Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, जनवरी 26, 2019

सकारात्मक और नकारात्मक विचार

आप positive और निगेटिव को मुख्यधारा के विज्ञान से समझिये। इंटरनेट पर जो इस संदर्भ में ऊर्जा होने का उदाहरण देते हैं, कम्पन होने की कल्पना करते हैं; इस तरह के लिंक pseudoscience से प्रेरित कहलाते हैं। यानी सही बात को गलत तरह से जादू बना कर पेश करना। सच्चाई छिपाना।

Postive मतलब affermative वाक्य। अर्थात हर वह वाक्य जिसमें न, मत, मना, नहीं आदि शब्द अनुपस्थित होते हैं।

निगेटिव में यही शब्द होते हैं। बस यही होता है सोच का फर्क।

साथ ही लापरवाही भी पोसिटिव वाक्य में हो सकती है। इसलिये positive को हम प्रीवेंटिव शब्द से सपोर्ट करके शुद्ध करते हैं। यानी वह सकारात्मक सोच जो लापरवाही और असुरक्षा से ग्रस्त न हो वही सकारात्मक (positive) सोच है। इसमें कोई वाइब्रेशन या ऊर्जा नही होती है बस समझने के लिये और जादुई महसूस करने हेतु ऐसा बोला जाता है ताकि लोग इसकी ओर आकर्षित हो सकें।

बिल्कुल एक विज्ञापन की तरह जैसे निरमा साबुन में लड़कीं दिखाई जाती है लेकिन लेने जाओ तो सिर्फ साबुन मिलेगा। लड़की

 नही देंगे दुष्ट। समझ गए या और समझाएं? ~ Shubhanshu SC Vegan 2019©

हमाम में सब नँगे हैं

कोई भी सभ्य व्यक्ति किसी का भी न तो contact नंबर/फ़ोटो देगा न पूछेगा। आप अपनी बहन के नम्बर/फ़ोटो बाँट सकते हैं? प्रेमिका के? नही न? हम दरअसल किसी का भी नंबर/फ़ोटो/सम्पर्क बिना उससे सलाह किये नही दे सकते।

यह प्राइवेसी एक्ट का उल्लंघन होता है। सज़ा हो सकती है। अतः प्रेमिका और लड़की का किसी पोस्ट में ज़िक्र होते ही उसका नंबर मांगने की यह गन्दी आदत सभी जन छोड़ दें।

दरअसल यह महिला को वस्तु समझने की घटना है। जैसे कोई लड़की मेरे साथ सेक्स करती है, साथ रहती है, प्रेम करती है तो लोगों को लगता है कि वो सेक्स की भूखी है या धन के बदले सेक्स करती है बिना पीछे पड़े। इसलिये इतनी घटिया सोच लड़कों में उनकी संगत ने डाली है।

यही वह बात है जिस कारण महिला मुक्ति आंदोलन शुरू हुआ क्योकि लड़कों की नज़र में महिला एक सेक्स डॉल से ज्यादा नहीं थी। यही कारण है कि सेक्सडॉल की बिक्री धुआंधार हो रही है जबकि उसकी कीमत करोड़ो में है।

सेक्स शब्द ही ऐसा है जो आनन्द देता है। जितना संक्रामक यह है इतना और कुछ भी नहीं। यह देखने, सुनने, पढ़ने मात्र से आपको कामोत्तेजित कर सकता है। छूने पर तो करना स्वाभाविक ही है। फिर इसके दुरुपयोग इस दुरूपयोगी मानव जगत द्वारा सबसे अधिक होना ही था।

समस्या यह है कि भारत के लोग पर्दे के आगे सेक्स मुक्त और पर्दे के पीछे सेक्स में औंधे मुहँ पड़े हुए हैं। पर्दे में बिना ज्ञान के आप प्रयोग करते हैं और वह असफल भी होते हैं और उनका नतीजा बलात्कार, अनचाहा गर्भ, यौनांगों में घाव, बीमारी, धोखा, ठगी, बदनामी, अपमान, शोषण आदि के रूप में सामने आता ही है।

ज़रूरत अब इस पर्दे को हटाने की है और अच्छे-अच्छे चेहरों के मुखोटे उतर जाएंगे। याद रखिये कपड़े पहनने या पर्दा डालने से सच्चाई समाप्त नहीं हो जाती। आ कितना भी नाटक कर लो कि आप सेक्स से अछूते हैं लेकिन सत्य तो यह है कि कपड़ों के नीचे और हमाम में, सब नँगे हैं। नमस्कार! ~ Shubhanshu SC 2019© 6:40 am Jan 26.

शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

भविष्य का मुसाफिर वर्तमान में

केवल बुद्धिमान लोगों को ही मेरी बातें समझ में आ रही हैं। जो 1-2 लोग हैं। पहले कॉलेज में भी सबने यही कहा कि आपकी बातें बहुत समय आगे की हैं और अब यहाँ भी यही साबित भी हो रहा है कि दुनिया मुझसे कितना पीछे चल रही है। 

कमाल है कि मेरे साथ समय से आगे चलने वाले सिर्फ 3-5 लोग ही होंगे। ये भी ज्यादा ही लिख दिए। अभी लगभग पूर्ण मुझे एक ही मिला है। बाकी हैं कुछ जने आधे-अधूरे। अपनी क्षमता के अनुसार कदम आगे बढ़ा लिये। कदम से कदम मिला कर चलने वाले चाहिए।

अभी हम 2 हैं। उम्मीद है हम 2, पूरे 11 से कम नहीं हैं। 2 और मिल जाते तो 22 हो जाते। लेकिन इतना बदलने के लिये त्याग कौन करे बुराइयों का? सबको सांचों में ढलना है। सांचे बनाने के लिये बड़े लोग चाहिए। सब छोटे ही बने रहना चाहते हैं। कम्फर्ट ज़ोन हैं सबका। रूटीन लाइफ जी रहे हैं। मर मर कर। बेचारे। जी लो एक बार खुल कर। एक ही जीवन मिला है। इसे बर्बाद मत करो।

