल रही है? नकली होगी।
● डीलक्स निरोध कंडोम सिर्फ 1₹ और बाकी कंडोम 10₹ से शुरू। ज़रूर घटिया होगा। फट गया तो? हम तो 50₹ वाला लेंगे।
● जिला अस्पताल में डिलीवरी? न जी न, जच्चा बच्चा मरवाना थोड़े ही है। चाहे गुर्दे निकल जाएं, हम तो बड़ा बिल फड़वाने वाले हैं।

तो इस तरह केवल गरीब और मजबूर ही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है। जिसके पास विकल्प है वो तो उसे पीठ ही दिखाने वाला है। फिर भी हम सब विकल्प वालों को सोशल मीडिया पर सरकार की बहुत फिक्र है। भले ही पिछली सभी सरकारों ने हमारे लोढ़े लगा रखे हैं। ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt, धर्ममुक्त जयते, सत्यमेव जयते। 2020©

Orgasmed women is more relaxed and successful



ये पोस्ट सामाजिक भेदभाव के चलते मिट चुकी प्राकृतिक संवेदनशील भावनाओं का प्रतीक है। जहां महिला केवल धन समृद्धि के लालच में पुरुष ढूढ़ती है जबकि प्रकृति में ये चाहत केवल कामसुख के कारण उपजती है।

महिलाओं की काम-वासना को धर्म और समाज मिटाने में काफी हद तक सफल हो चुका है और ये महिलाओं के मानसिक शोषण का प्रमाण है। आपसी बातचीत और सवालों से मिली जानकारी के अनुसार, अनुमानतः 95% महिलाओं को कभी यौनानन्द (चर्मोत्कर्ष/ओर्गास्म) की प्राप्ति नहीं हुई है। घर्षण आनन्द को ही वे चरमसुख समझे बैठी हैं। इसीलिए सर्वे के आंकड़े भी प्रायः गलत आ रहे हैं।

ओर्गास्म/चरमसुख पुरुष के एजुकुलेशन/वीर्य पात के समान एक क्रिया होती है जो कि महिला के पूरे दिमाग को सक्रिय कर देती है। आज तक कोई भी तरीका पूरे दिमाग को सक्रिय नहीं कर सका है लेकिन, चर्मोत्कर्ष चाहे पुरुष का हो या स्त्री का, यह पूरे मस्तिष्क को सक्रिय करता है। जो कि एक जांचा परखा फैक्ट है।

इस क्रिया के तहत सम्भोग के समय शरीर में एक तेज़ झटका सा लगता है और पूरा शरीर कांप उठता है। गर्भाशय मुख से लेकर सिर तक एक तेज़ आनंद लहर जाती है और एकदम रिलेक्स फील होता है और संभोग रोकने का मन करता है, और पूर्ण होने का एहसास होता है। बहुत ही सुख का अनुभव होने, दिमाग के सक्रिय होने और मूड बेहतर होने के कारण ही इसे चरमसुख कहा गया है।

इससे दोनो ही के मानसिक स्वास्थ्य में भी अनुमानतः सुधार होने लगता है। ऐसा पाया गया है कि जो महिलाएं चर्मोत्कर्ष पाती हैं वे बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक समझदार होती हैं। पुरुषों का दिमाग इसीलिए ज्यादा चलता है क्योंकि वे हर सेक्स में चर्मोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। जो उनके मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखता है।

हालात ऐसे हैं कि आत्मनिर्भर महिला अब पुरुषों की जगह हस्तमैथुन, डिल्डो, डिल्डो डॉल का सहारा लेना ज्यादा उचित समझती है। जबकि यही हाल अच्छे व सच्ची सोच वाले कुछ कुछ आत्मनिर्भर पुरुषों का भी है, जो आत्मनिर्भर महिलाओं को ही दोस्त बनाने के इच्छुक होते हैं।