पहले कश्मीर जी थे, साथ लेकिन उनसे भी कुछ मुद्दों पर (जैसे राजनीति, सर्वभक्षी जीवनशैली आदि) मतभेद थे। अब वे खुद ही नहीं रहे तो उनका अभियान ठप सा हो गया है। वे खुद रचनाकार थे। उनकी शैली अलग थी और महत्वाकांक्षाओं का गुलदस्ता भी। मैं उनके साथ था लेकिन मेरा विषय/रास्ता कुछ अलग था। इसलिये हम लोगों की अलग-अलग 2 वेबसाइट बनीं।

काश्मीर जी- http://www.dharmamukt.com

Shubhanshu जी- http://zaharbujhasatya.dharmamukt.in

समय आने पर book निकलवाई जाएगी उनकी रचनाओं की। लेकिन हम अभी भी धर्ममुक्त हैं और रहेंगे। जिसको धर्म के पक्ष में आकर अपनी ऐसी-तैसी करवानी है, वह करवा सकता है। हम पर पूर्ण आत्मविश्वास है।

जब तक कोई हमें चुनौती नहीं देता तब तक ही हम शांत रहते हैं। बहस की जगह प्रमाण और तर्क से सीधा और सरल समाधान करने की मेरी कोशिश रही है।

मकसद धर्म और पाखण्ड हटाना नहीं था कभी। मकसद था कि लोग सत्य जानें। सत्य जानकार कौन गंदगी में रहेगा? इसलिये दलदल में एक रस्सी फेंकने का काम है मेरा। उसे पकड़ के बाहर आना आपका। ~ Shubhanshu SC Vegan, dharma mukt. 2019© january.

मंगलवार, जनवरी 22, 2019

विवाह यानि इंसानों का वस्तुकरण

जिन्होंने सम्भोग केवल बच्चा पैदा करने हेतु किया है वे महिला के ओर्गास्म को कोई वैल्यू नहीं देते। जबकि कौमार्य को देते हैं क्योकि उनको लगता है कि यह सील है उनके शुद्ध वंश की। यही लोग कौमार्य को अपने हिसाब से ढूंढते हैं और सन्तुष्ट न होने पर महिला की हत्या तक कर देते हैं। क्या आपको इनकी मानसिकता वाला विवाह पसन्द है? जो महिला को बस उत्पाद समझते हैं? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

मैं ऐसे ही नहीं बड़ी बड़ी बातें करता हूँ। बातें बड़ी हैं इसलिये करता हूँ।

पहचान छुपाने का ये है मुख्य कारण

जिनको सच में ऐसे मुंडी चेंज के डर हैं जिनमें पोर्न स्टार की सेक्सी बॉडी पर उनका फ़ोटो लगा दिया जाए तो जान लेना चाहिए कि सिर्फ फ़ोटो से काम नहीं चलता और भी कांटेक्ट होने चाहिए। जैसे इतनी अभिनेत्रियों के फोटो अश्लीलता से मुंडी बदले जाते हैं लेकिन उन अभिनेत्रियों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि कांटेक्ट ही नहीं हो सकता।

जिनको करीबियों से डर है वे डिजाइन और गार्ड फीचर साइड पोज (मॉर्फ असम्भव) में लगा सकती हैं या अगर वास्तव में इन्बॉक्स/Messenger समस्या है तो उसे अनइंस्टाल करके व्हाट्सएप use कर सकती हैं और अगर सिर्फ विचार बांटने हैं तो वे लड़के के नाम से id भी बना सकती हैं।

दरअसल ज्यादातर बिना फेस की महिला id सेक्स चैट मे इन्वॉल्व होती हैं। अब आप समझ लो। अपवादों को मारो गोली। यही है ज़हरबुझा सत्य। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

P.S.: Hey Reader! You are a great person!

बुधवार, जनवरी 16, 2019

ऐसे लड़के से दूरी भली

उस लड़के से प्यार मत करना, जो प्यार का असली मतलब जानता हो।
मत करना उससे भी प्यार जो इसे निभाना जानता हो।
मत करना उससे भी जो खोया रहता है, अपने ही ख्यालों में।
उस लड़के से बिल्कुल प्यार मत कर बैठना जो अकेला रहता हो।
उससे भी नहीं जो हर समय आपको अपने अनुभव बताता रहता है।
उससे भी नहीं जो आपसे कुछ भी नही छुपाता, मुहँ पर ज़हरबुझा सत्य कह देता हो।
उससे भी नहीं जो आपको आपकी आंतों तक को हंसाता हो। हंसा हंसा कर रुला दे।
उससे भी नहीं जो अपने 2 शब्दों (Thank You) से आपकी आँखों में पश्चाताप के आंसू ला दे।
उससे तो कतई नहीं जो आपके भले के लिये आप पर हाथ तक उठा दे।
क्योकि वह जानता है कि तुम्हें मरते नहीं देख सकता।
उससे तो बात भी मत करना जो कोई नशा नहीं करता लेकिन उसकी बातों में नशा हो। जिसकी लत लग जाए तुमको।
भाग जाना उसके पास से जो तुम्हारी देह, चेहरे की तारीफ न करे फिर भी तुमसे भुलाया न जा रहा हो।
अच्छी लगे जिसकी कड़वी बोली भी।
उससे भी नहीं जो अखबार/tv नहीं देखता, खुद ही ग्रन्थ लिखा करता हो।
उससे तो बिल्कुल भी नहीं जो खुद ही रचना करता, चित्र बनाता हो।
उससे भी नहीं जो विज्ञान, तर्क और सत्य के लिये ज़िद्दी हो। पीछे न हटता हो।
उससे तो दूर ही रहना जो कभी हार नहीं मानता, लेकिन जब बात प्यार की हो तो हार जाता हो।
जो विश्वास, कर्तव्य, करुणा, त्याग, क्रोध जैसी भावनाओं से भरा होकर भी खुद पर पूरा नियंत्रण रखता हो। नम्र हो।
क्योकि अगर एक बार आप ऐसे लड़के के प्यार में पड़ गए, चाहे उसे आपसे प्यार हो या न हो, तो आप वापस लौट कर नहीं आ
पाओगे। वहीं रह जाओगे। हमेशा के लिये। हमेशा-हमेशा के लिये। 2019/01/16 19:05 ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

क्या साइकिक हूँ मैं? ~ Shubhanshu

मुझे ऐसा लगता है कि मेरे अंदर कुछ साइकिक शक्तियां हैं बचपन से क्योंकि संयोग इतने अधिक नहीं हो सकते। एक मुख्य असर जो सभी ने देखा है वह यह है कि मुझे सताने वाले लोग या तो शीघ्र ही बर्बाद हो गए या उनकी संदिग्ध हालातों में मृत्यु हो गई।

ऐसे ही जब किसी ने मेरी बात नहीं मानी जबकि मैंने उसके भयानक परिणाम का पूर्वानुमान लगा लिया था जो कि अपने आप होता है उनका उससे भी बदतर हश्र हुआ।

ये इतना सत्य है कि फेसबुक पर मुझे सताने वाले 3 लोगों की रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई। इन्हीं 2 वर्षों में (2017-2019)।

ये कुछ कुछ बद्दुआ या श्राप का पर्याय जैसा लगता है। मैंने इसकी खोज की और पाया कि आकर्षण का सिद्धांत इसके पीछे की वजह हो सकता है। ये कहता है कि यदि आप कोई भी इच्छा जितना आवेग, गुस्से, दुःख या खुशी में करेंगे वह ज़ल्दी घटेगी।

मैंने कुछ और घटनाओं का अवलोकन किया। देखा कि इसके सकारात्मक परिणाम ज्यादा ही मिलते हैं। जैसे मैं अगर फेसबुक का ही उदाहरण दूँ तो कमाल की बात यह होती है कि जिस बहस या चर्चा में मुझे जो उदाहरण और meme चाहिए होती है वह मुझे मेरी timeline या किसी अचानक मिले मेसेज, लिंक या इनबॉक्स में आये किसी के साथ हुए वार्तालाप में मिल जाते हैं। यह इतना अप्रत्याशित होता है कि कहीं से कोई लिंक वास्तविक घटना से जुड़ा नहीं मिलता।

अब अगर न भी मिले तो वह मुझे कोई फ़िल्म में मिल जाता है जो तुक्के से मैंने रैंडम चुनी होती है। या कोई गेम में वह जवाब होता है या कोई दोस्त आकर वह जवाब दे जाता है। कहीं न कहीं से मुझे जवाब, मदद आ ही जाती है। यह इतना अधिक होता है कि मैं मौत से भी नहीं डरता और आत्मविश्वास से भरा रहता हूँ। इतनी बड़ी-बड़ी परिस्थितियों को हरा कर निकल आया हूँ और इसलिये फेसबुक पर भी मुझसे ज्यादा तर लोग बहस करने में डरते हैं।

आपको हैरानी होगी कि यह सिर्फ भारत में नहीं है बल्कि यही हालात विदेशी लोगों और विदेशी समूह में भी प्रचलित है। फेसबुक पर मौजूद flat earther, vegan और meat eater open debate group के लोग मुझे पहाड़े की तरह रटे बैठे हैं। वे चर्चा में हार कर व्यक्तिगत अपमान करने लगते हैं। जब कुछ नही मिलता तो इंडियन कह कर ही थूकते हैं। उनको किसी ने सिखाया है कि दलित एक गाली है तो वे मुझे दलित कह कर सम्बोधित करने लगते हैं। कोई कहता कि सड़कों पर टट्टी करने वाले, टॉयलेट बनवा ले। कोई कहता कि nigga (नाइजीरिया के नीग्रो) हूँ मैं। यानी रंगभेद, कालों के प्रति।

यह सब किसलिए क्योंकि वे तर्क नहीं कर पाते। इंडिया में भी नास्तिकता प्रचार अभियान, नास्तिक वर्ल्ड, महिलाओं चुप्पी तोड़ो, साइलेंस ब्रेकर, शर्म छोड़िये चुप्पी तोड़िये जैसे समूह के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। इन सभी समूहों में मैं ब्लाक हूँ। पहले वाले में जब साल भर कारण पूछता रहा तब जाकर ब्लॉक हटा है कुछ माह पूर्व। बाकी के एडमिन कायरों की तरह चुप्पी साधे बैठे हैं। दरअसल इनको मेरे सवालों के जवाब पता नहीं होते तो व्यक्तिगत आरोप लगाते हैं। लेकिन मैं ये आपको क्यों बता रहा हूँ?

दरअसल महिलाओं चुप्पी तोड़ो समूह को मैंने दुखी होकर कोसा था और कमाल है कि उसी हफ्ते वह समूह अचानक गायब हो गया। मुझे लगा कि मैं ब्लॉक हूँ इसलिये नहीं दिख रहा होगा लेकिन मुझे मेरी मित्र ने बताया कि ये समूह गायब हो गया है। एडमिन सकते में हैं कि 60000 लोगों का समूह गायब कैसे हो गया?

अभी बस इतना ही। बताना शुरू किया तो न जाने कहाँ पर खत्म हो ये सब। मेरी जीवनी में आप संपूर्ण घटनाओं को पढ़ेंगे। नमस्कार।

Update: लगभग 6 माह पूर्व मेरा गूगल प्लस एकाउंट रेफरल लिंक्स के कारण सस्पेंड कर दिया गया। मैंने उनको हटाया और रिव्यू के लिये अपील की। कुछ घण्टे बाद सब ठीक हो गया। लेकिन फिर कुछ देर बाद ससपेंड हो गया। मैंने बचीखुची सभी पोस्ट हटा डालीं। कुछ घण्टे बाद सब ठीक हो गया। फिर 10 मिनट बाद फिर से सस्पेंड हो गया।

अब क्या हटाता? इंतज़ार किया 3 दिन। कुछ न हुआ। फिर गुस्से में मैंने गूगल प्लस अकॉउंट ही डिलीट कर दिया। लेकिन ये क्या? Your account is under review. ये कैसे हटेगा?

हफ्तेभर बाद भी कुछ न बदला तो मैंने दूसरा अकॉउंट बनाया उससे अपना मुख्य अकॉउंट वापस देने की अपील की गूगल प्लस हेल्प कम्युनिटी में और कहा कि मेरा अकॉउंट आज़ाद करके मुझे दोबारा बनाने दें। लेकिन उधर के एक एडमिन ने मुझे निराश किया। उसने मुझसे कहा:

1. आपने अपना एकाउंट डिलीट कर दिया। अब वह है नहीं तो रिव्यू किसका करें?