उनको ऐसी महिला नहीं मिलती इसलिए वे भी इन्हीं साधनों पॉकेटपुसी, सेक्स डॉल आदि का इस्तेमाल हस्तमैथुन करने में प्रयोग करते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, अगस्त 07, 2020

I am living an unique, logical, cruelty free, quality life



मैंने इतने जीवन में ये तो पाया है कि बुद्धिमान लोग हर जगह हो सकते हैं। देखने में चाहें वे कैसे भी लगते हों लेकिन हम बुद्धि को शक्ल से नहीं पहचान सकते।

Vegan (पशुउत्पाद मुक्त व क्रूरता मुक्त जीवन शैली) और धर्ममुक्त/तर्कवादी (किसी भी अतार्किक कार्य को न करना व मानना) हो जाना ही बुद्धिमान होने की पर्याप्त निशानी होती है।

उससे ऊपर जाने पर आप विवाह मुक्त (अप्राकृतिक बंधन मुक्त), Antinatalist (बच्चा मुक्त: बच्चे पैदा करने की समाज प्रेरित ललक का त्याग) और Nonconformist (समाज के पाखण्ड/सामाजिक व्यवहार को न मानना व औपचारिक न होना) यानि Social Norms से भी मुक्त हो सकते हैं।

उससे भी ऊपर जाने पर आप नेचरिस्ट/न्यूडिस्ट (नग्नतावाद), polyamorous, LGBTQ* और incest* को भी प्रकृति की देन जानने लगोगे।

*Naturism/Nudism: प्रकृति ने हम सबको नग्न पैदा किया है ताकि हमारे शरीर पर सूर्य की रोशनी लग कर विटामिन D बना सके। जिससे हमारी हड्डियों को भोजन व पानी से कैल्शियम का अवशोषण करके पोषण मिल सके। अपने बदन का मजाक उड़ाने वालों से डरना, अपने जिस्म, जिसे आप लोग मंदिर की तरह रखते हो शर्मनाक समझना मूर्खता की निशानी है। मौसम के अनुरूप सहन योग्य कपड़े पहन सकते हैं लेकिन शर्म के कारण कभी नहीं।

*Polyamorous: क्या हो, यदि आपको एक से अधिक साथियो से प्रेम हो जाये? एक दूसरे से छुपा कर सबको एकलौता प्रेमी बता कर धोखा दोगे? नहीं, धोखा किसलिए? मन से प्रेम है सदा के लिये। जिस्म से प्रेम ज़रूर अस्थायी है। फिर क्या दोस्ती तोड़ोगे? इस जीवनशैली में आप एक से अधिक साथियों से प्रेम होने पर उनके साथ परिवार की तरह या उनकी सहमति से अलग-अलग रह सकते हैं। सबको एक दूसरे के बारे में आपके उसके मध्य सेक्सुअल या asexual जो भी सम्बंध हो, पता होना चाहिये। ईर्ष्या हेतु कोई जगह नहीं बचेगी। समाज में प्रायः ऐसा कोई मौका पड़ता है तो केवल 2 लोग ही जुड़ पाते हैं और बाकियों को रोना पड़ता है या प्रेम मजबूत है तो जान भी देनी पड़ सकती है। अतः समाज का केवल 1 जोड़े वाला प्रेम हत्यारा है। अमानवीय और हिंसक है। प्रकृति polyamorous है।

*Incest: यह एक दुर्लभ संयोग हो सकता है कि आपको अपने जीवनकाल में ऐसा कुछ कभी देखना पड़े लेकिन जिनके साथ ऐसा हुआ है और जो भी ऐसा सहमति से करते हैं, उनको मना करना गलत है। दो प्रेम करने वाले चाहे एक परिवार से हों या दूसरे से। उनको रोकना-टोकना अमानवीय और कानून के खिलाफ है। मेरे जीवन मे ऐसा कभी नहीं हुआ। लेकिन किसी के साथ ऐसा होता है तो मैं उसका समर्थन करूँगा।