2. आपने दूसरी id बनाई जो कि गलत है। आप हमको धोखा दे रहे हैं।

अब मैंने कहा कि

1. जब review नहीं हो रहा था तभी तो डीलीट किया।

2. बिना दूसरी id के गूगल कम्युनिटी हेल्प लेना असम्भव है।

फिर उसने कहा कि आपका एकाउंट कई बार ससपेंड हुआ है इसलिए हो सकता है परमानेंट बन्द हो गया हो। मैंने कहा कि अगर ऐसा होता तो मुझे बताया जाता। इस पर उसने कहा मैं कोई मदद नहीं कर सकता। इसके बाद मैं किसी दूसरे रास्ते से गूगल तक पहुँचने का प्रयास करने लगा। मैंने एडवर्ड्स टीम से सम्पर्क किया। उन्होंने भी असमर्थता दर्शा दी कि गूगल प्लस कम्युनिटी ही रास्ता है।

उधर से पहले ही मैं निराश हो चुका था। मैं 2000 फॉलोवर्स खो चुका था और बहुत निराश हो चुका था और तब मैंने अपने साथ हुई इस बेईमानी के प्रति अपना गुस्सा प्रकट करते हूए खुद से कहा कि देखना अब तुम्हारा (गूगल प्लस) ये प्लेटफार्म ही बन्द होगा। मुझे परेशान किया है मैं तुम्हें परेशान कर दूंगा।

हाल ही में गूगल प्लस प्लेटफार्म को एक बड़े सायबर हमले के बाद बन्द कर दिया गया है। इस अप्रैल से यह प्लेटफार्म ही डिलीट कर दिया जाएगा।

Note: संपूर्ण घटनाएं और पात्र सत्य हैं। ~ Vegan Shubhanshu SC 2019©

गुरुवार, जनवरी 10, 2019

मजे दार और ज्ञानवर्धक चर्चा

कौस्तुभ: पूर्ण रूप से अप्राकृतिक जीवनशैली जीने वाले प्राणि को आप विकसित कैसे कह सकते हैं? ये विकास नहीं बल्कि खुद का और प्रकृति का विनाश है।

बबलेश: मोबाइल को फेंक दीजिये। कपड़े फाड़ दीजिये, कच्ची रोटियां खाइये। कृत्रिम रूप से निकला हुआ पानी मत पीजिये।

कौस्तुभ: मोबाइल क्यू फेंक दे? वह बेकार की चीज थोड़ी है।

हा कपडे अवश्यता नुसार ही पहनता हू। मै रोटिया कभी कभार मजबूरी में खाता हू। आप मुझे सुविधाओं का त्याग करने के लिए क्यू कह रहे है। मै विज्ञान तंत्रज्ञान विरोधी थोड़ी हू।

बबलेश: आप प्रकृति वाद का समर्थन तो इसी प्रकार कर रहे है, जैसे कृत्रिम वस्तुओ को छूते भी नही।

कौस्तुभ: मै विज्ञानवादी आदिमानव हूँ। ☺️

बबलेश: यह आदिमानव कौन होते है?

कौस्तुभ: प्राकृतिक जीवनशैली से रहनेे वाले अविकसित मानव।

बबलेश: समझ नही आया। कृपया शुद्ध और पूर्ण लिखिये। 🙏

शुभ: इधर भी ये आपको उंगली कर रहे है। उधर कल हमें कर रहे थे। 😀 उपयोगी वस्तुओं का लाभ उठाते हुए शरीर और मन की प्रकृति को समझते हुए जो स्वास्थ्य, मन और शरीर के लिये बेहतर हो करते हुए, तर्कवादी/विज्ञानवादी सोच से जीवन जीना जिसमें अनावश्यक सभी कार्यों, वस्तुओं का निषेध हो और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीमित प्रयोग करते हुए कम से कम में जीवनयापन करना (minimalistic lifestyle) ही हम विज्ञानवादी प्रकृति मानवों का ध्येय है। हमारा उद्देश्य मानव की जनसँख्या की जगह  जनगुणवत्ता बढाना है। यह आगे चल कर प्रकृति और पर्यावरण को उन्नत करके जीवन यापन को उत्तम बना देगा और बना रहा है।

बबलेश: क्या कपड़ा उपयोगी नही है? ओर आप एंड्राइड फ़ोन की जगह कीपैड वाला फोन भी रख सकते है। आप (हम) जिस नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे है, उससे निकलने वाले रेडिएशन से पक्षी मर रहे हैं और धरती पर पैदा होने वाले कीड़े मकोड़े बढ़ रहे है, जो पेड़ पौधे खा कर किसान की फसल खराब कर देते है।

शुभ: सब वहम है आपका। 

बबलेश: विज्ञानवादी केवल प्रत्यक्ष पर विश्वास रखते है, वहम जैसा कुछ नही होता। मैं विज्ञानवादी हूं।

शुभ: शुभ: संगत से बड़ा कोई शिक्षक नहीं और हम आपकी संगत नहीं बदल सकते। इसलिये आपसे बात करना सिर्फ समय खराब करने जैसा है। आप को जानकारी है नहीं गहराई की और हम आपको गूगल से सर्च करके आपको पढ़ाने आये नहीं। केवल कुछ ही लोग हमारी बातों को समझने योग्य बुद्धि रखते हैं और वे लोग बहुत कम हैं।

हमने जो समझाया, उसके आगे हम कुछ नहीं बोल सकते। समझदार को इशारा काफी। आदिमानव और कबीले वासियों से सीखिये कपड़े का महत्व और सुविधा में की पैड वाले में वह सुविधाएं नहीं जो इसमें हैं। ऐसे ही नहीं इसे स्मार्टफोन कहते हैं। यह सिर्फ स्मार्ट लोगों को समझ में आता है।

बबलेश:  कपड़े का होना विकास है। जबकि महानुभाव कौस्तुभ जी कह रहे है कि हम उन्हें विकसित कैसे कह सकते है? क्या हम जानवरो को विकसित कहना शुरू कर दें, जो कृत्रिम वस्तुओ का बिल्कुल भी उपयोग नही करते?