*LGBTQ: lesbian, Gay, bisexual, transgender, Questioned लिंग व काम आकर्षण के सामान्य (heterosexual) से भिन्न childfree प्रकार (sexual orientations) हैं। मैं अगर ऐसा कोई है तो उसका समर्थन करता हूँ।

यद्दपि मैं केवल विपरीत लिंग में ही रुचि रखता हूँ वो भी तब जब समान विचारधारा की female हो।

इन सबके अलावा भी मेरे जीवन में बहुत से तर्कवादी अनुशासन हैं जो कि प्रकृति और तर्क पर आधारित हैं। जिनको आप मेरे साथ रह कर ही जान सकोगे। मैं ऐसी किसी विचारधारा को नहीं मानता जो समाज में शांतिपूर्ण ढंग से लागू न की जा सके। जो विचारधारा हिंसक है वो veganism जैसी अहिंसक जीवनशैली के साथ भला कैसे टिक सकती है?

अतः जिस विचारधारा की सफलता का इतिहास रक्तरंजित और मानवाधिकार के खिलाफ है। वह विचारधारा लोकतंत्र और संविधान के पक्ष में कभी नहीं हो सकती। और जो विचारधारा मानवाधिकार का हनन करे, तानाशाही करे, वह विचारधारा त्याज्य है। उसका त्याग करें तुरन्त।

अब जो भी इन सब को अपना चुका है वो कम से कम 90% मेरे जैसे दिमाग के साथ पैदा हुआ है। बाकी साथी जितने भी अनुशासन/विचारधारा को समझ सके और अपना सके, वे उतने ही बाकी सामान्य लोगों से अधिक बुद्धिमान है।

हर विचार जो आपको जन समान्य से अलग और तार्किक रूप से सही साबित करता है, आपके सामान्य से अधिक बुद्धिमान होने की निशानी है। जितनी अधिक सही और सटीक विचारधारा, उतना वास्तविक और तार्किक जीवन प्रकृति के अनुरूप जीने की संभावना। उतना ही सफल जीवन जीने का आनन्द।

कोई भी आपको टोके, समझिये वह व्यक्ति नादान है। अज्ञानी है। हो सके तो उसको कोई सोचने वाला सवाल करके छोड़ दो। अक्ल होगी तो खुद खोजेगा और नहीं होगी तो फिर कितना भी समझा लो वो नहीं समझ सकता। तो फिर गर्व से जीवन जियें। प्रसन्नता से जियें और खुद को बधाई दें कि आपने अपनी बुद्धि का सदुपयोग किया। पढ़ने हेतु धन्यवाद! 😊 ~ Shubhanshu 2020©

गुरुवार, जुलाई 02, 2020

Problems are everywhere, but I don't care! 😊



गर्मी में कूलर के सामने ही पड़ा रहना पड़ता है। वह भी पर्याप्त वेंटिलेशन न होने के कारण ज्यादा ठंडी हवा नहीं फेंकता। उमस से उंगलियाँ चिपकने लगती हैं फोन पे। 20 साल बिना कूलर के गुजारे, अब गर्मी इतनी पड़ती है कि सो नहीं सकते बिना कूलर के।

अलग से इन्वर्टर लेना पड़ा क्योंकि बिजली बहुत जाती है इधर। उसको भी 4 साल हो गए। वारन्टी खत्म। गनीमत है कि चल रहा है। मैं कई दिन से नंगा रहता हूँ। कपड़े पहनो तो धुलने पड़ेंगे। चादर तो साबुन पानी में भिगो कर टब में धो लूंगा। वाशिंग मशीन में कपड़े नहीं धुल रहा। वाशिंग मशीन का मोड चेंजर नॉब मेकेनिज्म टूटा है, ओवन और सीलिंग फैन खराब है।