शुभ: विकास सिर्फ बुद्धि का और सुविधाओं से देश का हो सकता है। कपड़े किसी भी तरह मानव के विकास में सहयोगी नहीं हैं। वे केवल विपरीत परिस्थितियों में इस्तेमाल होने वाले हेलमेट और सूट की तरह हैं। जिनको ज़रूरत पड़ने पर ही पहना जाता है।

दुनिया में कोई भी मोबाइल फोन ऐसा नहीं है जिससे सहन करने योग्य से ज्यादा रेडियेशन निकलता है। जो बकवास लोग फैला रहे हैं वे परंपरा वादी सोच से ग्रस्त हैं। कोई पक्षी रेडिएशन से नहीं मरता। अगर वह मरेगा तो हम सब भी मरेंगे। कीड़े बढ़ नहीं रहे बल्कि हम उनके हिस्से के भोजन को उनसे छीन रहे हैं। अब वह अपने भोजन पर टूटते हैं तो यही न्याय है। वैसे भी कीटनाशक डाल-डाल के कौन सा अमृत उगा रहे हैं आप?

अनाज, बेस्वाद सब्जियां आदि कीड़ों का भोजन था हमेशा से। मानव ने जनसँख्या की भूख मिटाने हेतु अंधाधुंध बड़े पेड़ काट कर छोटे आकार के पौधे (घास नुमा) उगा लिए (जिनकी खेती आसान थी) जिनसे ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन रही। वाष्पन भी निचली सतह पर होने के कारण बिखर जाता है। इसलिये सिंचाई के लिये वर्षा नहीं हो रही।

फसलों की जगह वृक्ष वाले फलों के बाग लगाना ज्यादा उचित है। वे पोषण, भोजन के साथ ऑक्सीजन और वर्षा भी लाते हैं। साथ ही बाढ़ को रोकने का कार्य भी करते हैं। जबकि फसल इस तरह के भूमि कटाव को रोकने में कोई मदद नहीं करती। वह खुद ही झुक जाती है। बाढ़ में फलों के वृक्ष की फसल कभी खराब नहीं होती।

आप जिनको पशुधन बोलते हैं उन पशुओं को जितना अनाज खिला कर मल में बदल दिया जाता है, उनका दूध अंडा और मांस प्राप्त करने हेतु, वही अगर मानव को खिला दिया जाता तो ज्यादा मदद मिली होती world hunger खत्म करने में। इन जानवरों के जीन में छेड़छाड़ करके इनको ऐसा बनाया जा रहा है ताकि इनको मानव की हमेशा ज़रूरत बनी रहे।

इनकी फार्मिग (खेती) करके उनकी संख्या बेहताशा धन के लालच में बढ़ाई जा रही है। जो कि ग्लोबल वॉर्मिग की एक वजह भी बन रहा है। इनके मल और डकार में ग्रीनहाउस गैस मीथेन होती है। जो इनकी ज्यादा संख्या में होने के कारण वायुमंडल के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करके ओज़ोन गैस की परत की क्षति पहुँचा रही है। अज़ोंन परत का छेद फिर से खुलने लगा है।

जितना समय चारा (अनाज) उगाने में लगता है+उसको बार-बार पशुओ को खिलाने मे लगा समय (6 माह से कई वर्ष तक)+उनके उत्पादों को प्रोसेस करने में लगा समय+मेहनत+संरक्षण का खर्च (रेफ्रिजरेटर)+उसको पकाने में लगा समय (वनस्पति से कहीं ज्यादा समय लगता है पशुउत्पाद को तैयार करने में)= बहुत ही देर में पहुँचने वाला महंगा+बुरे कोलेस्ट्रॉल युक्त+अनावश्यक हार्मोन युक्त+कैंसरकारी तत्व+पशु पस (मवाद) से युक्त ज़हरीला भोजन जो 30 वर्ष की आयु के बाद आपकी धमनियों के लचीले न रहने के कारण रक्त को आखिरकार अवरुद्ध करके आपको ह्रदयघात देकर व मधुमेह, पधरी व कैंसर पैदा करके नष्ट कर देता है।

अभी भी समय है सुधर जाओ। नहीं तो ज़िन्दगी ही अलविदा कह देगी।

बबलेश: बड़े हो चुके लोग नही जानते कि एक बेहद पेचीले मामले में एक बच्चा भी बहुत अच्छी सलाह दे सकता है। खैर, कपड़े सर्दियों में ठंड से बचाते है, गर्मियों में गर्मी से, सड़क पर धूल से, बारिश में गीले होने से (रेन कोट), गर्मियों में शरीर का पानी नही सूखने देते। हर जगह कपड़े हमारी सुरक्षा करते है, कैसे त्याग दें? आप बताओ?

शुभ: मानव पर जब यह विकल्प नहीं था तो वह अनुकूल परिस्थितियों में रहता था। जिस तरह प्रवासी पक्षी अनुकूलित जगह पर जाने के लिये लम्बी दूरी तय करते हैं। अब मानव ने इतनी संख्या बढ़ा ली है वह अब संगठित रहने लगा है। जान पहचान वालों के बीच comfort zone बनाये बैठा है।

अतः अब वह स्थायी रूप से एक जगह पर ही घर बना कर रहने लगा है अतः प्रायः प्रवास नहीं कर पाता। जबकि कुछ लोग सर्दी में गर्म और गर्मी में ठंडी जगह जाते हैं। बाकी के लोग अब प्रतिकूल जगहों पर ही AC कूलर, पंखा, रेफ्रिजरेटर आदि लगा कर महंगी बिजली के लिए अपनी मेहनत से कमाए धन का भुगतान करते हैं।

इस तरह उसके शरीर में मौजूद समतापी संवेदी तंत्र निष्क्रिय प्रायः हो चला है। इसको दोबारा सक्रिय करने के लिए इस प्रकार के कृत्रिम अनुकूलन वाले कारकों को हटाना होगा। जिनमें वस्त्र आपके अनुसार आते हैं। इसके लिये धीरे-धीरे कपड़े कम करने होंगे। जैसे मानव ने धीरे-धीरे इस अनुकूलन को गंवाया है उसी तरह यह वापस आएगा।

धूल-मिट्टी अगर सांस से फेफड़े में अधिक मात्रा में न जाये तो नुकसान नहीं करती। लू और बारिश मे बाहर निकलना बेवकूफी है। फिर भी यदि आपको आवश्यकता है तो भीग/तप सकते है लेकिन समय लगेगा अनुकूल होने में। अतः अभ्यास करते रहें। एक दम से नँगे होकर शरीर को अनुकूल करने के स्थान पर कॉलेप्स न कर दें। बीमार पड़ जायेंगे।

घरों में शर्मो हया का नाटक छोड़ कर परिवार को बैठ कर अपने उद्देश्य समझाएं। उनको बताएँ कि आप यह नया और अलग कार्य क्यों शुरू कर रहे हैं। किसी को भी दिक्कत होने पर उसके सामने जाने से बचें। शरीर दिखाने के लिये ही बने हैं छिपाने के लिये नहीं। नहीं तो हमारे शरीर पर भी मोटा फर होता या हम किसी शैल (घोंघे, सीप जैसे आवरण) के साथ पैदा होते। एक दूसरे के भरोसे को तौलने के लिये यह बहुत अच्छा प्रयास होगा।

इसी से इंसान के मोनोगेमस होने, रिश्तों में रोमांस व सेक्स न होने जैसे मिथकों की भी कलई खुलेगी। बैठ कर हर समस्या पर परिवार विचार करें। नहीं है परिवार, तो घर में धीरे-धीरे नग्न रहने का अभ्यास करें। समय आने पर शरीर अनुकूलन सीख लेगा। सिर्फ कोई निप्पल या लिंग देख लेगा, यह सोच कर वस्त्र न लपेटें। देखने से क्या घट जाएगा?

नग्न देख कर लोग आज शर्म-शर्म बोलते हैं; जैसे 30 वर्ष का होने से पहले ही विवाह न करें, नौकरी/व्यापार न करें और यदि विवाह के बाद लड़का या बच्चा ही न पैदा करें तो सब मिल कर शर्म-शर्म कहने लगते हैं। यह समाज का भीड़ बढ़ाये रखकर धंधे के लिये अधिक ग्राहक उपलब्ध करवाना और प्रतियोगिता बढ़ा कर सस्ती मजदूरी पर कार्य कराने की सोची समझी नीति है जिसको जाने-अनजाने सभी लोग कॉपी कर रहे हैं।

सोचने वाली बात है कि 96% मूर्खों से दुनिया भरी पड़ी है और लोग 4% की तरफ उंगली उठा कर खुद पर गर्व करते हैं कि मानव बुद्धिमान है। है न कमाल का मजाक? मुस्कुराते रहिये, अपनी बर्बादी पर क्योंकि एक इंसान ही है जो किसी के गिरने पर भी हंसता है और किसी को गिरा कर भी। बस इस बात का डर है कि कहीं गिरने वाले आप न हों। मैं भी दांत निकाले नज़दीक ही खड़ा हूँ। धन्यवाद! 💐  2019/01/10 23:20 ~Vegan Shubhanshu SC 2019©

हम हैं वैज्ञानिक प्रकृति मानव

उपयोगी वस्तुओं का लाभ उठाते हुए शरीर और मन की प्रकृति को समझते हुए जो स्वास्थ्य, मन और शरीर के लिये बेहतर हो करते हुए, तर्कवादी/विज्ञानवादी सोच से जीवन जीना जिसमें अनावश्यक सभी कार्यों, वस्तुओं का निषेध हो और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का सीमित प्रयोग करते हुए कम से कम में जीवनयापन करना (minimalistic lifestyle) ही हम विज्ञानवादी प्रकृति मानवों का ध्येय है।

हमारा उद्देश्य मानव की जनसँख्या की जगह जनगुणवत्ता बढाना है। यह आगे चल कर प्रकृति और पर्यावरण को उन्नत करके जीवन यापन को उत्तम बना देगा और बना रहा है। ~ Vegan Shubhanshu SC विज्ञानवादी प्रकृति मानव! 6:00 PM, जनवरी 10, 2019

सोमवार, जनवरी 07, 2019

मिटने से पहले लिख दो इतिहास

क्या है ये नास्तिक/Atheist शब्द?

समस्त धर्मग्रंथों में वर्णित और उनको लिखने वाले प्रपंची लेखकों द्वारा बनाया गया और लिखा गया उनके धर्मग्रंथों में एक अपराधी का घृणित नाम: नास्तिक।

मतलब हम धर्ममुक्त होकर भी उनके ही बनाये एक लेबल को स्वीकार कर रहे हैं? जबकि एक बच्चा जब तक धर्म के जाल मे नहीं पड़ता वह इंसान ही होता है। वह भी नहीं मानता कुछ भी। तो उसमें और हम में क्या अंतर?

प्रकृति में हम आये, जैसे और जंतु आये। वैसे ही जीते भी क्यों नहीं? क्यों हमें आज प्रकृति असुविधा भरी जगह लगने लगी है? क्यों कीचड़ पांव में गन्दी लगने लगी है? क्यों धूल मिट्टी किसकिसाती है अब दांतों में? क्यो ज़मीन पर गिरा भोजन हम नहीं खाते अब? क्यो हम जानवरों के आज़ाद और प्राकृतिक जीवन से दूर भाग रहे हैं? क्यों आज हमको कीड़े मकोड़े और मच्छरों के काटे जाने का डर हो गया है? क्यों हमे अब अपने बगलों और पसीने की गंध दुर्गंध लगने लगी है?

क्यों बाल धुल कर उनको संवारना एक आदत बन गई? क्यों ज़रा सी ठंड पड़ते ही स्वेटर रजाई खरीदने दौड़ पड़ते हैं हम? क्यों 5 मिनट भी खाली नहीं बैठ पाते है हम? क्यों हमें हर समय मनोरंजन चाहिए जब भी कार्य न कर रहे हों? क्यों हम कुछ सोचने की जगह दूसरों से उधार लिया ज्ञान अपनाते और बांटते हैं? क्या हो गया है हमको? क्या हो गए हैं हम?