रेफ्रिजरेटर के कम्प्रेसर की गैस निकल गयी थी। डलवाने को दिया तो उसने उसका पाइप ही तोड़ दिया। नया रेफ्रिजरेटर अब कम बिजली खाने वाला मिल नहीं रहा। तो बर्फ छोड़ो, ठंडा पानी भी नहीं पी सकता।

ऐसे ही किसी तरह सादा गर्म सा पानी पीता हूँ सारी गर्मी। खाना भी खराब हो जाता है ज्यादातर बचा हुआ। रूहआफ़ज़ा और टैंगो सॉफ्टड्रिंक लाया था। ऐसे ही गर्म पानी में पी लेता हूँ।

वाटर टैंकों का वाल्व टूटा है, पानी लीक होता रहता है छत पर ओवरफ्लो होकर। घर के खिड़की दरवाजों और दीवारों से दीमक की बांबी निकल रही है। छत का मुख्य और छज्जे की जाली वाला बोर्ड का दरवाजा गल के टूट गया है। जीने के दरवाजे की चौखट खराब है जिससे लॉक नहीं हो रहा। उस पर लगी जाली का डोर क्लोज़र खराब पड़ा है।

जीने पर रेलिंग और पाइप लगवाना है। गिरने का डर रहता है। कमरों में रद्दी और भंगार का सामान फैला है। सब सामान धूल खा रहा और एक के ऊपर एक चढ़ा हुआ है। कुछ सामान खोया हुआ भी है। अलुमिनियम सीढ़ी 6-7 स्टेप की 2400₹ की है लेकिन वो घर पे कैसे लेकर आऊं? बहुत दूर मिल रही है। वो आ जाये तो पंखा खोल के ठीक करने का जुगाड़ करूँ।

टुल्लू पम्प खुला पड़ा है। उसका सामान चुरा लिया था पिछले मिस्त्री ने। उसको भी ठीक करवाना है। घर में पुट्टी होनी है, रंग रोगन होना है। जालियों और ग्रिलो पर पेंट होना है। बोर्ड के पल्लों के किनारों में दीमक नाशक लगा के पेंट करना है।

किचन के पल्ले दीमक खा गई। उनको ठीक करवाना है। ऊपर लटका कबर्ड धीरे धीरे unstable होकर झुक रहा है उसको भी रोकने का जुगाड़ करना है।

आंगन का पानी की निकासी का पाइप चोक है फेविकोल से। उसे निकाल के बदलना पड़ेगा। टाइल लगा है जो अब मिलता नहीं। तोड़ना पड़ेगा। बेमेल लेकर लगाना पड़ेगा।

पानी का शावर जाम है। कमोड का जेट सेट ढीला है। उसके प्लास्टिक के स्क्रू की चूड़ी स्लिप हैं। बमटी पर छत डलवानी है। टीन अब गल चुका है।

एक दीवार के टाइल निकल गए हैं उनको लगवाना है, एक कमरे में रिनोवेशन के चक्कर में हुए काम से मच्छर आने का रास्ता खुल गया है उसे भी बन्द करना है सीमेंट से और न जाने क्या क्या करना बाकी है। कुछ काम तो इतने खर्चीले हैं कि करने ही नहीं है। क्या क्या बताऊँ?

फिर भी कभी नहीं रोता आपके सामने! मस्त रहता हूँ। जीवन इसी का नाम है। समय आने पर सब काम हो जाएंगे। 😍 सब बढ़िया है! 👌 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020

सोमवार, जून 29, 2020

Civilization is the state of mind, not from someone's dressing sense



जब भी कोई पुरुष या महिला आपको कपड़ों को लेकर टोकता/ती है तो उसके 2 मतलब होते हैं:

1. अगर मैं (पुरुष) उत्तेजित हो गया तो तेरा यहीं बलात्कार कर दूंगा और इसमें तेरी ही गलती होगी।

2. अगर किसी पुरुष ने उत्तेजित होकर तेरा बलात्कार कर दिया तो इसमें तेरी ही गलती होगी। उसकी नहीं।