भले ही आबादी बढ़ा कर कचरा सोच वाले लोग बढ़ा लिये हमने। बढ़ा लिया कंक्रीट या फूस का जंगल, असली वन और उसके मालिकों (जन्तुओ) को नष्ट करके। मशीनें बना कर अंतरिक्ष में फेंक दीं। अपने ही उपर गिराने के लिये। हरे ऑक्सीजन वाले वृक्ष काट कर 2 फुटिया अनाज की घास उगा कर, वनों को मैदान बना डाला।

अरे अब वर्षा कैसे होगी? इन 2 फुटिया पौधों से बादल न बनते रे। सूख जाएंगे ये भी, फिर क्या करोगे? धरती का सीना फाड़ के उससे पानी निकालोगे? उसे भी सुखा दोगे? वह पानी जो आज़ाद वनस्पतियों के लिये था? उससे गुलाम वनस्पतियों को सींचोगे? आखिर कब तक?

एक दिन यह पानी भी खत्म हो जाएगा। एक दिन ये हवा भी खत्म हो जाएगी। रह जाएगा धुंए के बादलों से ढका आकाश। जिससे बरसेगा तेजाब। मरोगे फिर तिल तिल कर के। ऑक्सीजन के सिलेंडर जैसे सोने के दाम में बिकेंगे। पानी तो पेट्रोल से भी महंगा हो जाएगा। पूछोगे कि इतना महंगा क्यों? तो जवाब आएगा, ले ये तेज़ाब पी ले।

पेट्रोल खत्म होगा, खनन का कारोबार बंद होगा और रह जाएगी सुरंगों से छलनी, ये खोखली, कांपती धरती। जो गिरा देगी तुम्हारे सपनों के घरों को। मिला लेगी मिट्टी को वापस अपने सीने से। दब जाओगे तुम अपने ही खरीदे मलवे में। इंतज़ार करते राहत का। लेकिन कोई नहीं आएगा।

आधुनिक बनना था तो ज़रा अपनी संख्या पर भी गौर कर लेते। अपनी गिरती सामर्थ्य पर भी गौर कर लेते। आलसी होकर विज्ञान से कार्य लेकर शरीर को खराब कर डाला। अब gym चाहिए तुमको मेहनत बर्बाद करने के लिए। एक जगह कार्य करने का पैसा लोगे, गला काट कर के भी, तो दूसरी तरफ गला काट प्रतियोगिता में महंगे होते जा रहे हेल्थ क्लब में पैसा बहा कर मेहनत करोगे।

TV के सामने बैठे हुए भजन सुनते रहते हो या समाचार? या लगे हुए हो जवानी बर्बाद करते हुए सेक्स की चाह में? नशे में डूब चुके हो? कानून को जेब में रखे हुए। ज़िन्दगी को दांव पर लगाए हुए। धर्म और संस्कार की बेड़ियों में जकड़े हुए। जो 2 टांगों के बीच में ताला लगाए खड़ा है। डरते हो खुद से ही। भीतर ही भीतर धर्म के सही निकल जाने का भय भी है।

नर भी तड़प रहा, मादा से मिलन को और मादा भी तड़प रही, नर से मिलन को लेकिन समाज को तो सिर्फ बच्चे चाहिए। वीर्य और शुक्राणु के मिलन से बना एक वंशज। वह भी पुरुष क्योंकि उसमें योनि नहीं होती। सक्रिय उत्तेजक स्तन नहीं होते। गर्भाशय नहीं होता। कोई क्या बिगाड़ लेगा उसका? लेकिन वह भी नहीं बचा। उसे भी होमो सेक्सुअल top बलात्कारी खा गए।

क्या करोगे इस समाज का? जो धरा है आसमान पर। झूठ के बादल पर टिका। रोते हो सिसक सिसक कर। तकिए में मुहँ दबा के। कहीं आवाज़ न निकल जाए बाहर। कमज़ोर न दिखो किसी को। भले ही कांच के बने हो भीतर से तुम। लेकिन हेलमेट बन कर निकलोगे बाहर। इतना गुस्सा। इतनी नफरत। कहां से आई? इतनी हवस? क्या यही है आपका तथाकथित समाज? तथाकथित ईश्वर के द्वारा बनाये गए नियमो में और उसके साथ साथ कानून से बंधा हुआ?

सच कह रहा हूँ अभी नहीं चेते तो चेतन होने के लिये कुछ बचेगा ही नहीं। आप अपनी आबादी नहीं बढ़ा रहे हैं। बर्बादी बढ़ा रहे हैं। Stop breeding! Or it will be stop by vanishing your breed itself automatically! Be aware! मैं हूँ Shubhanshu SC Vegan, आपका आखिरी और सच्चा पथप्रदर्शक! 2019©  2019/01/07 04:11

मंगलवार, जनवरी 01, 2019

महिला को पुरुष सुरक्षा के लिये क्यों चाहिए?

प्रायः स्त्री को किसी पुरुषों से अलग सुरक्षा की ज़रूरत नहीं लेकिन जिस परिवेश में उसे रखा गया है वहाँ लड़को और लड़कियों को एक दूसरे से अलग रखा जाता है। लड़कियों को सेक्स की बातों से अनजान और व्यस्त रखा जाता है। उनके tv तक देखने पर नज़र रखी जाती है। इस कारण लड़कियों को विवाह होने तक सेक्स के बारे में सिर्फ यही पता होता है कि यह कोई गन्दी बात है। इसे नहीं करना है।

दूसरी श्रेणी की लड़कियां इसे शादी के बाद ही सही मानती हैं (व्यभिचार को पाप मानने के कारण), इस कारण शादी से पहले ये पाप न हो जाये इसलिये उनको समाज द्वारा आज़ाद छोड़े गए लड़कों से जो सब कुछ जानते हैं (लेकिन सब अफवाह और घटिया सोच के साथ) जबरन सेक्स कर लिए जाने का खतरा बना रहता है।

लड़कों को भी धर्म/समाज यह सिखाता है कि लड़की को अपना शील (hymen, कौमार्य) सुरक्षित रखने के लिये घर के भीतर कैद रहना चाहिए और लड़कों से दूर भी। सभी को भाई समझना चाहिए। भाई मतलब जिससे सेक्स सम्बन्ध बनाना धर्मानुसार पाप हैं।