अब सोचो, ये खुले आम पुरुष प्रधान समाज की धमकी है कि उसे सजा का कोई डर नहीं है। उसे अगर मन किया तो वह किसी भी महिला को सड़क पर गिरा के *ध सकता है और अगर उसने विरोध किया तो जला कर मार भी सकता है। ये खुली गुंडई है और जो महिलाएं उनका साथ देती हैं, वे उन पुरुषों के ऊपर निर्भर हैं, इसलिये उन्हीं का साथ देती हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

There is no any problem with female, problem is boundations



यदि आप इसलिये विवाह नहीं कर रहे कि महिलाएं नरक का द्वार हैं या वे बुरी या धोखेबाज होती हैं; ऐसी बात कहीं से सुन पढ़ रखी है, तो आप 1 नंबर के मूर्ख हैं।

दरअसल विवाह जिससे भी कर लोगे, वह आपसे बंध कर जल्द ही उकता जाता है और फिर वह अपनी जंजीर तोड़ने के लिये क्लेश करता है।

आज़ादी के लिये दुनिया मे लाखों लोग बली चढ़ गए लेकिन आज़ादी के बिना रोटी नहीं खाई। यही हमारे खून में है। हम सबको आज़ाद रहना है। आप पर कोई रोक टोक करे और आपको उसके टोकने में कोई भलाई न दिखे तो आप उससे कुढ़ने लगोगे।

यही नफ़रत क्लेश का कारण बनेगी। इसे दबा कर मन ही मन कुढ़ कर कैदी की तरह जी लिए तो विवाह सफल और अगर अंदर से इंकलाब ज़ोर मार गया तो मौके पर मौत या कत्ल के जुर्म में जेल। या कमज़ोर निकले, मुकाबला न कर सके; तो तलाक होना तो तय है।

फिर काहे अपनी "उसमें" छुरा कर रहे खुद ही? आपके विवाह का, चाहे आपकी मर्जी हो या न हो, एकमात्र ज़िम्मेदार, सिर्फ आप हो। और कोई नहीं। ये बात याद रखना। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

बुधवार, जून 24, 2020

Communism is a false propaganda, it's not possible completely



100% कोई भी समाज, आर्थिक रूप से बराबर नहीं हो सकता। कोई न कोई तो अधिक आर्थिक संपन्न होगा, तभी कमाई सम्भव है। जितने भी कम्युनिस्ट कम्युनिज़्म को बराबरी का उपाय बताते हैं वे झूठे हैं। बराबरी होने पर सभी कार्य रुक जाएंगे। जैसे, मजदूर, मजदूर के यहाँ नौकरी नहीं करेगा।

सब पर समान मात्रा में धन होगा तो वह खर्च करते ही असमान हो जाएगा। धन नहीं होगा तो हम वापस पाषाण काल में पहुंच जाएंगे और आदिवासी जीवन जीने लगेंगे।

क्या हम वापस आदिवासी बनना चाहते हैं? उधर भी मुखिया होता है जो साबित करता है कि कोई बराबर नहीं हो सकता। सब अपनी योग्यता से अपना स्थान पाते हैं।

सबके लिये अवसर समान हैं लेकिन किसी से धन सम्पत्ति लेकर (छीन कर) किसी फिजूलखर्ची को देना और बदले में उसी मूल्य का देनदार को कुछ न देना लूट है और इस तरह की बराबरी से सब आधुनिक समाज नष्ट हो जाएगा।

कम्युनिस्ट देश की करेंसी होने का अर्थ है कि वह देश कम्युनिस्ट नहीं है बल्कि उसकी आड़ में देशवासियों का शोषण कर रहा है। ताकि वह विश्वगुरु लग सके। घमंड ही इसकी बुनियाद है। इसीलिए इनका तानाशाह खुद को ईश्वर समझता है। ~ Shubhanshu 2020©