ये भी एक अंधविश्वास है क्योंकि विज्ञान के अनुसार बच्चा सुरक्षित सेक्स सम्बंध से नहीं बल्कि सही समय पर शुक्राणु और अंडाणु के मिलने से बनता है।

हालांकि रक्तसम्बन्धो में उतपन्न होने वाले बच्चों में जंतुविज्ञान में एक आशंका जताई जाती है कि बच्चे में कुछ दोष हो सकते हैं जबकि वास्तविक वर्तमान में ऐसा कुछ नहीं देखा गया है, वैसे ही जैसे जंतुविज्ञान का एक पाठ यह कहता है कि 20 ज़रूरी अमीनो अम्लों में से 10 को मनुष्य वनस्पति से प्राप्त नहीं कर सकता। उसे उसके लिये जानवर खाने होंगे। जबकि हकीकत और वर्तमान में ऐसा कभी देखने को नहीं मिला।

यह पाठ भी इसी पाठ की तरह संदिग्ध है। जिसे भविष्य में किसी बड़े आंदोलन के बाद हटाया जाएगा क्योंकि दरअसल जंतुविज्ञान की नींव पशुउत्पाद बेचने के लिये ही रखी गई थी न कि ज्ञान के लिये। इसके लिये ही जंतु विज्ञान, आर्थिक प्राणी विज्ञान नामक पाठ पर समाप्त होता है।

इस तरह समाज के बद्तमीज टाइप लोग अपने आसपास के लड़कों को यह धर्म सलाह देते हैं कि ऐसी महिला/युवती जो घर से बाहर, अकेली, कम कपड़ों में, लड़के से बात करती दिखे वह सेक्स की भूखी है। लेकिन समाज के डर से वह सबके सामने न ही कहेगी। लेकिन उसकी "न में ही हाँ होती है" और अगर वह सिर्फ आपको न बोले लेकिन किसी अन्य को हाँ, मतलब मामला प्रेम का है तो ये उसके माता-पिता की इच्छा का अपमान है।

अतः इसकी सज़ा के रूप में इसका बलात्कार किया जा सकता है क्योकि इनकी नज़रों में उसका प्रेमी पहले ही उसकी इज़्ज़त लूट चुका है, अतः अब सब इसकी इज़्ज़त लूट सकते हैं।

इस तरह की सोच ही समाज का निर्माण देश-विदेश, जहाँ भी धर्म जीवित हैं और व्याभिचार (fornication) शब्द को बुरी नज़र से देखा जाता है, हुआ है। विश्व भर में इस समस्या से जूझ रही है महिला।

व्यभिचार का सही अर्थ होता है:

संज्ञा: व्यभिचार (fornication)
उपयोग: वल्गर
एक-दूसरे से शादी नहीं करने वाले व्यक्तियों के बीच सवैच्छिक संभोग
~ विवाहेतर सेक्स, मुफ्त प्यार
विवाहेत्तर यौन संबंध जो जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण रूप से विवाह संबंधों में हस्तक्षेप करते हैं
= व्यभिचार
~ विवाहेतर सेक्स, मुफ्त प्यार

यह 2 अर्थ दिए गए हैं शब्दकोश में इस शब्द के। मूल अर्थ है कि विवाहित स्त्री पुरुष किसी अन्य विवाहित या अविवाहित से सेक्स न करें। जबकि मूल मकसद वंश को शुद्ध और एक ही घर में रखना था।
कारण भी उस समय जायज था क्योंकि गर्भ निरोधन, pull out गर्भनिरोधक विधि (यानी स्खलन से पूर्व ही लिंग बाहर खींच कर योनि से बाहर वीर्यपात करना) कोई नहीं जानता था। बाकी कुछ लोगों को पता नहीं था कि महिला केवल माह में 7 दिन बच्चे पैदा करने और सम्भोग करने के लिये स्वतः ही उत्तेजित होती है। अतः वे 2 भिन्न गलत फ़हमियों में भी पड़ गए।

1. लड़कियों को प्रायः सेक्स में रुचि नहीं होती। जिसे होती है वह चरित्रहीन है।
2. एक बार सेक्स करने से बच्चा नहीं होता।

ये दोनों ही बातें केवल अज्ञानता के कारण ही पैदा हुई हैं। कारण इतना सा है कि महिला का मासिक चक्र प्रायः 28 दिन का होता है जिसमें सिर्फ मध्य का 1 दिन अण्डोत्सर्ग होता है और उसी दिन से 3 दिवस पूर्व और 3 दिवस बाद तक ही वह उपजाऊ (fertile) होती है। बाकी दिनों में यदि वह इसकी आदत न डाले हो तो वह स्वतः कामुक नहीं होती।

जबकि पुरुष का वृषण में बनने वाला टेस्टोस्टेरोन हार्मोन उसे लगभग हर समय (सुबह के समय सबसे अधिक) उत्तेजित रखता है कि वह स्त्री के शरीर (अधिकतर मामलों में सुडौल) को देखते ही यौन उत्तेजना महसूस करने लगते हैं। यह सब नार्मल है। लेकिन इस पर नियंत्रण करना अधिकतर लोग जानते हैं क्योकि मनुष्य जब तक खुद को घमण्डी और ताकतवर और उच्च न समझे तब तक वह दूसरों की इच्छा और सहमति का सम्मान करता है।
अतः यह सब मिलकर समाज की दशा निर्धारित करते हैं जिनमें महिलाओं को ही दबा कर रखा जाता है क्योंकि उनको लड़कों से दूर रख कर क्योंकि वे व्यायाम वाले कार्य करते हैं; अन्य कमज़ोर महिलाओं की संगत में रखकर कमजोर बना दिया गया है। जबकि महिलाओं में भी ताकतवर महिलाएं समूह में नेतृत्व या गुंडागर्दी करती पाई जाती हैं।

अधिक जानकारी जैसे कौमार्य की सच्चाई आदि के लिये हमारा विशेष लेख "राज़ प्रेम का" हमारी वेबसाइट पर पढ़ें।  2019/01/01 18:47 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©